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पूर्णिया: दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं थैलेसीमिया पेशेंट, Etv भारत की पड़ताल में आए कई चौंकाने वाले सच

जिले में तकरीबन 70 लोग थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. इनमें ज्यादातर बच्चे हैं. लेकिन सदर अस्पताल में इनका इलाज सही तरीके से नहीं हो रहा है.

थैलेसीमिया पेशेंट
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Published : Aug 10, 2019, 2:52 PM IST

Updated : Aug 10, 2019, 3:19 PM IST

पूर्णियाः मौत के साए में जी रहे जिले के 70 थैलेसीमिया पेशेंट इन दिनों जीवन की आस में स्वास्थ्य विभाग की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. खून की कमी से मरीजों को बचाने के लिए भारत और बिहार सरकार ने अस्पताल को तमाम सुविधाएं मुहैया कराने के सख्त निर्देश दे रखे हैं. इसके बावजूद विभाग कान में तेल डालकर इन निर्देशों की धज्जियां उड़ाता नजर आ रहा है.

thalassemia  patient
थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित मरीज

इलाज के लिए विभाग के चक्कर लगा रहे मरीज
दरअसल जिले में तकरीबन 70 लोग थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. इनमें ज्यादातर 15 साल से भी कम उम्र के बच्चे हैं. दर-दर की ठोकरें खा रहे थैलेसीमिया पेशेंट की जान कभी भी जा सकती है. हैरत की बात है कि एक कदम न चल पाने की अवस्था में भी ये बच्चें परिजनों के साथ जीवन की आस में सदर अस्पताल से लेकर रेड क्रॉस सोसायटी के चक्कर काट रहे हैं. मगर स्वास्थ्य महकमे के कान में जूं तक नहीं रेंग रहा. ऐसे में किसी भी वक़्त सही समय पर ब्लड नहीं मिलने से पल भर की देरी में ये थैलेसीमिया पेशेंट मौत के मुंह में समा सकते हैं. परिजनों की मानें तो इनके सामने सबसे बड़ी समस्या ब्लड और आयरन टैबलेट्स की है. जिसे लेकर सभी बड़े अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगा चुके हैं.

thalassemia patient
थैलेसीमिया पेशेंट

ईटीवी भारत की पड़ताल में आए चौंकाने वाले सच
ईटीवी भारत ने जब इस मामले में पड़ताल की तो सुविधाओं का घोर अभाव था. इस दौरान बेहद चौंकाने वाला सच सामने आया. अस्पताल में न तो थैलेसीमिया पेशेंट के शरीर से आयरन की मात्रा कम करने वाली आयरन चिलेटर यानी डेसिरोकस की व्यवस्था है और न सुरक्षित ब्लड चढ़ाने के लिए ब्लड को फिल्टर करने वाली लिकोसाइट फिल्टर बैग. ऐसे में थैलेसीमिया पेशेंट के लिए एक अलग वार्ड व थैलेसीमिया स्पेशलिस्ट हेमाटोलॉजिस्ट चिकित्सक की उम्मीद रखना बेईमानी है. थेलसिमीया पेसेंट्स की संख्या 70 से भी अधिक है. इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे तकरीबन 70 मरीजों में ज्यादातर 15 साल से भी कम के हैं. वहीं, इस फेहरिस्त में ऐसे मरीजों का भी नाम शामिल है जिनकी उम्र तो वैसे 17-25 साल है. मगर थेलसिमीया जैसे गंभीर बीमारी से जूझने के कारण वे इतने कमजोर हो गए हैं कि देखने में बच्चे मालूम पड़ते हैं.

थैलेसीमिया पेशेंट को क्या सुविधाएं दे रही सरकार
भारत सरकार की नेशनल रूरल हेल्थ मिशन ने सूबे के सभी जिला अस्पतालों में थेलसिमीया पेशेंट के लिए शरीर से आयरन कम करने की दवाई (आयरन चिलेटर) यानी डिसेरोकस की व्यवस्था की है. इसके साथ ही थैलेसीमिया पेशेंट को सुरक्षित ब्लड चढ़ाने के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले लिकोसाइट ब्लड फिल्टर बैग की सुविधा अनिवार्य कर रखा है. नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन कॉउंसिल व बिहार सरकार ने सभी थैलेसीमिया पेशेंट के लिए 2009 में ही सभी सरकारी अस्पताल के ब्लड और रेडक्रॉस सोसायटी को सभी थेलसिमीया पेशेंट के लिए बिना प्रतिस्थापन निःशुल्क ब्लड आपूर्ति करने के आदेश दे रखे है. भारत सरकार ने 4 जनवरी 2018 को ही एक नोटिफिकेशन जारी कर थेलसिमीया पेशेंट को उनके जिला अस्पताल द्वारा दिव्यांगता प्रमाणपत्र निर्गत करने का आदेश जारी कर रखा है. लेकिन अब तक इनमें से कोई भी सुविधा थैलेसीमिया पेशेंट के लिए बहाल नहीं की जा सकी है.

थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित मरीज

जाने क्या है थैलेसीमिया रोग
दरअसल थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है जिसमें पेशेंट के शरीर में आयरन की मात्रा इस कदर बढ़ जाती है, जिसे कम करने के लिए आयरन चिलेटर नाम की एक खास दवा लेनी पड़ती है. साथ ही हर महीने खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है. आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है. इसका सीधा असर व्यक्ति के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है. बच्चों में खून की कमी हो जाती है.

थैलेसीमिया से बचने के उपाय:

  • साबुन के साथ हाथ धो कर खुद को संक्रमण से बचा सकते हैं
  • ऐसे विटामिन और सप्लीमेंट ना लें, जिसमें आयरन ज्यादा हो
  • अपने शरीर में रेड ब्लड सेल्स के काउंट बढ़ाने के लिए फोलिक एसिड की खुराक लेनी चाहिए
  • आहार स्वस्थ होना चाहिए और इसमें पर्याप्त कैल्शियम और विटामिन डी होना चाहिए
  • इस गंभीर बीमारी से बच्चे को बचाने के लिए शादी से पहले ही लड़के और लड़की के खून की जांच कर लेनी चाहिए
  • अगर खून की जांच करवाए बिना ही शादी हो गई है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हफ्ते के भीतर ही डीएनए की जांच करवा लेनी चाहिए

क्या है थैलेसीमिया पेशेंट की मांग:

  • आयरन चिलेटर व लिकोसाइट ब्लड फिल्टर बैग की व्यवस्था
  • थैलेसीमिया स्पेसलिस्ट हेमाटोलॉजिस्ट डॉक्टर की नियुक्ति
  • सदर अस्पताल ब्लड बैंक व रेड क्रॉस सोसाइटी द्वारा थैलेसीमिया कार्ड पर ब्लड देने की व्यवस्था
  • आयरन की मात्रा पता लगाने के लिए महंगे 'सीरम फैरेटिन' नाम के ब्लड टेस्ट की व्यवस्था
  • सीरम फैरेटिन ,एलएफटी , केएफटी, हेपेटाइटिस बी व सी जैसे रोगों के ब्लड टेस्ट की व्यवस्था
  • थैलेसीमिया पेशेंट के दिव्यांगता प्रमाणपत्र बनाये जाने की सुविधा

थैलेसीमिया पेशेंट की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कमजोर होने के कारण किसी भी रोगों के संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है. लिहाजा किसी भी वार्ड में थैलेसीमिया पेशेंट को एडमिट किये जाने के बजाए एक अलग वार्ड की व्यवस्था की भी मांग है.

पूर्णियाः मौत के साए में जी रहे जिले के 70 थैलेसीमिया पेशेंट इन दिनों जीवन की आस में स्वास्थ्य विभाग की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. खून की कमी से मरीजों को बचाने के लिए भारत और बिहार सरकार ने अस्पताल को तमाम सुविधाएं मुहैया कराने के सख्त निर्देश दे रखे हैं. इसके बावजूद विभाग कान में तेल डालकर इन निर्देशों की धज्जियां उड़ाता नजर आ रहा है.

thalassemia  patient
थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित मरीज

