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ये हैं पूर्णिया के फ्लैग मैन, भले ही फौजी नहीं बन पाए, लेकिन कुछ यूं कर रहे देश सेवा - डीआईजी उपेंद्र प्रसाद सिंहा

अपने पिता और छोटे भाई की तरह अनिल चौधरी भी देश सेवा करना चाहते थे. लेकिन, उनका ये सपना अधुरा रह गया. एक दिन अपने पिता के फौजी दोस्त को फेंके गए तिरंगे झंडे को लेकर चिंता जाहिर करते देख उन्होंने फेंके हुए झंडों को इकट्ठा कर देश सेवा करने की ठान ली.

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Published : Feb 4, 2020, 8:45 AM IST

Updated : Feb 4, 2020, 9:48 AM IST

पूर्णिया: देश सेवा की कोई उम्र नहीं होती है. लिहाजा, 46 साल के अनिल आज कंधों पर पत्नी और 2 बच्चों की जिम्मेवारी के बावजूद फेंके गए तिरंगे झंडे की अहमिहत जानते हुए उसे संग्रहित करने का काम कर रहे हैं. ऐसे देश प्रेम के लिए उन्हें कई बड़े मंचों सहित डीआईजी ने भी सम्मानित किया है.

जानें कौन हैं फ्लैग मैन अनिल?
शहर के रजनी चौक स्थित विवेकानंद कॉलोनी में रहने वाले अनिल चौधरी पेंटिंग की दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. अनिल ने बताया कि उन्हें बचपन से ही इंडियन आर्मी में शामिल होकर देश सेवा की चाहत थी. साथ ही इस सेवा से मिले वेतन से एनजीओ खोल समाजसेवा भी करना चाहते थे. इसीलिए अक्सर उनकी पेंटिंग में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई जीत के साथ गरीबों की मदद करते भारतीयों की तस्वीर दिखाई देती है.

पेश है रिपोर्ट

पिता के फौजी दोस्त से मिली प्रेरणा
फौजी पिता बिंदेश्वरी प्रसाद चौधरी और बीएसएफ में शामिल छोटे भाई अरुण चौधरी की तरह अनिल भी फौज में शामिल होकर देश सेवा करना चाहते थे. लेकिन, ये सपना उनका अधुरा रह गया. लेकिन, एक दिन अपने पिता के फौजी दोस्त को फेंके गए तिरंगे झंडे को लेकर चिंता जाहिर करते देख उन्होंने फेंके हुए झंडों को इकट्ठा कर देशसेवा करने की ठान ली.

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पूर्णिया के फ्लैग मेन अनिल चौधरी

दोस्तों ने उड़ाया था मजाक
देशप्रेमी अनिल ने बताया कि जब वे 30 साल के थे, तब से ही स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के बीतने के बाद फेंके गए झंडों को इकट्ठा करना शुरू किया था. उनके दोस्त उनका मजाक भी उड़ाया करते थे. लेकिन, जो लोगों के लिए शर्म की बात थी, वो उनके लिए गर्व की बात थी.

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कई मंचो पर सम्मानित हुए हैं अनिल

पिता को है गर्व
जब फौजी पिता को अनिल के इस मुहिम के बारे में पता चला, तो उनके इस देशप्रेम को देख पिता ने अनिल को गर्व से गले लगा लिया था. हालांकि, कुछ लोगों ने इस बारे में उनके पिता को अधूरी बात बताकर अनिल की शिकायक की थी, जिसको लेकर पिता ने अनिल की पिटाई भी की थी. अनिल का मानना है कि यदि आप सीमा पर तैनात एक जवान की तरह देश सेवा नहीं कर पाते हैं, तो देश की शान तिरंगे झंडे को उठाकर भी देश सेवा कर सकते हैं.

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इलाके के लोगों में खुशी

सफाई के बाद झंडे को देते हैं जलसमाधि
पहले अनिल फेंके गए झंडे को उठाने का काम अकेले करते थे. लेकिन, अब उनका साथ उनकी पत्नी और बच्चे भी देते हैं. वे उठाए गए झंडे को घर लाते हैं और उसे साफ करते हैं. फिर, वे झंडे को सूखाकर पूरे सम्मान के साथ लाल धागे से बांधकर मंत्रोच्चार के साथ बहती हुई धारा में जल समाधि देते हैं.

