ETV Bharat / state

पूर्णिया: धान बेचने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे किसान, नहीं मिल रहा MSP - पूर्णिया किसान धान खरीदारी न्यूज

पूर्णिया में धान बेचने को लेकर किसानों को काफी परेशानी हो रही है. किसानों का कहना है कि इस साल भी धान खरीदी लेटलतीफी से शुरू हुई. जबकि किसानों ने अक्टूबर-नवंबर के बीच औने-पौने दामों पर बेच दिया.

paddy purchasing problem in purne
paddy purchasing problem in purne
author img

By

Published : Dec 28, 2020, 7:58 PM IST

Updated : Dec 29, 2020, 4:06 PM IST

पूर्णिया: कृषि कानूनों में शामिल एपीएमसी यानी बाजार समिति और एमएसपी को लेकर देशभर में घमासान मचा है. हालांकि साल 2006 में सीएम नीतीश कुमार ने बजाज समितियों को भंग कर बिहार में धान खरीदी के लिए पंचायत स्तरीय पैक्सों की स्थापना की थी. जहां तय समय से नियत एमएसपी पर धान की खरीदी की जानी है. हालांकि सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदारी की बात पूर्णिया में आधी हकीकत आधा फसाना साबित हो रहा है.

90 हजार क्विंटल धान खरीदने का लक्ष्य
यहां पैक्सों की मनमानी के कारण जिले के किसान महज 1000-1300 के बीच ही अपनी धान मजबूरन बिचौलियों के हाथों मंडियों में बेचने को बेबस हैं. जिले में इस बार 2 लाख 52 हजार क्विंटल के करीब धान का उत्पादन हुआ. हालांकि लक्ष्य घटाकर आधे से भी कम कर दिया गया. वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए तय 90 हजार क्विंटल धान खरीदी का लक्ष्य रखा गया है.

paddy purchasing problem in purne
बिचौलियों को धान बेचने को मजबूर किसान

पैक्स की मनमानी
पैक्सों से जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही है, ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जिले का सहकारिता विभाग धान खरीदी का लक्ष्य कैसे पूरा करेगा. इस हैरान करने वाली सच्चाई से पर्दा तब उठा, जब ईटीवी भारत की टीम धान खरीदी की सूरतेहाल जानने हरदा इलाके के किसानों के बीच पहुंची. एक तरफ जहां सरकार पैक्सों के जरिए तय एमएसपी पर धान खरीदी कराने को प्रतिबद्ध है. वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत कुछ ऐसी है, जहां सिस्टम की खामी और पैक्सों की मनमानी के कारण जिले के किसान मंडियों में औने-पौने दामों पर बिचौलियों के हाथों धान खरीदी को मजबूर हैं. धान लेकर हरदा मंडी पहुंचे किसान ने कहा कि पैक्स सिस्टम और एमएसपी दोनों किसानों के साथ महज छलावा है.

देखें पूरी रिपोर्ट

"सच तो यह है कि धान खरीदी का तय समय अक्टूबर-नवंबर होना चाहिए. लेकिन सिस्टम की खामियों के कारण वर्ष तब आता है, जब सही मायनों में आधे से अधिक किसान अपनी धान मंडियों में बेच चुके होते हैं. दरअसल ऑफ रिकॉर्ड बातचीत में कृषि विभाग और सहकारिता विभाग भी किसानों की इन समस्याओं को स्वीकार करता है"- संजय महतो, किसान

देर से हुई धान की खरीदारी
सरकार के पैक्स सिस्टम और एमएसपी को हांथी के दांत बताते हुए किसान कहते हैं कि इस साल भी धान खरीदी लेटलतीफी से शुरु हुई. जबकि किसानों ने अक्टूबर-नवंबर के बीच औने-पौने दामों पर बेच लिया.

"पैक्स का कोई ऑप्शन नहीं था. लिहाजा किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर बिचौलियों ने उनकी धान 1000-1100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदा था. खेतों में मक्का, तो किसी को दूसरी सब्जियां लगानी थी. ऊपर से घर खर्ची के लिए रुपये भी चाहिए थे. वहीं अब किसान वे धान ही बेच रहे हैं, जिसे उन्होंने अपनी उपज का एक तिहाई हिस्सा पैक्सों के खुलने पर बिक्री के लिए बचाया था"- रवि कुमार सिंह, किसान

बिचौलियों को मिल रहा फायदा
किसानों का आरोप है कि पैक्सों और बिचौलियों की मिलीभगत के कारण किसान अब अपनी यह बचीखुची उपज भी पैक्सों की मनमानी के कारण नहीं भेज पा रहे हैं. ऐसे में मंडियों में बिचौलियों के हाथों अपनी धान बेचना किसानों की बेबसी है. किसान बताते हैं कि किसानों से मंडियों के व्यपारियों ने अधिकांश उपज 1000-1100 के बीच खरीद लिया. वहीं अब महज बड़े किसान ही पैक्सों तक पहुंच पा रहे हैं. हालांकि इसका सबसे अधिक फायदा बिचौलियों को मिल रहा है. पैक्सों की मिलीभगत से अपना माल सरकार के तय एमएसपी पर खरीद रहे हैं.

