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जेल के बाहर 'आनंद'! बिहार की राजनीति का रॉबिन हुड, जानें पूरी कहानी - ETV Bharat Bihar

बिहार के ही नहीं बल्कि देश भर में रॉबिन हुड छवि से चर्चित सहरसा जेल में 15 वर्षों से बंद पूर्व सांसद आनंद मोहन (FORMER MP ANAND MOHAN) 15 दिनों के लिए पैरोल पर आज जेल से बाहर निकले हैं. आनंद मोहन के पैरोल पर बाहर निकलने की जानकारी मिलते ही जेल के बाहर हजारों के तादात में उनके समर्थक स्वागत में खड़े हो गए. पर क्या आप आनंद मोहन की अब के सफरनामा से परिचित हैं. अगर नहीं तो आइये आपको बताते हैं...

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Published : Nov 4, 2022, 4:22 PM IST

Updated : Nov 16, 2022, 7:49 PM IST

पटना: बिहार की राजनीति में धनबल, जातिबल और बाहुबल ने हमेशा अपना दबदबा कायम रखा है. इसी में से एक नाम है आनंद मोहन (ANAND MOHAN POLITICAL JOURNEY) का. जो आज 15 दिनों के पैरोल पर बाहर आए (Anand Mohn got parole) हैं. 1980 के दशक की बात करें तो, बिहार की राजनीति में साधन संपन्न बाहुबली सियासत में पर्याय बन गए थे. बिहार के कोसी क्षेत्र में इस बाहुबली की तूती बोलती थी. कहा जाता है कि सत्ता की गद्दी पर पटना में चाहे जो बैठे लेकिन उनके इलाके में सत्ता और सरकार दोनों उन्हीं की चलती थी.

ये भी पढ़ें - आनंद मोहन पैरोल पर रिहा, जेल से बाहर आने के बाद पढ़ी गीता की पंक्तियां

कभी लालू यादव आनंद मोहन में थी अदावत : बिहार की राजनीति में आनंद मोहन (Anand Mohan Life) एक ऐसा नाम थे, जिनकी राजनीति लालू यादव को उनकी ही भाषा में टक्कर देने का काम करती थी. एक दौर ऐसा था जब आनंद मोहन का जलवा इतना जबरदस्त था कि उनके क्षेत्र में लालू यादव भी जाने से डरते थे. लेकिन सियासत भी अपने तरीके की ही पटकथा लिखती है. राजनीति में वर्चस्व को कायम करने के लिए हमेशा बाहुबल का प्रयोग होता है और यही हुआ आनंद मोहन के साथ.


1990 में 62 हजार से ज्यादा वोटों से ज्यादा वोट से जीतक बने विधायक : लालू से अदावत के बदौलत बिहार में उनकी साख तो बनी लेकिन राजनीति में बढ़ती महत्वाकांक्षा ने उनको सियासत के कुचक्र का शिकार बना दिया और पूरी सियासत की चौपट हो गयी. 80 के दशक में आनंद मोहन सहरसा और कोसी के क्षेत्र में मजबूत बाहुबली के नाम पर स्थापित हो चुके थे. 1983 में आनंद मोहन पहली बार 3 महीने के लिए जेल गए और 1990 के विधानसभा चुनाव में मेहसी सीट से 62 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की.

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बाहुबली कहलाए आनंद मोहन.

जॉर्ज फर्नांडिस से मिलाया हाथ : जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते थे. हालांकि, जिस तरीके से आनंद मोहन का क्रेज था. उसके हिसाब से वो बहुत ज्यादा दिनों तक वे जनता दल में नहीं रहे. 1993 में जनता दल से अलग होकर के उन्होंने पीपुल्स पार्टी बनाई. हालांकि, यह पार्टी बहुत मजबूत नहीं हो पायी और यह राजनीति का तकाजा ही था कि आनंद मोहन को समता पार्टी के साथ हाथ मिलाना पड़ा. इसके कर्ताधर्ता तत्कालीन बड़े नेता जॉर्ज फर्नांडिस थे और उनके साथ नीतीश कुमार चल रहे थे.


DM की हत्या बनी गले की फांस : बिहार की सियासत में स्थापित हो रहे आनंद मोहन ऐसे तमाम बाहुबलियों के साथ दोस्ती भी बना रहे थे, जो एक खास वर्ग के थे और मंडल कमीशन के बाद बदले राजनीतिक हालात में उन नेताओं को टक्कर देने का भी काम कर रहे थे. जो सवर्ण सियासत को राजनीति से किनारे करना चाहते थे. कोसी से आनंद मोहन और मुजफ्फरपुर क्षेत्र से छोटन शुक्ला-भुटकुन शुक्ला गैंग से आनंद मोहन की नजदीकियों ज्यादा बढ़ी. हालांकि, बढ़ते वर्चस्व में अंडरवर्ल्ड के बीच एक लड़ाई शुरू हो गई और 1994 में मुजफ्फरपुर में छोटन शुक्ला की हत्या हो गई. हत्या को लेकर इतना ज्यादा उबाल था कि उनके अंतिम संस्कार के लिए जा रही भीड़ ने गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी डी कृष्णैया की हत्या कर दी. डीएम की हत्या के ने भले उस समय आनंद मोहन को चर्चा का विषय बनाया लेकिन यही हत्या आनंद मोहन के सियासी चर्चा के खत्म होने का कारण भी बन गयी.

