पटना: पटना हाईकोर्ट ने बिहार के गर्भाशय घोटाला मामले पर आज सुनवाई की. जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इन मामलों में केंद्रीय कानून के तहत मामला दर्ज करने के संबंध में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया. यह जनहित याचिका वेटरन फोरम द्वारा दायर की गई थी. कोर्ट ने पूर्व की सुनवाई में राज्य सरकार के मुख्य सचिव को अब तक की कार्रवाई का ब्योरा हलफनामा पर दायर करने का निर्देश दिया था.
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"इस जनहित याचिका में दिए गए तथ्य वास्तविक नहीं है. बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष साढ़े चार सौ इस तरह के मामलें आए थे. राज्य सरकार के जांच के बाद नौ जिलों में गर्भाशय निकाले जाने के सात सौ दो मामले आए थे. इन मामलों में प्राथमिकी दर्ज कराई गई और आगे की कार्रवाई चल रही है. पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति राज्य सरकार ने पचास-पचास हजार रुपये पहले ही दे दिए, इसके बाद बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने आदेश दिया था कि यह राशि बढ़ा कर डेढ़ और ढाई लाख रुपए बतौर क्षतिपूर्ति दिए जाए. क्षतिपूर्ति की राशि देने के लिए राज्य सरकार ने 5.89 करोड़ रुपए निर्गत कर दिए गए है."-ललित किशोर, महाधिवक्ता
महिलाओं को नहीं दी गई जानकारी: कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि किन-किन धाराओं के दोषियों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए हैं. मानव शरीर के बिना सहमति लिए कोई भी अंग निकाला गंभीर अपराध है. इसलिए उनके विरुद्ध नियमों के तहत ही धाराएं लगाई जानी चाहिए. जिससे आगे की कार्रवाई की जा सकेगी.
"सबसे पहले ये मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था. 2017 में पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका वेटरन फोरम ने दायर किया गया था. इसमें ये आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत लाभ उठाने के लिए बिहार के विभिन्न अस्पतालों/डॉक्टरों द्वारा बड़ी तादाद में बगैर महिलाओं की सहमति के ऑपरेशन कर गर्भाशय निकाल लिए गए थे. इस मामलें पर अगली सुनवाई 27सितम्बर,2022 को की जाएगी."-दीनू कुमार, अधिवक्ता
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