क्या कहते हैं अधिकारी
इस बाबत जिला सहकारिता पदाधिकारी आनंद कुमार चौधरी ने ईटीवी भारत के प्रश्नों का गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि सरकार द्वारा तय एमएसपी पर सहकारिता विभाग पैक्सों से खरीद कराने के लिए प्रतिबद्ध है. ऐसे में धान खरीदी में पैक्सों की संदिग्धता पाए जाने पर पैक्स अध्यक्षों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

पूर्णिया: कृषि कानूनों में शामिल एपीएमसी यानी बाजार समिति और एमएसपी को लेकर देशभर में घमासान मचा है. हालांकि साल 2006 में सीएम नीतीश कुमार ने बजाज समितियों को भंग कर बिहार में धान खरीदी के लिए पंचायत स्तरीय पैक्सों की स्थापना की थी. जहां तय समय से नियत एमएसपी पर धान की खरीदी की जानी है. हालांकि सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदारी की बात पूर्णिया में आधी हकीकत आधा फसाना साबित हो रहा है.

90 हजार क्विंटल धान खरीदने का लक्ष्य
यहां पैक्सों की मनमानी के कारण जिले के किसान महज 1000-1300 के बीच ही अपनी धान मजबूरन बिचौलियों के हाथों मंडियों में बेचने को बेबस हैं. जिले में इस बार 2 लाख 52 हजार क्विंटल के करीब धान का उत्पादन हुआ. हालांकि लक्ष्य घटाकर आधे से भी कम कर दिया गया. वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए तय 90 हजार क्विंटल धान खरीदी का लक्ष्य रखा गया है.

paddy purchasing problem in purne
बिचौलियों को धान बेचने को मजबूर किसान

पैक्स की मनमानी
पैक्सों से जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही है, ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जिले का सहकारिता विभाग धान खरीदी का लक्ष्य कैसे पूरा करेगा. इस हैरान करने वाली सच्चाई से पर्दा तब उठा, जब ईटीवी भारत की टीम धान खरीदी की सूरतेहाल जानने हरदा इलाके के किसानों के बीच पहुंची. एक तरफ जहां सरकार पैक्सों के जरिए तय एमएसपी पर धान खरीदी कराने को प्रतिबद्ध है. वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत कुछ ऐसी है, जहां सिस्टम की खामी और पैक्सों की मनमानी के कारण जिले के किसान मंडियों में औने-पौने दामों पर बिचौलियों के हाथों धान खरीदी को मजबूर हैं. धान लेकर हरदा मंडी पहुंचे किसान ने कहा कि पैक्स सिस्टम और एमएसपी दोनों किसानों के साथ महज छलावा है.

देखें पूरी रिपोर्ट

"सच तो यह है कि धान खरीदी का तय समय अक्टूबर-नवंबर होना चाहिए. लेकिन सिस्टम की खामियों के कारण वर्ष तब आता है, जब सही मायनों में आधे से अधिक किसान अपनी धान मंडियों में बेच चुके होते हैं. दरअसल ऑफ रिकॉर्ड बातचीत में कृषि विभाग और सहकारिता विभाग भी किसानों की इन समस्याओं को स्वीकार करता है"- संजय महतो, किसान

देर से हुई धान की खरीदारी
सरकार के पैक्स सिस्टम और एमएसपी को हांथी के दांत बताते हुए किसान कहते हैं कि इस साल भी धान खरीदी लेटलतीफी से शुरु हुई. जबकि किसानों ने अक्टूबर-नवंबर के बीच औने-पौने दामों पर बेच लिया.

"पैक्स का कोई ऑप्शन नहीं था. लिहाजा किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर बिचौलियों ने उनकी धान 1000-1100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदा था. खेतों में मक्का, तो किसी को दूसरी सब्जियां लगानी थी. ऊपर से घर खर्ची के लिए रुपये भी चाहिए थे. वहीं अब किसान वे धान ही बेच रहे हैं, जिसे उन्होंने अपनी उपज का एक तिहाई हिस्सा पैक्सों के खुलने पर बिक्री के लिए बचाया था"- रवि कुमार सिंह, किसान

बिचौलियों को मिल रहा फायदा
किसानों का आरोप है कि पैक्सों और बिचौलियों की मिलीभगत के कारण किसान अब अपनी यह बचीखुची उपज भी पैक्सों की मनमानी के कारण नहीं भेज पा रहे हैं. ऐसे में मंडियों में बिचौलियों के हाथों अपनी धान बेचना किसानों की बेबसी है. किसान बताते हैं कि किसानों से मंडियों के व्यपारियों ने अधिकांश उपज 1000-1100 के बीच खरीद लिया. वहीं अब महज बड़े किसान ही पैक्सों तक पहुंच पा रहे हैं. हालांकि इसका सबसे अधिक फायदा बिचौलियों को मिल रहा है. पैक्सों की मिलीभगत से अपना माल सरकार के तय एमएसपी पर खरीद रहे हैं.

क्या कहते हैं अधिकारी
इस बाबत जिला सहकारिता पदाधिकारी आनंद कुमार चौधरी ने ईटीवी भारत के प्रश्नों का गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि सरकार द्वारा तय एमएसपी पर सहकारिता विभाग पैक्सों से खरीद कराने के लिए प्रतिबद्ध है. ऐसे में धान खरीदी में पैक्सों की संदिग्धता पाए जाने पर पैक्स अध्यक्षों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

Last Updated : Dec 29, 2020, 4:06 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.