पूर्णिया: देश की आजादी और प्रगति में बापू की अमूल्य भूमिका रही. लेकिन क्या आपको मालूम है कि अहिंसा के रास्ते अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें उखाड़ फेंकने वाले बापू के आगे भूकंप जैसी त्रासदी ने भी घुटने टेक दिए थे? बापू की एक अपील पर 1934 के प्रलयंकारी भूकंप की आफत झेलने वाले लोगों की सहायता के लिए लाखों लोगों की एक ब्रिगेड खड़ी हो गई थी. रानीपतरा आश्रम से की गई बापू के एक संबोधन पर भोजन ,वस्त्र और आर्थिक सहायता पहुंचाने वाली की एक लंबी कतार खड़ी हो गई थी.
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जहां होता है बापू के होने का एहसास
दरअसल जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित रानीपतरा सर्वोदय आश्रम आकर आज भी बापू की यादों को ताजा किया जा सकता है। बापू के भावुक और साहसी दान संबोधन व रचनात्मक सहयोग के लिए सर्वोदय आश्रम का आज भी समूचे देश में सर्वोपरि स्थान है। हालांकि आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी कि समय बीतने के साथ ही सरकार और सिस्टम की बेरुखी के कारण बापू और विनोबा भावे की यह बुनियाद आज खंडहर में तब्दील हो चुकी है.
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जब त्रासदी ने टेके घुटने
70 वर्षीय डॉ मनोज कहते हैं कि बापू 1934 के भयानक भूकंप त्रासदी के दौरान यहां पहुंचे थे. वीरान पड़ा चबूतरा आज भी उस अविस्मरणीय पलों की याद दिलाता है. चबूतरे पर खड़े होकर बापू ने भूकंप पीड़ितों के लिए लोगों से दान करने की मार्मिक अपील की थी. उन्होंने सीमांचल, कोसी समेत दो दर्जन जिलों से आए लाखों लोगों को संबोधित करते हुए घंटे भर में लाखों का चंदा, भोजन ,वस्त्र और दूसरी आवश्यक सामग्रियां जुटा ली थी.
रानीपतरा आश्रम का करोड़ों का था व्यपार
आश्रम से जुड़े लोगों की मानें तो 80 के दशक में 1984-85 तक इस आश्रम का सालाना कारोबार 1.5 करोड़ तक रहा. तब यह आश्रम पूरे सीमांचल-कोसी में खादी ग्राम उद्योग का सेंट्रल गोदाम था. रेशम, खादी वस्त्र, चरखा, जूट, कपास, चर्म, तेल पेराई समेंत यहां से 22 छोटे-बड़े उद्योग चलते थे. कहा जाता है कि इसकी गुणवत्ता के कायल महज बिहार में ही नहीं बल्कि कश्मीर, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्य थे. आज भी वह रजिस्टर मौजूद है जिसपर यहां काम करने वाले हजारों कर्मचारियों के हस्ताक्षर मौजूद हैं.
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बदहाली पर आंसू बहा रहा बापू का सर्वोदय आश्रम
हालांकि बीतते वक़्त के साथ इसके बुरे दौर शुरू हो गए. आज आलम यह है कि मेंटेनेंस की कमी से दीवारें जर्जर और खंडहर में तब्दील हो चुकीं हैं. दीवारों पर उपले चिपकाए जा रहे हैं. दस्तावेज, लेखा, उद्योग, चरखे, टाइपराइटर और दूसरी मशीनें पूरी तरीके से रद्दी हो चुकीं हैं. आश्रम की ज्यादातर दीवारों की पपडियां छूट चुकीं हैं. वहीं सालों से साफ-सफाई नहीं होने के चलते कमरे में कचरे और मकड़ियों के जाल की भरमार है.
विनोबा, राजेन्द्र प्रसाद व जेपी से भी जुड़ीं हैं यादें
24 एकड़ में फैली इस आश्रम की माटी में बापू के बाद विनोबा भावे, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, जननायक जयप्रकाश नारायण, गुलजारी लाल नंदा, बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह, केंद्रीय मंत्री व 3 बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री समेत कई बड़े स्वतंत्रता सेनानी और नेताओं का यहां आगमन हुआ था.
जहां से शुरू हुआ भूदान और गौ दान अभियान
इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि महान संत विनोबा भावे तकरीबन 6 माह तक यहां रहे. उन्होंने यहां से 'भूदान' और 'ग्रामदान आंदोलन' की शुरुआत की थी. कहते हैं कि जयप्रकाश नारायण यहां के प्राकृतिक चिकित्सालय में 3 महीने तक रहे. उन्होंने यहां रहकर अपनी पत्नी का इलाज करवाया था. वहीं बिहार के पहले सीएम श्री कृष्ण सिंह को भी यह आश्रम बहुत प्यारा था.
अधिग्रहित कर ली गईं आश्रम की जमीनें
सर्वोदय आश्रम के अध्यक्ष प्रदीप सरकार बताते हैं कि बापू के आगमन के बाद पूर्व सांसद बैजनाथ चौधरी ने अपनी 24 एकड़ जमीन आश्रम के नाम दान की थी. बापू की याद में यहां सर्वोदय आश्रम की स्थापना की गई थी. इसके बाद यहां खादी ग्राम उद्योग विभाग की स्थापना की गई, ताकि गांधी के सपनों को सीमांचल और कोसी समेत बिहार में जिंदा रखा जा सके. हालांकि दो गुटों के आपसी मतभेद के चलते सरकार ने अनुदान पर अंकुश लगा दिया. जिसके बाद यहां संचालित सभी उद्योग पूरी तरह बंद हो गए.
उठी टूरिस्ट प्लेस बनाने की मांग
हालांकि नए साल की शुरुआत के साथ ही आश्रम की लड़ाई सुलझ गई. जिले के नायक अजित सरकार के भाई प्रदीप सरकार आश्रम के सदस्यों की सर्वसम्मति से इसके नए अध्यक्ष चुन लिए गए. ऐसे में अब सभी की मांग है कि एक बार फिर से इसे पुनर्जीवित किया जाए. इसका सौंदर्यीकरण हो. साथ ही खादी के बड़े हब के तौर पर फिर से इसे विकसित किया जाए. ताकि हजारों लोगों को रोजगार मिल सके. लोगों की मांग है कि इसे गांधी सर्किट से जोड़ा जाए जिससे इसे बतौर टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित किया जा सके.