सहरसा: 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती', यह बात सिर्फ गीतों तक ही सीमित नहीं है. बिहार की बंजर जमीन भी शानदार पैदावार के लिए प्रसिद्ध है. कोसी की धरती पर बंजर पड़ी जमीन से मिठास की पैदावार होना इस गीत को सही साबित करता है. कोसी नदी के किनारे दशकों से बेकार और बंजर पड़ी सैकड़ों एकड़ जमीन पर इन दिनों तरबूज की अच्छी खेती हो रही है. इस खेती से जिले के किसानों की आय तो बढ़ ही रही है, साथ ही साथ सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.
सहरसा जिले के महिषी प्रखंड का बलुआहा गांव से कोसी नदी बहती है. नदी की धार के किनारे की बालू वाली जमीन यूं ही बेकार पड़ी रहती थी. बाढ़ और कटाव के भय से यहां के किसान इस जमीन पर खेती करने से हिचकते थे. चार साल पहले उत्तर प्रदेश के निवासी आरिफ सहरसा आए. वह यहां रहकर कपड़े फेरी लगाते थे. आरिफ की नजर लंबे चौड़े क्षेत्र में फैले इस बालू वाली जमीन पर पड़ी. उसने जमीन के मालिक से बात की और कर्ज लेकर प्रयोग के तौर पर करीब चार एकड़ में तरबूज की खेती शुरू की.
एक एकड़ से मिल रहा 20 हजार का मुनाफा
पांच महीने में तैयार हुए तरबूज ने आरिफ को अच्छा मुनाफा दिया. धीरे-धीरे आरिफ हर साल अपनी खेती का दायरा बढ़ाते चला गये. इस वर्ष चौथे साल आरिफ उत्तर प्रदेश से पचास किसानों को लाकर उनकी मदद से पांच सौ एकड़ में तरबूज उपजा रहे हैं. आरिफ बताते हैं कि एक एकड़ में लगभग तीस हजार रुपये की लागत आती है. उस एक एकड़ के फल की बिक्री से पंद्रह से बीस हजार रुपये का फायदा होता है. आरिफ की यह तरकीब गांव में भी अच्छा असर दिखाने लगी है. अब गांव के लोग भी आरिफ के जुड़कर तरबूज की खेती कर रहे हैं.
भारत के कई इलाकों में है इसकी सप्लाई
जमीन मालिक डब्लू सिंह ने बताया कि आरिफ से मिलने के बाद उन्होंने भी तरबूज की खेती शुरू की. आज गांव के लगभग सौ किसान उनके साथ जुड़े हैं. उन्होंने बताया कि यहां से तरबूज काठमांडू, विराटनगर सहित पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और बिहार के कई जिलों में जा रहे हैं.