ETV Bharat / state

दशकों से बेकार और बंजर पड़ी सैकड़ों एकड़ जमीन पर 'मिठास ही मिठास'

आरिफ बताता है कि एक एकड़ में लगभग तीस हजार रुपये की लागत आती है. उस एक एकड़ के फल की बिक्री से पंद्रह से बीस हजार रुपये का फायदा होता है. आरिफ की यह तरकीब गांव में भी अच्छा असर दिखाने लगी है.

तरबूज
author img

By

Published : May 21, 2019, 12:24 PM IST

सहरसा: 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती', यह बात सिर्फ गीतों तक ही सीमित नहीं है. बिहार की बंजर जमीन भी शानदार पैदावार के लिए प्रसिद्ध है. कोसी की धरती पर बंजर पड़ी जमीन से मिठास की पैदावार होना इस गीत को सही साबित करता है. कोसी नदी के किनारे दशकों से बेकार और बंजर पड़ी सैकड़ों एकड़ जमीन पर इन दिनों तरबूज की अच्छी खेती हो रही है. इस खेती से जिले के किसानों की आय तो बढ़ ही रही है, साथ ही साथ सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.

कोसी किनारे उपजे तरबूज

सहरसा जिले के महिषी प्रखंड का बलुआहा गांव से कोसी नदी बहती है. नदी की धार के किनारे की बालू वाली जमीन यूं ही बेकार पड़ी रहती थी. बाढ़ और कटाव के भय से यहां के किसान इस जमीन पर खेती करने से हिचकते थे. चार साल पहले उत्तर प्रदेश के निवासी आरिफ सहरसा आए. वह यहां रहकर कपड़े फेरी लगाते थे. आरिफ की नजर लंबे चौड़े क्षेत्र में फैले इस बालू वाली जमीन पर पड़ी. उसने जमीन के मालिक से बात की और कर्ज लेकर प्रयोग के तौर पर करीब चार एकड़ में तरबूज की खेती शुरू की.

saharsa
तरबूज दिखाते बच्चे

एक एकड़ से मिल रहा 20 हजार का मुनाफा
पांच महीने में तैयार हुए तरबूज ने आरिफ को अच्छा मुनाफा दिया. धीरे-धीरे आरिफ हर साल अपनी खेती का दायरा बढ़ाते चला गये. इस वर्ष चौथे साल आरिफ उत्तर प्रदेश से पचास किसानों को लाकर उनकी मदद से पांच सौ एकड़ में तरबूज उपजा रहे हैं. आरिफ बताते हैं कि एक एकड़ में लगभग तीस हजार रुपये की लागत आती है. उस एक एकड़ के फल की बिक्री से पंद्रह से बीस हजार रुपये का फायदा होता है. आरिफ की यह तरकीब गांव में भी अच्छा असर दिखाने लगी है. अब गांव के लोग भी आरिफ के जुड़कर तरबूज की खेती कर रहे हैं.

saharsa
दूसरे राज्यों में भी होता है सप्लाई

भारत के कई इलाकों में है इसकी सप्लाई
जमीन मालिक डब्लू सिंह ने बताया कि आरिफ से मिलने के बाद उन्होंने भी तरबूज की खेती शुरू की. आज गांव के लगभग सौ किसान उनके साथ जुड़े हैं. उन्होंने बताया कि यहां से तरबूज काठमांडू, विराटनगर सहित पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और बिहार के कई जिलों में जा रहे हैं.

सहरसा: 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती', यह बात सिर्फ गीतों तक ही सीमित नहीं है. बिहार की बंजर जमीन भी शानदार पैदावार के लिए प्रसिद्ध है. कोसी की धरती पर बंजर पड़ी जमीन से मिठास की पैदावार होना इस गीत को सही साबित करता है. कोसी नदी के किनारे दशकों से बेकार और बंजर पड़ी सैकड़ों एकड़ जमीन पर इन दिनों तरबूज की अच्छी खेती हो रही है. इस खेती से जिले के किसानों की आय तो बढ़ ही रही है, साथ ही साथ सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.

