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रोहतास: 'ब्रान' से तेल बनाने की योजना फेल, करोड़ों की मशीनें खराब

राइस मिलों में धान से चावल बनाने के दौरान चावल के ऊपरी छिलके को ब्रान कहते हैं. सीधे शब्दों में कह सकते हैं कि चावल की भूसी से तेल निकाला जाता है और यह तेल काफी गुणकारी होती है.

रोहतास
सरकारी उदासीनता के कारण जंग खा रहा कारखाना
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Published : Feb 16, 2021, 2:09 PM IST

रोहतास: जिले को धान का कटोरा कहा जाता है. एक समय यहां के धान के चावल बनाने के दौरान निकलने वाले 'ब्रान' से तेल बनाने की योजना पर काम चल रहा था. लेकिन अब यह तमाम योजनाएं ठप हो गई हैं.

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40 साल पहले स्थापित मशीन खा रही जंग
दरअसल, जिले के बिक्रमगंज में सन 1980 में चावल के ब्रान तेल और मवेशियों के चारा बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर जापानी तकनीक से संयंत्र लगाया गया था. लेकिन सरकारी और राजनीतिक उदासीनता के कारण यह संयंत्र कभी चालू ही नहीं हो सका. आज भी बिक्रमगंज के बिस्कोमान परिसर में 40 साल पहले स्थापित यह संयंत्र जंग खा रही है. लोगों को उम्मीद जगी थी कि इसके चालू होने से क्षेत्र में उद्योग का विकास होगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा. साथ ही किसानों को भी फायदा होगा पर लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

सरकारी उदासीनता के कारण जंग खा रहा कारखाना

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चावल की भूसी का तेल स्वास्थ्यवर्धक
ऐसे में अगर सरकार चावल की भूसी ब्रान से तेल निकालने कि इस संयंत्र को पुनर्जीवित करने का प्रयास करती है तो इलाके के लोगों को फायदा होगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. लेकिन यह तमाम संयंत्र आज कबाड़ा बन गया है. इलाके के लोग बताते हैं कि चावल की भूसी से जो तेल निकलता है. वह काफी लाभदायक होता है.

कारखाने को फिर से चालू करने की मांग
जानकार, इसे स्वास्थ्यवर्धक बताते हैं और इन दिनों उसकी मांग भी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है. साथ ही यहां कई तरह के केमिकल भी बनाने का उद्देश्य था. ऐसे में यहां के लोगो ने अब सरकार से इस कारखाने को चालू करने की मांग की है.

रोहतास: जिले को धान का कटोरा कहा जाता है. एक समय यहां के धान के चावल बनाने के दौरान निकलने वाले 'ब्रान' से तेल बनाने की योजना पर काम चल रहा था. लेकिन अब यह तमाम योजनाएं ठप हो गई हैं.

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40 साल पहले स्थापित मशीन खा रही जंग
दरअसल, जिले के बिक्रमगंज में सन 1980 में चावल के ब्रान तेल और मवेशियों के चारा बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर जापानी तकनीक से संयंत्र लगाया गया था. लेकिन सरकारी और राजनीतिक उदासीनता के कारण यह संयंत्र कभी चालू ही नहीं हो सका. आज भी बिक्रमगंज के बिस्कोमान परिसर में 40 साल पहले स्थापित यह संयंत्र जंग खा रही है. लोगों को उम्मीद जगी थी कि इसके चालू होने से क्षेत्र में उद्योग का विकास होगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा. साथ ही किसानों को भी फायदा होगा पर लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

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चावल की भूसी का तेल स्वास्थ्यवर्धक
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कारखाने को फिर से चालू करने की मांग
जानकार, इसे स्वास्थ्यवर्धक बताते हैं और इन दिनों उसकी मांग भी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है. साथ ही यहां कई तरह के केमिकल भी बनाने का उद्देश्य था. ऐसे में यहां के लोगो ने अब सरकार से इस कारखाने को चालू करने की मांग की है.

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