इलाज के लिए विभाग के चक्कर लगा रहे मरीज
दरअसल जिले में तकरीबन 70 लोग थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. इनमें ज्यादातर 15 साल से भी कम उम्र के बच्चे हैं. दर-दर की ठोकरें खा रहे थैलेसीमिया पेशेंट की जान कभी भी जा सकती है. हैरत की बात है कि एक कदम न चल पाने की अवस्था में भी ये बच्चें परिजनों के साथ जीवन की आस में सदर अस्पताल से लेकर रेड क्रॉस सोसायटी के चक्कर काट रहे हैं. मगर स्वास्थ्य महकमे के कान में जूं तक नहीं रेंग रहा. ऐसे में किसी भी वक़्त सही समय पर ब्लड नहीं मिलने से पल भर की देरी में ये थैलेसीमिया पेशेंट मौत के मुंह में समा सकते हैं. परिजनों की मानें तो इनके सामने सबसे बड़ी समस्या ब्लड और आयरन टैबलेट्स की है. जिसे लेकर सभी बड़े अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगा चुके हैं.

thalassemia patient
थैलेसीमिया पेशेंट

ईटीवी भारत की पड़ताल में आए चौंकाने वाले सच
ईटीवी भारत ने जब इस मामले में पड़ताल की तो सुविधाओं का घोर अभाव था. इस दौरान बेहद चौंकाने वाला सच सामने आया. अस्पताल में न तो थैलेसीमिया पेशेंट के शरीर से आयरन की मात्रा कम करने वाली आयरन चिलेटर यानी डेसिरोकस की व्यवस्था है और न सुरक्षित ब्लड चढ़ाने के लिए ब्लड को फिल्टर करने वाली लिकोसाइट फिल्टर बैग. ऐसे में थैलेसीमिया पेशेंट के लिए एक अलग वार्ड व थैलेसीमिया स्पेशलिस्ट हेमाटोलॉजिस्ट चिकित्सक की उम्मीद रखना बेईमानी है. थेलसिमीया पेसेंट्स की संख्या 70 से भी अधिक है. इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे तकरीबन 70 मरीजों में ज्यादातर 15 साल से भी कम के हैं. वहीं, इस फेहरिस्त में ऐसे मरीजों का भी नाम शामिल है जिनकी उम्र तो वैसे 17-25 साल है. मगर थेलसिमीया जैसे गंभीर बीमारी से जूझने के कारण वे इतने कमजोर हो गए हैं कि देखने में बच्चे मालूम पड़ते हैं.

थैलेसीमिया पेशेंट को क्या सुविधाएं दे रही सरकार
भारत सरकार की नेशनल रूरल हेल्थ मिशन ने सूबे के सभी जिला अस्पतालों में थेलसिमीया पेशेंट के लिए शरीर से आयरन कम करने की दवाई (आयरन चिलेटर) यानी डिसेरोकस की व्यवस्था की है. इसके साथ ही थैलेसीमिया पेशेंट को सुरक्षित ब्लड चढ़ाने के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले लिकोसाइट ब्लड फिल्टर बैग की सुविधा अनिवार्य कर रखा है. नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन कॉउंसिल व बिहार सरकार ने सभी थैलेसीमिया पेशेंट के लिए 2009 में ही सभी सरकारी अस्पताल के ब्लड और रेडक्रॉस सोसायटी को सभी थेलसिमीया पेशेंट के लिए बिना प्रतिस्थापन निःशुल्क ब्लड आपूर्ति करने के आदेश दे रखे है. भारत सरकार ने 4 जनवरी 2018 को ही एक नोटिफिकेशन जारी कर थेलसिमीया पेशेंट को उनके जिला अस्पताल द्वारा दिव्यांगता प्रमाणपत्र निर्गत करने का आदेश जारी कर रखा है. लेकिन अब तक इनमें से कोई भी सुविधा थैलेसीमिया पेशेंट के लिए बहाल नहीं की जा सकी है.

थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित मरीज

जाने क्या है थैलेसीमिया रोग
दरअसल थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है जिसमें पेशेंट के शरीर में आयरन की मात्रा इस कदर बढ़ जाती है, जिसे कम करने के लिए आयरन चिलेटर नाम की एक खास दवा लेनी पड़ती है. साथ ही हर महीने खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है. आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है. इसका सीधा असर व्यक्ति के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है. बच्चों में खून की कमी हो जाती है.