यह भी पढ़ें- राजगीर में अब दहाड़ेंगे बाघ, 480 एकड़ इलाके में बन रही सफारी

डीआईजी कर चुके हैं पुरस्कृत
वर्तमान समय में अनिल जिले के लोगों के लिए गर्व का विषय बन गए हैं. स्थानीय लोगों के बीच वे फ्लैग मेन के नाम से जाने जाते हैं. अनिल को इस अविस्मरणीय कार्य के लिए कई बड़े सम्मान मिल चुके हैं. इन्हें पहला सम्मान तत्कालीन डीआईजी उपेंद्र प्रसाद सिंहा ने दिया था. इसके बाद भी इन्हें कई बड़े संस्थानों और मंचों से सम्मानित किया जा चुका है. अनिल कहते हैं कि उनका लक्ष्य इस काम के बदले सम्मान बटोरना नहीं, बल्कि देश सेवा करना और लोगों को तिरंगे झंडे की अहमियत बताना है.

पूर्णिया: देश सेवा की कोई उम्र नहीं होती है. लिहाजा, 46 साल के अनिल आज कंधों पर पत्नी और 2 बच्चों की जिम्मेवारी के बावजूद फेंके गए तिरंगे झंडे की अहमिहत जानते हुए उसे संग्रहित करने का काम कर रहे हैं. ऐसे देश प्रेम के लिए उन्हें कई बड़े मंचों सहित डीआईजी ने भी सम्मानित किया है.

जानें कौन हैं फ्लैग मैन अनिल?
शहर के रजनी चौक स्थित विवेकानंद कॉलोनी में रहने वाले अनिल चौधरी पेंटिंग की दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. अनिल ने बताया कि उन्हें बचपन से ही इंडियन आर्मी में शामिल होकर देश सेवा की चाहत थी. साथ ही इस सेवा से मिले वेतन से एनजीओ खोल समाजसेवा भी करना चाहते थे. इसीलिए अक्सर उनकी पेंटिंग में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई जीत के साथ गरीबों की मदद करते भारतीयों की तस्वीर दिखाई देती है.

पेश है रिपोर्ट

पिता के फौजी दोस्त से मिली प्रेरणा
फौजी पिता बिंदेश्वरी प्रसाद चौधरी और बीएसएफ में शामिल छोटे भाई अरुण चौधरी की तरह अनिल भी फौज में शामिल होकर देश सेवा करना चाहते थे. लेकिन, ये सपना उनका अधुरा रह गया. लेकिन, एक दिन अपने पिता के फौजी दोस्त को फेंके गए तिरंगे झंडे को लेकर चिंता जाहिर करते देख उन्होंने फेंके हुए झंडों को इकट्ठा कर देशसेवा करने की ठान ली.

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पूर्णिया के फ्लैग मेन अनिल चौधरी

दोस्तों ने उड़ाया था मजाक
देशप्रेमी अनिल ने बताया कि जब वे 30 साल के थे, तब से ही स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के बीतने के बाद फेंके गए झंडों को इकट्ठा करना शुरू किया था. उनके दोस्त उनका मजाक भी उड़ाया करते थे. लेकिन, जो लोगों के लिए शर्म की बात थी, वो उनके लिए गर्व की बात थी.

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कई मंचो पर सम्मानित हुए हैं अनिल

पिता को है गर्व
जब फौजी पिता को अनिल के इस मुहिम के बारे में पता चला, तो उनके इस देशप्रेम को देख पिता ने अनिल को गर्व से गले लगा लिया था. हालांकि, कुछ लोगों ने इस बारे में उनके पिता को अधूरी बात बताकर अनिल की शिकायक की थी, जिसको लेकर पिता ने अनिल की पिटाई भी की थी. अनिल का मानना है कि यदि आप सीमा पर तैनात एक जवान की तरह देश सेवा नहीं कर पाते हैं, तो देश की शान तिरंगे झंडे को उठाकर भी देश सेवा कर सकते हैं.

