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'पाकिस्तान' नाम बदलना चाहते हैं बिहार के लोग, होना पड़ता है शर्मिंदा

पाकिस्तान का नाम बदलने के लिए वहां के लोगों ने अब अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगाई है. अधिकारियों ने भी आश्वासन दिया है कि अब पाकिस्तान का नाम बदला जाएगा.

बिहार का पाकिस्तान
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Published : Oct 20, 2019, 7:07 AM IST

Updated : Oct 20, 2019, 7:11 PM IST

पूर्णिया: पड़ोसी देश पाकिस्तान के अलावा बिहार के पूर्णिया जिले में भी एक पाकिस्तान बसता है, जहां के लोगों ने अब अपने गांव का नाम पाकिस्तान से बदलकर 'बिरसा नगर' करने की मांग उठाई है. ग्रामीणों का कहना है कि पाकिस्तान नाम होने के कारण उन्हें शर्मिंदा होना पड़ता है.

बिहार के पूर्णिया जिले के श्रीनगर ब्लॉक में सिंधिया ग्राम पंचायत के पाकिस्तान गांव के लोगों ने गांव का नाम बदलने के लिए जिलाधिकारी के नाम का एक सामूहिक आवेदन पत्र अंचलाधिकारी (बीडीओ)को सौंपा है. पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने कहा कि उनके पास अभी तक आवेदन पत्र नहीं आया है, लेकिन अगर ऐसा है तो प्रक्रिया के मुताबिक गांव का नाम बदलने की पहल की जाएगी.

बहुत शर्मिंदा होना पड़ता है-स्थानीय
बहुत शर्मिंदा होना पड़ता है-स्थानीय

तो क्या नाम रखा जाएगा...
जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर इस गांव में सिर्फ आदिवासी समुदाय के ही लोग रहते हैं. यहां की कुल आबादी करीब 1200 है. यहां के लोगों ने पाकिस्तान गांव का नाम बदलकर भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर गांव का नाम बिरसा नगर करने का फैसला किया है.

पत्र में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा
आवेदन पत्र में ग्रामीणों ने लिखा है कि आए दिन पाकिस्तान का भारत में आतंकवाद फैलाना और भारत के प्रति जहर उगलना अब बर्दाश्त से बाहर हो गया है. अब यहां के लोगों को पाकिस्तान नाम से नफरत हो रही है, जिस कारण गांव के लोग सामूहिक रूप से अपने गांव का नाम बदलने का फैसला किया है.

देखिए, पूर्णिया से खास रिपोर्ट

बेटे-बेटियों की शादी में आती हैं मश्किलें...
ग्रामीणों का कहना है कि गांव का पाकिस्तान नाम होने के कारण कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ग्रामीण तो यहां तक कहते हैं कि गांव का नाम पाकिस्तान होने के कारण बेटे, बेटियों की शादियां भी तय करने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

आंखों में विकास की चाहत
आंखों में विकास की चाहत

विकास से कोसों दूर है गांव
इस गांव (टोले) में न तो कोई स्कूल है न ही कोई अस्पताल. पाकिस्तान टोला से स्कूल 2 किमी दूर है, जबकि अस्पताल यहां से करीब 12 किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों कहते है कि, विकास के नाम पर यहां बदहाल कच्ची सड़कें हैं. इसके साथ बच्चों का भविष्य खतरे में है.

ऐसा है गांव का बचपन
ऐसा है गांव का बचपन

ऐसे पड़ा इस गांव का नाम
इस टोले का नाम पाकिस्तान कैसे पड़ा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है, लेकिन यहां के कुछ लोग बताते हैं कि, भारत विभाजन के समय 1947 में यहां रहने वाले अल्पसंख्यक परिवार पाकिस्तान चले गए. इसके बाद गांव का नाम लोगों ने पाकिस्तान टोला रख दिया.

  • एक दूसरी कहानी 1971 भारत-पाक युद्ध से जुड़ी है. कहा जाता है कि युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान से कुछ शरणार्थी यहां आए और उन्होंने एक टोला बसा लिया. इन शरणार्थियों ने टोला का नाम पाकिस्तान रखा. बांग्लादेश बनने के बाद वे वापस चले गए, जिसके बाद इलाके का नाम पाकिस्तान टोला पड़ गया.

पूर्णिया: पड़ोसी देश पाकिस्तान के अलावा बिहार के पूर्णिया जिले में भी एक पाकिस्तान बसता है, जहां के लोगों ने अब अपने गांव का नाम पाकिस्तान से बदलकर 'बिरसा नगर' करने की मांग उठाई है. ग्रामीणों का कहना है कि पाकिस्तान नाम होने के कारण उन्हें शर्मिंदा होना पड़ता है.

