पूर्णियाः सबका मालिक एक है, लेकिन उसके चाहने वाले उसे धर्मों और जाति के नाम पर बांटकर अपनी आस्था के मुताबिक उसे खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं. लेकिन बिहार के पूर्णिया जिले का एक परिवार ऐसा है जो अपने ईश्वर को खुश करने लिए धर्मों के बंधन में नहीं बंधा है. बल्कि उससे उपर उठकर दूसरे धर्म की मान्याताओं को 32 साल से पूरी आस्था के साथ निभा रहा है.
दरअसल पूर्णिया के मधुबनी इलाके में रह रहे एक हिंदू परिवार के लोग जितनी गहरी आस्था के साथ नवरात्र करते हैं. उतनी ही आस्था के साथ रमजान के पूरे रोजे भी रखते हैं और कुरानशरीफ की तिलावत (पाठ) भी करते हैं.
परिवार के बच्चे भी रखते हैं रोजे
इस परिवार के बच्चे मुस्कान, श्रेया, स्वीटी और शिवम जैसे बच्चों के अलावा परिवार के अन्य सदस्य भी पूरी शिद्दत से रोजे रखते हैं. कुरान की तिलावत करते हैं, गरीबों को खाना खिलाते हैं और ईद के चांद का दीदार करते हैं.
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'पूरा दुनिया ही एक परिवार है'
32 सालों से रोजा रख रहे सुशील किशोर और उनकी पत्नी अर्चना का मानना है कि पूरी दुनिया ही एक परिवार है. इंसानियत ही इंसान का पहला धर्म है. ये बताते हैं कि दुनिया से नफरत मिटाकर इंसानियत से भरी बस्ती तभी बसाई जा सकती है, जब सर्वधर्म समभाव के रास्ते पर चलकर मजहब की दीवारें तोड़ दी जाएं.
रोजेदार सुशील किशोर प्रसाद कहते हैं कि धर्म के भेद को भूलकर उसकी अच्छाई अपनाई जाए. सभी धर्मों में बराबर की आस्था रखी जाए सारे त्योहारों का खुलकर लुत्फ उठाया जाए.
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आस्था के आगे मजहबी रोष को टेकने पड़े घुटने
अलाउद्दीन अली अहमद शाहिद उल अमानातुल्लाह अलेह को गुरु मानने वाले इस परिवार की मानें तो शुरुआती दौर में समाज और मुहल्ले में इनका पुरजोर विरोध हुआ. हालांकि इस परिवार की अल्लाह और रमजान में अपार आस्था और अडिग संकल्प के आगे मजहबी रोष को घुटने टेकने पड़े. जो समाज कल तक विरोध के सुर अलाप रहा था, वहीं सौहार्दता से भरी इनकी सोच और संकल्प का मुरीद हो गया है.
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रमजान के जुमे में देते हैं इफ्तार की दावत
यह परिवार रमजान के जुमे में इफ्तार की दावत भी देता है. जिसमें शाहपुर दरभंगा के दरगाह शरीफ में अपार आस्था रखने वाले इनके हिन्दू और मुस्लिम रोजेदार साथी इस इफ्तार में शामिल होते हैं. बहरहाल मजहब के नाम पर नफरत बांटने वाले कुछ गिनती भर लोगों के लिए पूर्णिया का यह परिवार एक मिसाल है.