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इलाके के लोगों में खुशी

सफाई के बाद झंडे को देते हैं जलसमाधि
पहले अनिल फेंके गए झंडे को उठाने का काम अकेले करते थे. लेकिन, अब उनका साथ उनकी पत्नी और बच्चे भी देते हैं. वे उठाए गए झंडे को घर लाते हैं और उसे साफ करते हैं. फिर, वे झंडे को सूखाकर पूरे सम्मान के साथ लाल धागे से बांधकर मंत्रोच्चार के साथ बहती हुई धारा में जल समाधि देते हैं.

यह भी पढ़ें- राजगीर में अब दहाड़ेंगे बाघ, 480 एकड़ इलाके में बन रही सफारी

डीआईजी कर चुके हैं पुरस्कृत
वर्तमान समय में अनिल जिले के लोगों के लिए गर्व का विषय बन गए हैं. स्थानीय लोगों के बीच वे फ्लैग मेन के नाम से जाने जाते हैं. अनिल को इस अविस्मरणीय कार्य के लिए कई बड़े सम्मान मिल चुके हैं. इन्हें पहला सम्मान तत्कालीन डीआईजी उपेंद्र प्रसाद सिंहा ने दिया था. इसके बाद भी इन्हें कई बड़े संस्थानों और मंचों से सम्मानित किया जा चुका है. अनिल कहते हैं कि उनका लक्ष्य इस काम के बदले सम्मान बटोरना नहीं, बल्कि देश सेवा करना और लोगों को तिरंगे झंडे की अहमियत बताना है.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)
Special report ।

ये देश सेवा की कभी न खत्म होने वाली चाहत ही है, कि 46 साल के अनिल आज दांपत्य जीवन में प्रवेश कर गए हैं। खुद के अलावा अब इन कंधों पर पत्नी और दो बच्चों के पेट पालने की जिम्मेवारी है। बावजूद इसके अनिल चौधरी ने फेंकें गए तिरंगे झंडे की अहमियत जान उन्हें संग्रहित करना नहीं छोड़ा। देश के प्रति इस अगाध प्रेम के लिए अनिल को डीआईजी समेत कई बड़े मंचों से सम्मानित किया जा चुका है।



Body:जानें कौन हैं फ्लैग मैन अनिल....

शहर के रजनी चौक स्थित विवेकानंद कॉलोनी में रहने वाले अनिल चौधरी पेंटिंग की दुकान चलाकर खुद के साथ ही अपनी पत्नी और अपने बच्चों का पेट पालते हैं। समाजसेवी अनिल चौधरी कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही इंडियन आर्मी में शामिल होकर देश की सेवा की चाहत थी। वे इस सेवा से मिले वेतन से शहर के जरूरतमंदों के लिए एनजीओ खोल समाजसेवा करना चाहते थे। यही वजह थी कि बचपन से पेंटिंग का शौक रखने वाले अनिल की ज्यादातर पेंटिंग में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई जीत के साथ ही गरीबों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते भारत का पुट जरूर दिखाई देता था।


बचपन से ही थी फौज में शामिल हो देश सेवा की चाहत...


हालांकि फौजी पिता बिंदेश्वरी प्रसाद चौधरी और बीएसएफ ने शामिल छोटे भाई अरुण चौधरी की तरह फौज में जाकर देश सेवा का अनिल का सपना तो किसी कोरे कागज की तरह अधूरा ही रह गया। मगर ख़्वाहिशों के थककर हार जाने भर से अनिल की चाहतों का समंदर कहां सूखने वाला था। लिहाजा एक रोज पिता के फौजी दोस्त ने फेंकें गए तिरंगे झंडों को लेकर जैसे ही अपनी चिंता जाहिर की। अनिल ने सम्मान के लिए सिसक रहे झंडों को इकट्ठा कर देशसेवा की ठान ली।


देश सेवा के लिए फेंकें झंडे करते हैं इकट्ठा....


