रोहतास: राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले शशिकांत पांडे आज मुफलिसी में जिंदगी जीने को मजबूर हैं. लगातार 5 बार बिहार का मान बढ़ाने वाले जिले के पैरा ओलंपिक खिलाड़ी को आज सरकारी अनदेखी का दंश झेलना पड़ रहा है. शशिकांत रोहतास के शिवसागर प्रखंड स्थित सोनहर गांव के निवासी हैं.
शशिकांत ने दर्जनों मेडल और उपाधियां अपने नाम की. बिहार का गौरव बनने पर इन्हें सरकारी मदद का ऐलान भी हुआ. लेकिन, जमीनी स्तर पर सरकार ने मदद नहीं की. बिहार पहले ही खेल संसाधनों के मामले में पीछे है. ऐसे में शशिकांत का पैरा ओलंपिक जीतना बेहद गर्व की बात है.
हौसले से बने राष्ट्रीय खिलाड़ी
शशिकांत पांडे शरीर से दिव्यांग हैं. लेकिन, उनके हौसले ने उन्हें एक राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बना दिया. इन्हें बचपन से ही खेल में दिलचस्पी थी. अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने जी तोड़ मेहनत की. बदलते वक्त ने उन्हें साल 2007 में राष्ट्रीय पैरा ओलंपिक में भी पहुंचा दिया.
5 बार किया बिहार का प्रतिनिधित्व
राष्ट्रीय पैरा ओलंपिक में उन्होंने लगातार 5 बार बिहार का प्रतिनिधित्व किया. काबिलियत इस कदर थी कि इन्होंने बंगलौर, जयपुर, हरियाणा जैसे राज्यों में पांचों बार मेडल भी जीता. उस समय बिहार सरकार ने इन्हें 'बिहार खेल सम्मान' से भी नवाजा. नौकरी देने का वादा भी किया. लेकिन, पूरा नहीं कर सके.
अपने दम पर हासिल की सरकारी नौकरी
लंबा अरसा गुजर जाने के बाद भी शशिकांत पांडे को आज भी उम्मीद है कि सरकार की तरफ से उन्हें खेल कोटे के तहत नौकरी मिलेगी. बता दें कि पांडे ने खेल के साथ-साथ शिक्षा में भी अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है. लिहाजा, आज शिक्षा के दम पर ही वह जिले में एक छोटे से सरकारी ओहदे पर काबिज हैं.
हर बच्चे को खेल में आगे बढ़ाना चाहते हैं शशिकांत
हालांकि, राष्ट्रीय पैरा ओलंपिक विजेता की तमन्ना आज भी है कि उन्हें खेल कोटे के तहत नौकरी दी जाए. शशिकांत को खेल से इतनी मोहब्बत है कि वह अपने बच्चे और समाज के हर बच्चे को खेल में आगे बढ़ाना चाहते हैं. बहरहाल, सरकार की तरफ से मदद ना मिलने के कारण मायूस शशिकांत आज भी सरकारी सहायता की आस लगाए बैठे हैं.