रोहतासः जिले के नासरीगंज प्रखंड का इतिहास काफी पुराना है. यहां का कंबल पूरे भारत में मशहूर है. यहां बनने वाले कंबल की डिमांड भारत के कोने-कोने में हुआ करती थी. लेकिन अब कंबल उद्योग के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है.
नासरीगंज में ब्रिटिश शासन काल से ही कंबल उद्योग का व्यापार बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा किया जाता था. जहां तकरीबन शहर की आधी से अधिक आबादी इसी उद्योग में जुटी हुई थी. यह कंबल आमतौर पर भेड़ के बालों के द्वारा तैयार किया जाता था. जो काफी गर्म और किफायती भी होता था. यही वजह थी कि लोग इसे खूब पसंद करते थे. क्योंकि यह दाम में सस्ता और काम में अच्छा हुआ करता था. लेकिन बदलते वक्त ने कंबल के उद्योग पर संकट खड़ा कर दिया.
![Blanket industry](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/images/2978624_picd.jpg)
सिमट कर रह गया उद्योग
बदलते वक्त ने लोगों को आधुनिक और मॉडल युग में लाकर खड़ा कर दिया. जहां इस कंबल की डिमांड काफी कम हो गई. नतीजा जहां एक समय में कंबल में तकरीबन तीन सौ घरों के लोग बनाने में जुटे थे. वहीं अब यह संख्या सिमट कर महज दस घरों तक ही रह गई है. इसी नासरीगंज में कंबल आश्रम भी हुआ करता था, जो आजादी से पहले बनाया गया था. लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण इसे भी अपना वजूद खोना पड़ा.
![Blanket industry](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/images/2978624_pic.jpg)
क्या है कारीगरों का कहना
वहीं, कंबल उद्योग में लगे एक व्यक्ति ने बताया कि अब पहले जैसी बात नहीं है. क्योंकि पहले इस कंबल का काफी डिमांड हुआ करता था. लेकिन बदलते परिवेश ने लोगों को आधुनिक बना दिया है, जहां मखमलदार कंबल और सॉफ्ट कंबल की डिमांड काफी बढ़ गई. नतीजा भेड़ के बाल से बने कंबल की डिमांड कम हो गई.
कारीगर दो जून रोटी को मोहताज
वैसे तो इस कंबल को बनाने में कुल लागत तकरीबन तीन सौ रूपये पड़ती है. लेकिन बाजार में इसका दाम महज तीन सौ बीस रुपये तक ही सिमट कर रह जाता है. इन सब के बावजूद सरकार की तरफ से कोई मदद इन कंबल बनाने वालों को नहीं मिलती है, नेताओं के द्वारा भी इस पर अब तक सूध नहीं लिया. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कारीगरों को दो जून की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो रहा है. अब तस्वीर ऐसी हो गई है कि यह कंबल उद्योग कुछ ही दिनों के बाद सिमट कर इतिहास के पन्ने में अंकित हो जाएगा.