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खत्म होने की कगार पर है नासरीगंज का कंबल उद्योग, दो जून रोटी के लिए मोहताज हैं कारीगर - karigar upset

नासरीगंज का कंबल पूरे भारत में मशहूर है. यहां बनने वाले कंबल की डिमांड देश के कोने-कोने में हुआ करती थी. लेकिन अब इस उद्योग के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है.

कंबल उधोग में लगे बुजुर्ग
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Published : Apr 12, 2019, 3:05 PM IST

रोहतासः जिले के नासरीगंज प्रखंड का इतिहास काफी पुराना है. यहां का कंबल पूरे भारत में मशहूर है. यहां बनने वाले कंबल की डिमांड भारत के कोने-कोने में हुआ करती थी. लेकिन अब कंबल उद्योग के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है.

नासरीगंज में ब्रिटिश शासन काल से ही कंबल उद्योग का व्यापार बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा किया जाता था. जहां तकरीबन शहर की आधी से अधिक आबादी इसी उद्योग में जुटी हुई थी. यह कंबल आमतौर पर भेड़ के बालों के द्वारा तैयार किया जाता था. जो काफी गर्म और किफायती भी होता था. यही वजह थी कि लोग इसे खूब पसंद करते थे. क्योंकि यह दाम में सस्ता और काम में अच्छा हुआ करता था. लेकिन बदलते वक्त ने कंबल के उद्योग पर संकट खड़ा कर दिया.

Blanket industry
कंबल उद्योग

सिमट कर रह गया उद्योग
बदलते वक्त ने लोगों को आधुनिक और मॉडल युग में लाकर खड़ा कर दिया. जहां इस कंबल की डिमांड काफी कम हो गई. नतीजा जहां एक समय में कंबल में तकरीबन तीन सौ घरों के लोग बनाने में जुटे थे. वहीं अब यह संख्या सिमट कर महज दस घरों तक ही रह गई है. इसी नासरीगंज में कंबल आश्रम भी हुआ करता था, जो आजादी से पहले बनाया गया था. लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण इसे भी अपना वजूद खोना पड़ा.

Blanket industry
कंबल उद्योग में लगने वाले धागे

क्या है कारीगरों का कहना
वहीं, कंबल उद्योग में लगे एक व्यक्ति ने बताया कि अब पहले जैसी बात नहीं है. क्योंकि पहले इस कंबल का काफी डिमांड हुआ करता था. लेकिन बदलते परिवेश ने लोगों को आधुनिक बना दिया है, जहां मखमलदार कंबल और सॉफ्ट कंबल की डिमांड काफी बढ़ गई. नतीजा भेड़ के बाल से बने कंबल की डिमांड कम हो गई.

जानकारी देते हुए कंबल उधोग में लगे लोग

कारीगर दो जून रोटी को मोहताज
वैसे तो इस कंबल को बनाने में कुल लागत तकरीबन तीन सौ रूपये पड़ती है. लेकिन बाजार में इसका दाम महज तीन सौ बीस रुपये तक ही सिमट कर रह जाता है. इन सब के बावजूद सरकार की तरफ से कोई मदद इन कंबल बनाने वालों को नहीं मिलती है, नेताओं के द्वारा भी इस पर अब तक सूध नहीं लिया. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कारीगरों को दो जून की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो रहा है. अब तस्वीर ऐसी हो गई है कि यह कंबल उद्योग कुछ ही दिनों के बाद सिमट कर इतिहास के पन्ने में अंकित हो जाएगा.

रोहतासः जिले के नासरीगंज प्रखंड का इतिहास काफी पुराना है. यहां का कंबल पूरे भारत में मशहूर है. यहां बनने वाले कंबल की डिमांड भारत के कोने-कोने में हुआ करती थी. लेकिन अब कंबल उद्योग के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है.

नासरीगंज में ब्रिटिश शासन काल से ही कंबल उद्योग का व्यापार बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा किया जाता था. जहां तकरीबन शहर की आधी से अधिक आबादी इसी उद्योग में जुटी हुई थी. यह कंबल आमतौर पर भेड़ के बालों के द्वारा तैयार किया जाता था. जो काफी गर्म और किफायती भी होता था. यही वजह थी कि लोग इसे खूब पसंद करते थे. क्योंकि यह दाम में सस्ता और काम में अच्छा हुआ करता था. लेकिन बदलते वक्त ने कंबल के उद्योग पर संकट खड़ा कर दिया.

Blanket industry
कंबल उद्योग

सिमट कर रह गया उद्योग
बदलते वक्त ने लोगों को आधुनिक और मॉडल युग में लाकर खड़ा कर दिया. जहां इस कंबल की डिमांड काफी कम हो गई. नतीजा जहां एक समय में कंबल में तकरीबन तीन सौ घरों के लोग बनाने में जुटे थे. वहीं अब यह संख्या सिमट कर महज दस घरों तक ही रह गई है. इसी नासरीगंज में कंबल आश्रम भी हुआ करता था, जो आजादी से पहले बनाया गया था. लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण इसे भी अपना वजूद खोना पड़ा.

