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रोहतास: खुद 'कोमा' में है तिलौथू प्रखंड का सरकारी अस्पताल, पैरासिटामोल तक नहीं है मौजूद

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Published : Sep 15, 2019, 11:59 AM IST

अस्पताल में डॉक्टरों के लिए महज 4 पद हैं. उसपर भी आलम ये है कि केवल 2 ही डॉक्टर बहाल हैं. लिहाजा, इलाज कराने आने वाले मरीजों का पूरा दिन बस अपनी बारी के इंतजार में निकल जाता है.

तिलौथू प्रखंड का सरकारी अस्पताल

रोहतास: प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था किसी से छुपी नहीं है. बीते दिनों हुए चमकी बुखार ने सभी सरकारी दावों की पोल खोलकर रख दी थी. हालात अब भी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. रोहतास के जिला मुख्यालय के तिलौथू प्रखंड का सरकारी अस्पताल खुद ही बीमार हाल में है, या यूं कहें कि अस्पताल खुद ही वेंटिलेटर के सहारे चल रहा है.

Rohtas
एक्स-रे रूम बना पार्किंग

अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. यहां आने वाले मरीजों को इलाज के नाम पर बस दवाईयों की पर्ची थमाई जाती है. जिस पर दवाईयां और टेस्ट लिखा होता है, जो मरीजों को बाहर से करवाना पड़ता है. भगवान भरोसे चल रहे इस अस्पताल में डॉक्टर ही मौजूद नहीं है. हालात बदतर हैं.

Rohtas
मशीनों पर जमी धूल

4 पद हैं लेकिन 2 डॉक्टर ही कर रहे काम
गौरतलब है कि बिहार में स्वास्थ्य विभाग को लेकर सुशासन बाबू की आए दिन किरकिरी होती रहती है. फिर भी सरकार गंभीर नहीं दिख रही. स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी और लापरवाही का खामियाजा जिले के मरीजों को भुगतना पड़ता है. इस अस्पताल में डॉक्टरों के लिए महज 4 पद हैं. उसपर भी आलम यह है कि केवल 2 ही डॉक्टर बहाल हैं. लिहाजा, इलाज कराने आने वाले मरीजों का पूरा दिन बस अपनी बारी के इंतजार में निकल जाता है.

Rohtas
खाली पड़ा ऑक्सीजन सिलेंडर

नहीं है इलाज का पुख्ता इंतजाम
स्थिति इतनी खराब है कि दांत का इलाज कराने आने वाले मरीजों का इलाज जनरल फिजिशियन करते हैं. ऐसे मरीजों के लिए विशेषज्ञ तक नहीं हैं. एक्स-रे रूम तो है. लेकिन, उसका इस्तेमाल पार्किंग के लिए हो रहा है. वहीं, सरकार के तरफ से इन मरीजों के लिए सतरंगी चादर का भी इंतजाम है. लेकिन, आजतक इन्हें इस सतरंगी चादर का लाभ नहीं मिल सका क्योंकि अस्पताल प्रबंधन के पास चादर धोने का कोई विकल्प नहीं है. अस्पताल डॉक्टर, कर्मचारी सभी अपने मनमाने तरीके से अस्पताल पहुंचते हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

महीनों से खराब है फ्यूरीफायर
बहरहाल, सुविधाओं के नाम पर यहां महज खानापूर्ति होती है. अस्पताल में लगा वाटर फ्यूरीफायर महीनों से बंद पड़ा हुआ है. हर तरफ गंदगी और धूल दिखती है. दवाईयों की इतनी कमी है कि मामूली बुखार की दवा पैरासिटामोल तक यहां उपलब्ध नहीं है. लिहाजा, गरीब मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं.

रोहतास: प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था किसी से छुपी नहीं है. बीते दिनों हुए चमकी बुखार ने सभी सरकारी दावों की पोल खोलकर रख दी थी. हालात अब भी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. रोहतास के जिला मुख्यालय के तिलौथू प्रखंड का सरकारी अस्पताल खुद ही बीमार हाल में है, या यूं कहें कि अस्पताल खुद ही वेंटिलेटर के सहारे चल रहा है.

Rohtas
एक्स-रे रूम बना पार्किंग

अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. यहां आने वाले मरीजों को इलाज के नाम पर बस दवाईयों की पर्ची थमाई जाती है. जिस पर दवाईयां और टेस्ट लिखा होता है, जो मरीजों को बाहर से करवाना पड़ता है. भगवान भरोसे चल रहे इस अस्पताल में डॉक्टर ही मौजूद नहीं है. हालात बदतर हैं.

