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ग्राउंड रिपोर्ट : इस स्कूल में छात्राएं आना नहीं चाहती, अभिभावक बोले- हमेशा डर लगा रहता है - बिहार की शिक्षा की खबर

स्कूल में टॉयलेट और चापाकल नहीं होने के कारण छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. छात्राएं इस परेशानी की वजह से कई बार स्कूल आने से भी हिचकती है. छात्राओं ने बताया कि स्कूल में चारदीवारी नहीं होने की वजह से स्कूल के बाहर से मनचले फब्तियां कसते हैं.

सहरसा का राजकीय कन्या उच्च विद्यालय
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Published : Aug 1, 2019, 6:11 AM IST

Updated : Aug 1, 2019, 7:48 AM IST

सहरसा: जिले के पूरब बाजार राजकीय कन्या उच्च विद्यालय आज भी मूलभूत सुविधाओं का मोहताज है. इस जर्जर इमारत वाले विद्यालय में 734 छात्राओं का नामांकन है. लेकिन विद्यालय में शौचालय नहीं है, पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. इतना ही नहीं 734 छात्राओं के बैठने के लिए महज दो कमरे हैं और इन कमरों में पंखे भी नहीं हैं, पंखा तो छोड़िये विद्यालय में बिजली तक नहीं है.

734 छात्राएं, 2 कमरे
राज्य सरकार अपने बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती है. राज्य में खासकर महिला शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है. पर विडंबना इस बात की है कि बिहार के सहरसा में महिला शिक्षा की हकीकत कुछ और ही है. यहां राजकीय कन्या उच्च विद्यालय की छात्राएं स्कूल में बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से उपस्थिति दर्ज करा कर घर लौट जाती हैं.

सहरसा के कन्या उच्च विद्यालय की हालत

टॉयलेट और चापाकल भी नहीं
स्कूल में टॉयलेट और चापाकल नहीं होने के कारण छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. छात्राएं इस परेशानी की वजह से कई बार स्कूल आने से भी हिचकती है. छात्राओं ने बताया कि स्कूल में चारदीवारी नहीं होने की वजह से स्कूल के बाहर से मनचले फब्तियां कसते हैं.

क्या कहते हैं प्रिंसिपल

राजकीय कन्या उच्च विद्यालय के प्रिंसिपल सुभाशीष झा बताते हैं कि स्कूल की समस्या को लेकर कई बार विभाग को खत लिख चुका हूं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. स्कूल में चारदीवारी नहीं होने से विद्यालय मनचलों का अड्डा बन गया है. इस वजह से अभिभावक अपनी बच्चियों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं. विद्यालय में नवीं और दसवीं की पढ़ाई होती है और दोनों कक्षाओं में 4-4 सेक्शन हैं लेकिन छात्राओं के बैठने के लिए दो ही कमरे हैं. बैठने की जगह नहीं होने के कारण छात्राएं हाजिरी लगाकर घर चली जाती हैं.

क्या कहते हैं अभिभावक

अभिभावक भारती शर्मा बताती हैं कि उन्हें अपनी बच्ची को स्कूल भेजने में डर लगता है. वहीं, वो यह भी कहती हैं कि स्कूल के पास हमेशा लफंगों का जमावड़ा लगा रहता है. अगर कभी कुछ अनहोनी हो जाती है तो क्या सरकार इसकी जिम्मेदारी लेगी?

सहरसा: जिले के पूरब बाजार राजकीय कन्या उच्च विद्यालय आज भी मूलभूत सुविधाओं का मोहताज है. इस जर्जर इमारत वाले विद्यालय में 734 छात्राओं का नामांकन है. लेकिन विद्यालय में शौचालय नहीं है, पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. इतना ही नहीं 734 छात्राओं के बैठने के लिए महज दो कमरे हैं और इन कमरों में पंखे भी नहीं हैं, पंखा तो छोड़िये विद्यालय में बिजली तक नहीं है.

734 छात्राएं, 2 कमरे
राज्य सरकार अपने बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती है. राज्य में खासकर महिला शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है. पर विडंबना इस बात की है कि बिहार के सहरसा में महिला शिक्षा की हकीकत कुछ और ही है. यहां राजकीय कन्या उच्च विद्यालय की छात्राएं स्कूल में बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से उपस्थिति दर्ज करा कर घर लौट जाती हैं.

सहरसा के कन्या उच्च विद्यालय की हालत

टॉयलेट और चापाकल भी नहीं
स्कूल में टॉयलेट और चापाकल नहीं होने के कारण छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. छात्राएं इस परेशानी की वजह से कई बार स्कूल आने से भी हिचकती है. छात्राओं ने बताया कि स्कूल में चारदीवारी नहीं होने की वजह से स्कूल के बाहर से मनचले फब्तियां कसते हैं.

क्या कहते हैं प्रिंसिपल

राजकीय कन्या उच्च विद्यालय के प्रिंसिपल सुभाशीष झा बताते हैं कि स्कूल की समस्या को लेकर कई बार विभाग को खत लिख चुका हूं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. स्कूल में चारदीवारी नहीं होने से विद्यालय मनचलों का अड्डा बन गया है. इस वजह से अभिभावक अपनी बच्चियों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं. विद्यालय में नवीं और दसवीं की पढ़ाई होती है और दोनों कक्षाओं में 4-4 सेक्शन हैं लेकिन छात्राओं के बैठने के लिए दो ही कमरे हैं. बैठने की जगह नहीं होने के कारण छात्राएं हाजिरी लगाकर घर चली जाती हैं.

