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बिहार में पहली बार कड़कनाथ मुर्गा का हो रहा पालन, कीमत 700 से अधिक

बिहार के रोहतास में कुमार प्रेमचंद ने एक अनोखे मुर्गे को पालन करने का काम करल रहे हैं. इस मुर्गे का नाम कड़कनाथ है. इसकी कीमत तकरीबन 700 से 800 के करीब है.

मीडिया से बातचीत करते प्रेचंद
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Published : Mar 20, 2019, 12:18 PM IST

Updated : Mar 20, 2019, 4:46 PM IST

रोहतास: मुर्गे की प्रजाती तो कई प्रकार की होती है. लेकिन एक ऐसा मुर्गा है जिसकी कीमत से लेकर खासियत भी अलग है. रोहतास के तिलोथू गांव के रहने वाले कुमार प्रेमचंद ने इस अनोखे मुर्गे को पालने का काम किया है.

बिहार के किसी हिस्से में नहीं है मौजूद है कड़कनाथ मुर्गा
इस मुर्गे को कड़कनाथ के नाम से जाना जाता है. यह विशेष कर मध्यप्रदेश में पाया जाता है. फिलहाल ये कड़कनाथ मुर्गा बिहार के किसी हिस्से में नहीं है. ज़ाहिर है अभी भी लोगों को इस मुर्गे की जानकारी नहीं मिली होगी.

मशीनों से नस्ल किया जाएगातैयार

यह मुर्गा काफी ज्यादा महंगा है. कुमार प्रेमचंद की जिद ने कड़कनाथ नाथ मुर्गे का पालन ही नहीं किया बल्कि उस मुर्गे का नस्ल तैयार करने की शुरूआत कर दी है. उनके हिसाब से बच्चा भी मशीनों में तैयार किया शुरू कर दिया गया है.

खून बढ़ाने में होता है सहयक

कुमार प्रेमचंद बताते है कि ये कड़कनाथ मुर्गा बेहद महंगा और फायदेमंद है. साथ ही यह खून बढ़ाने में सहायक है. इसकी असल पहचान काले रंग से होती है. जिसमें उस मुर्गे के सभी अंग काले होते है. यहां तक उसके खून से लेकर मांस तक काले होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इस कड़कनाथ मुर्गे में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नहीं पाई जाती है. इसमें भरपूर प्रोटीन पाया जाता है.

700 से 800 के बीच है इसकी कीमत

आमतौर पर जो बाजार में मुर्गे की डिमांड है उसमें सबसे अधिक फार्म या देसी मुर्गे की है. जिसका बाजारू भाव तक़रीबन 200 से 300 के बीच है. लेकिन कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड भी काफी ज्यादा है. यही वजह है कि इसकी कीमत 700 से 800 के बीच है.

लोगों को मिल रहा है रोजगार

कुमार ने बताया कि इससे काफी अच्छा फायदा हो रहा है. कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा रहा है. फिलाहल इसे दुगने से अधिक आमदनी कर गांव के अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहें हैं. नौकरी छोड़ इस तरह के मुर्गे पालन कर लाखों रुपयों के रोजगार कर रहें हैं.

गांव में बनाई नई पहचान

प्रेमचंद की इस लगन का मुरीद सब कोई है. क्योंकि गांव के कई लोगों को इससे रोज़गार मिल रहा है. फिलाह प्रेमचंद का एक ही मक़सद है इस कड़कनाथ मुर्गे का उत्पादन कर लोगों तक इसको पहचान दिलाना.

रोहतास: मुर्गे की प्रजाती तो कई प्रकार की होती है. लेकिन एक ऐसा मुर्गा है जिसकी कीमत से लेकर खासियत भी अलग है. रोहतास के तिलोथू गांव के रहने वाले कुमार प्रेमचंद ने इस अनोखे मुर्गे को पालने का काम किया है.

बिहार के किसी हिस्से में नहीं है मौजूद है कड़कनाथ मुर्गा
इस मुर्गे को कड़कनाथ के नाम से जाना जाता है. यह विशेष कर मध्यप्रदेश में पाया जाता है. फिलहाल ये कड़कनाथ मुर्गा बिहार के किसी हिस्से में नहीं है. ज़ाहिर है अभी भी लोगों को इस मुर्गे की जानकारी नहीं मिली होगी.

मशीनों से नस्ल किया जाएगातैयार

यह मुर्गा काफी ज्यादा महंगा है. कुमार प्रेमचंद की जिद ने कड़कनाथ नाथ मुर्गे का पालन ही नहीं किया बल्कि उस मुर्गे का नस्ल तैयार करने की शुरूआत कर दी है. उनके हिसाब से बच्चा भी मशीनों में तैयार किया शुरू कर दिया गया है.

