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BJP में अटल-आडवाणी युग समाप्ति की ओर, बदल गई बिहार की सियासी तस्वीर

बिहार बीजेपी (Bihar BJP) के दिग्गज नेताओं की पूरी फौज अब किनारे लगाई जा चुकी है. पहले नीतीश मंत्रिमंडल से सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार को बाहर रखा गया. अब मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet) से रविशंकर प्रसाद की भी छुट्टी हो गई. आखिर क्यों दिग्गजों की पूरी फौज राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो रही है. पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

Bihar BJP
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Published : Jul 8, 2021, 10:25 PM IST

पटना: बिहार बीजेपी के बड़े चेहरों में से एक रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) दो दिन पहले तक देश के बड़े राजनेताओं में शुमार थे, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से उनकी छुट्टी ने सियासत में खलबली मचा दी है. एक झटके में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट से रविशंकर को बाहर कर दिया और युवा चेहरों को शामिल कर बड़ा मैसेज देने की कोशिश की. हालांकि यह सिर्फ युवा चेहरा लाने की कवायद भर नहीं थी.

ये भी पढ़ें- बिहार से मोदी कैबिनेट में शामिल मंत्रियों को BJP नेताओं ने दी बधाई, कहा- 'जरूर मिलेगा फायदा'

राजनीतिक जानकार इसे मोदी-शाह युग के तौर पर देख रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि बीजेपी नेता चाहे लाख दलीलें पेश करें, लेकिन सच्चाई ये है कि ट्विटर तो एक बहाना था, सच्चाई अटल-आडवाणी दौर के नेताओं को चुन-चुनकर बाहर का रास्ता दिखाना था.

देखें रिपोर्ट

डॉ. संजय कहते हैं कि इसकी शुरुआत पिछले साल बिहार कैबिनेट में बड़े बदलाव से ही नजर आ गए थे. जब कैबिनेट से सुशील कुमार मोदी, नंदकिशोर यादव, प्रेम कुमार और विनोद नारायण झा सरीखे नेताओं को बाहर कर दिया गया था. रविशंकर प्रसाद की विदाई उसी मिशन की अगली कड़ी थी.उनके मुताबिक वर्तमान समय में जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह का चहेता होगा, वही उनके करीब होगा.

ईटीवी GFX
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वहीं, विपक्ष ने इसको लेकर सीधे तौर पर प्रधानमंत्री और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर हमला बोला है. आरजेडी के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि असल वजह तो पीएम मोदी खुद हैं. उन्हें आगे बढ़कर खुद इस्तीफा देना चाहिए ना कि कोरोना और ट्विटर जैसे मुद्दों को लेकर कैबिनेट से अन्य लोगों को बलि का बकरा बनाना चाहिए.

ये भी पढ़ें- मंत्री न बन पाने के लिए सुशील मोदी लालू यादव को बता सकते हैं जिम्मेदार: भाई वीरेंद्र

वहीं, कांग्रेस नेता राजेश राठौर कहते हैं कि मुद्दा तो अटल-आडवाणी के चहेतों और मोदी अमित शाह के बीच का टकराव है. बारी-बारी से अटल और आडवाणी के साथ कैबिनेट में रहे लोगों को बाहर किया जा रहा है. यह सब कुछ तो लोगों को भी साफ नजर आ रही है. वे कहते हैं कि असल बात तो रविशंकर प्रसाद ही बयां कर सकते हैं कि उन्हें किस बात की सजा मिली है.

सियासी जानकार ये भी कहते हैं कि जिस दिन से मोदी की सरकार बनी है, उस दिन से ही इशारा साफ है. शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा, जयंत सिन्हा के बाद सुशील कुमार मोदी, प्रेम कुमार, नंद किशोर यादव और अब रविशंकर प्रसाद. अभी देखना होगा कि अगला नाम किसका है.

