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इस 'पाकिस्तान' में शान से लहराता है तिरंगा, यहां की मिट्टी में है हिन्दुस्तान की खुशबू

विकास की रोशनी से दूर यहां के भोले-भाले ग्रामीण आतंकवाद का नाम तक नहीं जानते. वे उड़ी और बालाकोट एयरस्ट्राइक से भी अनभिज्ञ हैं. गांव के लोग समाज की मुख्य धारा से कटे हुए हैं. उनकी अपनी ही दुनिया है. लेकिन, जब कभी बाहरी दुनिया से संपर्क होता है, इन्हें गांव के नाम के कारण परेशानी होती है.

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Published : Aug 15, 2019, 12:13 AM IST

पूर्णिया: तिरंगा पाकिस्‍तान में फहराए, क्‍या आप कल्‍पना कर सकते हैं. अगर नहीं तो जान लीजिए कि बिहार के पाकिस्तान में तिरंगा बड़ी शान से लहराता है. चाहे वह स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस. यहां तिरंगा शान से फहराता है. यहां लोगों के दिलों में हिंदुस्तान बसता है.

यह 'पाकिस्तान' पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड में स्थित का एक गांव 'पाकिस्‍तान टोला' है. गांव का नाम भले ही 'पाकिस्तान टोला' हो, लेकिन यहां एक भी मुसलमान नहीं रहता. जाहिर है, यहां एक भी मदरसा और मस्जिद नहीं है. यहां भगवान राम की पूजा होती है.

पूर्णिया से आकाश की रिपोर्ट

ऐसे पड़ा इस गांव का नाम
पाकिस्तान टोला का नाम कब और कैसे पड़ा, इसकी दो कहानियां प्रचलित हैं. गांव के बुजुर्गों ने बताया कि भारत विभाजन के समय 1947 में यहां रहने वाले अल्पसंख्यक परिवार पाकिस्तान चले गए. इसके बाद लोगों ने गांव का नाम पाकिस्तान टोला रख दिया. वहीं दूसरी ओर कहा जाता है कि युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान से कुछ शरणार्थी यहां आए और उन्होंने एक टोला बसा लिया. शरणार्थियों ने टोला का नाम पाकिस्तान रखा. बांग्लादेश बनने के बाद वे फिर चले गए, लेकिन इलाके का नाम 'पाकिस्तान टोला' ही रह गया.

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तिरंगे के साथ खड़ा बच्चा

नाम के कारण होती परेशानी
विकास की रोशनी से दूर यहां के भोले-भाले ग्रामीण आतंकवाद का नाम तक नहीं जानते. वे उड़ी और बालाकोट एयरस्ट्राइक से भी अनभिज्ञ हैं. गांव के लोग समाज की मुख्य धारा से कटे हुए हैं. उनकी अपनी ही दुनिया है. लेकिन, जब कभी बाहरी दुनिया से संपर्क होता है, इन्हें गांव के नाम के कारण परेशानी होती है. ग्रामीणों के अनुसार उन्हें अपना पता बताने में कभी-कभी बड़ी परेशानी होती है.

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स्थानीय बच्ची का बयान

जर्जर पुल एकमात्र सहारा
पाकिस्तान टोले तक पहुंचने के लिए दशकों से पुराना जर्जर पुल ही एकमात्र सहारा है. किसी तरह जोखिम से भरा कोसी और कोरा ब्रिज पार करके लोग इधर-उधर जाते हैं. खास बात यह है कि यहां तक जाने के लिए एक ढंग की सड़क भी नहीं है.

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गांव की पतली सड़क से जाने को मजबूर औरतें

सिंधिया के बेबस बेटियों की कहानी.
संथाली समाज से आने वाली निर्मला टुड्डू कक्षा 8वीं की छात्रा हैं. दुर्भाग्यवश 13 वर्षीय निर्मला स्कूल नहीं जातीं. वे इसके पीछे दो बड़े कारण बताती है. निर्मला बताती हैं कि खुद के साथ पाकिस्तान नाम जुड़े होने के कारण उन्हें कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के साथ ही कई दूसरे लोग अजीबो गरीब नजरों से देखते हैं.

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पाकिस्तान टोला का शिलापट्ट

पूर्णिया: तिरंगा पाकिस्‍तान में फहराए, क्‍या आप कल्‍पना कर सकते हैं. अगर नहीं तो जान लीजिए कि बिहार के पाकिस्तान में तिरंगा बड़ी शान से लहराता है. चाहे वह स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस. यहां तिरंगा शान से फहराता है. यहां लोगों के दिलों में हिंदुस्तान बसता है.

यह 'पाकिस्तान' पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड में स्थित का एक गांव 'पाकिस्‍तान टोला' है. गांव का नाम भले ही 'पाकिस्तान टोला' हो, लेकिन यहां एक भी मुसलमान नहीं रहता. जाहिर है, यहां एक भी मदरसा और मस्जिद नहीं है. यहां भगवान राम की पूजा होती है.