क्या कहते हैं अभिभावक

अभिभावक भारती शर्मा बताती हैं कि उन्हें अपनी बच्ची को स्कूल भेजने में डर लगता है. वहीं, वो यह भी कहती हैं कि स्कूल के पास हमेशा लफंगों का जमावड़ा लगा रहता है. अगर कभी कुछ अनहोनी हो जाती है तो क्या सरकार इसकी जिम्मेदारी लेगी?

Intro:सहरसा...सरकार कहती है कि वह अपने बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती है।उनके राज्य में खासकर महिला शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है।लेकिन बिहार के सहरसा में महिला शिक्षा की हकीकत कुछ और ही है।यहाँ राजकीय कन्या उच्च विद्यालय में नामांकित 734 बच्चियों के लिए मात्र दो कमरे है,साथ ही इस स्कूल में न ही बाथरूम है,और न ही पानी पीने के लिये चापाकल।अब यह सहजता से समझा जा सकता है कि इन दो कमरों में बच्चियां कैसे बैठती होंगी,कैसे पढ़ती होंगी,कैसे बाथरूम जाती होंगी और कैसे पानी पीती होंगी।यह स्थिति कोई नही है बच्चियां इस स्थिति को पिछले 25 वर्षों से झेल रही है।लेकिन सरकार की और से कोई कदम नही उठाया गया है।


Body:राजकीय कन्या उच्च विद्यालय पूरब बाजार की स्थापना 1994 ईस्वी में हुई थी।यहाँ नवमी और दशवीं कक्षा की पढ़ाई होती है।अभी फिलहाल इस स्कूल में 734 छात्राएं नामांकित है।इतनी छात्राएं के लिए मात्र दो कमरे है।इन कमरों में बिजली नही है।जिस कारण से बच्चियों को गर्मी के दिन में बैठने की भी मजबूरी है।सबसे बड़ी बात है कि इस स्कूल में टॉयलेट और चापाकल भी नही है।नौबत आने पर आसपास के घरों का सहारा लेना पड़ता है।स्कूल परिसर में चहारदीवारी की भी व्यवस्था नही है,अगर कभी इन बच्चियों को बाथरूम या प्यास लगता है तो बाहर जाना पड़ता है।स्कूल में चहारदीवारी नही होने की वजह से बच्चियों को बाथरूम और पानी पीने के लिए क्लास रूम से बाहर निकलना पड़ता है।स्कूल कैंपस में चहारदीवारी नही होने से मनचलो का जमावड़ा लगा रहता है जो कि बच्चियों पर गंदी गंदी कमेंट करता है।इस बाबत यहां पढ़ रही बच्चियां बताती है स्कूल में मात्र दो कमरे है,यहां करीब 700 स्टूडेंट है।यहाँ बैठने और पढ़ने में भी काफी परेशानी होती है।सबसे बड़ी समस्या यहाँ बाथरूम और चापाकल की है।साथ ही स्कूल में चहारदीवारी नही होने की वजह से काफी दिक्कत होती है।प्यास लगने के बाद जब क्लास रूम से बाहर निकलते है तो स्कूल से थोड़ा दूर जाकर पानी पीने के लिए जाना पड़ता है,बाहर में खड़े लड़के गंदी गंदी कमेंट करते है मजबूरी यह है कि अब घरवाले स्कूल आने से मना करते है।वही इस बाबत अभिभावक भारती शर्मा बच्चियों को लेकर परेशान है।उन्होंने बताया कि हमेशा डर बना रहता है।कही कुछ अनहोनी न हो जाये।हमेशा स्कूल के पास लफंगों का जमावड़ा लगा रहता है,अगर कभी कुछ अनहोनी हो जाय तो सरकार जवाब देगी।स्कूल में गाय भैस की तरह ठूस कर दो कमरे में बच्चियों को पढ़ाया जाता है।इस स्कूल में नही बाथरूम है और न ही चापाकल।पानी पीने के लिए स्कूल से बाहर जाना पड़ता है।और स्कूल के बाहर चहारदीवारी नही होने की वजह से कभी कोई हादसा ही सकता है। है इस बाबत स्कूल के प्रिंसिपल सुभासिस झा बताते है कि कई बार विभाग को लिखे है कोई सुनने वाला नही है।स्कूल में चहारदीवारी नही होने के कारण मनचलो से परेशान होकर कई बच्ची अब स्कूल भी नही आती है।इन मनचलो की वजह से जो भी बच्ची आती है,सिर्फ हस्ताक्षर कर चली जाती है।



Conclusion:सवाल यह है कि जब सरकार लड़कियों को पढ़ने का सही माहौल नही दे सकती है तो बजट में हिस्सा और महिला शिक्षा की बात क्यों करती है।क्या इस माहौल में बच्चियां डरे सहमे रहकर कुछ बेहतर कर पायेगी?
Last Updated : Aug 1, 2019, 7:48 AM IST
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