पटना: साल 2021 लोजपा ( 2021 Challenging Year For LJP) के लिए कुछ खास नहीं रहा. 8 अक्टूबर 2020 को लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान का निधन हो गया. वहीं 2021 को 21 साल बाद पासवान परिवार में दरार आ गई जिसका असर इतना हुआ कि, लोजपा दो गुटों (Split In LJP) में बट कर रह गई है. माना जाता है कि, लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान पर बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए से अलग होना भारी पड़ गया.
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चिराग पासवान को झटका: बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग को एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ना भारी पड़ गया, जिस वजह से उन्हें अपनी दो सीटिंग सीट भी गंवानी पड़ी. 14 जून 2021 को लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में बड़ी टूट हो गई. लोजपा के पांचो सांसदों ने मिलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया और अपना नेता चाचा पशुपति कुमार पारस (Year 2021 For Pashupati Kumar Paras ) को चुन लिया था. वहीं संसदीय दल के नेता की जिम्मेदारी भी चाचा पशुपति पारस को सौंप दी गई थी.
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बता दें कि 28 नवंबर 2000 को लोजपा की नींव स्वर्गीय रामविलास पासवान ने रखी थी. दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद लोजपा के बागी नेताओं की नाराजगी चरम पर पहुंच गई तो, वहीं जेडीयू भी कई सीटों पर हार के लिए लोजपा को कहीं ना कहीं जिम्मेदार मानती है.
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भारी पड़े चिराग को ये फैसले : बिहार विधानसभा चुनाव में 143 सीटों पर एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय चिराग पासवान ने लिया था. जिसके बाद 143 सीटों में से 1 सीट लोजपा के खाते में गई थी, उसे भी उन्हें गंवाना पड़ा. मटिहानी से जीत कर आए लोजपा के इकलौते विधायक को भी चिराग पासवान अपनी पार्टी में नहीं रख पाए और वह जेडीयू में शामिल हो गए.
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बिहार विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने बिहार के विभिन्न जिलों में आशीर्वाद यात्रा करने का निर्णय भी लिया. आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से उन्होंने जनता के बीच खुद को रामविलास पासवान का उत्तराधिकारी साबित करने की बहुत कोशिश भी की. आशीर्वाद यात्रा में अप्रत्याशित भीड़ को देखकर चिराग काफी उत्साहित भी नजर आ रहे थे. लेकिन फिर से उन्होंने बिहार विधानसभा के उपचुनाव (कुशेश्वरस्थान और तारापुर) के दोनों सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया, यहां पर भी उन्हें करारी हार का ही सामना करना पड़ा.
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चाचा-भतीजे में मनमुटाव: आपको बता दें कि, राजनीति में पासवान परिवार की एकता की मिसाल दी जाती थी. रामविलास पासवान, पशुपति कुमार पारस और रामचंद्र पासवान तीनो भाई में अगाध प्रेम अक्सर चर्चा का विषय रहता था. लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद चाचा-भतीजे में नीतीश के सवाल पर मनमुटाव शुरू हो गया. चाचा भतीजे के बीच मनमुटाव इतना बढ़ गया कि, पार्टी ही नहीं परिवार भी टूट गया.
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चिराग पासवान गुट और चाचा पशुपति पारस गुटों में विवाद इतना बढ़ गया है कि, चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह बंगला को ही फ्रीज कर लिया. उपचुनाव के दौरान चिराग पासवान गुट अब लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) जिसका चुनाव चिन्ह हेलीकॉप्टर और चाचा पशुपति पारस गुट को राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नाम से जाना जाने लगा और इसका चुनाव चिन्ह सिलाई मशीन प्राप्त हुआ.
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दोनों के लोजपा के गुटों का कार्यालय भी अलग-अलग हो गया है. लोजपा के शुरू से रहे कार्यालय पर पशुपति पारस का कब्जा हो गया है तो वहीं, चिराग पासवान गुट ने अपने निजी आवास को ही अपना कार्यालय बना लिया है. हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान की करारी हार हुई थी. लेकिन उन्होंने जो लक्ष्य रखा था, जदयू को बर्बाद करने का उसमें कामयाब जरूर हुए थे. माना जाता है कि, लोजपा के कारण ही पहले नंबर की पार्टी जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. जेडीयू 71 में से 43 सीटों पर सिमट कर रह गई.
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बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद लोजपा रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष और जमुई सांसद चिराग पासवान का मानना था कि, भले ही बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी हार हुई है लेकिन, बिहार की जनता ने उन्हें बेहद प्यार और स्नेह देने का काम किया है. उनका मानना था कि, भले ही हमारी हार हुई है लेकिन, लगभग 6% वोट जोकि लगभग 27 लाख होता है उसे बिहार की जनता ने हमें देने का काम किया है.
पारस के लिए अच्छा रहा साल: साल 2021 भले ही चिराग पासवान के लिए उम्मीदों वाला साल न रहा हो लेकिन, चाचा पशुपति पारस के लिए उतना ही अच्छा रहा है. 7 जुलाई 2021 को पहली बार पशुपति कुमार पारस केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए और केंद्रीय मंत्री बने. दरअसल चिराग पासवान के लाख विरोध के बावजूद भी उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह मिली थी.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुद को हनुमान बताने वाले चिराग पासवान को उम्मीद थी कि, मंत्रिमंडल में उन्हें ही शामिल किया जाएगा. लेकिन परिणाम उसके ठीक उल्ट हुआ. उन्हें यह भी उम्मीद थी कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी पार्टी को टूटने से बचा लेंगे, पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ. एक तरफ जहां चिराग पासवान का एक तरफा प्यार बीजेपी के लिए देखने को मिलता है तो, वहीं चिराग पासवान लगातार बिहार सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमलावार रहते हैं.
पशुपति पारस ने वर्ष 1985 में विधानसभा चुनाव लड़ा और इसी सीट पर वह पांच बार विधायक रहे हैं. बाद में रामविलास पासवान की कर्मभूमि हाजीपुर से लोकसभा सांसद चुने गए. पारस ने वर्ष 2019 में नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर लोजपा के टिकट पर हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा. नीतीश मंत्रिमंडल में किसी सदन का सदस्य रहे बिना वे शामिल हुए थे और नीतीश कुमार ने बाद में उन्हें विधान परिषद बनाया था.
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पिता की विरासत संभाल पाएंगे?: चिराग पासवान ने एनडीए के साथ और एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़कर भी देख लिया है. बिहार विधानसभा के बाद विधानसभा के उपचुनाव में भी उन्हें करारी हार मिली है, जिसके बाद अब उन्होंने निकाय चुनाव के साथ-साथ आगे के चुनाव भी किसी न किसी गठबंधन के साथ लड़ने का फैसला किया है. लेकिन अब तक यह तय नहीं हुआ है कि, आगे वह किसके साथ चुनाव लड़ेंगे. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि. अगर रामविलास पासवान जिंदा होते तो लोजपा एनडीए से अलग नहीं होती और 2020 के चुनाव में पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती. साथ ही 2021 की लोजपा की तस्वीर कुछ और ही होती. लेकिन चुनाव में हार और चिराग के फैसलों का पार्टी पर असर देख सवाल उठ रहे हैं कि, क्या चिराग पासवान पार्टी को पिता की तरह संभाल पाएंगे.
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