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पूर्णिया: फौजी नहीं बन सके तो कुछ यूं कर रहे हैं देश की सेवा - सौरा नदी

अनिल बताते हैं कि तब वो 30 साल के थे, जब उन्हें झंडे के लिए मुहिम चलाकर लोगों को जागरूक करने का ख्याल आया. तभी से उन्होंने इधर-उधर पड़े झंडों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया. इस दौरान कई दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया.

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Published : Aug 20, 2020, 3:57 PM IST

पूर्णियाः जरूरी नहीं कि सरहद पर डटकर ही देश सेवा की जाए. दिल में सच्ची देशभक्ति है तो इसके और भी कई मायने हो सकते हैं. ये लाइनें पूर्णिया जिले में रहने वाले अनिल चौधरी पर बिल्कुल फिट बैठते हैं. वे बीते 15 सालों से यहां वहां पड़े तिरंगे झंडे को इकट्ठा करने का काम कर रहे हैं. उनकी इस मुहिम से जिले में बड़े पैमाने पर परिवर्तन देखने को मिला.

बचपन से था फौजी बनने का सपना
शहर के रजनी चौक स्थित विवेकानंद कॉलोनी में रहने वाले अनिल चौधरी पेंटिंग की दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. अनिल बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही इंडियन आर्मी में शामिल होकर देश सेवा का शौक था. उनके पिता विंदेश्वरी प्रसाद चौधरी फौज में थे. वहीं, छोटे भाई अरुण चौधरी बीएसएफ में हैं. अनील भी फौज में शामिल होकर देश सेवा करना चाहते थे. हालांकि उनकी यह ख्वाहिश अधूरा ही रह गई.

देखें रिपोर्ट

लोग फेंक देते हैं तिरंगा
अनिल चौधरी को अपने पिता और भाई की तरह फौज में शामिल होकर देश सेवा का मौका नहीं मिल पाया. स्वत्रंतता दिवस हो या गणतंत्रत दिवस समारोह के बीतते ही तिरंगे को लोग यहां-वहां फेंक देते हैं. जिसे अनिल एकत्रित करते हैं.

मुहिम दिखा रहा असर
शहर की सड़कों व गलियों और कुचों से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर फेंके गए झंडे के प्रति चलाए गए उनके इस मुहिम ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. सोशल मीडिया से जुड़े लोग झंडों को एकत्रित कर अनिल चौधरी से संपर्क साधते हैं और ये उन्हें दे देते हैं.

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फ्लैग मैन अनिल

15 साल पहले शुरू की थी मुहिम
अनिल एनजीओ खोल समाज सेवा करना चाहते थे. इसी वजह से अक्सर उनकी पेंटिंग में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई जीत व असहायों की मदद के लिए आगे आते समाज दिखाई देता रहा. अनिल बताते हैं कि तब वे 30 साल के थे, जब उन्हें झंडे के लिए मुहिम चलाकर लोगों को जागरूक करने का ख्याल आया. तभी से उन्होंने इधर-उधर पड़े झंडों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया. इस दौरान कई दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया.

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झंडे लेते अनिल

पिता को था गर्व
अनिल के पिता ने उनका काम देखकर कहा था कि देश की हिफाजत के लिए तो अनगिनत जवान सरहद पर डटे हैं. लेकिन अपने ही देश में जब तिरंगे का अपमान हो और करोड़ों की भीड़ में कोई एक तिरंगा सेवा में लग जाता है तो यह गर्व की बात है.

परिवार का मिलता है भरपूर सहयोग
वहीं, अनिल को इस काम में उनकी पत्नी और दो छोटी बेटियां भी साथ देती है. अनिल ने बताया कि वे चुने हुए झंडे को घर लाते हैं फिर उसे साफ करके सुखाकर लाल धागे से बांधकर मंत्रोच्चार के साथ सौरा नदी में जल समाधि देते हैं. अनिल को इस काम की वजह से फ्लैग मैन के नाम से जाना जाता है.

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यहां वहां फेंके झंडे

मिल चुके हैं कई बड़े सम्मान
फ्लैग मैन को इस काम के लिए कई बड़े मंचों सहित तत्कालीन डीआईजी उपेंद्र प्रसाद सिन्हा की ओर से सम्मानित किया जा चुका है. फ्लैग मैन अनिल ने कहा कि इस काम के बदले उनका मकसद सम्मान पाना नहीं बल्कि देश सेवा करना और लोगों को तिरंगे झंडे की अहमियत बताना है.