अनिल कहते हैं कि वे तब 30 साल के थे। जब उन्होंने स्वतंत्रता दिवस बीतने के बाद लोगों द्वारा इधर -उधर फेके गए तिरंगे को इकट्ठा करना शुरू किया था। इसके बाद से वे ही आज तक हर गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के बीतते ही फेके गए झंडों को इकट्ठा करते हैं। ऐसा करते हुए उन्हें एक माह तक का समय लग जाता है। अनिल कहते हैं कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उन्हें ऐसा करता देख क्या कहते हैं या फिर उनके बारे में क्या धारणा रखते हैं। वे कहते हैं कि ऐसा करता देख खुद उनके दोस्तों तक उनकी खिल्ली उड़ाई। मगर जहां औरों के लिए यह शर्म है। वहीं उनके लिए यह शान की बात।


शुरुआती सालों में फौजी पिता ने पिलाई थी डांट...



शुरुआती दिनों को याद करते हुए अनिल कहते हैं कि पहले साल जब उन्होंने इधर- उधर फेके गए तिरंगे झंडे को इकट्ठा करना शुरू किया। तो अधूरी बात बताकर इसकी शिकायत उनके फौजी पिता से कर दी। जिसके बाद पिता ने अनिल को जमकर डांट पिलाई। हालांकि जैसे ही एक फौजी पिता ने बोरा खोला। उनकी नजर इकट्ठा किए गए तिरंगे झंडे पर गई। अनिल ने पिता को पूरा सच सुनाया। जिसके बाद देश के प्रति अगाध प्रेम देखकर फौजी पिता ने अनिल को गर्व से गले लगा लिया।


फेंके झंडे को उठाकर सम्मान देना भी देश सेवा....


अनिल कहते हैं जरूरी नहीं हाथों में हथियार लेकर सरहद पर तैनात एक जवान ही देश की सेवा कर सकता है। देश की आन, बान और शान का प्रतीक तिरंगा झंडा कथित प्रबुद्ध समाज में इधर-उधर फेंका गया हो। लोग कदमों से इसे रौंदकर आगे बढ़ते चले जा रहे हों। ऐसे में इसे उठा कर सम्मान दिया जाए। तो यह भी एक देश सेवा है।


सफाई के बाद झंडे को देते हैं जलसमाधि....


हालांकि कभी इस काम को अकेले पार लगाने वाले अनिल के इस नेक काम में अब उनके अपनों का साथ भी मिलने लगा है।
अनिल फेंके गए झंडे उठाकर घर लाते हैं और इनके ऊपर लगी गंदगी साफ करते हैं। वहीं पिछले कुछ सालों से उनके इस काम में उनकी पत्नी और बच्चे भी हाथ बंटाने लगे हैं। वे इसे साफ करते हैं और फिर सूखने के लिए छोड़ते हैं। वहीं इनके सूखने के बाद अनिल पूरे सम्मान से इन तिरंगे झंडे को पूजा के लाल धागे से बांधकर मंत्रोच्चार के साथ बहती हुई धारा में जल समाधि देते है।


डीआईजी कर चुके हैं पुरस्कृत....


वहीं जिले के लोगों के लिए वे गर्व का विषय बन गए हैं। स्थानीय कहते हैं कि उन्हें इस बात का बेहद गर्व होता है। कि उनके शहर और उनकी बस्ती में ऐसा फ्लैग मैन है। जो यत्र- तत्र फेंके गए झंडों को इकट्ठा करता है और उन्हें सम्मान देता है। अनिल को इस अविस्मरणीय कार्य के लिए कई बड़े सम्मान भी मिल चुके हैं। इन्हें पहला सम्मान तत्कालीन डीआईजी उपेंद्र प्रसाद सिंहा ने दिया था। इसके बाद से इन्हें कई बड़े संस्थानों और मंचों से अनगिनत सम्मान मिल चुके हैं। अनिल कहते हैं उनका मकसद इस कार्य के बदले सम्मान बटरोना नहीं बल्कि देश सेवा के साथ ही लोगों को तिरंगे की अहमियत बतलाना है।

बाईट 1- अनिल चौधरी

बाईट 2-देव प्रसाद ,स्थानीय


Conclusion:बरहाल जरूरत है, तथाकथित इलीट क्लास सोसाइटी को अनिल चौधरी से लेशन लेकर तिरंगे झंडे की अहमियत समझने की। ताकि देश की आन ,बान और शान के लिए लहराता तिरंगा सड़कों पर किसी के कदमों के तले रौंदा जाता ना मिले।

Last Updated : Feb 4, 2020, 9:48 AM IST
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