कोसी किनारे उपजे तरबूज

सहरसा जिले के महिषी प्रखंड का बलुआहा गांव से कोसी नदी बहती है. नदी की धार के किनारे की बालू वाली जमीन यूं ही बेकार पड़ी रहती थी. बाढ़ और कटाव के भय से यहां के किसान इस जमीन पर खेती करने से हिचकते थे. चार साल पहले उत्तर प्रदेश के निवासी आरिफ सहरसा आए. वह यहां रहकर कपड़े फेरी लगाते थे. आरिफ की नजर लंबे चौड़े क्षेत्र में फैले इस बालू वाली जमीन पर पड़ी. उसने जमीन के मालिक से बात की और कर्ज लेकर प्रयोग के तौर पर करीब चार एकड़ में तरबूज की खेती शुरू की.

saharsa
तरबूज दिखाते बच्चे

एक एकड़ से मिल रहा 20 हजार का मुनाफा
पांच महीने में तैयार हुए तरबूज ने आरिफ को अच्छा मुनाफा दिया. धीरे-धीरे आरिफ हर साल अपनी खेती का दायरा बढ़ाते चला गये. इस वर्ष चौथे साल आरिफ उत्तर प्रदेश से पचास किसानों को लाकर उनकी मदद से पांच सौ एकड़ में तरबूज उपजा रहे हैं. आरिफ बताते हैं कि एक एकड़ में लगभग तीस हजार रुपये की लागत आती है. उस एक एकड़ के फल की बिक्री से पंद्रह से बीस हजार रुपये का फायदा होता है. आरिफ की यह तरकीब गांव में भी अच्छा असर दिखाने लगी है. अब गांव के लोग भी आरिफ के जुड़कर तरबूज की खेती कर रहे हैं.

saharsa
दूसरे राज्यों में भी होता है सप्लाई

भारत के कई इलाकों में है इसकी सप्लाई
जमीन मालिक डब्लू सिंह ने बताया कि आरिफ से मिलने के बाद उन्होंने भी तरबूज की खेती शुरू की. आज गांव के लगभग सौ किसान उनके साथ जुड़े हैं. उन्होंने बताया कि यहां से तरबूज काठमांडू, विराटनगर सहित पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और बिहार के कई जिलों में जा रहे हैं.

Intro:सहरसा..भारत देश की धरती सोना उपजाति है ,यह सिर्फ यहां गीतों तक ही सीमित नही है।यहां की बंजर जमीन भी शानदार पैदावार के लिए प्रसिद्ध है।कोशी की धरती पर बंजर पड़ी जमीन से मिठास की बंपर खेती इस गीत को प्रमाणित करती है।कोशी कछार की दशकों से बेकार और बंजर पड़ी सैकड़ो एकड़ जमीन पर इन दिनों तारबुज की अच्छी खेती हो रही है।इस खेती से किसानों की आय तो काफी बढ़ रही है साथ ही सैकड़ो लोगो को रोजगार भी मिल रहा है।


Body:सहरसा जिले के महिषी प्रखंड का बलुआहा गांव,कोशी नदी की बहती धार के किनारे की बलुआही जमीन यूं ही बेकार पड़ी रहती थी।बाढ़ और कटाव के भय से यहाँ के किसान इस जमीन पर खेती करने से हिचकते थे।चार साल पुरानी बात है यहां रह कर कपड़े की फेरी का काम करने वाले उत्तरप्रदेश के आरिफ की नज़र लंबे चौड़े क्षेत्र में फैले इस बलुआही जमीन पर पड़ी,उसने जमीन के मालिक से बात की और कर्ज़ लेकर प्रयोग के तौर पर करीब चार एकड़ में तारबुज की खेती शुरू की ।पांच महीने में तैयार हुए तारबुज ने उसे अच्छा मुनाफा दिया फिर क्या था आरिफ हर साल अपनी खेती का दायरा बढ़ाते चला गया।आज चौथे साल आरिफ उत्तरप्रदेश से पचास किसानों को लाकर उनकी मदद से पांच सौ एकड़ में तारबुज उपजा रहा है।आरिफ बताता है कि एक एकड़ में लगभग तीस हजार रुपया की लागत आती है और उस एक एकड़ के फल की बिक्री से पंद्रह से बीस हज़ार रुपया का फायदा होता है।आरिफ की यह तरकीब गांव में भी अच्छा असर दिखाने लगी है अब गाँव के लोग भी आरिफ के जुड़कर तारबुज की खेती कर रहे है।जमीन मालिक डब्लू सिंह ने बताया कि आरिफ से मिलने के बाद उन्होंने भी तारबुज की खेती शुरू की अभी गाँव के कम से कम सौ किसान के लगभग उनके साथ जुड़े है।यहां से तारबुज काठमांडू,विराटनगर,सहित पश्चिम बंगाल,असम त्रिपुरा और बिहार के कई जिलों में जा रहा है।


Conclusion:सच मायने में लोगों को रोजगार और आमदनी के लिए मेहनत करने की आवश्यकता होती है।जैसे आरिफ ने रास्ता दिखाया तो गांव के सैकड़ो लोग मेहनत कर बेकार और बंजर पड़ी जमीन से लाखों रुपये की आमदनी पा रहे है।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.