ये भी पढ़ें- 'मोदी मंत्रिमंडल में JDU की हिस्सेदारी में CM की कोई भूमिका नहीं, राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला सर्वमान्य'

इन तमाम पुराने सियासी दिग्गजों के एक्टिव पॉलिटिक्स से बाहर होने के बाद बिहार की सियासी फिजा भी बदल रही है. बिहार में युवा चेहरों को तरजीह देकर बीजेपी नए सिरे से आरजेडी और जेडीयू से मुकाबला करने की तैयारी में है. वहीं विपक्ष तंज कसते हुए कहता है कि अब बीजेपी में सिर्फ और सिर्फ 'मोदी नाम केवलम्' से ही नेताओं का कल्याण हो सकेगा.

पटना: बिहार बीजेपी के बड़े चेहरों में से एक रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) दो दिन पहले तक देश के बड़े राजनेताओं में शुमार थे, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से उनकी छुट्टी ने सियासत में खलबली मचा दी है. एक झटके में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट से रविशंकर को बाहर कर दिया और युवा चेहरों को शामिल कर बड़ा मैसेज देने की कोशिश की. हालांकि यह सिर्फ युवा चेहरा लाने की कवायद भर नहीं थी.

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राजनीतिक जानकार इसे मोदी-शाह युग के तौर पर देख रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि बीजेपी नेता चाहे लाख दलीलें पेश करें, लेकिन सच्चाई ये है कि ट्विटर तो एक बहाना था, सच्चाई अटल-आडवाणी दौर के नेताओं को चुन-चुनकर बाहर का रास्ता दिखाना था.

देखें रिपोर्ट

डॉ. संजय कहते हैं कि इसकी शुरुआत पिछले साल बिहार कैबिनेट में बड़े बदलाव से ही नजर आ गए थे. जब कैबिनेट से सुशील कुमार मोदी, नंदकिशोर यादव, प्रेम कुमार और विनोद नारायण झा सरीखे नेताओं को बाहर कर दिया गया था. रविशंकर प्रसाद की विदाई उसी मिशन की अगली कड़ी थी.उनके मुताबिक वर्तमान समय में जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह का चहेता होगा, वही उनके करीब होगा.

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वहीं, विपक्ष ने इसको लेकर सीधे तौर पर प्रधानमंत्री और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर हमला बोला है. आरजेडी के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि असल वजह तो पीएम मोदी खुद हैं. उन्हें आगे बढ़कर खुद इस्तीफा देना चाहिए ना कि कोरोना और ट्विटर जैसे मुद्दों को लेकर कैबिनेट से अन्य लोगों को बलि का बकरा बनाना चाहिए.

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वहीं, कांग्रेस नेता राजेश राठौर कहते हैं कि मुद्दा तो अटल-आडवाणी के चहेतों और मोदी अमित शाह के बीच का टकराव है. बारी-बारी से अटल और आडवाणी के साथ कैबिनेट में रहे लोगों को बाहर किया जा रहा है. यह सब कुछ तो लोगों को भी साफ नजर आ रही है. वे कहते हैं कि असल बात तो रविशंकर प्रसाद ही बयां कर सकते हैं कि उन्हें किस बात की सजा मिली है.

सियासी जानकार ये भी कहते हैं कि जिस दिन से मोदी की सरकार बनी है, उस दिन से ही इशारा साफ है. शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा, जयंत सिन्हा के बाद सुशील कुमार मोदी, प्रेम कुमार, नंद किशोर यादव और अब रविशंकर प्रसाद. अभी देखना होगा कि अगला नाम किसका है.

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इन तमाम पुराने सियासी दिग्गजों के एक्टिव पॉलिटिक्स से बाहर होने के बाद बिहार की सियासी फिजा भी बदल रही है. बिहार में युवा चेहरों को तरजीह देकर बीजेपी नए सिरे से आरजेडी और जेडीयू से मुकाबला करने की तैयारी में है. वहीं विपक्ष तंज कसते हुए कहता है कि अब बीजेपी में सिर्फ और सिर्फ 'मोदी नाम केवलम्' से ही नेताओं का कल्याण हो सकेगा.

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