पूर्णिया: 15 अगस्त की सुबह, आजादी का जश्न मनाने का सुनहरा मौका, जिसका हर किसी को बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है. लेकिन बिहार के पूर्णिया में लोग आधी रात में ही झंडोत्तोलन कर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. जहां एक तरफ बिहारवासी सुबह का इंतजार कर रहे थे. वहीं पूर्णिया के ऐतिहासिक झंडा चौक पर मध्यरात्रि में लोगों ने झंडा फहरा कर आजादी का जश्न मनाया.
12:01 मिनट पर हुआ झंडोत्तोलन
दरअसल यह परम्परा 14 अगस्त 1947 से चली आ रही है. इस साल भी परम्परा के मुताबिक मध्यरात्रि की दुधिया रौशनी में लोग ऐतिहासिक झंडा चौक पर एकत्रित हुए. ठीक 12 बजकर 1 मिनट पर झंडा फहराया गया. स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह के पौत्र विपुल प्रसाद सिंह ने झंडोत्तोलन किया. इस दौरान विपुल के पारिवारिक सदस्य भी इस पल के साक्षी बने. राष्ट्रगान के साथ झंडे को लोगों ने सलामी दी.
ऐतिहासिक मौके पर पहुंचते हैं दूर-दराज के लोग
स्वर्णिम पल का गवाह बनने के लिए लोग घण्टों पहले ही पहुंच गए. स्थानीय विधायक विजय खेमका से लेकर स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय रामेश्वर प्रसाद सिंह के पारिवारिक सदस्य और दूर-दराज के लोग मौजदू रहे. लोगों ने तिरंगा फहराते हुए एक-दूसरे को बधाई दी और मिठाईयां बांटी.
रंग-बिरंगे वेशभूषा में सजे बच्चों ने लोगों का मन मोहा
देशभक्ति गीतों पर हर कोई हाथों में तिरंगा लहराता रहा. लोग देशभक्ति में सराबोर नजर आए. वहीं, झंडोत्तोलन कार्यक्रम के दौरान रंग-बिरंगे वेशभूषा में सजे नन्हे-मुन्ने बच्चों ने आकर्षित किया. हाथों में तिरंगा लिए देशभक्ति गीतों पर लोग झूमते रहे.
विधायक ने राजकीय स्थल का दर्जा दिलाने का दिया आश्वासन
इस दौरान स्थानीय विधायक विजय खेमका ने बताया कि बाघा बॉर्डर के बाद पूर्णिया में सबसे पहले आजादी का जश्न मनाया जाता है. यह परम्परा 1947 से चली आ रही है. 14 अगस्त की मध्य रात्रि में ठीक 12 बजकर 1 मिनट पर झंडोत्तोलन किया गया था. उस समय स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह ने पूर्णिया के झंडा चौक पर तिरंगा फहराया था. तब से यह परंपरा जारी है. स्थानीय विधायक ने बताया कि इस स्थान को जल्द से जल्द राजकीय स्थल का दर्जा दिलाने का प्रयास चल रहा है.
याद किये गए स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर प्रसाद
वहीं, झंडोत्तोलन कर विपुल प्रसाद सिंह ने अपने दादा स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह को याद किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि वो दादा जी के द्वारा शुरू की गई परम्परा को निभा रहे हैं. इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने का मौका मिलना बड़े ही गर्व की बात है.