ईटीवी भारत GFX.
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संसद की चौखट पर पहुंचे आनंद मोहन : आनंद मोहन को जेल भेजने में लालू यादव की अहम भूमिका रही. लालू यादव उत्तर बिहार में अपना दबदबा कायम करने के लिए रणनीति बना रहे थे. ऐसे में आनंद मोहन और छोटकन भुटकुन शुक्ला को रोके बगैर यह संभव नहीं था. लालू यादव आनंद मोहन के पीछे पड़ गए थे और यह बात पूरे बिहार की सियासत में फैल गई परिणाम यह हुआ कि 1996 में आनंद मोहन जेल से ही चुनाव लड़े और समता पार्टी के टिकट पर शिवहर सीट से 40 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए.

निचली अदालत ने सुनाई मौत की सजा : आनंद मोहन ने 1998 में शिवहर से चुनाव लड़ा और इस चुनाव को जीता भी लेकिन उसके बाद के चुनाव में आनंद मोहन हारते चले गए. बदलते राजनीतिक हालात और डीएम के हत्या के मामले में साल 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. निचली अदालत के फैसले को लेकर पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई और पटना हाईकोर्ट में आनंद मोहन की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. जिसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में पेश हुई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रख दिया और तब से आनंद मोहन जेल में हैं. माना यह जाता है कि इस पूरे षडयंत्र के पीछे लालू यादव का हाथ रहा है.

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जेल में आनंद मोहन ने लिखी किताबें.

लालू परिवार के साथ आए आनंद मोहन : यह सियासत का ताना-बाना है कि राजनीति में न कोई किसी का दोस्त होता है ना कोई दुश्मन. जिस आनंद मोहन को लेकर लालू यादव इतने खौफ में थे कि आनंद मोहन की हत्या तक के लिए प्लान बना लिया गया और चंद्रशेखर सिंह के हस्तक्षेप के बाद मामले में बीच बचाव हुआ था. अब उसी लालू यादव की पार्टी को मजबूत करने के लिए आनंद मोहन का परिवार जजट गया है. लालू परिवार उनके लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने का काम कर रहा है. मामला साफ है कि दोनों परिवार राजनीतिक अवसरवाद का इतना मजबूत शिकार हुए हैं कि सत्ता ही नहीं, राजनति में उनकी पकड़ ने भी उनसे किनारा कर लिया. आनंद मोहन का बेटा चेतन आनंद फिलहाल आरजेडी से विधायक हैं.

पटना: बिहार की राजनीति में धनबल, जातिबल और बाहुबल ने हमेशा अपना दबदबा कायम रखा है. इसी में से एक नाम है आनंद मोहन (ANAND MOHAN POLITICAL JOURNEY) का. जो आज 15 दिनों के पैरोल पर बाहर आए (Anand Mohn got parole) हैं. 1980 के दशक की बात करें तो, बिहार की राजनीति में साधन संपन्न बाहुबली सियासत में पर्याय बन गए थे. बिहार के कोसी क्षेत्र में इस बाहुबली की तूती बोलती थी. कहा जाता है कि सत्ता की गद्दी पर पटना में चाहे जो बैठे लेकिन उनके इलाके में सत्ता और सरकार दोनों उन्हीं की चलती थी.

ये भी पढ़ें - आनंद मोहन पैरोल पर रिहा, जेल से बाहर आने के बाद पढ़ी गीता की पंक्तियां

कभी लालू यादव आनंद मोहन में थी अदावत : बिहार की राजनीति में आनंद मोहन (Anand Mohan Life) एक ऐसा नाम थे, जिनकी राजनीति लालू यादव को उनकी ही भाषा में टक्कर देने का काम करती थी. एक दौर ऐसा था जब आनंद मोहन का जलवा इतना जबरदस्त था कि उनके क्षेत्र में लालू यादव भी जाने से डरते थे. लेकिन सियासत भी अपने तरीके की ही पटकथा लिखती है. राजनीति में वर्चस्व को कायम करने के लिए हमेशा बाहुबल का प्रयोग होता है और यही हुआ आनंद मोहन के साथ.


1990 में 62 हजार से ज्यादा वोटों से ज्यादा वोट से जीतक बने विधायक : लालू से अदावत के बदौलत बिहार में उनकी साख तो बनी लेकिन राजनीति में बढ़ती महत्वाकांक्षा ने उनको सियासत के कुचक्र का शिकार बना दिया और पूरी सियासत की चौपट हो गयी. 80 के दशक में आनंद मोहन सहरसा और कोसी के क्षेत्र में मजबूत बाहुबली के नाम पर स्थापित हो चुके थे. 1983 में आनंद मोहन पहली बार 3 महीने के लिए जेल गए और 1990 के विधानसभा चुनाव में मेहसी सीट से 62 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की.

