रोहतास: प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था के वर्तमान समय में क्या हालात हैं, वो किसी से छुपा नहीं हैं. हालांकि सरकार राज्य में चारों ओर विकास की बात बोलकर खुद से अपनी पीठ थपथपा लेती है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करते हैं. ताजा मामला जिले के गंगोली गांव के महादलित टोले का है. जहां के एक भी सरकारी विद्यालय नहीं है.
नौनिहालों का भविष्य हो रहा चौपट
जिला मुख्यालय सासाराम से 18 किमी दूर रेलवे लाइन के किनारे बसे इस गांव में सरकारी स्कूल नहीं होने से बच्चों के अभिभावकों के चेहरे पर उनके भविष्य को लेकर काफी चिंता है. लोगों का कहना है कि स्कूल नहीं होने की वजह से हमारे बच्चों का अधिकांश समय खेलकूद में बीत जाता है. हम इतने सक्षम भी नहीं है कि अपने बच्चों को किसी निजी स्कूल में भेज सकें. ऐसे में सरकारी विद्यालय ही हमारे सपनों को पूरा करने का एकमात्र जरिया है.
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'गांव से 2 किमी दूर रेलवे लाइन पार है स्कूल'
बताया जाता है कि गांव से 2 किमी दूर रेलवे लाइन पार एक सरकारी स्कूल है. इस विद्यालय को लेकर जब ईटीवी भारत की टीम ने गांव के लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि किसी अप्रिय घटना के भय से हम अपने बच्चों को उस स्कूल में नहीं भेजते है. वहीं, गांव के ही एक बच्चे ने बताया कि हमें पढने लिखने का तो बहुत शौक है, लेकिन स्कूल के दूर और रेलवे लाइन पार होने की वजह से हमलोगों के माता-पिता उस स्कूल में भेजने से मना करते हैं. उसने बताया कि उसे पढ़ लिख कर डॉक्टर बनना है, इसलिए प्रशासन हमारे इलाके में एक स्कूल का निर्माण करवा दे. जिससे हमलोग अपने सपने को पूरा कर पाएं.
'पढ़ा लिखा दो मेरे बच्चों को, सरकार तुझसे यही गुहार'
इस, बाबत स्थानीय लोग बताते है कि इम महादलित टोले में लगभग 2 हजार की आबादी बसती है. लेकिन यहां एक भी सरकारी स्कूल नहीं है. गांव के रमिता देवी और मदन पासवान बताते है कि गांव में स्कूल निर्माण को लेकर यहां के माननीयों से लेकर अधिकारियों तक कई बार गुहार लगा चुके है. हालांकि चुनाव के समय माननीय हर बार स्कूल निर्माण की बात जरूर करते है, लेकिन चुनाव जितने के बाद वह वादा आगामी साल में परिवर्तीत हो जाता है. लोगों ने सरकार से मार्मिक अपील करते हुए कहा कि सरकार चाहे तो हमारी सभी सुविधाओं में कटौती कर दे. लेकिन मेरे बच्चों को पढ़ा लिखा दें.
'8 साल से अधिकारियों से लगा रहा हूं गुहार'
इस बाबत, ग्रामीणों ने कहा कि क्षेत्र में एक सरकारी स्कूल बनवाने के लिए वे साल 2011 से ही प्रयासरत हैं. इस बात को लेकर वो स्थानीय मंत्री, विधायक और सांसद से लेकर जिले के आला अधिकारियों के पास गुहार लगा कर थक चुकें है. लेकिन आश्वाशन के अलावे हमें कुछ भी हाथ नहीं लगा.