रोहतास: मुर्गे की प्रजाती तो कई प्रकार की होती है. लेकिन एक ऐसा मुर्गा है जिसकी कीमत से लेकर खासियत भी अलग है. रोहतास के तिलोथू गांव के रहने वाले कुमार प्रेमचंद ने इस अनोखे मुर्गे को पालने का काम किया है.
बिहार के इस हिस्से में है कड़कनाथ मुर्गा
इस मुर्गे को कड़कनाथ के नाम से जाना जाता है. यह विशेष कर मध्यप्रदेश में पाया जाता है. होली के चलते इसकी बिक्री भी तेज हो गई है. यूं तोकड़कनाथ हर जगह नहीं मिलता लेकीन बिहार में इसे खास तकनीक से बनाया जा रहा है.
मशीनों से तैयार किया जाएगा
यह मुर्गा काफी ज्यादा महंगा है. कुमार प्रेमचंद की जिद ने कड़कनाथ नाथ मुर्गे का पालन ही नहीं किया बल्कि उस मुर्गे का नस्ल तैयार करने की शुरूआत कर दी है. उनके हिसाब से बच्चा भी मशीनों में तैयार करना शुरू कर दिया गया है.
कैसे मिलती है मदद
कुमार प्रेमचंद बताते हैं कि ये कड़कनाथ मुर्गा बेहद महंगा और फायदेमंद है. साथ ही यह खून बढ़ाने में सहायक है. इसकी असल पहचान काले रंग से होती है. जिसमें उस मुर्गे के सभी अंग काले होते हैं. यहां तक उसके खून से लेकर मांस तक काले होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इस कड़कनाथ मुर्गे में कैलेस्ट्रॉल की मात्रा नहीं पाई जाती है. इसमें भरपूर प्रोटीन पाया जाता है.
कैसा होता है स्वाद
चटखदार काले रंग के इस मुर्गे में फैट न के बराबर होता है और स्वाद सबसे उम्दा.स्वाद से लेकर रेट तक सब कड़क है, इसलिए इसे कहते है कड़कनाथ मुर्गा.इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरिके से बनाया जाता है. कहीं पर इसे रोस्टेड तरीके से बनाया जाता है तो कहीं मुर्गे को गर्म मसालों में मिलाकर एक नर्म कपड़े से लपेटा जाता है, इसके बाद इसको चारों तरफ से आटे से ढक दिया जाता है.इसके बाद इसे अवन में पकाया जाता है.
700 से 800 के बीच है इसकी कीमत
आमतौर पर जो बाजार में मुर्गे की डिमांड है उसमें सबसे अधिक फार्म या देसी मुर्गे की है. जिसका बाजारू भाव तकरीबन 200 से 300 के बीच है. लेकिन कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड भी काफी ज्यादा है. यही वजह है कि इसकी कीमत 700 से 800 के बीच है.
लोगों को मिल रहा है रोजगार
कुमार ने बताया कि इससे काफी अच्छा फायदा हो रहा है. कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा रहा है. फिलाहल इसे दुगने से अधिक आमदनी कर गांव के अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहें हैं. नौकरी छोड़ इस तरह के मुर्गे पालन कर लाखों रुपयों के रोजगार कर रहें हैं.
गांव में बनाई नई पहचान
प्रेमचंद की इस लगन का मुरीद सब कोई है. क्योंकि गांव के कई लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है. फिलाह प्रेमचंद का एक ही मकसद है इस कड़कनाथ मुर्गे का उत्पादन कर लोगों तक इसको पहचान दिलाना.