बिहार के पूर्णिया जिले के श्रीनगर ब्लॉक में सिंधिया ग्राम पंचायत के पाकिस्तान गांव के लोगों ने गांव का नाम बदलने के लिए जिलाधिकारी के नाम का एक सामूहिक आवेदन पत्र अंचलाधिकारी (बीडीओ)को सौंपा है. पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने कहा कि उनके पास अभी तक आवेदन पत्र नहीं आया है, लेकिन अगर ऐसा है तो प्रक्रिया के मुताबिक गांव का नाम बदलने की पहल की जाएगी.

बहुत शर्मिंदा होना पड़ता है-स्थानीय
बहुत शर्मिंदा होना पड़ता है-स्थानीय

तो क्या नाम रखा जाएगा...
जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर इस गांव में सिर्फ आदिवासी समुदाय के ही लोग रहते हैं. यहां की कुल आबादी करीब 1200 है. यहां के लोगों ने पाकिस्तान गांव का नाम बदलकर भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर गांव का नाम बिरसा नगर करने का फैसला किया है.

पत्र में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा
आवेदन पत्र में ग्रामीणों ने लिखा है कि आए दिन पाकिस्तान का भारत में आतंकवाद फैलाना और भारत के प्रति जहर उगलना अब बर्दाश्त से बाहर हो गया है. अब यहां के लोगों को पाकिस्तान नाम से नफरत हो रही है, जिस कारण गांव के लोग सामूहिक रूप से अपने गांव का नाम बदलने का फैसला किया है.

देखिए, पूर्णिया से खास रिपोर्ट

बेटे-बेटियों की शादी में आती हैं मश्किलें...
ग्रामीणों का कहना है कि गांव का पाकिस्तान नाम होने के कारण कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ग्रामीण तो यहां तक कहते हैं कि गांव का नाम पाकिस्तान होने के कारण बेटे, बेटियों की शादियां भी तय करने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

आंखों में विकास की चाहत
आंखों में विकास की चाहत

विकास से कोसों दूर है गांव
इस गांव (टोले) में न तो कोई स्कूल है न ही कोई अस्पताल. पाकिस्तान टोला से स्कूल 2 किमी दूर है, जबकि अस्पताल यहां से करीब 12 किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों कहते है कि, विकास के नाम पर यहां बदहाल कच्ची सड़कें हैं. इसके साथ बच्चों का भविष्य खतरे में है.

ऐसा है गांव का बचपन
ऐसा है गांव का बचपन

ऐसे पड़ा इस गांव का नाम
इस टोले का नाम पाकिस्तान कैसे पड़ा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है, लेकिन यहां के कुछ लोग बताते हैं कि, भारत विभाजन के समय 1947 में यहां रहने वाले अल्पसंख्यक परिवार पाकिस्तान चले गए. इसके बाद गांव का नाम लोगों ने पाकिस्तान टोला रख दिया.

  • एक दूसरी कहानी 1971 भारत-पाक युद्ध से जुड़ी है. कहा जाता है कि युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान से कुछ शरणार्थी यहां आए और उन्होंने एक टोला बसा लिया. इन शरणार्थियों ने टोला का नाम पाकिस्तान रखा. बांग्लादेश बनने के बाद वे वापस चले गए, जिसके बाद इलाके का नाम पाकिस्तान टोला पड़ गया.
Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)
special story ।

दशकों से 'पाकिस्तान' नाम का दंश झेलने वाले बिहार के पूर्णिया में बसे पाकिस्तान टोला का नाम बेहद जल्द बिहार के नक्शे में बदल जाएगा। बकायदा 1 हजार की आबादी वाले संथाली आदिवासियों ने खुद इसके लिए पहल की है और जिले के डीएम राहुल कुमार के नाम एक आवेदन दिया है। जिसमें गांव का नाम पाकिस्तान टोला से बदलकर बिरसा नगर रखने की मांग की है।



Body:जानें कहां है यह पाकिस्तान टोला..

दरअसल काला पानी की सजा के लिए मशहूर पूर्णिया के नक्शे में दिखाई देने वाला 'मिनी पाकिस्तान' नाम से मशहूर पाकिस्तान टोला नाम की यह जगह कहीं और नहीं बल्कि जिला मुख्यालय से तकरीबन 35 किलोमीटर के फासले पर अररिया-पूर्णिया सीमा से लगे श्री नगर प्रखंड के सिंधिया पंचायत में मौजूद है।


जानें इस टोले को क्यों कहते हैं 'मिनी पाकिस्तान'....

दरअसल पाकिस्तान टोले में रहने वाले 58 वर्षीय युद्दू टुड्डू व शुभम लकड़ा की बातों पर गौर करें तो पाकिस्तान से बांग्लादेश के बंटवारे के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थी आए। यहां आकर उन्होंने इस टोले का नाम पाकिस्तान टोला रखा। मगर 1972 के बांग्लादेश- पाकिस्तान बंटवारे के साथ पाकिस्तानी रिफ्यूजियों ने बड़ी ही तेजी से पलायन किया। जिसके बाद वीरान पड़े इस टोले में झारखंड के संथालियों का आना शुरू हुआ। और तब से यहां संस्थाली परिवार रहने लगे।

नाम बनता रहा था विकास का बाधक .....

