पटनाः बिहार में किसान आंदोलन के जनक प्रखर राष्ट्रवादी और समाज सुधारक स्वामी सहजानंद सरस्वती की समाधि आज चमक रही है. स्वामी नहीं रहे लेकिन उनके सपने को साकार करने में उनके मानने वाले जुटे हुए हैं. राजधानी पटना से सटे बिहटा स्थित स्वामी सहजानंद सरस्वती की स्थापित सीताराम आश्रम कुछ दिनों पहले तक जीर्ण शीर्ण अवस्था में था. लेकिन आज उसकी दीवारें चमक रहीं हैं. स्वामी सहजानंद सरस्वती की समाधि स्थल पर मार्बल लगाए गए हैं.
जमींदारी प्रथा को कराया समाप्त
बिहार में जमींदारी प्रथा को समाप्त करवानेवाले किसान नेता स्वामी सहजानंद ने गरीब किसानों और मजदूरों की लड़ाई लड़ी थी. स्वामी जी के इस आश्रम को किसानों का तीर्थ कहा जाता है. दअरसल जमींदारों के खिलाफ स्वामी जी ने इसी आश्रम से अपने आंदोलन की शुरुआत की थी. साथ ही उन्होंने एक संगठन खड़ा करके इस कानून को समाप्त करवाने पर मजबूर भी कराया था.
दान की बीस लाख रुपये
स्वामी सहजानंद का आश्रम काफी दिनों से जीर्ण शीर्ण अवस्था में पड़ा था. इसे देखते हुए इलाके के बुद्धिजीवियों ने इसे सुधारने की मुहिम चलाई. इसमें अमहारा गांव के डॉक्टर सत्यजीत सिंह ने अपने पिता की तरफ से संचालित संस्था से बीस लाख की आर्थिक राशि दान दी.
समाज अध्यन का एक विशाल केंद्र बनाने की योजना
स्वामी सहजानंद सरस्वती का आश्रम लगभग तीन बीघा बारह कट्ठा में फैला हुआ है. परिसर में हरियाली को ध्यान में रखते हुए पूरे ग्राउंड को ग्रीनफील्ड किया जा रहा है. जगह-जगह आम के फलदार पेड़ लगाए गए हैं. साथ ही स्वामी सहजानंद सरस्वती की लिखी किताबों को संजोकर उसे सुरक्षित किया जा रहा है. यहां समाज अध्यन का एक विशाल केंद्र बनाने की योजना बनाई जा रही है. यहां हर रविवार को संस्था के ट्रस्टी और इतिहासकार विकास को लेकर बैठक करते हैं.
"आज के परिवेश में अगर स्वामी जी के विचारों को किसान मानते तो उनका हाल ऐसा नहीं होता. यहां तक की स्वामी जी अपने विचारों की वजह से कांग्रेस से अलग हो गए. उन्होंने खुद आंदोलन की शुरुआत की. आज के समय में भी स्वामी जी के जैसे लोग और उनके विचार को मानने वाले होने चाहिए."- डॉ सत्यजीत सिंह, चिकित्सक
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किसान आंदोलन की हुई थी शुरुआत
गौरतलब है कि किसानों के इस तीर्थ से किसान आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इस समय लोगों को स्वामी सहजानंद सरस्वती के बारे में लिखी पत्र पत्रिकाओं को संजोने और उनके विचारों पर चलने की जरूरत है. अमेरिकी शोधकर्ता वाल्टर हाउजर बिहटा के इसी आश्रम में सहजानंद सरस्वती पर शोध करने आये थे.