पूर्णिया: बिहार में मासिक धर्म स्वच्छता के मुद्दों के कारण लड़कियों के हाई स्कूल छोड़ने की प्रवृति आम हो रही है. NFHS-5 (National Family Health Survey) की रिपोर्ट कहती है कि हाई स्कूल नहीं जाने वाली 80 प्रतिशत लड़कियां माहवारी के समय कपड़े का उपयोग करती हैं और केवल 32 प्रतिशत लड़कियां सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करतीं हैं. वहीं स्कूल जाने वाली लड़कियों में यह आंकड़ा क्रमश: 35.6 और 76.8 प्रतिशत है. ऐसे में सुरक्षित और स्वच्छ तरीकों को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों में सेनेटरी पैड मशीन स्थापित किए जा रहे हैं.
यह भी पढ़ें: BPSC टॉपर सुधीर कुमार के स्कूल में लड्डू बांटकर मनाया गया जश्न
सेनेटरी मशीन मील का पत्थर: NOBAGSR यानी 'नेतरहाट पूर्ववर्ती छात्र संगठन ग्लोबल सोशल रेस्पोंसिबिलिटी' संगिनी पहल के तहत कोसी और सीमांचल के बालिका उच्च विद्यालयों में लगा सैनिटरी पैड मशीन मील का पत्थर साबित हो रहा है. ये मशीन छात्राओं को महज एक रूपये में सैनिटरी पैड उपलब्ध करा रहा है. ऐसे में जब से सेनेटरी मशीन स्कूलों में स्थापित किए गए है, ना सिर्फ हाईस्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों के स्कूल आने के प्रतिशत में वृद्धि हुई है. बल्कि ऐसी बालिकाओं में विद्यालय छोड़ने की प्रवृति में अप्रत्याशित रूप से कमी आई है.
यह भी पढ़ें: मसौढ़ी के नेतौल मिडिल स्कूल में शुक्रवार को छुट्टी क्यों? सुनिये क्या बोले प्रभारी प्रधानाचार्य
जिले में 12 सेनेटरी वेंडिंग मशीनें: जिले में ही 12 सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें लगाई गई है. जिसे यहां के नोबा प्रभारी सह शिक्षाविद् रमेश चन्द्र मिश्र संयोजित कर रहे हैं. वे कहते हैं कि इससे समाज में जागरूरता आएगी. बच्चियों को अब स्कूल में आसानी से एक रुपये यह उपलब्ध होगा. उन्हें ऐसी स्थिति में दुकान जाने की झंझट नहीं उठाना पड़ेगा. साथ ही इसको डिस्पोजल करने में भी आसानी होगी. इससे पर्यावरण को फायदा होगा, क्योंकि पैड आसानी से नहीं सड़ता है. लेकिन इस मशीन में वह नाम मात्र का बचेगा.
पीरियड्स के प्रति जागरूकता: कन्या उच्च विद्यालय भट्टा दुर्गाबाड़ी और कचहरी स्थित कन्या उच्च विद्यालय में सेनेटरी पैड डिस्पेंसर मशीन और इन्सिनेरटर भी लगाया गया है. यह काम NOBAGSR ने 'संगिनी' एक पहल के तहत किया गया है. यह सैनिटरी पैड एवं उपकरण वितरित करने और मासिक धर्म के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शुरू की गयी है. कन्या उच्च विद्यालय कचहरी की शिक्षिका इसे विद्यालयों में किया गया अब तक का सबसे सुंदर प्रयोग मानती हैं. वे कहती हैं इससे बच्चियों में काफी जागरुकता आ रही है.
विद्यालय की छात्राओं का कहना है कि अब हमलोगों को बाहर नहीं जाना पड़ता. न किसी बात की हिचक होती है. सभी स्कूलों को सैनिटरी पैड डिस्पेंसर मशीन इन्सिनेरटर भी दिया गया है. साथ ही 1000 पैड भी दिया गया है.
"पीरियड्स के दौरान कपड़ा इस्तेमाल करने से कितनी घातक बीमारियां हो सकती हैं. इसके लिए पैड्स का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि किसी प्रकार की बीमारी का खतरा ना हो. शिक्षक छात्राओं को जागरूक करेंगी कि अगर इस दौरान कोई समस्या आती है तो उसे शर्म की वजह से छुपाए नहीं बल्कि खुलकर शिक्षक को या परिवार सदस्यों को बताएं" -शिक्षिका, कन्या उच्च विद्यालय कचहरी
क्या कहती है NFHS की रिपोर्ट: एनएफएचएस-5 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 15-19 साल के आयुवर्ग की 64.5 प्रतिशत लड़कियां सैनिटरी नैपकिन, 49.3 प्रतिशत लड़कियां कपड़ा, 15.2 प्रतिशत लड़कियां स्थानीय रूप से तैयार नैपकिन, 1.7 प्रतिशत लड़कियां टैम्पोन और 0.3 प्रतिशत महिलाएं मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करती हैं. कुल मिलाकर इस आयुवर्ग की 78 प्रतिशत लड़कियां माहवारी के दौरान एक स्वच्छ विधि अपनाती हैं जबकि एनएफएचएस-4 में यह आंकड़ा 57.7 प्रतिशत था.
"पहले स्कूल में सेनेटरी पैड्स की मशीन नहीं था. ऐसे में हमलोगों को बाहर जाना पड़ता था. कई बार स्कूल छोड़कर घर जाना पड़ता था. लेकिन अब सेनेटरी वेंडिंग मशीन होने के कारण छात्राएं अब पीरियड्स के दौरान स्कूल में ही पैड्स का इस्तेमाल कर सकती" - बालिका कुमारी, छात्रा