थैलेसीमिया से बचने के उपाय:

  • साबुन के साथ हाथ धो कर खुद को संक्रमण से बचा सकते हैं
  • ऐसे विटामिन और सप्लीमेंट ना लें, जिसमें आयरन ज्यादा हो
  • अपने शरीर में रेड ब्लड सेल्स के काउंट बढ़ाने के लिए फोलिक एसिड की खुराक लेनी चाहिए
  • आहार स्वस्थ होना चाहिए और इसमें पर्याप्त कैल्शियम और विटामिन डी होना चाहिए
  • इस गंभीर बीमारी से बच्चे को बचाने के लिए शादी से पहले ही लड़के और लड़की के खून की जांच कर लेनी चाहिए
  • अगर खून की जांच करवाए बिना ही शादी हो गई है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हफ्ते के भीतर ही डीएनए की जांच करवा लेनी चाहिए

क्या है थैलेसीमिया पेशेंट की मांग:

  • आयरन चिलेटर व लिकोसाइट ब्लड फिल्टर बैग की व्यवस्था
  • थैलेसीमिया स्पेसलिस्ट हेमाटोलॉजिस्ट डॉक्टर की नियुक्ति
  • सदर अस्पताल ब्लड बैंक व रेड क्रॉस सोसाइटी द्वारा थैलेसीमिया कार्ड पर ब्लड देने की व्यवस्था
  • आयरन की मात्रा पता लगाने के लिए महंगे 'सीरम फैरेटिन' नाम के ब्लड टेस्ट की व्यवस्था
  • सीरम फैरेटिन ,एलएफटी , केएफटी, हेपेटाइटिस बी व सी जैसे रोगों के ब्लड टेस्ट की व्यवस्था
  • थैलेसीमिया पेशेंट के दिव्यांगता प्रमाणपत्र बनाये जाने की सुविधा

थैलेसीमिया पेशेंट की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कमजोर होने के कारण किसी भी रोगों के संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है. लिहाजा किसी भी वार्ड में थैलेसीमिया पेशेंट को एडमिट किये जाने के बजाए एक अलग वार्ड की व्यवस्था की भी मांग है.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया) exclusive report । मौत के साए में जी रहे जिले के 70 थेलसिमीया पेसेंट इनदिनों जीवन की आश में स्वास्थ्य महकमे की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। खून की कमी से मौत से सामना करने वाले मरीजों को बचाने के लिए बकायदा भारत सरकार की नेशनल रूरल हेल्थ मिशन व नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन कॉउंसिल ऑफ बिहार ने सूबे के सभी स्वास्थ्य महकमे को हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराने के सख्त निर्देश दे रखे हैं। वहीं स्वास्थ्य महकमा है कि कान में तेल डालकर इन निर्देशों की साफ धज्जियां उड़ाता नजर आ रहा है। (यह स्टोरी अब तक नहीं लगी। यह भी बताया नहीं गया वजह क्या है)


