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गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है यह हिंदू परिवार, 32 सालों से रख रहा है रोजा

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Published : May 18, 2019, 12:37 PM IST

यह परिवार दरभंगा के अलाउद्दीन अली अहमद शहीद रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह शरीफ से जुड़ा हुआ है. इस घर के सभी लोग श्रद्धा के साथ रमजान के पूरे रोजे रखते हैं.

इफ्तार करते रोजेदार

पूर्णियाः इन दिनों रमजान का महीना चल रहा है. चारों तरफ मुसलमानों के इस चिलचिलाती गर्मी में रोजे रखने की चर्चा है. शहर में रमजान की धूम है. लेकिन इन सब बातों से अलग आज हम आपको एक ऐसी खबर दिखाने जा रहें हैं, जो शायद ही आपने कभी सुनी हो. यह दिल छू लेने वाली कहानी एक ऐसे हिन्दू परिवार की है, जो सालों से पूरी श्रद्धा के साथ रमजान के रोजे रखते आ रहे हैं.

पूरे नियम के साथ रखते हैं रोजे
हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करता यह परिवार बिहार के पूर्णिया जिले मधुबनी इलाके का है. इनकी जितनी गहरी आस्था नवरात्र में है, उतनी ही श्रद्धा रमजान के महीने में है. ये परिवार पूरे अरकान (नियम) के साथ रोजे में सहरी व इफ्तार करते हैं. इतना ही नहीं इस परिवार के बच्चे भी पूरी आस्था के साथ रोजे रखते हैं. गरीब को खाना खिलाते हैं. साथ ही ये लोग पवित्र कुरान की तिलावत (पाठ) भी करते हैं. रमजान खत्म होने पर ईद के चांद का भी दीदार करते हैं.

ramadan
इफ्तार करते रोजेदार

छोटी बच्ची मुस्कान ने रखा रोजा
गंगा-जमुनी तहजीब और वसुदैव कुटुम्बकम की मिसाल कायम करने वाले इस परिवार के पति-पत्नी बीते 32 सालों से रोजे रखते आ रहे हैं. साथ ही इस परिवार के दूसरे पुरुष व महिला सदस्य और बच्चे भी इनका साथ दे रहे हैं. मधुबनी इलाके में रहने वाले सुशील किशोर और उनकी पत्नी अर्चना कुमारी ने आज बच्चे और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर दूसरे जुमे के दिन इफ्तार किया. यहां एक सबसे छोटी बच्ची मुस्कान ने पहली बार रोजा रखा, जो रोजा रख कर काफी खुश नजर आ रही थी.

ramadan
छोटी बच्ची, मुस्कान

'इंसानियत ही इंसान का पहला धर्म है'
ये परिवार शाहपुर दरभंगा के अलाउद्दीन अली अहमद शहीद रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह शरीफ से जुड़ा हुआ है. रोजेदार सुशील किशोर और उनकी पत्नी अर्चना का कहना है कि रोजे रखते हुए उन्हें 32 साल हो गए. इनका मानना है कि समूची दुनिया एक परिवार है. इंसानियत ही इंसान का पहला धर्म है. ये बताते हैं कि दुनिया से नफरत मिटाकर इंसानियत से भरी बस्ती तभी बसाई जा सकती है. जब सर्वधर्म सम्भाव के रास्ते पर चलकर मजहब की दीवारें तोड़ दी जाएं.

इफ्तार करते परिवार के लोग और बयान देते रोजेदार

मजहबी रोष को टेकने पड़े घुटने
अलाउद्दीन अली अहमद शाहिद रहमतुल्लाह अलेह को गुरु मानने वाले इस परिवार की मानें तो शुरुआती दौर में समाज और मोहल्ले में इनका काफी विरोध हुआ. लेकिन इस परिवार की अल्लाह के साथ-साथ रमजान में अपार आस्था और अडिग संकल्प के आगे मजहबी रोष को घुटने टेकने पड़े. जो समाज पहले विरोध के सुर अलाप रहा था. अब सौहार्दता से भरे इनकी सोच और संकल्प का मुरीद हो गया है.

पूर्णियाः इन दिनों रमजान का महीना चल रहा है. चारों तरफ मुसलमानों के इस चिलचिलाती गर्मी में रोजे रखने की चर्चा है. शहर में रमजान की धूम है. लेकिन इन सब बातों से अलग आज हम आपको एक ऐसी खबर दिखाने जा रहें हैं, जो शायद ही आपने कभी सुनी हो. यह दिल छू लेने वाली कहानी एक ऐसे हिन्दू परिवार की है, जो सालों से पूरी श्रद्धा के साथ रमजान के रोजे रखते आ रहे हैं.