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बाहुबली कहलाए आनंद मोहन.

जॉर्ज फर्नांडिस से मिलाया हाथ : जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते थे. हालांकि, जिस तरीके से आनंद मोहन का क्रेज था. उसके हिसाब से वो बहुत ज्यादा दिनों तक वे जनता दल में नहीं रहे. 1993 में जनता दल से अलग होकर के उन्होंने पीपुल्स पार्टी बनाई. हालांकि, यह पार्टी बहुत मजबूत नहीं हो पायी और यह राजनीति का तकाजा ही था कि आनंद मोहन को समता पार्टी के साथ हाथ मिलाना पड़ा. इसके कर्ताधर्ता तत्कालीन बड़े नेता जॉर्ज फर्नांडिस थे और उनके साथ नीतीश कुमार चल रहे थे.


DM की हत्या बनी गले की फांस : बिहार की सियासत में स्थापित हो रहे आनंद मोहन ऐसे तमाम बाहुबलियों के साथ दोस्ती भी बना रहे थे, जो एक खास वर्ग के थे और मंडल कमीशन के बाद बदले राजनीतिक हालात में उन नेताओं को टक्कर देने का भी काम कर रहे थे. जो सवर्ण सियासत को राजनीति से किनारे करना चाहते थे. कोसी से आनंद मोहन और मुजफ्फरपुर क्षेत्र से छोटन शुक्ला-भुटकुन शुक्ला गैंग से आनंद मोहन की नजदीकियों ज्यादा बढ़ी. हालांकि, बढ़ते वर्चस्व में अंडरवर्ल्ड के बीच एक लड़ाई शुरू हो गई और 1994 में मुजफ्फरपुर में छोटन शुक्ला की हत्या हो गई. हत्या को लेकर इतना ज्यादा उबाल था कि उनके अंतिम संस्कार के लिए जा रही भीड़ ने गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी डी कृष्णैया की हत्या कर दी. डीएम की हत्या के ने भले उस समय आनंद मोहन को चर्चा का विषय बनाया लेकिन यही हत्या आनंद मोहन के सियासी चर्चा के खत्म होने का कारण भी बन गयी.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX.

संसद की चौखट पर पहुंचे आनंद मोहन : आनंद मोहन को जेल भेजने में लालू यादव की अहम भूमिका रही. लालू यादव उत्तर बिहार में अपना दबदबा कायम करने के लिए रणनीति बना रहे थे. ऐसे में आनंद मोहन और छोटकन भुटकुन शुक्ला को रोके बगैर यह संभव नहीं था. लालू यादव आनंद मोहन के पीछे पड़ गए थे और यह बात पूरे बिहार की सियासत में फैल गई परिणाम यह हुआ कि 1996 में आनंद मोहन जेल से ही चुनाव लड़े और समता पार्टी के टिकट पर शिवहर सीट से 40 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए.

निचली अदालत ने सुनाई मौत की सजा : आनंद मोहन ने 1998 में शिवहर से चुनाव लड़ा और इस चुनाव को जीता भी लेकिन उसके बाद के चुनाव में आनंद मोहन हारते चले गए. बदलते राजनीतिक हालात और डीएम के हत्या के मामले में साल 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. निचली अदालत के फैसले को लेकर पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई और पटना हाईकोर्ट में आनंद मोहन की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. जिसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में पेश हुई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रख दिया और तब से आनंद मोहन जेल में हैं. माना यह जाता है कि इस पूरे षडयंत्र के पीछे लालू यादव का हाथ रहा है.

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जेल में आनंद मोहन ने लिखी किताबें.

लालू परिवार के साथ आए आनंद मोहन : यह सियासत का ताना-बाना है कि राजनीति में न कोई किसी का दोस्त होता है ना कोई दुश्मन. जिस आनंद मोहन को लेकर लालू यादव इतने खौफ में थे कि आनंद मोहन की हत्या तक के लिए प्लान बना लिया गया और चंद्रशेखर सिंह के हस्तक्षेप के बाद मामले में बीच बचाव हुआ था. अब उसी लालू यादव की पार्टी को मजबूत करने के लिए आनंद मोहन का परिवार जजट गया है. लालू परिवार उनके लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने का काम कर रहा है. मामला साफ है कि दोनों परिवार राजनीतिक अवसरवाद का इतना मजबूत शिकार हुए हैं कि सत्ता ही नहीं, राजनति में उनकी पकड़ ने भी उनसे किनारा कर लिया. आनंद मोहन का बेटा चेतन आनंद फिलहाल आरजेडी से विधायक हैं.

Last Updated : Nov 16, 2022, 7:49 PM IST
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