पूर्णिया: तिरंगा पाकिस्तान में फहराए, क्या आप कल्पना कर सकते हैं. अगर नहीं तो जान लीजिए कि बिहार के पाकिस्तान में तिरंगा बड़ी शान से लहराता है. चाहे वह स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस. यहां तिरंगा शान से फहराता है. यहां लोगों के दिलों में हिंदुस्तान बसता है.
यह 'पाकिस्तान' पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड में स्थित का एक गांव 'पाकिस्तान टोला' है. गांव का नाम भले ही 'पाकिस्तान टोला' हो, लेकिन यहां एक भी मुसलमान नहीं रहता. जाहिर है, यहां एक भी मदरसा और मस्जिद नहीं है. यहां भगवान राम की पूजा होती है.
ऐसे पड़ा इस गांव का नाम
पाकिस्तान टोला का नाम कब और कैसे पड़ा, इसकी दो कहानियां प्रचलित हैं. गांव के बुजुर्गों ने बताया कि भारत विभाजन के समय 1947 में यहां रहने वाले अल्पसंख्यक परिवार पाकिस्तान चले गए. इसके बाद लोगों ने गांव का नाम पाकिस्तान टोला रख दिया. वहीं दूसरी ओर कहा जाता है कि युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान से कुछ शरणार्थी यहां आए और उन्होंने एक टोला बसा लिया. शरणार्थियों ने टोला का नाम पाकिस्तान रखा. बांग्लादेश बनने के बाद वे फिर चले गए, लेकिन इलाके का नाम 'पाकिस्तान टोला' ही रह गया.
नाम के कारण होती परेशानी
विकास की रोशनी से दूर यहां के भोले-भाले ग्रामीण आतंकवाद का नाम तक नहीं जानते. वे उड़ी और बालाकोट एयरस्ट्राइक से भी अनभिज्ञ हैं. गांव के लोग समाज की मुख्य धारा से कटे हुए हैं. उनकी अपनी ही दुनिया है. लेकिन, जब कभी बाहरी दुनिया से संपर्क होता है, इन्हें गांव के नाम के कारण परेशानी होती है. ग्रामीणों के अनुसार उन्हें अपना पता बताने में कभी-कभी बड़ी परेशानी होती है.
जर्जर पुल एकमात्र सहारा
पाकिस्तान टोले तक पहुंचने के लिए दशकों से पुराना जर्जर पुल ही एकमात्र सहारा है. किसी तरह जोखिम से भरा कोसी और कोरा ब्रिज पार करके लोग इधर-उधर जाते हैं. खास बात यह है कि यहां तक जाने के लिए एक ढंग की सड़क भी नहीं है.
सिंधिया के बेबस बेटियों की कहानी.
संथाली समाज से आने वाली निर्मला टुड्डू कक्षा 8वीं की छात्रा हैं. दुर्भाग्यवश 13 वर्षीय निर्मला स्कूल नहीं जातीं. वे इसके पीछे दो बड़े कारण बताती है. निर्मला बताती हैं कि खुद के साथ पाकिस्तान नाम जुड़े होने के कारण उन्हें कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के साथ ही कई दूसरे लोग अजीबो गरीब नजरों से देखते हैं.