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Patna News: पटना में सरहुल महोत्सव का आयोजन, गोंड आदिवासी ने की पेड़-पौधों की पूजा

बिहार के गोंड आदिवासी ने पटना में सरहुल महोत्सव मनाया. इस दौरान उन्होंने सचिवालय के समीप पेड़ पौधों की पूजा की. गोंड आदिवासी ने लोगों से पेड़-पौधों को बचाने का संदेश दिया. कहा कि यह काम हमारे पुरखों ने हमें सिखाया है. पेड़ की रक्षा करना हमलोगों का कर्तव्य रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Mar 26, 2023, 8:07 PM IST

पटना में सरहुल महोत्सव

पटनाः बिहार के पटना में सरहुल महोत्सव Sarhul Festival in Patna() का आयोजन किया गया. इस दौरान बिहार राज्य गोंड आदिवासी संघ की ओर से पटना सचिवालय के समीप महोत्सव का आयोजन किया गया. मौके पर बिहार के विभिन्न जिले के रहनेवाले गोंड आदिवासी महिला-पुरुषों ने महोत्सव में भाग लिया. इस दौरान सरनास्थल पर मौजूद पेड़ों की पूजा की गई. प्रकृति गीत के साथ आदिवासी महिला-पुरुषों ने गोंड नृत्य भी किया.

यह भी पढ़ेंः Chaiti Chhath 2023: चैती छठ को लेकर दुकानें सजकर तैयार.. जाने दउरा, सूप और हथिया की कीमतें

पेड़ को बचाने के लिए खास है महोत्सवः पूजा करवा रहे अरविंद मंडारी ने कहा की हमलोग गोंगों पाठ करते हैं. यह प्रकृति की पूजा है. हमलोगों ने वृक्ष को पूजा की है. माना जाता है की गोंद आदिवासी के जो राजा होते थे, उनके राज में 52 लाख पेड़ पौधे और सवा लाख झाड़ पौधे होते थे, जिसके बचाव का काम गोंड जाति के लोग करते थे. पेड़ की बचाव के लिए पूजा की जाती थी. इसे प्रकृति महापर्व के रूप में मनाया जाता है. चैत महीने में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.

पेड़ पौधों को बचाने की अपीलः गोंड आदिवासी संघ के प्रमुख रविंद्र गोंड ने कार्यक्रम को लेकर खुशी जताई. कहा कि हमलोग पटना जैसे शहर में भी अपना सरहुल महोत्सव और प्रकृति महापर्व को मना लेते हैं. मुख्य रूप से लोगों को इस महोत्सव से हम यही संदेश देते हैं कि आप पेड़ पौधों को बचाएं. पर्यावरण बचेगा, जो इंसान के लिए जरूरी है. सरहुल महोत्सव के मौके पर पेड़ की पूजा की है. गोंड आदिवासी जहां भी है वे प्रकृति को बचाने में लगे रहते है.

प्रकृति की पूजा से खुशहाल होता जीवनः यह काम हमारे पुरखों ने हमें सिखाया है. इसीलिए हमारी पूजा प्रकृति की पूजा है, जिससे हम खुशहाल रहते हैं. आपको बता दें कि पटना में भी गोंड आदिवासी जाति की संख्या काफी है. पटना में राजगढ़ वह अपने पद को मनाते हैं. सचिवालय के समीप आदिवासियों का एक पुराना मंदिर है. इस मंदिर परिसर में जो वृक्ष लगे हुए हैं, आज के दिन गोंड आदिवासी के लोगों ने उस वृक्ष का पूजा की पूजा करते हैं. आदिवासी पुरुष-महिलाएं गीत की धुन पर गोंड नृत्य करते हैं.

