पटना: रूस और यूक्रेन में युद्ध (Russia Ukraine war) की स्थिति से उत्पन्न हुए हालातों की वजह से हजारों की तादाद में यूक्रेन से भारतीय छात्र वापस लौटे हैं और लौट रहे हैं. इनमें से काफी संख्या में छात्रों को भारत सरकार द्वारा सकुशल स्वदेश वापस लाया जा चुका (Medical Student Returned from Ukraine in Patna) है. बचे हुए छात्रों को भी विभिन्न देशों से होते हुए लाया जा रहा है. यूक्रेन की हालातों से निपट कर छात्र वापस घर तो लौट रहे हैं अब सभी छात्रों को भविष्य की चिंता (Ukraine Returned Medical Student worried About Future) सताने लगी है. अपने बच्चों को वापस देखकर अभिभावकों के चेहरे पर खुशी का ठिकाना नहीं है लेकिन वे भी अब चिंतित हो रहे हैं.
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गिरवी हैं घर और जमीनः आपको बताएं कि काफी संख्या में ऐसे विद्यार्थी हैं जिनका मेडिकल कोर्स पूरा होने में डेढ़ से 2 साल का वक्त अभी बाकी है. वे लोन लेकर यूक्रेन में पढ़ाई करने गए हुए थे. इन बच्चों और उनके अभिभावकों को इस बात की चिंता है कि अब आगे की इस डिग्री की पढ़ाई कैसे होगी. बिना पढ़ाई के लोन कैसे चुकाया जाएगा. लोन के लिए घर और जमीन बैंक में गिरवी पड़े हुए हैं. कई छात्र यूक्रेन में इसलिए भी एमबीबीएस करने गए, क्योंकि वहां फीस काफी कम है. एक अभिभावक के मुताबिक 25 लाख रुपए तक पढ़ाई के लिए खर्च होते हैं. वहीं भारत में 80 लाख से 2 करोड़ रुपए तक खर्च आता है. हाई रैंक पानेवाले छात्रों को ही सरकारी मेडिकल कॉलेज एलॉट होता है, कम रैंक वालों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सरकारी मेडिकल कॉलेज में खर्च काफी कम है.
बंकर में बीता दो दिनः पटना के जगदेव पथ के रहने वाले स्नेहिल स्वराज बुधवार देर शाम पटना पहुंचे. स्नेहिल ने बताया कि यूक्रेन के ओडेसा में वे ओडेसा नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हैं. उन्होंने बताया कि युद्ध के वजह से उत्पन्न हुए हालातों में उन्हें 2 दिन बंकर में छिप कर रहना पड़ा. ओडेसा से वे ट्रेन के रास्ते हंगरी बॉर्डर होते हुए हंगरी पहुंचे. इस दौरान भारतीय दूतावास का उन्हें पूरा सहयोग मिला. वहां से भारतीय दूतावास के सहयोग से वे विशेष विमान के माध्यम से भारत पहुंचे.
भारत में नहीं मिला कॉलेजः स्नेहिल ने बताया कि उन्होंने साल 2018 में नीट परीक्षा में 88 परसेंटाइल अंक प्राप्त किए थे लेकिन देश में उन्हें कहीं सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं मिला और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में फीस इतनी अधिक है कि वह अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. ऐसे में सस्ती और अच्छी शिक्षा के लिए वह यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने गए. वह अभी यूक्रेन के ओडेसा नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के फोर्थ ईयर के 8वीं सेमेस्टर के छात्र हैं.
भारत सरकार पॉलिसी में करें बदलावः उन्होंने बताया कि युद्ध की वजह से यूक्रेन के कई शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर और इंस्टीट्यूशन भी ध्वस्त हो गए हैं. अगर अभी युद्ध समाप्त भी हो जाता है तो स्थिति ऐसी नहीं है कि वहां कॉलेजों में फिर से पढ़ाई इतनी जल्दी पटरी पर आ जाए. ऐसे में अब उन्हें चिंता इस बात की सता रही है कि आगे उनका क्या होगा और उनकी पढ़ाई पूरी कैसे होगी. पढ़ाई पूरी नहीं होगी तो पढ़ाई के लिए जो लोन लिया है, वह कैसे चुकाया जाएगा. उन्होंने कहा कि वे भारत सरकार से अपील करेंगे कि अपने पॉलिसी में कुछ बदलाव करें और एक पॉलिसी लाकर उन लोगों के भविष्य को बचाने का काम करें, जिसके तहत देश के मेडिकल कॉलेजों में यूक्रेन से लौटे छात्रों को अकोमोडेटेड करें ताकि छात्र अपनी पढ़ाई को आगे कंटीन्यू कर सकें.
