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caste politics in bihar: जिन महापुरुषों ने आजीवन जात-पात के खिलाफ संघर्ष किया, उनकी भी पहचान एक जाति के नेता के रूप में

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Published : Feb 2, 2023, 9:19 PM IST

बिहार के राजनीतिक दलों को वोट बैंक की चिंता सता रही है. ऐसे में महापुरुष प्रासंगिक हो गए हैं. बड़े तामझाम से महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि मनाई जा रही है. ऐसे महापुरुष जिन्होंने आजीवन जात-पात के खिलाफ संघर्ष किया उनकी भी पहचान एक जाति के नेता के रूप में कराई (caste politics in bihar) जा रही है.

वोट बैंक के लिए महापुरुषों की जयंती.
वोट बैंक के लिए महापुरुषों की जयंती.
वोट बैंक के लिए महापुरुषों की जयंती.

पटना: बिहार चुनावी मोड में आ गया है. सभी राजनीतिक दल 2024 (Mission 2024 Lok Sabha ) और 2025 चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं. इसके लिए वोट बैंक तैयार करना जरूरी है. वोट बैंक की राजनीति ने महापुरुषों को प्रासंगिक बना दिया है. राजनीतिक दल अपने नफा नुकसान के हिसाब से महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि मना कर जाति विशेष के वोटरों को साधने की कोशिश में जुटे हैं. ऐसे महापुरुष जिन्होंने आजीवन जात-पात के खिलाफ संघर्ष किया उनकी भी पहचान एक जाति के नेता के रूप में कराई जा रही है.

इसे भी पढ़ेंः Bihar Politics : जदयू में शहीद जगदेव जयंती को लेकर शक्ति प्रदर्शन, उपेंद्र कुशवाहा कर रहे अलग आयोजन

"महापुरुष किसी जाति या संप्रदाय के नहीं होते हैं. महापुरुष राष्ट्र की धरोहर होते हैं. उन्हें जाति के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है. राजनीतिक दलों की सोच का यह नतीजा है कि महापुरुषों को जातिगत वोट बैंक का जरिया बना दिया गया है"- राजीव कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

कुंवर सिंह जयंती पर कार्यक्रमः स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले वीर कुंवर सिंह के जयंती समारोह के मौके पर कई कार्यक्रम का आयोजन किया गया. भाजपा ने जहां वीर कुंवर सिंह के नाम पर आरा में विजयोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया, वहीं जदयू ने भी एक बड़ा कार्यक्रम राजधानी पटना में आयोजित किया. सीएम नीतीश कुमार ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया. वीर कुंवर सिंह को लेकर राजद खेमे में वैसा उत्साह नहीं था. जयंती के मौके पर पुष्प अर्पित करने की औपचारिकताएं पूरी की गई.

इसे भी पढ़ेंः वीर कुंवर सिंह की जन्म जयंती पर बिहार आयेंगे गृह मंत्री अमित शाह, वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की तैयारी में BJP

कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाने को लगी थी होड़ः जननायक कर्पूरी ठाकुर को राजनीतिक दलों ने सबसे ज्यादा प्रासंगिक करार दिया. भाजपा, राजद और जदयू समेत तमाम दलों ने जननायक की जयंती समारोह को उत्साहपूर्वक मनाया. अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने के लिए राजनीतिक दलों में जननायक की जयंती को लेकर होड़ लगी थी. संपूर्ण क्रांति के नायक जेपी भी राजनीतिक दलों के लिए प्रासंगिक हैं. कांग्रेस को छोड़ तमाम राजनीतिक दलों ने जेपी को पुण्यतिथि और जयंती के मौके पर बड़े ही उत्साह से याद किया.

स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंतीः भूमिहार वोटरों पर निशाना साधने के लिए किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती और श्री बाबू की प्रासंगिकता बढ़ गई है. दोनों नेताओं को लेकर महागठबंधन खेमे में ज्यादा उत्साह नहीं है, लेकिन भाजपा स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती के मौके पर 25 फरवरी को बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कार्यक्रम में हिस्सा लेने आ रहे हैं. भाजपा इसकी तैयारी शुरू कर दी है. भाजपा सांसद विवेक ठाकुर इसकी तैयारी में जुटे हैं.