"अभी के समय में इस पर्यावरण को नहीं बचा पाएंगे तो आने वाले समय में हमारे मानव जीवन पर खतरा उत्पन्न हो जाएगा. पेड़ पौधों से कटने से जो दुष्प्रभाव देख रहे हैं, उसमें और बढ़ोतरी हो सकती है. कभी बाढ़ आ जाता है तो कभी सुखाड़ आ जाता है. इसी समस्या को देखते हुए हमलोग पेड़ को बचाने का संदेश दे रहे हैं." -रविन्द्र गोंड, प्रमुख, गोंड आदिवासी संघ, बिहार

पटना में सरहुल महोत्सव

पटनाः बिहार के पटना में सरहुल महोत्सव Sarhul Festival in Patna() का आयोजन किया गया. इस दौरान बिहार राज्य गोंड आदिवासी संघ की ओर से पटना सचिवालय के समीप महोत्सव का आयोजन किया गया. मौके पर बिहार के विभिन्न जिले के रहनेवाले गोंड आदिवासी महिला-पुरुषों ने महोत्सव में भाग लिया. इस दौरान सरनास्थल पर मौजूद पेड़ों की पूजा की गई. प्रकृति गीत के साथ आदिवासी महिला-पुरुषों ने गोंड नृत्य भी किया.

यह भी पढ़ेंः Chaiti Chhath 2023: चैती छठ को लेकर दुकानें सजकर तैयार.. जाने दउरा, सूप और हथिया की कीमतें

पेड़ को बचाने के लिए खास है महोत्सवः पूजा करवा रहे अरविंद मंडारी ने कहा की हमलोग गोंगों पाठ करते हैं. यह प्रकृति की पूजा है. हमलोगों ने वृक्ष को पूजा की है. माना जाता है की गोंद आदिवासी के जो राजा होते थे, उनके राज में 52 लाख पेड़ पौधे और सवा लाख झाड़ पौधे होते थे, जिसके बचाव का काम गोंड जाति के लोग करते थे. पेड़ की बचाव के लिए पूजा की जाती थी. इसे प्रकृति महापर्व के रूप में मनाया जाता है. चैत महीने में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.

पेड़ पौधों को बचाने की अपीलः गोंड आदिवासी संघ के प्रमुख रविंद्र गोंड ने कार्यक्रम को लेकर खुशी जताई. कहा कि हमलोग पटना जैसे शहर में भी अपना सरहुल महोत्सव और प्रकृति महापर्व को मना लेते हैं. मुख्य रूप से लोगों को इस महोत्सव से हम यही संदेश देते हैं कि आप पेड़ पौधों को बचाएं. पर्यावरण बचेगा, जो इंसान के लिए जरूरी है. सरहुल महोत्सव के मौके पर पेड़ की पूजा की है. गोंड आदिवासी जहां भी है वे प्रकृति को बचाने में लगे रहते है.

प्रकृति की पूजा से खुशहाल होता जीवनः यह काम हमारे पुरखों ने हमें सिखाया है. इसीलिए हमारी पूजा प्रकृति की पूजा है, जिससे हम खुशहाल रहते हैं. आपको बता दें कि पटना में भी गोंड आदिवासी जाति की संख्या काफी है. पटना में राजगढ़ वह अपने पद को मनाते हैं. सचिवालय के समीप आदिवासियों का एक पुराना मंदिर है. इस मंदिर परिसर में जो वृक्ष लगे हुए हैं, आज के दिन गोंड आदिवासी के लोगों ने उस वृक्ष का पूजा की पूजा करते हैं. आदिवासी पुरुष-महिलाएं गीत की धुन पर गोंड नृत्य करते हैं.

"अभी के समय में इस पर्यावरण को नहीं बचा पाएंगे तो आने वाले समय में हमारे मानव जीवन पर खतरा उत्पन्न हो जाएगा. पेड़ पौधों से कटने से जो दुष्प्रभाव देख रहे हैं, उसमें और बढ़ोतरी हो सकती है. कभी बाढ़ आ जाता है तो कभी सुखाड़ आ जाता है. इसी समस्या को देखते हुए हमलोग पेड़ को बचाने का संदेश दे रहे हैं." -रविन्द्र गोंड, प्रमुख, गोंड आदिवासी संघ, बिहार

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