बॉर्डर पर फंसे हैं कई छात्रः स्नेहिल ने बताया कि उनके कोर्स के उनके कॉलेज में जितने भी भारतीय छात्र थे, सभी यूक्रेन खाली कर चुके हैं. काफी छात्र वापस देश भी लौट आए हैं और अन्य छात्र भी हंगरी में भारतीय दूतावास की देखरेख में है. जैसे-जैसे भारतीय दूतावास से निर्देश प्राप्त हो रहे हैं, देश लौट रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके काफी मित्र रोमानिया बॉर्डर पर और यूक्रेन के कुछ शहरों में फंसे हुए हैं. भारत सरकार से उनकी अपील होगी कि सभी छात्रों को सकुशल देश वापस बुला लिया जाए.
खुशी और गम एक साथः स्नेहिल के पिता राजेश कुमार सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं. अपने बेटे को मेडिकल पढ़ाने के लिए उन्होंने स्टेट बैंक से 25 लाख रुपए का लोन लिया हुआ है. लोन लेने के लिए उन्होंने घर की संपत्ति और जमीन गिरवी रखी हुई है. ऐसे में अभी के समय में अपने बेटे को घर में सकुशल देखकर एक तरफ खुशी मिल रही है तो दूसरी तरफ उसके भविष्य और भविष्य बनाने के लिए लिए गए लोन के बारे में सोचकर वे काफी चिंतित हैं. चिंता के कारण उनकी आंखों की नींद उड़ गई है.
सरकार से की मांगः राजेश कुमार ने बेटे को सकुशल घर लाने के लिए सरकार का आभार जताया. इसके साथ ही सरकार से अपील की कि उनके बच्चे के भविष्य की सरकार चिंता करें. देश के किसी मेडिकल कॉलेज में उनके बच्चे और यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे सभी भारतीय बच्चों को अकोमोडेट करें, ताकि बच्चे अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख सकें. उन्होंने सरकार से यह भी अपील की कि वे यूक्रेन के मेडिकल कॉलेज में जो फीस देते थे, वह फीस भरने के लिए अपने देश के मेडिकल कॉलेज में भी तैयार हैं लेकिन इससे अधिक फीस वह अफोर्ड नहीं कर सकते, इस बात का भी सरकार ख्याल करें. कम फीस और अच्छी पढ़ाई होने की वजह से ही एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से होते हुए भी अपने बच्चे को मेडिकल की पढ़ाई कराने के लिए उन्होंने यूक्रेन भेजा था. बच्चे यहां मेडिकल की शिक्षा पूरी करेंगे, तभी वह लोन की राशि चुका सकेंगे.
वहीं स्नेहिल की दादी शकुंतला देवी ने कहा कि यूक्रेन में जब से युद्ध शुरू हुआ, घर में खाना पीना बंद हो गया. कई दिन और रात रोते हुए गुजर गए. रोने की वजह से तबीयत भी खराब हो गयी. लेकिन जब उन्होंने अपने बच्चे को सकुशल घर में देखा तो काफी खुशी हुई और इस खुशी को वह बयां नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि युद्ध जब से शुरू हुआ, वह टीवी से चिपकी हुई है और यूक्रेन के पल-पल की स्थिति की जानकारी ले रही हैं.
स्नेहिल की मां श्वेत निशा ने कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बेहद आभार जताते हैं कि उनके बच्चे को सरकार ने सकुशल घर वापस लाया. सरकार का आभार जताने के लिए उनके पास शब्द कम हैं, लेकिन वह यह भी चाहती हैं कि उन्होंने जो सपना देखा था कि उनका बच्चा एक डॉक्टर बने. वह पूरा हो और उनके बच्चे की आगे की पढ़ाई और भविष्य के बारे में सरकार चिंता करे. जल्द कोई सकारात्मक पहल करे, ताकि बच्चे देश के ही मेडिकल कॉलेज में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी कर सकें.
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