इसे भी पढ़ेंः Bihar politics: 'NDA गठबंधन में नीतीश कुमार को नहीं किया जाएगा शामिल'- विवेक ठाकुर

कुशवाहा वोट बैंक पर नजरः शहीद जगदेव जयंती को लेकर महागठबंधन में जबरदस्त खींचतान है. एक तरफ राजद जहां बड़े पैमाने पर कार्यक्रम का आयोजन कर चुका है, वहीं जदयू में दो अलग-अलग आयोजन हो रहा है. एक पार्टी की ओर से कर्पूरी सभागार में हो रहा है और पहली बार प्रखंड स्तर पर जयंती मनाई जा रही है. तो दूसरी तरफ महात्मा फुले परिषद के बैनर तले पार्टी से नाराज चल रहे उपेंद्र कुशवाहा पटना में पटेल सेवा भवन में कार्यक्रम कर रहे हैं. पूरे बिहार में जिला स्तर पर आयोजन हो रहा है. जदयू के अंदर ही कुशवाहा समाज किसके साथ है, इसको लेकर शक्ति प्रदर्शन हो रहा है.

वोट बैंक को पुख्ता करने की कोशिश: राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि वोट बैंक को साधने के लिए राजनीतिक दलों ने महापुरुषों को जाति के दायरे में लाने का काम किया है. राजनीतिक दलों को जब सत्ता मिली तब जनता के हितों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मुद्दे आज भी चुनौती बनी हुई है. वास्तविक मुद्दों पर लोगों का ध्यान ना जाए लिहाजा महापुरुषों की जयंती मना कर वोट बैंक को पुख्ता करने की कोशिश की जा रही है.

इसे भी पढ़ेंः Upendra Kushwaha On RJD: '10 का शासन 90 पर नहीं चलेगा..'उपेंद्र कुशवाहा का आलोक मेहता को जवाब- 35 साल से लालू परिवार है शासक

महापुरुष किसी जाति या संप्रदाय के नहीं होतेः राजनीतिक विश्लेषक राजीव कुमार का मानना है कि महापुरुष किसी जाति या संप्रदाय के नहीं होते हैं. महापुरुष राष्ट्र की धरोहर होते हैं. उन्हें जाति के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है. राजनीतिक दलों की सोच का यह नतीजा है कि महापुरुषों को जातिगत वोट बैंक का जरिया बना दिया गया है. शिक्षाविद और चिंतक प्रेम कुमार मणि मानते हैं कि महापुरुषों को जाति के दायरे में रखना राजनीतिक दलों का दिवालियापन है. वोट बैंक साधने के लिए राजनीतिक दल महापुरुषों को जाति के दायरे में ला रहे हैं जो दुखद है.

वोट बैंक के लिए महापुरुषों की जयंती.

पटना: बिहार चुनावी मोड में आ गया है. सभी राजनीतिक दल 2024 (Mission 2024 Lok Sabha ) और 2025 चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं. इसके लिए वोट बैंक तैयार करना जरूरी है. वोट बैंक की राजनीति ने महापुरुषों को प्रासंगिक बना दिया है. राजनीतिक दल अपने नफा नुकसान के हिसाब से महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि मना कर जाति विशेष के वोटरों को साधने की कोशिश में जुटे हैं. ऐसे महापुरुष जिन्होंने आजीवन जात-पात के खिलाफ संघर्ष किया उनकी भी पहचान एक जाति के नेता के रूप में कराई जा रही है.