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अनिल की बेटी

पूर्णियाः जरूरी नहीं कि सरहद पर डटकर ही देश सेवा की जाए. दिल में सच्ची देशभक्ति है तो इसके और भी कई मायने हो सकते हैं. ये लाइनें पूर्णिया जिले में रहने वाले अनिल चौधरी पर बिल्कुल फिट बैठते हैं. वे बीते 15 सालों से यहां वहां पड़े तिरंगे झंडे को इकट्ठा करने का काम कर रहे हैं. उनकी इस मुहिम से जिले में बड़े पैमाने पर परिवर्तन देखने को मिला.

बचपन से था फौजी बनने का सपना
शहर के रजनी चौक स्थित विवेकानंद कॉलोनी में रहने वाले अनिल चौधरी पेंटिंग की दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. अनिल बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही इंडियन आर्मी में शामिल होकर देश सेवा का शौक था. उनके पिता विंदेश्वरी प्रसाद चौधरी फौज में थे. वहीं, छोटे भाई अरुण चौधरी बीएसएफ में हैं. अनील भी फौज में शामिल होकर देश सेवा करना चाहते थे. हालांकि उनकी यह ख्वाहिश अधूरा ही रह गई.

देखें रिपोर्ट

लोग फेंक देते हैं तिरंगा
अनिल चौधरी को अपने पिता और भाई की तरह फौज में शामिल होकर देश सेवा का मौका नहीं मिल पाया. स्वत्रंतता दिवस हो या गणतंत्रत दिवस समारोह के बीतते ही तिरंगे को लोग यहां-वहां फेंक देते हैं. जिसे अनिल एकत्रित करते हैं.

मुहिम दिखा रहा असर
शहर की सड़कों व गलियों और कुचों से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर फेंके गए झंडे के प्रति चलाए गए उनके इस मुहिम ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. सोशल मीडिया से जुड़े लोग झंडों को एकत्रित कर अनिल चौधरी से संपर्क साधते हैं और ये उन्हें दे देते हैं.

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फ्लैग मैन अनिल

15 साल पहले शुरू की थी मुहिम
अनिल एनजीओ खोल समाज सेवा करना चाहते थे. इसी वजह से अक्सर उनकी पेंटिंग में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई जीत व असहायों की मदद के लिए आगे आते समाज दिखाई देता रहा. अनिल बताते हैं कि तब वे 30 साल के थे, जब उन्हें झंडे के लिए मुहिम चलाकर लोगों को जागरूक करने का ख्याल आया. तभी से उन्होंने इधर-उधर पड़े झंडों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया. इस दौरान कई दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया.

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झंडे लेते अनिल

पिता को था गर्व
अनिल के पिता ने उनका काम देखकर कहा था कि देश की हिफाजत के लिए तो अनगिनत जवान सरहद पर डटे हैं. लेकिन अपने ही देश में जब तिरंगे का अपमान हो और करोड़ों की भीड़ में कोई एक तिरंगा सेवा में लग जाता है तो यह गर्व की बात है.

परिवार का मिलता है भरपूर सहयोग
वहीं, अनिल को इस काम में उनकी पत्नी और दो छोटी बेटियां भी साथ देती है. अनिल ने बताया कि वे चुने हुए झंडे को घर लाते हैं फिर उसे साफ करके सुखाकर लाल धागे से बांधकर मंत्रोच्चार के साथ सौरा नदी में जल समाधि देते हैं. अनिल को इस काम की वजह से फ्लैग मैन के नाम से जाना जाता है.

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यहां वहां फेंके झंडे

मिल चुके हैं कई बड़े सम्मान
फ्लैग मैन को इस काम के लिए कई बड़े मंचों सहित तत्कालीन डीआईजी उपेंद्र प्रसाद सिन्हा की ओर से सम्मानित किया जा चुका है. फ्लैग मैन अनिल ने कहा कि इस काम के बदले उनका मकसद सम्मान पाना नहीं बल्कि देश सेवा करना और लोगों को तिरंगे झंडे की अहमियत बताना है.

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अनिल की बेटी
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