Blanket industry
कंबल उद्योग में लगने वाले धागे

क्या है कारीगरों का कहना
वहीं, कंबल उद्योग में लगे एक व्यक्ति ने बताया कि अब पहले जैसी बात नहीं है. क्योंकि पहले इस कंबल का काफी डिमांड हुआ करता था. लेकिन बदलते परिवेश ने लोगों को आधुनिक बना दिया है, जहां मखमलदार कंबल और सॉफ्ट कंबल की डिमांड काफी बढ़ गई. नतीजा भेड़ के बाल से बने कंबल की डिमांड कम हो गई.

जानकारी देते हुए कंबल उधोग में लगे लोग

कारीगर दो जून रोटी को मोहताज
वैसे तो इस कंबल को बनाने में कुल लागत तकरीबन तीन सौ रूपये पड़ती है. लेकिन बाजार में इसका दाम महज तीन सौ बीस रुपये तक ही सिमट कर रह जाता है. इन सब के बावजूद सरकार की तरफ से कोई मदद इन कंबल बनाने वालों को नहीं मिलती है, नेताओं के द्वारा भी इस पर अब तक सूध नहीं लिया. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कारीगरों को दो जून की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो रहा है. अब तस्वीर ऐसी हो गई है कि यह कंबल उद्योग कुछ ही दिनों के बाद सिमट कर इतिहास के पन्ने में अंकित हो जाएगा.

Intro:रोहतास। जिले के नासरीगंज प्रखंड का इतिहास काफी पुराना है। यहां का कंबल पूरे हिंदुस्तान में जाना जाता है। लेकिन कंबल उद्योग के अस्तित्व अब पर खतरा मंडराने लगा है।


Body:गौरतलब है कि रोहतास के नासरीगंज का इतिहास काफी पुराना है। यहां ब्रिटिश शासन काल से ही कंबल उद्योग का व्यापार बड़े पैमाने पर लोगों के द्वारा किया जाता था। जहां तकरीबन शहर की आधी से अधिक आबादी इसी उद्योग में जुटी हुई थी। यहां बनने वाले कंबल का डिमांड हिंदुस्तान के कोने कोने में हुआ करता था। क्योंकि यह कंबल आमतौर पर भेड़ के बालों के द्वारा तैयार किया जाता था जो काफी गर्म और किफायती भी होता था। यही वजह थी कि लोग इसे खूब पसंद करते थे। क्योंकि यह दाम में सस्ता और काम में अच्छा हुआ करता था। लेकिन बदलते वक्त ने कमल उद्योग के पर संकट ला दिया क्योंकि बदलते वक्त ने लोगों को आधुनिक और मॉडल युग में लाकर खड़ा कर दिया। जहां इस कंबल की डिमांड काफी कम हो गई। नतीजा जहां एक समय में कंबल में तकरीबन तीन सौ घरों के लोग बनाने में जुटे थे। वहीं अब यह संख्या सिमट महज़ दस घरों तक ही रह गई है। इसी नासरीगंज में कमल आश्रम भी हुआ करता था जो आजादी से पहले बनाया गया था। लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण इसे भी अपना वजूद खोना पड़ा। वही कंबल उद्योग में लगे एक व्यक्ति ने बताया कि अब पहले जैसी बात नहीं है। क्योंकि पहले इस कमल का काफी डिमांड हुआ करता था। लेकिन बदलते परिवेश ने लोगों को आधुनिक बना दिया। जहां मखमलदार कंबल और सॉफ्ट कंबल की डिमांड काफी बढ़ गई। नतीजा भेड़ के बाल से बने कंबल की डिमांड कम हो गई। वैसे तो इस कंबल को बनाने में कुल लागत तक़रीबन तीस सौ रूपये पड़ता है। लेकिन बाजार में इसका दाम महज़ तीन सौ बीस रुपये तक ही सिमट कर राह जाता है। इनसब के बावजूद सरकार की तरफ से कोई मदद इन कम्बल बनाने वालों को नहीं मिला है। हालाकिं नेताओं के द्वारा भी इस पर अबतक कोज सुध नहीं लिया गया कि अल्हिर कम्बल उधोग को किस तरह से बचाया जा सके। बहरहाल अब हालात ऐसे हो गए कि अब उन्हें दो जून की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो पा रहा है। फिलहाल दुकानदार ने बताया कि अब तस्वीर ऐसी हो गई है कि यह कंबल उद्योग कुछ ही दिनों के बाद सिमट कर रह जाएगा और इतिहास के पन्ने में अंकित हो जाएगा।


Conclusion:बहरहाल सरकार इस पर ध्यान दे तो कमल उद्योग के इस धंधे को फिर से उरूज पर लाया जा सकता है। क्योंकि यह वही कंबल है जिसे पुराने लोग आज भी पसंद करते हैं।

बाइट। कंबल उधोग में लगे लोग
पीटीसी
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