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इस गांव में नहीं है एक भी सरकारी स्कूल, अंधकार में है नौनिहालों का भविष्य

जिला मुख्यालय सासाराम से 18 किमी दूर रेलवे लाइन के किनारे बसे इस गांव में सरकारी स्कूल नहीं होने से बच्चों के अभिभावकों के चेहरे पर उनके भविष्य को लेकर काफी चिंता है. लोगों का कहना है कि स्कूल नहीं होने के वजह से हमारे बच्चों का अधिकांश समय खेलकूद में बीत जाता है. हम इतने सक्षम भी नहीं है कि अपने बच्चों को किसी निजी स्कूल में भेज सकें.

रोहतास
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Published : Nov 24, 2019, 11:39 AM IST

रोहतास: प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था के वर्तमान समय में क्या हालात हैं, वो किसी से छुपा नहीं हैं. हालांकि सरकार राज्य में चारों ओर विकास की बात बोलकर खुद से अपनी पीठ थपथपा लेती है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करते हैं. ताजा मामला जिले के गंगोली गांव के महादलित टोले का है. जहां के एक भी सरकारी विद्यालय नहीं है.

नौनिहालों का भविष्य हो रहा चौपट
जिला मुख्यालय सासाराम से 18 किमी दूर रेलवे लाइन के किनारे बसे इस गांव में सरकारी स्कूल नहीं होने से बच्चों के अभिभावकों के चेहरे पर उनके भविष्य को लेकर काफी चिंता है. लोगों का कहना है कि स्कूल नहीं होने की वजह से हमारे बच्चों का अधिकांश समय खेलकूद में बीत जाता है. हम इतने सक्षम भी नहीं है कि अपने बच्चों को किसी निजी स्कूल में भेज सकें. ऐसे में सरकारी विद्यालय ही हमारे सपनों को पूरा करने का एकमात्र जरिया है.

रेलवे ट्रैक पर स्कूल
रेलवे ट्रैक पर स्कूल

ये भी पढ़ें- CM नीतीश ने शराबबंदी को लेकर की उच्चस्तरीय बैठक, बोले- बदल रहा है बिहार

'गांव से 2 किमी दूर रेलवे लाइन पार है स्कूल'
बताया जाता है कि गांव से 2 किमी दूर रेलवे लाइन पार एक सरकारी स्कूल है. इस विद्यालय को लेकर जब ईटीवी भारत की टीम ने गांव के लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि किसी अप्रिय घटना के भय से हम अपने बच्चों को उस स्कूल में नहीं भेजते है. वहीं, गांव के ही एक बच्चे ने बताया कि हमें पढने लिखने का तो बहुत शौक है, लेकिन स्कूल के दूर और रेलवे लाइन पार होने की वजह से हमलोगों के माता-पिता उस स्कूल में भेजने से मना करते हैं. उसने बताया कि उसे पढ़ लिख कर डॉक्टर बनना है, इसलिए प्रशासन हमारे इलाके में एक स्कूल का निर्माण करवा दे. जिससे हमलोग अपने सपने को पूरा कर पाएं.

महादलित टोले के बच्चे
महादलित टोले के बच्चे

'पढ़ा लिखा दो मेरे बच्चों को, सरकार तुझसे यही गुहार'
इस, बाबत स्थानीय लोग बताते है कि इम महादलित टोले में लगभग 2 हजार की आबादी बसती है. लेकिन यहां एक भी सरकारी स्कूल नहीं है. गांव के रमिता देवी और मदन पासवान बताते है कि गांव में स्कूल निर्माण को लेकर यहां के माननीयों से लेकर अधिकारियों तक कई बार गुहार लगा चुके है. हालांकि चुनाव के समय माननीय हर बार स्कूल निर्माण की बात जरूर करते है, लेकिन चुनाव जितने के बाद वह वादा आगामी साल में परिवर्तीत हो जाता है. लोगों ने सरकार से मार्मिक अपील करते हुए कहा कि सरकार चाहे तो हमारी सभी सुविधाओं में कटौती कर दे. लेकिन मेरे बच्चों को पढ़ा लिखा दें.

पेश है एक रिपोर्ट

'8 साल से अधिकारियों से लगा रहा हूं गुहार'
इस बाबत, ग्रामीणों ने कहा कि क्षेत्र में एक सरकारी स्कूल बनवाने के लिए वे साल 2011 से ही प्रयासरत हैं. इस बात को लेकर वो स्थानीय मंत्री, विधायक और सांसद से लेकर जिले के आला अधिकारियों के पास गुहार लगा कर थक चुकें है. लेकिन आश्वाशन के अलावे हमें कुछ भी हाथ नहीं लगा.

रोहतास: प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था के वर्तमान समय में क्या हालात हैं, वो किसी से छुपा नहीं हैं. हालांकि सरकार राज्य में चारों ओर विकास की बात बोलकर खुद से अपनी पीठ थपथपा लेती है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करते हैं. ताजा मामला जिले के गंगोली गांव के महादलित टोले का है. जहां के एक भी सरकारी विद्यालय नहीं है.

नौनिहालों का भविष्य हो रहा चौपट
जिला मुख्यालय सासाराम से 18 किमी दूर रेलवे लाइन के किनारे बसे इस गांव में सरकारी स्कूल नहीं होने से बच्चों के अभिभावकों के चेहरे पर उनके भविष्य को लेकर काफी चिंता है. लोगों का कहना है कि स्कूल नहीं होने की वजह से हमारे बच्चों का अधिकांश समय खेलकूद में बीत जाता है. हम इतने सक्षम भी नहीं है कि अपने बच्चों को किसी निजी स्कूल में भेज सकें. ऐसे में सरकारी विद्यालय ही हमारे सपनों को पूरा करने का एकमात्र जरिया है.