Body: दर-दर की ठोकरें खा रहे थैलेसीमिया पेसेंट , कभी भी जा सकती है जान... हैरत की बात है कि एक कदम न चल पाने की अवस्था में भी ये बच्चें परिजनों के साथ जीवन की आश में सदर अस्पताल से लेकर रेड क्रॉस सोसायटी के चक्कर काट रहे हैं। मगर स्वास्थ्य महकमे के कान में जू तक नहीं रेंग रहा। ऐसे में किसी भी वक़्त सही समय पर ब्लड न मिलने से पल भर की देरी में ये थेलेसिमिया पेसेंट मौत के मुंह में समा सकते हैं। बावजूद इसके स्वास्थ्य महकमा कान में तेल डालकर सोया नजर आ रहा है। इनकी मानें तो इनके सामने सबसे बड़ी समस्या ब्लड व आयरन टैबलेट्स की की है। जिसे लेकर सभी बड़े अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगा चुके हैं। ईटीवी पड़ताल में सुविधाओं का घोर अकाल... लिहाजा ईटीवी भारत ने सरोकार से जुड़े इस मुद्दे उठाते हुए थैलेसीमिया रोगियों को दी जाने वाली सुविधाओं की पड़ताल की तो बेहद चौकाने वाला सच सामने आया। दरअसल अस्पताल में न थेलसिमीया पेसेंट के शरीर से आयरन की मात्रा कम करने वाली आयरन चिलेटर यानी डेसिरोकस की व्यवस्था है। न सुरक्षित ब्लड चढ़ाने के साथ ही लिए गए ब्लड को फिल्टर करने वाली लिकोसाइट फिल्टर बैग। ऐसे में थेलसिमीया पेसेंटस के लिए एक अलग वार्ड व थेलसिमीया स्पेसलिस्ट हेमाटोलॉजिस्ट चिकित्सक की उम्मीद रखना बेईमानी ही मालूम पड़ती है। थेलसिमीया पेसेंट्स की संख्या 70 से भी अधिक... दरअसल हैरत की बात है कि थेलसिमीया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे तकरीबन 70 मरीजों में ज्यादातर 15 साल से भी कम के हैं। वहीं इस फेहरिश्त में ऐसे मरीजों का भी नाम शामिल है जिनकी उम्र तो वैसे 17-25 साल है मगर थेलसिमीया जैसे गंभीर बीमारी से जूझने के कारण वे इतने कमजोर हो जाते हैं कि देखने में बच्चे मालूम पड़ते हैं। पहली दफा इन्हें देखकर तो कोई भी धोखा खा सकता है। जाने क्या है ये रोग थेलसिमीया.... दरअसल थेलसिमीया एक ऐसा रोग है जिसमें पेशेंट के शरीर में आयरन की मात्रा इस कदर बढ़ती जाती है जिसे कम करने के लिए आयरन चिलेटर नाम की एक खास दवा लेने के साथ ही हर महीने खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। जानें थेलसिमीया पेसेंट को कौन-कौन सी सुविधाएं दे रही सरकार- भारत सरकार की नेशनल रूरल हेल्थ मिशन ने सूबे के सभी जिला अस्पतालों में थेलसिमीया पेशेंट के लिए शरीर से आयरन कम करने की दवाई (आयरन चिलेटर) यानी डिसेरोकस की व्यवस्था रखने के निर्देश जारी कर रखे हैं। इसके साथ ही एक अन्य आदेश में थेलसिमीया पेसेंट को सुरक्षित ब्लड चढ़ाने के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले लिकोसाइट ब्लड फिल्टर बैग की सुविधा अनिवार्य कर रखी है। नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन कॉउंसिल व बिहार सरकार ने सभी थेलसिमीया पेशेंट्स के लिए 2009 में ही सभी सरकारी अस्पताल के ब्लड ब को व रेडक्रॉस सोसायटी को सभी थेलसिमीया पेशेंट के लिए बिना प्रतिस्थापन निःशुल्क ब्लड आपूर्ति करने के आदेश दे रखे हैं। भारत सरकार ने 4 जनवरी 2018 को ही एक नोटिफिकेशन जारी कर थेलसिमीया पेशेंट को उनके जिला अस्पताल द्वारा दिव्यांगता प्रमाणपत्र निर्गत करने का आदेश जारी कर रखा है। मगर ताज्जुब की बात यह है कि अब तक इनमें से किसी भी तरह की सुविधा थेलसिमीया पेशेंट के लिए बहाल नहीं की जा सकी है। क्या है थेलसिमीया पेसेंट की मांग- आयरन चिलेटर (शरीर से आयरन की मात्रा कम करने वाली दवा डेसिरोकस की व्यवस्था) व लिकोसाइट ब्लड फिल्टर बैग की व्यवस्था किया जाना। थेलसिमीया स्पेसलिस्ट हेमाटोलॉजिस्ट डॉक्टर की नियुक्ति किया जाना। सीएस के हस्ताक्षर के फेर के बजाए सदर अस्पताल ब्लड बैंक व रेड क्रॉस सोसाइटी द्वारा थेलसिमीया कार्ड पर ब्लड देने की व्यवस्था हो। थेलसिमीया पेशेंट के शरीर में जमा हो रहे आयरन की मात्रा की स्थिति पता लगाने के लिए हर तीन महीने पर की जाने वाली महंगे 'सीरम फैरेटिन' नाम के ब्लड टेस्ट की व्यवस्था अस्पताल में ही उपलब्ध कराए जाने की मांग। सीरम फैरेटिन ,एलएफटी , केएफटी ,हेपेटाइटिस बी व सी जैसे रोगों के ब्लड टेस्ट की व्यवस्था । थेलसिमीया पेशेंट को दिव्यांगता प्रमाणपत्र बनाये जाने की सुविधा। थेलसिमीया पेशेंट की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कमजोर होने के कारण किसी भी रोगों के संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है लिहाजा किसी भी वार्ड में थेलसिमीया पेशेंट को एडमिट किये जाने के बजाए एक अलग वार्ड की व्यवस्था की मांग।


Conclusion:
Last Updated : Aug 10, 2019, 3:19 PM IST
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