पूरे नियम के साथ रखते हैं रोजे
हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करता यह परिवार बिहार के पूर्णिया जिले मधुबनी इलाके का है. इनकी जितनी गहरी आस्था नवरात्र में है, उतनी ही श्रद्धा रमजान के महीने में है. ये परिवार पूरे अरकान (नियम) के साथ रोजे में सहरी व इफ्तार करते हैं. इतना ही नहीं इस परिवार के बच्चे भी पूरी आस्था के साथ रोजे रखते हैं. गरीब को खाना खिलाते हैं. साथ ही ये लोग पवित्र कुरान की तिलावत (पाठ) भी करते हैं. रमजान खत्म होने पर ईद के चांद का भी दीदार करते हैं.

ramadan
इफ्तार करते रोजेदार

छोटी बच्ची मुस्कान ने रखा रोजा
गंगा-जमुनी तहजीब और वसुदैव कुटुम्बकम की मिसाल कायम करने वाले इस परिवार के पति-पत्नी बीते 32 सालों से रोजे रखते आ रहे हैं. साथ ही इस परिवार के दूसरे पुरुष व महिला सदस्य और बच्चे भी इनका साथ दे रहे हैं. मधुबनी इलाके में रहने वाले सुशील किशोर और उनकी पत्नी अर्चना कुमारी ने आज बच्चे और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर दूसरे जुमे के दिन इफ्तार किया. यहां एक सबसे छोटी बच्ची मुस्कान ने पहली बार रोजा रखा, जो रोजा रख कर काफी खुश नजर आ रही थी.

ramadan
छोटी बच्ची, मुस्कान

'इंसानियत ही इंसान का पहला धर्म है'
ये परिवार शाहपुर दरभंगा के अलाउद्दीन अली अहमद शहीद रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह शरीफ से जुड़ा हुआ है. रोजेदार सुशील किशोर और उनकी पत्नी अर्चना का कहना है कि रोजे रखते हुए उन्हें 32 साल हो गए. इनका मानना है कि समूची दुनिया एक परिवार है. इंसानियत ही इंसान का पहला धर्म है. ये बताते हैं कि दुनिया से नफरत मिटाकर इंसानियत से भरी बस्ती तभी बसाई जा सकती है. जब सर्वधर्म सम्भाव के रास्ते पर चलकर मजहब की दीवारें तोड़ दी जाएं.

इफ्तार करते परिवार के लोग और बयान देते रोजेदार

मजहबी रोष को टेकने पड़े घुटने
अलाउद्दीन अली अहमद शाहिद रहमतुल्लाह अलेह को गुरु मानने वाले इस परिवार की मानें तो शुरुआती दौर में समाज और मोहल्ले में इनका काफी विरोध हुआ. लेकिन इस परिवार की अल्लाह के साथ-साथ रमजान में अपार आस्था और अडिग संकल्प के आगे मजहबी रोष को घुटने टेकने पड़े. जो समाज पहले विरोध के सुर अलाप रहा था. अब सौहार्दता से भरे इनकी सोच और संकल्प का मुरीद हो गया है.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)
exclusive report

मुस्लिम समाज के लोग माहे रमजान में रोजे रखें। यह कोई नहीं बात नहीं। मगर क्या आपकी मुलाकात कभी ऐसे पति-पत्नी या हिन्दू परिवार के ऐसे लोगों से हुई है। जो सालों से माहे रमजान के रोजे रखते आ रहें हों। हिन्दू -मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करती यह तस्वीर बिहार के उस पूर्णिया जिले की है। जहां एक हिन्दू परिवार की जितनी गहरी आस्था नवरात्र में है। इसी अरकान (नियम) से वे रोजे के सहरी व इफ्तार करते हैं। इतना ही नहीं दस्तरख्वान पर इनका साथ देने के साथ ही इस परिवार के बच्चे भी पूरी शिद्दत से रोजे रखते हैं। गरीब को खाना खिलाते हैं। और ईद के चांद का दीदार भी करते हैं। वहीं कई ऐसे हिन्दू साथी भी हैं जो कलाम पाक की तिलावत (पाठ) करते हैं।




Body:32 सालों से रोजे रख रहा एक हिन्दू जोड़ा....