पूर्णिया से आकाश की रिपोर्ट

ऐसे पड़ा इस गांव का नाम
पाकिस्तान टोला का नाम कब और कैसे पड़ा, इसकी दो कहानियां प्रचलित हैं. गांव के बुजुर्गों ने बताया कि भारत विभाजन के समय 1947 में यहां रहने वाले अल्पसंख्यक परिवार पाकिस्तान चले गए. इसके बाद लोगों ने गांव का नाम पाकिस्तान टोला रख दिया. वहीं दूसरी ओर कहा जाता है कि युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान से कुछ शरणार्थी यहां आए और उन्होंने एक टोला बसा लिया. शरणार्थियों ने टोला का नाम पाकिस्तान रखा. बांग्लादेश बनने के बाद वे फिर चले गए, लेकिन इलाके का नाम 'पाकिस्तान टोला' ही रह गया.

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तिरंगे के साथ खड़ा बच्चा

नाम के कारण होती परेशानी
विकास की रोशनी से दूर यहां के भोले-भाले ग्रामीण आतंकवाद का नाम तक नहीं जानते. वे उड़ी और बालाकोट एयरस्ट्राइक से भी अनभिज्ञ हैं. गांव के लोग समाज की मुख्य धारा से कटे हुए हैं. उनकी अपनी ही दुनिया है. लेकिन, जब कभी बाहरी दुनिया से संपर्क होता है, इन्हें गांव के नाम के कारण परेशानी होती है. ग्रामीणों के अनुसार उन्हें अपना पता बताने में कभी-कभी बड़ी परेशानी होती है.

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स्थानीय बच्ची का बयान

जर्जर पुल एकमात्र सहारा
पाकिस्तान टोले तक पहुंचने के लिए दशकों से पुराना जर्जर पुल ही एकमात्र सहारा है. किसी तरह जोखिम से भरा कोसी और कोरा ब्रिज पार करके लोग इधर-उधर जाते हैं. खास बात यह है कि यहां तक जाने के लिए एक ढंग की सड़क भी नहीं है.

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गांव की पतली सड़क से जाने को मजबूर औरतें

सिंधिया के बेबस बेटियों की कहानी.
संथाली समाज से आने वाली निर्मला टुड्डू कक्षा 8वीं की छात्रा हैं. दुर्भाग्यवश 13 वर्षीय निर्मला स्कूल नहीं जातीं. वे इसके पीछे दो बड़े कारण बताती है. निर्मला बताती हैं कि खुद के साथ पाकिस्तान नाम जुड़े होने के कारण उन्हें कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के साथ ही कई दूसरे लोग अजीबो गरीब नजरों से देखते हैं.

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पाकिस्तान टोला का शिलापट्ट
Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)
exclusive story

15 अगस्त 1947 को सरहदों के बंटवारे के साथ भले ही दो दिलों के बंटवारे हो गए हो। मगर भारत के दिल में आज भी एक पाकिस्तान जिंदा है। आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी कि इस पाकिस्तान में भारतीय तिरंगा लहराता है। दरअसल बिहार के नक्शे में दिखाई देने वाला मिनी पाकिस्तान कहीं और नहीं बल्कि पूर्णिया जिले में मौजूद है। देश प्रेम ऐसा कि नाम का दंश झेलने वाला पाकिस्तान टोला भले ही आज तलक सड़क ,सरकारी स्कूल ,स्वास्थ्य केंद्र और सरकारी योजनाओं से कोसो दूर हो। आजादी का जश्न मनाने में जब इन्हें दिक्कतें आईं अपने सहयोग से ही इन्होंने झंडोतोलन शुरू कर दिया।


Body:जानें कहां है यह पाकिस्तान टोला..

दरअसल दो पल के लिए आपको अपनी आंखों पर विश्वास भले ही न हो मगर हेडिंग में हेडिंग और इंट्रो में लिखे एक-एक शब्द सौ फीसद सत्य है। काला पानी की सजा के लिए मशहूर पूर्णिया के नक्शे में दिखाई देने वाला पाकिस्तान टोला नाम का गांव कहीं और नहीं बल्कि जिला मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर के फासले पर पडने वाले अररिया-पूर्णिया सीमा से लगे श्री नगर प्रखंड के सिंधिया पंचायत में आता है।


हिचकोले मारती सड़क इस पाकिस्तान का एक मात्र सहारा..


गाड़ी चारपहिया हो या दो पहियों वाली सिंधिया स्थित पाकिस्तान टोले तक पहुंचने के लिए किसी बीमार बुजुर्ग सा नजर आने वाला
दक्षकों पुराना जर्जर पुल ही एकमात्र सहारा है। किसी तरह जोखिमों से भरे कोसी कोरा ब्रिज पार करते ही हिचकोले मारते गाड़ियों का सफर बगैर किसी हाजो-हिचक के इस बात का एहसास करा जाता है कि आजादी के दशकों गुजरने के बाद भी पाकिस्तान टोले को सियासतदान ,सिस्टम और संवेदनशून्य समाजसेवियों की कैसी बेरुखी झेलनी पड़ी होगी।


जश्न की तैयारियों में जुटा है पाकिस्तान टोला...


