पटना: साल 2019, बिहार के मुजफ्फरपुर में लगातार हो रहीं बच्चों की मौतों से सारा देश हिल गया था. मौत का आंकड़ा 100 पार कर चुका था और हालात बद से बदतर होते जा रहे थे. जिस बुखार की वजह से इतने बच्चों की मौतें हो रही थी, इसे चमकी बुखार कहा गया. आइये जानते हैं इस बीमारी के बारे में.
आम भाषा में इस बीमारी को चमकी बुखार कहा जाता है. इसे अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी एईएस भी कहा जाता है. इंसेफेलाइटिस शब्द 2017 में भी बहुत चर्चा में रहा था जब गोरखपुर के बाबा राघवदास अस्पताल में 40 से ज्यादा बच्चों की मौत इस बीमारी से हो गई थी. हालांकि वहां फैले इंसेफेलाइटिस और मुजफ्फरपुर में फैले इंसेफेलाइटिस में अंतर है. आइये आपको बताते है कि चमकी बुखार कैसे होता है और किस तरह से पता चलता है कि आपके बच्चे को चमकी बुखार है. साथ ही ये बच्चों को ही क्यों अपना शिकार बना रहा है .
मुजफ्फरपुर में एईएस का इतिहास क्या है?
बता दें कि मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार का पहला मामला 1995 में सामने आया था. वहीं, पूर्वी यूपी में भी ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. इस बीमारी के फैलने का कोई खास पैमाना तो नहीं है लेकिन अत्यधिक गर्मी और बारिश की कमी के कारण अक्सर ऐसे मामले में बढ़ोतरी देखी गई है.
क्या है एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम )?
इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को आम भाषा में दिमागी बुखार कहा जाता है. इसकी वजह वायरस को माना जाता है. इस वायरस का नाम इंसेफेलाइटिस वाइरस है. इस बीमारी के चलते शरीर में दूसरे कई संक्रमण हो जाते हैं. एईएस होने पर तेज बुखार के साथ मस्तिष्क में सूजन आ जाती है. इसके चलते शरीर का तंत्रिका तंत्र निष्क्रिय हो जाता है और रोगी की मौत तक हो जाती है. गर्मी और आद्रता बढ़ने पर यह बीमारी तेजी से फैलती है.
इस बीमारी के वायरस खून में मिलने पर प्रजनन शुरू कर तेजी से बढ़ने लगते हैं. खून के साथ ये वायरस मरीज के मस्तिष्क में पहुंच जाते हैं. मस्तिष्क में पहुंचने पर ये वायरस वहां की कोशिकाओं में सूजन कर देते हैं. दिमाग में सूजन आने पर शरीर का तंत्रिका तंत्र काम करना बंद कर देता है जो मरीज की मौत का कारण बनता है.
क्या होते हैं इंसेफलाइटिस के लक्षण
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES शरीर के मुख्य नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और वह भी खासतौर पर बच्चों में. इस बीमारी के लक्षणों की बात करें तो शुरुआत तेज बुखार से होती है.
- शरीर में ऐंठन महसूस होती है
- शरीर के तंत्रिका संबंधी कार्यों में रुकावट आने लगती है
- मानसिक भटकाव महसूस होता है
- बच्चा बेहोश हो जाता है
- दौरे पड़ने लगते हैं
- घबराहट महसूस होती है
- कुछ केस में तो पीड़ित व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है.
- इसके अलावा लगातार सिर दर्द होना, इंफेक्शन व हीट स्ट्रोक भी प्रमुख कारण है. अगर समय पर इलाज न मिले तो मौत हो जाती है. इस बुखार के लक्षण दिखाई देतें हैं तो तत्काल डॉक्टर के पास जाएं.
- चमकी बुखार से बचाव के उपाय
- इससे बचाव का कोई सटीक उपाय भी नहीं है. हालांकि, कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए.
- धूप से बच्चों को दूर रखें.
- पूरे शरीर को ढंकने वाले कपड़े पहनाएं.
- बच्चों के शरीर में पानी की कमी न होने दें.
- रात को मच्छरदानी लगाएं.
- बच्चों को हल्का साधारण खाना खिलाएं और जंक फूड से दूर रखें.
- सड़े-गले फल न खिलाएं.
- घर के आसपास गंदगी न होने दें.
- बच्चे को खाली पेट न रहने दें, खाना खिलाकर ही सुलाएं.
- कच्चे मास का सेवन न करें.
- किसी भी तरह के बुखार या अन्य बीमारी को नजरअंदाज न करें। बुखार आने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाएं.
- क्या लीची है बिहार में 'चमकी बुखार' की ज़िम्मेदार?
अंतरराष्ट्रीय हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक लीची में कुछ ऐसे टॉक्सिन्स होते हैं जो बच्चों के लिवर में जाकर जम जाते हैं और तापमान के बढ़ने पर वो विषैले तत्व शरीर में फैलने लगते हैं. चूंकि बच्चों की इम्यूनिटी कमजोर होती है इसलिए वो इसकी गिरफ्त में जल्दी आते हैं.
लेकिन क्या लीची वाकई इतना खतरनाक फल है? दरअसल, बिहार में जो बच्चे इसका सेवन करने से बीमारी के शिकार हुए, उनमें कुपोषण के लक्षण देखे गए. एक्सपर्ट्स के मुताबिक जिन बच्चों ने लीची खाने के बाद पानी कम पिया या काफी देर तक पानी पिया ही नहीं, उनके शरीर में सोडियम की मात्रा कम हो गई, जिसके चलते वो दिमागी बुखार के शिकार हो गए.