सहरसा: बिहार के सहरसा में बस व ऑटो चालक सख्त यातायात नियमों (Bus and auto drivers ignored in Saharsa) की अनदेखी कर खुलेआम यात्रियों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं. जिला परिवहन विभाग या यातायात पुलिस ऐसे वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठा रही है. सबसे खास बात तो यह है कि बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की बसें भी यात्रियों को छत पर ही बैठा कर यात्रा करवा रही हैं. बस मालिकों पर कार्रवाई नहीं करना कई सवाल खड़े कर रहा है. जबकि यातायात के सख्त नियमों में बसों में क्षमता से अधिक यात्री बैठाने पर प्रत्येक सवारी एक हजार रुपये जुमाने का प्रावधान है. बावजूद इसके अभी तक सहरसा स्टैंड से खुलने वाली भागलपुर, फराबीसगंज, कटिहार, पूर्णिया व सुपौल की बसों के छतों पर यात्रियों को बैठ कर यात्रा करते आप हमेशा देख सकते हैं.
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ओवरलोड पर कार्रवाई की सख्त जरूरत : यातायात के सख्त नियमों और भारी जुर्माने के प्रावधान को लेकर आम लोगों का कहना है कि पुलिस केवल इक सवार व छोटे वाहनों से सफर करने वाले लोगों को परेशान करने में लगी है. ओवरलोड बसों, टेम्पो या ट्रकों पर परिवहन विभाग या यातायात पुलिस द्वारा किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. लगभग सभी रूटों पर ओवरलोड कर बस व टेम्पो चालक यात्रियों के जान से खेल रहा है. जो कभी भी बड़े हादसे का गवाह बन सकता है.
बसों पर 55 से 60 यात्रियों को बैठाया जाता : जिला मुख्यालय से विभिन्न मार्गों पर चलने वाली लगभग सभी यात्री वाहनों का संचालन ओवरलोड के बाद ही होता है. आठ सीट वाले टेम्पो पर 10-12 लोग को बिठाया जाता है. जबकि 42 सीट वाली बसों पर 55 से 60 यात्रियों को बैठाया जाता हैं. अन्य वाहनों पर यात्रियों को भेड़-बकरियों की तरह लाद दिया जाता है. बावजूद परिवहन विभाग इन पर कोई कार्रवाई नहीं करता है. आखिर हेमलेट व सीट बैल्ट से जुर्माना वसुली कर किस तरह से सरकार या विभाग सड़क दुर्घटनाओं को रोकने का दावा कर रही है. सवाल लाजमी है जिसको लेकर प्रशासन को पहल करने की जरूरत है।
बसों में सुरक्षा मानकों की उड़ रहीं धज्जियां : मोटरयान अधिनियम 1988 व समय-समय पर यात्रियों की सुरक्षा के लिए बने मानकों की पूरी तरह अनदेखी होती है. जिले में चलनेवाली लगभग सभी यात्री वाहनों में न्यूनतम सुरक्षा के उपाय भी उपलब्ध नहीं है. विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुसार, इन यात्री वाहनों में प्राथमिक चिकित्सा के लिए फर्स्ट एड बॉक्स होने चाहिए. लेकिन जिले के सभी यात्री वाहनों में ये साधन नदारद देखे गए हैं. बसों में आपातकालीन खिड़कियों की हालत बदतर दिखी. लगभग सभी वाहनों में लगे आपातकालीन खिड़कियों के शीशे जाम दिखे. किराया सूची के सार्वजनिक नहीं होने से यात्रियों से अधिक भाड़ा वसूला जाता है. बावजूद परिवहन विभाग यात्री वाहनों में किराया-सूची लगवाने को लेकर उदासीन रवैया अपनाता है.
"सरकार ने यात्री वाहनों के लिए जो भी सुरक्षा मानक बनाए हैं, वो सभी बस चालकों की मनमानी के आगे बेकार हैं. यात्रा के दौरान किसी तरह सकुशल घर लौटना ही प्राथमिकता होती है. निजी बस में यात्री सुविधा का ख्याल नहीं रखा जाता है."- राजकिशोर राज, सुपौल
"यात्रा के दौरान किराया को लेकर अक्सर बहस होती है. किराया की तुलना में यात्रियों को सुविधा नहीं दी जाती है. बस संचालक सिर्फ किराया वसूलने तक आपसे नम्र व्यवहार रखते हैं. इसके बाद आपकी परेशानी से कोई मतलब नहीं रहता. सीट तक बस मैं उपलब्ध नहीं कराया जाता है." -अजय कुमार, सहरसा
"बसों में कभी फर्स्ट एड बॉक्स नहीं रहता है. अग्निशमन यंत्र तो दूर की बात है. बसों में लगे आपातकालीन खिड़कियां जाम रहती है. किसी भी बस में सुरक्षा के मानकों का पालन नहीं होता है. अधिकारी सुध ले तो भय से कुछ सुधार भी हो सकता है."- निकेश कुमार, मधेपुरा
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