लिहाजा ईटीवी भारत किसी तरह आजादी के जश्न से ठीक पहले मिनी पाकिस्तान के नाम से मशहूर तकरीबन 1000 की आबादी वाले संथाली वोटरों के गांव पाकिस्तान टोला पहुंचा। यहां अभी से ही पाकिस्तान टोले का हर एक शख्स आजादी के रंग में रंगा नजर आ रहा है। गांव की एक मात्र दुकान से लेकर बच्चों के साइकल से लेकर दोपहिया वाहनों तक तिरंगे से पटा है। संथाली समाज के बड़े-बुजुर्ग कल की तैयारियों को ले व्यस्त हैं वहीं गांव की लड़कियां राष्ट्रगान और देश भक्ति गीतों की तैयारियों में जुटी दिखाई दीं। जिनसे ईटीवी भारत ने खास बातचीत की।


जानें पाकिस्तानी रिफ्यूजियों से जुड़ी पाकिस्तान टोले की कहानी...


दरअसल पाकिस्तान टोले में रहने वाले सोनेलाल हांसदा की बातों पर गौर करें तो यह सच है कि 80 के दशक तक यहां पाकिस्तानी रिफ्यूजी रहे। और तब तक भारतीय तिरंगे लहराने से लेकर प्रत्येक साल आयोजित होने वाले 15 अगस्त का झंडोतोलन कार्यक्रम पूरी तरह निषिद्ध रहा। मगर 1972 के बांग्लादेश- पाकिस्तान बंटवारे के साथ पाकिस्तानी रिफ्यूजियों ने बड़ी ही तेजी से यहां बांग्लादेश में पलायन किया। जिसके बाद वीरान पड़े इस टोले में झारखंड के संथालियों का आना हुआ। और तब से यहां संस्थाली परिवार रहने लगे। इसके कुछ सालों बाद से ही इन्होंने यहां प्रत्येक साल 15 अगस्त को झंडोतोलन की परंपरा शुरू की।


आज भी झेलना पड़ रहा पाकिस्तान नाम का दंश....

इस टोले के राजू बेसरा व लालू टुड्डू इन सब के लिए खुद से जुड़े हुए पाकिस्तान नाम को टोले का फैक्टर अनलक मानते हैं। टोले से जुड़े पाकिस्तान फैक्टर के कारण ही इस टोले को आज तलक पिछड़ेपन का दंश झेलना पड़ रहा है। लोग आज भी यह मानकर चलते हैं कि यहां पाकिस्तानी रहते हैं। यही वजह है कि आज तलक न तो यहां सड़क बन सकी न आंगनबाड़ी न प्राथमिक विद्यालय या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र। सड़कों की बदहाली और अधिक दूरी को ले ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते। वहीं परेशानियों के बादल तब और घनघोर हो जाते हैं जब गांव के किसी सदस्य की तबियत बिगड़ जाती है। आलम ये होता है तब लोग खटिये पर लाद मरीज को सिंधिया स्थित मुख्य सड़क तक ले जाते हैं। वहीं रात के सन्नाटे में इनकी ये परेशानी और भी दोगुनी हो जाती है।


आंखों में आंसू ला देगी सिंधिया के बेबस बेटियों की कहानी...


संथाली समाज से आने वाली निर्मला टुड्डू कक्षा 8वी की छात्रा हैं। दुर्भाग्यवश 13 वर्षीय निर्मला स्कूल नहीं जातीं। वे इसके पीछे दो बड़े कारण बताती हैं। ये वजह सहस ही आंखों में आसूं ला देता है। दर्द बयां करती निर्मला बताती हैं कि खुद के साथ पाकिस्तान नाम जुड़े होने के कारण उन्हें कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के साथ ही कई दूसरे लोग अजीबोगरीब नजरों से देखते हैं। अप्राकृतिक व्यवहार करते वे लोग अक्सर ही इनसे यहां से चले जाने को कहते हैं। कई दफे इनसे टोला खाली कर इन्हें भगाए जाने तक को कह दिया गया है। वहीं इनके स्कूल न जाने का दूसरा कारण सड़कों का खस्ताहाल होना है। जिसके कारण सिंधिया स्थित विद्यालय तक जाने वाला एक मात्र रास्ता सूनसान होता है। जहां लड़कियां खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं।


Conclusion:दरअसल दर्द भरी दास्तां बयां करते इस पाकिस्तान टोले में न वतन के दीवानों की कमी है और न ही देश भक्ति के चासनी में घुली मुरजबानी राष्ट्रगान या राष्ट्रगीत गाने वालों की। प्रशासनिक व सियासती नजरअंदाजी की कहानी कहते इस मिनी पाकिस्तान
में अगर किसी चीज की कमी है तो बस विकास के एक मुट्ठी धूप की।
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