Rohtas
मशीनों पर जमी धूल

4 पद हैं लेकिन 2 डॉक्टर ही कर रहे काम
गौरतलब है कि बिहार में स्वास्थ्य विभाग को लेकर सुशासन बाबू की आए दिन किरकिरी होती रहती है. फिर भी सरकार गंभीर नहीं दिख रही. स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी और लापरवाही का खामियाजा जिले के मरीजों को भुगतना पड़ता है. इस अस्पताल में डॉक्टरों के लिए महज 4 पद हैं. उसपर भी आलम यह है कि केवल 2 ही डॉक्टर बहाल हैं. लिहाजा, इलाज कराने आने वाले मरीजों का पूरा दिन बस अपनी बारी के इंतजार में निकल जाता है.

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खाली पड़ा ऑक्सीजन सिलेंडर

नहीं है इलाज का पुख्ता इंतजाम
स्थिति इतनी खराब है कि दांत का इलाज कराने आने वाले मरीजों का इलाज जनरल फिजिशियन करते हैं. ऐसे मरीजों के लिए विशेषज्ञ तक नहीं हैं. एक्स-रे रूम तो है. लेकिन, उसका इस्तेमाल पार्किंग के लिए हो रहा है. वहीं, सरकार के तरफ से इन मरीजों के लिए सतरंगी चादर का भी इंतजाम है. लेकिन, आजतक इन्हें इस सतरंगी चादर का लाभ नहीं मिल सका क्योंकि अस्पताल प्रबंधन के पास चादर धोने का कोई विकल्प नहीं है. अस्पताल डॉक्टर, कर्मचारी सभी अपने मनमाने तरीके से अस्पताल पहुंचते हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

महीनों से खराब है फ्यूरीफायर
बहरहाल, सुविधाओं के नाम पर यहां महज खानापूर्ति होती है. अस्पताल में लगा वाटर फ्यूरीफायर महीनों से बंद पड़ा हुआ है. हर तरफ गंदगी और धूल दिखती है. दवाईयों की इतनी कमी है कि मामूली बुखार की दवा पैरासिटामोल तक यहां उपलब्ध नहीं है. लिहाजा, गरीब मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं.

Intro:रोहतास। जिला मुख्यालय के तिलौथू प्रखंड में सरकारी अस्पताल इन दिनों राम भरोसे चल रहा है। मरीजों के लिए यहां पर डॉक्टर ही मौजूद नहीं है।


Body:गौरतलब है कि बिहार में स्वास्थ्य विभाग को लेकर सुशासन बाबू के आए दिन किरकिरी होती रहती है। क्योंकि लगतार स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही सामने आ रही है। कुछ ऐसा ही नजारा रोहतास जिला के तिलौथू प्रखंड के सरकारी अस्पताल में भी देखने को मिला। जहां ना तो मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर है और ना ही उनके इलाज के लिए मुकम्मल सुविधा है।
ऐसे में जहां दिनारा प्रखंड के सरकारी अस्पताल में 4 डॉक्टरों का पद मौजूद है। लेकिन सरकार की लापरवाही से महज दो डॉक्टर ही पूरे प्रखंड अस्पताल को संभालने को मजबूर है। वही दांत के इलाज करने के लिए साधारण डॉक्टर ही दांत की बीमारी का इलाज करते हैं। सरकार की तरफ से मरीजों के लिए सतरंगी चादर का भी इंतजाम अस्पताल में किया जाता है। लेकिन इस सतरंगी चादर का लाभ मरीजों को नहीं मिलता क्योंकि अस्पताल प्रबंधक के पास चादर धोने का कोई इंतजाम नहीं है। ऐसे में गंदी पड़ी चादर को धोबी के यहां दे दिया जाता है। जिससे धुलने में काफी वक्त लग जाता है। वहीं अस्पताल डॉक्टर भी अपने मनमानी तरीके से अस्पताल पहुंचते हैं। बहरहाल सुविधाओं के नाम पर यहां महज खानापूर्ति होती है। अस्पताल में लगी मरीजों को पीने के लिए आरओ वाटर भी कई महीनों से बंद है लेकिन विभाग को इसकी कोई परवाह नहीं है अबे ऐसे में गरीब मरीजों का इलाज कैसे संभव हो पाएगा। जिस अस्पताल में बुखार की एक दवा तक मौजूद ना हो वह अस्पताल में इलाज कैसे संभव हो पाएगा। अस्पताल का एक्सरे काम नहीं करने की वजह से मरीजों को बाहर से एक्सरे कराना पड़ता है जो काफी महंगा साबित होता है। एक बुजुर्ग महिला बाहर से एक्सरे कराकर अस्पताल पहुंची थी क्योंकि अस्पताल में एक्सरे ना होने की वजह से उसे बाहर एक्सरे कराना पड़ा था।


Conclusion:बहरहाल सरकारी उदासीनता की वजह से ही सरकारी अस्पतालों का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। लिहाजा गरीबों को मिलने वाली सुविधाएं इस अस्पताल में नहीं मिलती है।

बाइट। अस्पताल प्रभारी तिलौथू
बाइट। मेडिसिन इंचार्ज
बाइट। आशा
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