पूर्णियाः बिहार के पूर्णिया में पत्ता मेला का इंतजार आदिवासी समुदाय के कुंवारे युवा को वर्षों से रहता है. इस मेले की परंपरा अनोखी है. यहां लड़का-लड़की की पसंद से शादी कराई जाती है. लड़की अगर पान खा लिया तो रिश्ता पक्का समझा जाता है. इस मेले में खासकर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा की जाती है. भगत लकड़ी के बने टावर से लटक कर अपनी भक्ति का परिचय देते हैं. इस मेले में बिहार के पूर्णिया सहित विभिन्न जिले और झारखंड, बंगाल के लाखो आदिवासी शामिल होते हैं.
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मलिनीया दियारा गांव लगता है मेलाः पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के कोसी शरण देबोत्तर पंचायत के मलिनीया दियारा गांव में इस मेले का आयोजन किया जाता है. बिहार-बंगाल-झारखंड से लेकर नेपाल तक के लोग इस मेले में शामिल होते हैं. इस मेले में 40 फीट ऊंचे बांस का टावर से बंधकर शिव भक्ति साबित करने की अनोकी परंपरा है. इसके साथ इस मेले का इंतजार कुंवारे को बड़ी ही बेसब्री से रहता है. मेले में लड़का-लड़की की आंखे चार हुईं. तो फिर प्रपोजल के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता. दोनों की चट मंगनी और पट ब्याह करा दिया जाता है.
"मैंने अपने आंखों के सामने ने जानें कितने लोगों को इजहार और फिर शादी के बंधन में बंधते देखा. लड़के को जो लड़की पसंद आ जाती है, तो फिर उसे वह प्रपोज करने के लिए पान खाने का ऑफर भेजता है. अगर लड़की ने लड़के का दिए पान का प्रपोजल एक्सेप्ट कर लिया तो फिर आपसी रजामंदी से लड़का उस लड़की को अपने साथ लेकर घर चला जाता है. इसके कुछ दिनों बाद दोनों की शादी करा दी जाती है." -स्थानीय मुखिया
150 साल से लग रहा है मेलाः स्थानीय लोगों के अनुसार यह मेला 150 साल पूर्व से लगते आ रहा है. इसमें महादेव और पार्वती की पूजा की जाती है. इस दौरान मेले का खास आकर्षण 40 फीट लंबा बांस का टावर होता है. इस टावर से लटकर शिवभक्त अपनी भक्ति का परिचय देता है. टावर से लटक कर परिक्रमा कराई जाती है. भगवान शिव और मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए 4 दिनों तक पूजा-अर्चना की जाती है. भक्त और साधक 3 दिनों तक उपवास करते हैं.
"यह सत्य का प्रतीक है. पत्ता मेले की शुरुआत बैसाखी सिरवा त्योहार से होती है. मेले का इतिहास 150 साल से ज्यादा पुराना है. प्रेम और भक्ति की पराकाष्ठा को लांघने वाला यह मेला 4 दिनों तक चलेगा. बिहार, बंगाल, झारखंड और ओडिसा जैसे राज्यों के अलावा नेपाल के लोग भी पहुंचते हैं. बेहतर व्यवस्था और मुकम्मल परिवहन सेवा के अभाव के बावजूद इन जगहों से आने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है." -पीताम्बर टुड्डू
लड़की पसंद करने के कई नियम भी हैः इस मेले में लड़की पसंद करने को लेकर नियम भी बने हुए हैं. यह शर्त भी तब लागू होती है कि उन्हें यह शादी आदिवासी परंपरा से करनी होती है. और प्रकृति को अपना आराध्य देव मानना होता है. मेले में पसंद करने के बाद विवाह से इनकार करने वालों के लिए आदिवासी समाज के विधान के मुताबिक कड़े दंड का प्रावधान है. इसलिए यह मेला पूर्णिया के साथ साथ अन्य प्रदेशों के लिए प्रसिद्ध है.