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महानंदा ने पूर्णिया में बढ़ाई परेशानी, जिले पर मंडरा रहा बाढ़ का खतरा

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Published : Jul 22, 2020, 12:26 AM IST

इन दिनों बारिश के कारण यूं तो सभी नदियां उफान पर हैं. वहीं सबसे ज्यादा भयावह स्थिति महानंदा नदी की है. नदी के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. निचले इलाकों में बाढ़ का पानी भर चुका है.

पूर्णिया
पूर्णिया

पूर्णिया: जिले में हो रही बेतहाशा बारिश के बाद एक बार फिर नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. महानंदा, कनकई और परमान जैसी प्रचंड नदियों के बढ़ते जलस्तर के बाद नदियों से लगे तटीय इलाकों में एक बार फिर बाढ़ और कटाव का खतरा मंडराने लगा है.

दरअसल, इन दिनों बारिश के कारण यूं तो सभी नदियां उफान पर हैं. वहीं सबसे ज्यादा भयावह स्थिति महानंदा नदी की है. जिसका वेग लगातार प्रचंड होते जा रहा है. इसके बढ़े जलस्तर के बाद जहां पहले ही निचले इलाकों में बाढ़ का पानी भर चुका है. तो वहीं अब इसके उफनते जलस्तर का खतरा बायसी के पुरानागंज पंचायत, पूर्वी टोला जैसे पंचायतों में लगातार बढ़ता जा रहा है.

पूर्णिया
उफान पर महानंदा नदी

पलायन को मजबूर हजारों की आबादी
महानंदा नदी के किनारे बसे 3 हजार की आबादी वाले पुरानागंज पंचायत में 200 से 300 परिवार बसे हुए हैं. इन पंचायतों के दर्जनों गांव इस समय कटाव की मार झेल रहे हैं. वहीं लगातार बढ़ रहे जलस्तर के कारण एक बार फिर से यहां रहने वाली हजारों की आबादी को साल 2017 में आए सैलाब का डर सताने लगा है. इसलिए खौफ खाए लोगों ने महानंदा नदी का रौद्र रूप देख पलायन शुरू कर दिया है. लोग ऊंचे स्थानों पर शरण भी ले चुके हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

साल 2017 के सैलाब की सुगबुगाहट
पुरानागंज पंचायत निवासी ग्रामीणों का कहना है कि इस बार जिस तरह बेतहाशा बारिश का सिलसिला जारी है. इससे साल 2017 के सैलाब की आहट सुनाई देने लगी है. बता दें कि उस साल आए सैलाब में यहां जान-माल की भारी क्षति हुई थी. पोखड़िया जैसे गांव हमेशा के लिए जल में समा गए हैं. यहां मौजूद मदरसा और एपीएचसी की ढह चुकी दीवारें आज भी उस जल त्रासदी की यादें ताजा करती हैं.

पूर्णिया
2017 के बाढ़ में ढहा मकान

नदारद है सरकारी नाव की व्यवस्था
ग्रामीण बताते हैं कि 2017 का वह सैलाब ऐसा था. जब चारों तरफ पानी में तैरती लाशें दिखती थी. इसी सैलाब में लाखों की लागत से बना मदरसा और एपीएचसी उद्घाटन से पहले ही नेस्तनाबूद हो गए. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार चाहे तो ससमय बाढ़ पूर्व कटाव निरोधक कार्य और पर्याप्त सरकारी नाव की व्यवस्था कर सैलाब से होने वाली जाल-माल की क्षति को कम कर सकती है.

  • स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार प्रशासन की नींद खुलने के पहले ही तबाही का मंजर सामने होता है. वहीं इस बार जैसी स्थिति है. हालात बेकाबू होने के पहले ही लोग सुरक्षा दृष्टिकोण से पलायन कर रहे हैं.

पूर्णिया: जिले में हो रही बेतहाशा बारिश के बाद एक बार फिर नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. महानंदा, कनकई और परमान जैसी प्रचंड नदियों के बढ़ते जलस्तर के बाद नदियों से लगे तटीय इलाकों में एक बार फिर बाढ़ और कटाव का खतरा मंडराने लगा है.

दरअसल, इन दिनों बारिश के कारण यूं तो सभी नदियां उफान पर हैं. वहीं सबसे ज्यादा भयावह स्थिति महानंदा नदी की है. जिसका वेग लगातार प्रचंड होते जा रहा है. इसके बढ़े जलस्तर के बाद जहां पहले ही निचले इलाकों में बाढ़ का पानी भर चुका है. तो वहीं अब इसके उफनते जलस्तर का खतरा बायसी के पुरानागंज पंचायत, पूर्वी टोला जैसे पंचायतों में लगातार बढ़ता जा रहा है.

पूर्णिया
उफान पर महानंदा नदी

पलायन को मजबूर हजारों की आबादी
महानंदा नदी के किनारे बसे 3 हजार की आबादी वाले पुरानागंज पंचायत में 200 से 300 परिवार बसे हुए हैं. इन पंचायतों के दर्जनों गांव इस समय कटाव की मार झेल रहे हैं. वहीं लगातार बढ़ रहे जलस्तर के कारण एक बार फिर से यहां रहने वाली हजारों की आबादी को साल 2017 में आए सैलाब का डर सताने लगा है. इसलिए खौफ खाए लोगों ने महानंदा नदी का रौद्र रूप देख पलायन शुरू कर दिया है. लोग ऊंचे स्थानों पर शरण भी ले चुके हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

साल 2017 के सैलाब की सुगबुगाहट
पुरानागंज पंचायत निवासी ग्रामीणों का कहना है कि इस बार जिस तरह बेतहाशा बारिश का सिलसिला जारी है. इससे साल 2017 के सैलाब की आहट सुनाई देने लगी है. बता दें कि उस साल आए सैलाब में यहां जान-माल की भारी क्षति हुई थी. पोखड़िया जैसे गांव हमेशा के लिए जल में समा गए हैं. यहां मौजूद मदरसा और एपीएचसी की ढह चुकी दीवारें आज भी उस जल त्रासदी की यादें ताजा करती हैं.

पूर्णिया
2017 के बाढ़ में ढहा मकान

नदारद है सरकारी नाव की व्यवस्था
ग्रामीण बताते हैं कि 2017 का वह सैलाब ऐसा था. जब चारों तरफ पानी में तैरती लाशें दिखती थी. इसी सैलाब में लाखों की लागत से बना मदरसा और एपीएचसी उद्घाटन से पहले ही नेस्तनाबूद हो गए. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार चाहे तो ससमय बाढ़ पूर्व कटाव निरोधक कार्य और पर्याप्त सरकारी नाव की व्यवस्था कर सैलाब से होने वाली जाल-माल की क्षति को कम कर सकती है.

  • स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार प्रशासन की नींद खुलने के पहले ही तबाही का मंजर सामने होता है. वहीं इस बार जैसी स्थिति है. हालात बेकाबू होने के पहले ही लोग सुरक्षा दृष्टिकोण से पलायन कर रहे हैं.
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