खून बढ़ाने में होता है सहयक

कुमार प्रेमचंद बताते है कि ये कड़कनाथ मुर्गा बेहद महंगा और फायदेमंद है. साथ ही यह खून बढ़ाने में सहायक है. इसकी असल पहचान काले रंग से होती है. जिसमें उस मुर्गे के सभी अंग काले होते है. यहां तक उसके खून से लेकर मांस तक काले होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इस कड़कनाथ मुर्गे में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नहीं पाई जाती है. इसमें भरपूर प्रोटीन पाया जाता है.

700 से 800 के बीच है इसकी कीमत

आमतौर पर जो बाजार में मुर्गे की डिमांड है उसमें सबसे अधिक फार्म या देसी मुर्गे की है. जिसका बाजारू भाव तक़रीबन 200 से 300 के बीच है. लेकिन कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड भी काफी ज्यादा है. यही वजह है कि इसकी कीमत 700 से 800 के बीच है.

लोगों को मिल रहा है रोजगार

कुमार ने बताया कि इससे काफी अच्छा फायदा हो रहा है. कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा रहा है. फिलाहल इसे दुगने से अधिक आमदनी कर गांव के अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहें हैं. नौकरी छोड़ इस तरह के मुर्गे पालन कर लाखों रुपयों के रोजगार कर रहें हैं.

गांव में बनाई नई पहचान

प्रेमचंद की इस लगन का मुरीद सब कोई है. क्योंकि गांव के कई लोगों को इससे रोज़गार मिल रहा है. फिलाह प्रेमचंद का एक ही मक़सद है इस कड़कनाथ मुर्गे का उत्पादन कर लोगों तक इसको पहचान दिलाना.

Intro:रोहतास। रोहतास को धान का कटोरा कहा जाता है। लेकिन अब यही धान कटोरा कुछ अलग तरह की पहचान बनाने की जद्दोजहद में है।


Body:ये जद्दोजहद रोहतास जिला के तिलौथू गांव के कुमार प्रेमचंद करते नज़र आरहे है। हमबात कर रहें है एक ऐसे मुर्गे की जिसे कड़कनाथ मुर्गा के नाम से जाना जाता है। मुर्गों के तमाम प्रजातियों में से एक ये भी प्रजाति है जो मध्यप्रदेश राज्य में पाया जाता है। फिलहाल ये कड़कनाथ मुर्गा बिहार के किसी हिस्से में नहीं मिलता है। ज़ाहिर है अभी भी लोगों को इस मुर्गे की जानकारी नहीं है। लेकिन कुमार प्रेमचंद की जिद्द ने कड़कनाथ नाथ मुर्गे का पालन ही नहीं किया बल्कि उस मुर्गे का बिरिड्स यानी बच्चा भी मशीनों में तैयार करना शुरू कर दिया। कुमार प्रेमचंद बताते है कि ये कड़कनाथ मुर्गा बेहद महंगा और फायदेमंद है। इसकी असल पहचान काले रंग से होती है जिसमें उस मुर्गे के सभी अंग काले होते है यहां तक कि उसके खून से लेकर मांस तक काले होते है। इस कड़कनाथ मुर्गे की सबसे खास बात ये है कि इसमें कोई कैलेस्ट्रोल नहीं पाया जाता है। इसमें भरपूर प्रोटीन पाया जाता है। आमतौर पर जो बाजार में मुर्गे की डिमांड है उसमें सबसे अधिक फार्म या देसी मुर्गे की ही होती है। जिसका बाजार भाव तक़रीबन दो सौ से तीनसौ के बीच रहता है। लेकिन इस कड़कनाथ मुर्गे की कीमत तक़रीबन आठ सौ रुपये आती है। ज़हीर है इसकी डीमांड भी काफी है और यही वजह है कि नौकरी छोड़ इस तरह के मुर्गी पालन कर लाखों रुपयों के रोजगार कर रहें है। कुमार प्रेमचन्द ने बताया कि इससे काफी अच्छा फायदा हो रहा है कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा रहा है। फिलाह वो इससे दुगने से अधिक आमदनी कर गांव के अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहें है।


Conclusion:प्रेमचंद की इस लगन का मुरीद सबकोइ है। क्यों कि गांव के कई लोगों को इससे रोज़गार मिल रहा है। फिलाह प्रेमचंद का एक ही मक़सद है इस कड़कनाथ मुर्गे का उत्पादन कर लोगों तक इसको पहचान।

बाइट। कुमार प्रेमचंद
Last Updated : Mar 20, 2019, 4:46 PM IST
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