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"महापुरुष किसी जाति या संप्रदाय के नहीं होते हैं. महापुरुष राष्ट्र की धरोहर होते हैं. उन्हें जाति के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है. राजनीतिक दलों की सोच का यह नतीजा है कि महापुरुषों को जातिगत वोट बैंक का जरिया बना दिया गया है"- राजीव कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

कुंवर सिंह जयंती पर कार्यक्रमः स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले वीर कुंवर सिंह के जयंती समारोह के मौके पर कई कार्यक्रम का आयोजन किया गया. भाजपा ने जहां वीर कुंवर सिंह के नाम पर आरा में विजयोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया, वहीं जदयू ने भी एक बड़ा कार्यक्रम राजधानी पटना में आयोजित किया. सीएम नीतीश कुमार ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया. वीर कुंवर सिंह को लेकर राजद खेमे में वैसा उत्साह नहीं था. जयंती के मौके पर पुष्प अर्पित करने की औपचारिकताएं पूरी की गई.

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कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाने को लगी थी होड़ः जननायक कर्पूरी ठाकुर को राजनीतिक दलों ने सबसे ज्यादा प्रासंगिक करार दिया. भाजपा, राजद और जदयू समेत तमाम दलों ने जननायक की जयंती समारोह को उत्साहपूर्वक मनाया. अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने के लिए राजनीतिक दलों में जननायक की जयंती को लेकर होड़ लगी थी. संपूर्ण क्रांति के नायक जेपी भी राजनीतिक दलों के लिए प्रासंगिक हैं. कांग्रेस को छोड़ तमाम राजनीतिक दलों ने जेपी को पुण्यतिथि और जयंती के मौके पर बड़े ही उत्साह से याद किया.

स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंतीः भूमिहार वोटरों पर निशाना साधने के लिए किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती और श्री बाबू की प्रासंगिकता बढ़ गई है. दोनों नेताओं को लेकर महागठबंधन खेमे में ज्यादा उत्साह नहीं है, लेकिन भाजपा स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती के मौके पर 25 फरवरी को बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कार्यक्रम में हिस्सा लेने आ रहे हैं. भाजपा इसकी तैयारी शुरू कर दी है. भाजपा सांसद विवेक ठाकुर इसकी तैयारी में जुटे हैं.

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कुशवाहा वोट बैंक पर नजरः शहीद जगदेव जयंती को लेकर महागठबंधन में जबरदस्त खींचतान है. एक तरफ राजद जहां बड़े पैमाने पर कार्यक्रम का आयोजन कर चुका है, वहीं जदयू में दो अलग-अलग आयोजन हो रहा है. एक पार्टी की ओर से कर्पूरी सभागार में हो रहा है और पहली बार प्रखंड स्तर पर जयंती मनाई जा रही है. तो दूसरी तरफ महात्मा फुले परिषद के बैनर तले पार्टी से नाराज चल रहे उपेंद्र कुशवाहा पटना में पटेल सेवा भवन में कार्यक्रम कर रहे हैं. पूरे बिहार में जिला स्तर पर आयोजन हो रहा है. जदयू के अंदर ही कुशवाहा समाज किसके साथ है, इसको लेकर शक्ति प्रदर्शन हो रहा है.

वोट बैंक को पुख्ता करने की कोशिश: राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि वोट बैंक को साधने के लिए राजनीतिक दलों ने महापुरुषों को जाति के दायरे में लाने का काम किया है. राजनीतिक दलों को जब सत्ता मिली तब जनता के हितों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मुद्दे आज भी चुनौती बनी हुई है. वास्तविक मुद्दों पर लोगों का ध्यान ना जाए लिहाजा महापुरुषों की जयंती मना कर वोट बैंक को पुख्ता करने की कोशिश की जा रही है.

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महापुरुष किसी जाति या संप्रदाय के नहीं होतेः राजनीतिक विश्लेषक राजीव कुमार का मानना है कि महापुरुष किसी जाति या संप्रदाय के नहीं होते हैं. महापुरुष राष्ट्र की धरोहर होते हैं. उन्हें जाति के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है. राजनीतिक दलों की सोच का यह नतीजा है कि महापुरुषों को जातिगत वोट बैंक का जरिया बना दिया गया है. शिक्षाविद और चिंतक प्रेम कुमार मणि मानते हैं कि महापुरुषों को जाति के दायरे में रखना राजनीतिक दलों का दिवालियापन है. वोट बैंक साधने के लिए राजनीतिक दल महापुरुषों को जाति के दायरे में ला रहे हैं जो दुखद है.

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