रेलवे ट्रैक पर स्कूल
रेलवे ट्रैक पर स्कूल

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'गांव से 2 किमी दूर रेलवे लाइन पार है स्कूल'
बताया जाता है कि गांव से 2 किमी दूर रेलवे लाइन पार एक सरकारी स्कूल है. इस विद्यालय को लेकर जब ईटीवी भारत की टीम ने गांव के लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि किसी अप्रिय घटना के भय से हम अपने बच्चों को उस स्कूल में नहीं भेजते है. वहीं, गांव के ही एक बच्चे ने बताया कि हमें पढने लिखने का तो बहुत शौक है, लेकिन स्कूल के दूर और रेलवे लाइन पार होने की वजह से हमलोगों के माता-पिता उस स्कूल में भेजने से मना करते हैं. उसने बताया कि उसे पढ़ लिख कर डॉक्टर बनना है, इसलिए प्रशासन हमारे इलाके में एक स्कूल का निर्माण करवा दे. जिससे हमलोग अपने सपने को पूरा कर पाएं.

महादलित टोले के बच्चे
महादलित टोले के बच्चे

'पढ़ा लिखा दो मेरे बच्चों को, सरकार तुझसे यही गुहार'
इस, बाबत स्थानीय लोग बताते है कि इम महादलित टोले में लगभग 2 हजार की आबादी बसती है. लेकिन यहां एक भी सरकारी स्कूल नहीं है. गांव के रमिता देवी और मदन पासवान बताते है कि गांव में स्कूल निर्माण को लेकर यहां के माननीयों से लेकर अधिकारियों तक कई बार गुहार लगा चुके है. हालांकि चुनाव के समय माननीय हर बार स्कूल निर्माण की बात जरूर करते है, लेकिन चुनाव जितने के बाद वह वादा आगामी साल में परिवर्तीत हो जाता है. लोगों ने सरकार से मार्मिक अपील करते हुए कहा कि सरकार चाहे तो हमारी सभी सुविधाओं में कटौती कर दे. लेकिन मेरे बच्चों को पढ़ा लिखा दें.

पेश है एक रिपोर्ट

'8 साल से अधिकारियों से लगा रहा हूं गुहार'
इस बाबत, ग्रामीणों ने कहा कि क्षेत्र में एक सरकारी स्कूल बनवाने के लिए वे साल 2011 से ही प्रयासरत हैं. इस बात को लेकर वो स्थानीय मंत्री, विधायक और सांसद से लेकर जिले के आला अधिकारियों के पास गुहार लगा कर थक चुकें है. लेकिन आश्वाशन के अलावे हमें कुछ भी हाथ नहीं लगा.

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report-ravi kumar /sasaram
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रोहतास यूं तो सूबे की नीतीश सरकार ने महा दलितों के लिए कई तरह की योजनाएं चला रखी हैं है लेकिन इन योजनाओं का लाभ उन लोगो को कितना मिल पाता है इसकी बानगी जिले के इस महादलित टोले में देखने को मिल रही है जहां लगभग 2000 की आबादी वाले इस महादलित टोले के लोग एक सरकारी स्कूल के लिए पिछले कई सालों से तरस रहे हैं आलम यह है कि लोगों ने मंत्री विधायक से लेकर अधिकारियों तक भी गुहार लगाई लेकिन नतीजा सिफर रहा





Body:यह तस्वीरें हैं जिले के गंगोली गांव के महादलित टोले की जहां इस महादलित टोले में बच्चों के पढ़ने के लिए एक सरकारी विद्यालय तक नहीं है विद्यालय के अभाव में महादलित टोले के बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं वहीं उनके माता-पिता भी बच्चों के भविष्य को लेकर खासे चिंता में हैं दरअसल जिला मुख्यालय सासाराम से 18 किलोमीटर दूर रेलवे लाइन के किनारे बसे गांव गंगौली में आसपास के डेढ़ किलोमीटर दूर तक बच्चों के लिए कोई सरकारी स्कूल तक नहीं है जिस कारण बच्चे भी स्कूल जाने से हिचकते है और खेल कूद में ही समय गवां देते है

गावँ से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर रेलवे लाइन से सटे सरकारी विद्यालय में बच्चों के माता-पिता स्कूल भेजने से डरते हैं उनका कहना है कि यहां से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर एक सरकारी विद्यालय है रेलवे लाइन के किनारे होने के कारण वहां बच्चों को भेजने में डर लगता है कि कभी उनके साथ कोई हादसा ना हो जाए अगर उनके इलाके में ही कोई प्राथमिक विद्यालय खुल जाए तो बच्चों को पढ़ने के लिए वह भेजने में सक्षम होंगे
इलाके के ही रामचंद्र पासवान कहते हैं की 2011 से ही कई बार उन्होंने मंत्री विधायक और सांसद से लेकर जिलाधिकारी तक गुहार लगाई लेकिन नतीजा सिफर रहा अब वह लोग चाहते हैं कि किसी तरह उनके इस टोले में प्राथमिक स्कूल खुल जाए ताकि वह अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज सकें


Conclusion:बाहर हाल एक तरफ सरकार महा दलितों के लिए बड़े-बड़े दावे करती है वहीं इस महादलित टोले के लोगों की एक सरकारी स्कूल की मांग अब तक पूरी न होना सरकार के दावों की पोल खोल कर रख दी है देखना दिलचस्प होगा की लोगों के विद्यालय की मांग का सपना सरकार और उनके कारिंदे कब तक पूरी कर पाते हैं ताकि बच्चों का भविष्य बन सके
बाईट - रमिता देवी ग्रामीण
बाईट - चन्दन बच्चा
बाईट- मदन पासवान ग्रामीण

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