पटना: राजधानी के बिहटा स्थित पांडेयचक गांव निवासी बिहार रेजिमेंट के जाबांज लांस नायक गणेश प्रसाद यादव की शहादत पर पूरे इलाके को गर्व है. उन्होंने दुश्मनों से लड़ते हुए कारगिल के द्रास सेक्टर में शहादत दी थी. उनके पराक्रम को देश ने मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा.
28 मई 1999, वो दिन, जब कारगिल के द्रास सेक्टर में दुश्मनों से लड़ते हुए पटना से सटे बिहटा प्रखंड में पांडेचक के रहने वाले लांस नायक गणेश यादव शहीद हुए थे. आज भी उस दिन को याद करते हुए उनकी पत्नी की आंखें भर आती हैं.
पत्नी पुष्पा यादव उस समय की बात बताते हुए कहती हैं, 'सबसे पहले खबर पटना में आई. मुझे पता नहीं चला. लेकिन परिवार के लोगों ने मुझे बताया कि वो शहीद हो गए.' फिर वो रोने लगती हैं. जब पति के शहादत की खबर आई, उस वक्त उनकी गोद में ढाई साल की बेटी कुमारी प्रेम ज्योति और डेढ़ साल का बेटा अभिषेक कुमार था. उस वाक्ये के बाद बड़ी मेहनत और मुश्किल राहों से गुजरते हुए वीरपत्नी पुष्पा यादव ने अपने बच्चों की परवरिश की.
एक साल से नहीं मिल रही पेंशन
शहीद गणेश के पिता रामदेव यादव ने बताया कि पेंशन की 25 फीसदी राशि हमारे खाते में जाती है, जबकि फीसदी राशि शहीद की पत्नी के खाते में आती है. बीते कुछ सालों से पेंशन खाते से निकासी पर रोक लगी है. यदि वैकल्पिक आय का स्रोत नहीं होता और सिर्फ पेंशन पर आश्रित होते तो परिवार सड़क पर आ जाता.
सरकार के वादे पूरे नहीं हुए- मां
30 जनवरी 1970 को जन्मे शहीद की मां बचिया देवी कहती हैं कि गणेश को शुरुआत से ही सेना में जाने की इच्छा थी. 1987 में गणेश ने सेना की नौकरी ज्वाइन की और 12 साल की नौकरी के बाद 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान अपना सर्वोच्च बलिदान दिया.
मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया. सरकार की ओर से वादों की झड़ी लगा दी गई. परिजनों के लिए नौकरी, मकान, शहीद के नाम से सड़क ये सभी वादे हुक्मरानों ने किए. लेकिन अफसोस कि 20 साल बाद भी वादे हकीकत का रुख अख्तियार ना कर सकें.
सरकार ने अलॉट की गैस एजेंसी
वर्ष 2002 में बेटे के नाम पर गैस एजेंसी आवंटित की गई. तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री राम नाइक और स्वास्थ्य मंत्री सीपी ठाकुर ने रसोई गैस एजेंसी का उद्घाटन 13 जनवरी 2002 को किया था. इसी एजेंसी के बूते परिवार चल रहा है. जिसे अपना समझकर एजेंसी में रोजगार दिया, वही लाखों की सेंधमारी कर भाग गया. एक-दो लाख नहीं 40 लाख रुपये की चपत लगा गया. अपनी तकलीफ बताते-बताते पिता रामदेव यादव रुंआसे हो जाते हैं.
कई वादे रहे अधूरे
शहीद की पत्नी पुष्पा यादव ने बताया कि, 'मेरे पति की शहादत के बाद चौतरफा सहानुभूति जगी. राज्य सरकार ने तब 10 लाख और केंद्र सरकार ने 15 लाख दिए. लेकिन, कई वादे अधूरे रह गए.'
पुष्पा बताती हैं कि बेटा और बेटी दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. दोनों अच्छे से पढ़ रहे हैं. सरकार के अधूरे वादों पर दुख होता है.
इस जज्बे के साथ एक सैनिक हंसते-हंसते अपना सर्वोच्च बलिदान दे देता है, ताकि उसका देश और देशवासी सुरक्षित रहे. लेकिन शहीदों की शहादत के सम्मान के नाम पर सिर्फ रस्म-अदायगी ही होती है. सरकारी वादे भुला दिए जाते हैं, जिस वजह से परिवार खुद को ठगा महसूस करता है.