पाकिस्तान नाम से मेल खाते इस पाकिस्तान टोले को अपने नाम के कारण किस कदर सियासतदान ,सिस्टम और संवेदनशून्य समाजसेवियों की कैसी बेरुखी झेलनी पड़ी होगी। इसका अंदाजा आप आदिवासी संथाली युद्दू टुड्डू औऱ शुभम लकड़ा की बेबसी से भरी बातों से लगा सकते हैं। यहां आकर आपको या तो दशकों पुराने भारत में आने का एहसास होगा या फिर पाकिस्तान में। ताज्जुब है कि आजादी के 7 दशक गुजर जाने के बाद भी यहां न तो सड़कें बनी न स्वास्थ्य केंद्र न आंगनबाड़ी या प्राथमिक विद्यालय। लिहाजा ऐसे में इंदिरा आवास और उज्ज्वला जैसी योजनाओं की बात करना बेईमानी ही होगी।


पाकिस्तान नाम सुन लौट जाते थे लगन लिए लड़के वाले...

मीरा टुड्डू जैसी ही संथाली ग्रामीणों की मानें तो पाकिस्तान नाम सुन संथाली लड़कियों की तय लग्न टूट जाती थी। यही वजह है कि कुछ दिनों पहले रेशमा हांसदा की मुहं दुखाई और शादी की सारी रश्म पाकिस्तान टोला के बजाए श्री नगर स्थित मंदिर में रखनी पड़ी। वहीं पाकिस्तान नाम सुनते ही लड़की देखने आने वाले ज्यादातर लोग सिंधिया से ही लौट जाते। कई वाकये तो ऐसे भी हुए जब एन वक़्त पर लड़के वालों ने न कर दिया। लड़की के हाथों में लगी मेहंदी बाबुल के रंग में रंगने से पहले ही बेरंग पड़ गई।

दूसरे प्रदेशों में शक भरे निगाहों से देखते थे लोग..

हरियाणा से लौटकर इन दिनों खेती-बाड़ी में हाथ बंटाने वाले शुभम लकड़ा और इनके ही जैसे दूसरे प्रदेशों में जाकर रोजगार ढूंढने वाले संथाली दर्द भरी आप बीती बताते हुए कहते हैं कि यात्रा के दौरान ट्रेन में अकसर ही टीईटी और पुलिस कस्टडी में इन्हें रोककर घण्टों पूछताछ किया जाता। वहीं दूसरे प्रदेशों में जब वे नौकरी ढूंढने पहुंचते तो लोग पहचान पत्र पर अंकित पाकिस्तान टोला शब्द देख इन्हें शक भरी नजरों से देखते। और 100 तरह के प्रश्नों का सामना करना पड़ता।


हीन भावना से देखते थे स्कूली बच्चे और शिक्षक....

संथाली समाज से आने वाले टुड्डू कक्षा 8वी की छात्र हैं। दुर्भाग्यवश जैसे ही इस गांव के दजनों ही ऐसे बच्चे हैं जो अब स्कूल नहीं जाते। छठी कक्षा में पढ़ने वाले संजय इसके पीछे के कारण पर कहते हैं कि खुद के साथ पाकिस्तान नाम जुड़े होने के कारण उन्हें कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के साथ ही कई शिक्षकों ने भी हीन भावना से देखा। लंच के वक़्त बच्चे खेल की गतिविधियों से इन्हें दूर रखते। वहीं मध्यान भोजन में इन्हें शामिल नहीं किया जाता था। और अक्सर स्कूल छोड़ यहां से चले जाने को कहा जाता था। कई दफे इनसे टोला खाली कर इन्हें भगाए जाने तक को कह दिया गया है।

पाकिस्तान टोला में दिख रहा दीपावली सी रंगत...

कुछ यही वजह है कि पाकिस्तान टोला में मौजूद सौ घरों वाले संथालियों के बीच पाकिस्तान नाम बदले जाने को ले इन दिनों जश्न का माहौल है। किसी के लिए यह नए जन्म जैसा है तो किसी के लिए दीपों के पर्व दीपावली जैसा। किसी के लिए यह उम्मीद की किरण है तो किसी के लिए खुशियां लिए आ रही बिटिया की लगन। इस टोले का हर एक सदस्य इसे अपने तरीके से सेलिब्रेट कर रहा है। हालांकि टोले के नाम परिवर्तन को ले संथाल ग्रामीणों द्वारा सामूहिक पहल के जरिये डीएम राहुल के नाम दिए गए आवेदन पत्र पर डीएम राहुल कुमार की प्रशासनिक हरी झंडी मिलनी बाकी है। मगर उत्साह ऐसा कि अभी से ही संथालियों ने इस टोले को पाकिस्तान टोला बोलना बंद कर बिरसा नगर पुकारना शुरू कर दिया है।



Conclusion:
Last Updated : Oct 20, 2019, 7:11 PM IST
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