पटना: पटना हाई कोर्ट में सुनवाई की तिथि तय थी तो सरकार को इंतजार करना चाहिए था, सरकार से यह चूक हुई है. जातीय गणना को लेकर बिहार सरकार के सुप्रीम कोर्ट जाने पर बयानबाजी जारी है. वहीं कानून के जानकार भी सरकार के इस फैसले को सहीं नहीं मान रहे हैं. बता दें कि सरकार ने 500 करोड़ रुपये की लागत से इस कवायद को पूरा करने का संकल्प लिया था, लेकिन पटना हाईकोर्ट की रोक के बाद मामला बीच में ही अटक गया है.
बिहार सरकार के लिए सिरदर्द बनी जातीय गणना!: हालांकि यदि कोर्ट का फैसला सरकार के पक्ष में नहीं आता है तो सरकार कानून भी बना सकती है. विकल्प सरकार के पास मौजूद है. बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार का कहना है कि नीतीश कुमार न केवल बिहार में बल्कि पूरे देश में जातीय गणना कराना चाहते हैं, मामला कोर्ट में है इसलिए उस पर कुछ बोल नहीं सकते हैं. कोर्ट के फैसले के बाद ही सरकार निर्णय लेगी लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ साफ कहते हैं कि नीतीश कुमार की मंशा 2024 और 2025 में जातीय गणना कराकर ओबीसी वोट बैंक को साधने की है और इसीलिए परेशान है.
क्या बिहार में हो पाएगा जातीय गणना?: ऐसे तो पटना हाई कोर्ट के रोक के बाद ही बिहार सरकार ने कानून बनाने को लेकर विशेषज्ञों से राय ली है. पटना हाईकोर्ट में 3 जुलाई को अगली सुनवाई है लेकिन उससे पहले जल्दी सुनवाई की याचिका पटना हाई कोर्ट में और फिर सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुकी है. 2024 लोकसभा चुनाव में अब बहुत ज्यादा समय नहीं बचा है. लोकसभा चुनाव में जातीय गणना एक बड़ा मुद्दा बन सकता है लेकिन कोर्ट के रोक के बाद जातीय गणना पर ग्रहण लगता दिख रहा है.
नीतीश सरकार की बढ़ी बेचैनी: लोकसभा चुनाव तक अब इसे पूरा कराना आसान नहीं दिख रहा है. ऐसे में जातीय गणना के दूसरे चरण का कार्य आधा से अधिक हो चुका है. कुछ दिनों में ही जातीय गणना का कार्य पूरा किया जा सकता है लेकिन उसके बाद भी 3 से 4 महीने रिपोर्ट जारी होने में लग जाएगा और इसलिए नीतीश सरकार की बेचैनी बढ़ी हुई है. नीतीश सरकार के सुप्रीम कोर्ट में जातीय गणना ले जाने के मामले में पटना हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार सिन्हा का कहना है यह सरकार का गलत फैसला था.
"जब पटना हाई कोर्ट में सुनवाई की तिथि तय हो गई थी तो सरकार को इंतजार करना चाहिए था. कोर्ट का फैसला पक्ष में नहीं आता तो सरकार के पास कानून बनाने का विकल्प है. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जो सबसे बड़ा पेंच फंस रहा है वह है सेंसस को लेकर, क्योंकि यह मामला केंद्र सरकार के अधीन आता है. कोर्ट ने डाटा की सुरक्षा और लोगों की निजता की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जताई है. ऐसे देखना है 3 जुलाई को पटना कोर्ट का क्या फैसला आता है, लेकिन जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है उससे मुश्किलें बढ़ सकती हैं."- आलोक कुमार सिन्हा, सीनियर एडवोकेट पटना हाईकोर्ट
"जातीय गणना करने के पीछे नीतीश के नेतृत्व में चलने वाली महागठबंधन सरकार की मंशा वोट बैंक को साधने की है. सरकार जरूर यह कह रही है कि अंतिम व्यक्ति तक हम विकास योजना को ले जाना चाहते हैं, लेकिन इसके अलग पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक पर नजर है जो महागठबंधन से खिसक गया है. जातीय गणना के माध्यम से उसे साधने की कोशिश होगी और इसीलिए नीतीश सरकार जातीय गणना कराने को लेकर तत्पर दिखाई दे रही है, जिससे 2024 और 2025 में इसका इस्तेमाल कर सकें."- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विशेषज्ञ
"मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार के लोग चाहते हैं कि ओबीसी की गणना हो और केवल बिहार ही नहीं पूरे देश में हम लोग जातीय गणना के पक्षधर हैं. मामला कोर्ट में है इसलिए इस पर हम कुछ ज्यादा बोलेंगे नहीं. कोर्ट के फैसले के बाद सरकार आगे निर्णय लेगी लेकिन जब पेड़ पशु पक्षी के साथ विभिन्न वर्गों जिसमें एससी एसटी अल्पसंख्यक आदिवासी की गणना हो सकती है तो अन्य वर्गों की गणना क्यों नहीं हो सकती है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातीय गणना को लेकर कृत संकल्पित हैं."- श्रवण कुमार,मंत्री, बिहार सरकार
3 जुलाई पर टिकी नजरें: अब सबकी नजर 3 जुलाई को पटना हाईकोर्ट के फैसले पर लगी है, लेकिन सरकार अपनी तैयारी भी कर रही है. विशेषज्ञों से विकल्प को लेकर रणनीति बना रही है. पिछले दिनों वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने भी कहा था कि जरूरत पड़ी तो हम लोग कानून भी बना सकते हैं और उस दिशा में भी सरकार विचार कर रही है. फिलहाल 3 जुलाई के फैसले का इंतजार है और उसके बाद सरकार आगे अपना कदम बढ़ाएगी.