दरअसल गंगा-जमुनी तहजीब और वसुधैव कुटुम्बकम की मिसाल कायम करने वाली यह तस्वीर है जिला मुख्यालय स्थित मधुबनी इलाके की है। जहां बीते 32 सालों की तरह इस साल भी माहे रमजान में अकीदत रखने वाले एक हिन्दू पति-पत्नी ने अब तक के सारे ही रोजे रखें हैं। वहीं इनके बच्चों के साथ ही इस परिवार के दूसरे पुरुष व महिला सदस्य भी इनका साथ दे रहे हैं।


परिवार और साथियों संग तोड़ा रमजान के दूसरे जुमे का रोजा..


रमजान में जुमे के रोजे को बरकतों और सबाबों से भरा बताया गया है। इफ्तार के वक़्त अकेले रोजे खोलने के बजाए साथियों के साथ इफ्तार खोलना सीधे जन्नत के रास्ते तक ले जाता है। परिवार संग मधुबनी इलाके में रहने वाले सुशील किशोर और उनकी पत्नी अर्चना कुमारी ने आज बच्चे और परिवार के अन्य महिला व पुरुष सदस्यों के साथ इफ्तार किया। इस दरम्यान इस इफ्तारे खास में शाहपुर दरभंगा के दरगाह शरीफ में अपार आस्था रखने वाले ऐसे हिन्दू रोजेदार साथियों ने इफ्तार कर अपने रोजे खोलें। जो बीते कई सालों से रोजे रखते आ रहे हैं।



इमानियत के वास्ते रख रहे 32 सालों से रोजा....


गंगा- जमुनी तहजीब की बानगी पेश करते सुशील किशोर व इनकी पत्नी अर्चना की मानें तो रोजे रखते हुए उन्हें 32 साल हो गए। वसुधैव कुटुम्बकम के तर्ज पर इनका मानना है। कि समूची दुनिया एक परिवार है। इंसानियत ही इंसान का पहला धर्म। ये बताते हैं कि दुनिया से नफरत मिटाकर इमानियत से भरी बस्ती तभी बसाई जा सकती है। जब सर्व धर्म सम्भाव के रास्ते पर चलकर मजहब की दीवारें तोड़ दी जाए। धर्म का भेद भूल उसकी नेकी अपनाई जाए। सभी धर्मों में बराबर की आस्था रख सारे ही त्योहारों का खुलकर लुफ्त उठाया जाए।



आस्था के आगे मजहबी रोष को टेकने पड़े घुटने....


अलाउद्दीन अली अहमद शाहिद उल अमानतुल्लाह अलेह को गुरु मानने वाले इस परिवार की मानें तो शुरुआती दौर में समाज और मुहल्ले में इनका पुरजोर विरोध हुआ। हालांकि इस परिवार की अल्लाह व रमजान में अपार आस्था और अडिग संकल्प के आगे मजहबी रोष को घुटने टेकने पड़े। जो समाज कल विरोध के सुर अलाप रहा था। सौहार्दता से भरे इनके सोच और संकल्प का मुरीद हो गया।


बच्चे भी रखते हैं रोजे करते हैं चांद का दीदार.....


सुशील किशोर और उनकी पत्नी अर्चना कुमारी की मानें तो वे जितनी आस्था नवरात्र और हिन्दू धर्म के ही दूसरे त्योहारों में रखती हैं। उतने ही अरकान (कायदे) से वे रोजे के सहरी रखते हैं। इफ्तार करते हैं। इतना ही नहीं दस्तरख्वान पर इनका साथ देने के साथ ही इस परिवार में शामिल मुस्कान ,श्रेया स्वीटी और शिवम जैसे बच्चों के अलावा इस परिवार के अन्य सदस्य भी पूरी शिद्दत से रोजे के रखते हैं। गरीबों को खाना खिलाते हैं। और ईद के चांद का दीदार करते हैं। वहीं इनके कई हिंदू रोजेदार साथी रमजान के इस मुबारक महीने के दौरान कलाम पाक की तिलावत (पाठ) भी करते हैं। वहीं ऐसे कई मुसलमान भी हैं। तो धर्म की बेड़ियां तोड़ नवरात्र और छठ करते हैं।



Conclusion:बहरहाल सौहार्दता और एकता की यही अलख देश के हर दिलों में जल जाए। तो वह दिन दूर नहीं। जब धर्म ,जाति और मजहब की दीवारें लांघ दी जाएगी। मजहब के नाम पर नफरत बाटने वाले समूची दुनिया में फैले ऐसे गिनती भर लोगों के गाल पर कड़ा तमाचा होगा।
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