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बिहार में थारू और सुरजापुरी भाषा विलुप्त होने की कगार पर, डिप्टी CM ने जताई चिंता

विशेषज्ञों ने आशंका व्यक्त की है कि यदि थारू और सुरजापुरी भाषा (Tharu And Surjapuri Languages) को पुनर्जीवित करने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो ये दोनों भाषाएं भोजपुरी, मैथिली, हिंदी और बांग्ला में विलीन हो जाएंगी. वहीं, उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद (Deputy CM Tarkishore Prasad) ने कहा कि निश्चित रूप से इस मामले को देखेंगे.

विलुप्ति की कगार पर थारू और सुरजापुरी
विलुप्ति की कगार पर थारू और सुरजापुरी
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Published : Jun 15, 2022, 7:21 AM IST

पटना: बिहार की दो बोलियां थारू और सुरजापुरी (Tharu And Surjapuri Languages) विलुप्त होने के संकट का सामना कर रही हैं. विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि यदि इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो ये दोनों भाषाएं भोजपुरी, मैथिली, हिन्दी और बांग्ला में घुल-मिल जाएंगी. थारू भाषा भोजपुरी और मैथिली के मेल से बनी है तथा यह थारू समुदाय द्वारा मुख्य रूप से पश्चिमी और पूर्वी चंपारण जिलों में बोली जाती है. सुरजापुरी भाषा बंगला, मैथिली और हिन्दी के मेल से बनी है और इसको बोलने वाले मुख्य रूप से राज्य के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और ररिया जिलों में हैं.

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उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने जताई चिंता: बिहार के उपमुख्यमंत्री और कटिहार से चार बार विधायक रहे तारकिशोर प्रसाद (Deputy CM Tarkishore Prasad) ने कहा, ''मेरे निर्वाचन क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में सुरजापुरी भाषा बोली जाती है. लेकिन यह सच है कि इस भाषा में अब विविधता देखी जा रही है. जो लोग पहले सुरजापुरी भाषा बोलते थे, अब बंगला, मैथिली और हिंदी में बातचीत करना पसंद कर रहे हैं.''

''निश्चित रूप से इस मामले को देखेंगे और अधिकारियों से कहेंगे कि वे इस भाषा के पुनरुद्धार के तरीकों का पता लगाएं. इस भाषा को 'किशनगंजिया' नाम से भी जाना जाता है. थारू भाषा भी विलुप्त होने के कगार पर है.'' - तारकिशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री, बिहार

दोनों भाषाएं गायब हो जाएंगी: इसी तरह की राय व्यक्त करते हुए राज्य सरकार की बिहार हेरिटेज डेवलपमेंट सोसाइटी (बीएचडीएस) के कार्यकारी निदेशक बिजॉय कुमार चौधरी ने कहा कि अगर इन दो भाषाओं को पुनर्जीवित नहीं किया गया तो, ये दोनों भाषाएं गायब हो जाएंगी, क्योंकि लोग भोजपुरी, मैथिली, हिन्दी और बंगला जैसी अन्य प्रमुख भाषाओं को बोलना पसंद करते हैं. बीएचडीएस ने क्षेत्र में जाकर गहन और विस्तृत जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है. थारू भाषा विलुप्त होने के कगार पर है, जबकि सुरजापुरी में विविधताएं देखी जा रही हैं.

ये भी पढ़ें: बोले सुनील कुमार पिंटू- गरीब लोगों को समझ नहीं आती अंग्रेजी, लोकल लैंग्वेज में हो अदालत की कार्यवाही

थारू और सुरजापुरी भाषा पर संकट: राज्य सरकार के कला, संस्कृति और युवा विभाग की एक शाखा के रूप में कार्यरत बीएचडीएस बिहार की मूर्त और अमूर्त विरासत के संरक्षण और प्रचार के लिए काम करती है. बिहार में संबंधित अधिकारियों के पास थारू भाषा बोलने वाले लोगों की कुल संख्या का आंकड़ा नहीं है. समुदाय के रूप में थारू लोग उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में स्थित हिमालय की तलहटी और नेपाल के दक्षिणी वन क्षेत्रों में रहते हैं. सुरजापुरी भाषा बोलने वालों का एक बड़ा हिस्सा पूर्णिया जिले के ठाकुरगंज प्रखंड से सटे नेपाल के झापा जिले में रहता है.

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पटना: बिहार की दो बोलियां थारू और सुरजापुरी (Tharu And Surjapuri Languages) विलुप्त होने के संकट का सामना कर रही हैं. विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि यदि इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो ये दोनों भाषाएं भोजपुरी, मैथिली, हिन्दी और बांग्ला में घुल-मिल जाएंगी. थारू भाषा भोजपुरी और मैथिली के मेल से बनी है तथा यह थारू समुदाय द्वारा मुख्य रूप से पश्चिमी और पूर्वी चंपारण जिलों में बोली जाती है. सुरजापुरी भाषा बंगला, मैथिली और हिन्दी के मेल से बनी है और इसको बोलने वाले मुख्य रूप से राज्य के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और ररिया जिलों में हैं.

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उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने जताई चिंता: बिहार के उपमुख्यमंत्री और कटिहार से चार बार विधायक रहे तारकिशोर प्रसाद (Deputy CM Tarkishore Prasad) ने कहा, ''मेरे निर्वाचन क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में सुरजापुरी भाषा बोली जाती है. लेकिन यह सच है कि इस भाषा में अब विविधता देखी जा रही है. जो लोग पहले सुरजापुरी भाषा बोलते थे, अब बंगला, मैथिली और हिंदी में बातचीत करना पसंद कर रहे हैं.''

''निश्चित रूप से इस मामले को देखेंगे और अधिकारियों से कहेंगे कि वे इस भाषा के पुनरुद्धार के तरीकों का पता लगाएं. इस भाषा को 'किशनगंजिया' नाम से भी जाना जाता है. थारू भाषा भी विलुप्त होने के कगार पर है.'' - तारकिशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री, बिहार

दोनों भाषाएं गायब हो जाएंगी: इसी तरह की राय व्यक्त करते हुए राज्य सरकार की बिहार हेरिटेज डेवलपमेंट सोसाइटी (बीएचडीएस) के कार्यकारी निदेशक बिजॉय कुमार चौधरी ने कहा कि अगर इन दो भाषाओं को पुनर्जीवित नहीं किया गया तो, ये दोनों भाषाएं गायब हो जाएंगी, क्योंकि लोग भोजपुरी, मैथिली, हिन्दी और बंगला जैसी अन्य प्रमुख भाषाओं को बोलना पसंद करते हैं. बीएचडीएस ने क्षेत्र में जाकर गहन और विस्तृत जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है. थारू भाषा विलुप्त होने के कगार पर है, जबकि सुरजापुरी में विविधताएं देखी जा रही हैं.

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थारू और सुरजापुरी भाषा पर संकट: राज्य सरकार के कला, संस्कृति और युवा विभाग की एक शाखा के रूप में कार्यरत बीएचडीएस बिहार की मूर्त और अमूर्त विरासत के संरक्षण और प्रचार के लिए काम करती है. बिहार में संबंधित अधिकारियों के पास थारू भाषा बोलने वाले लोगों की कुल संख्या का आंकड़ा नहीं है. समुदाय के रूप में थारू लोग उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में स्थित हिमालय की तलहटी और नेपाल के दक्षिणी वन क्षेत्रों में रहते हैं. सुरजापुरी भाषा बोलने वालों का एक बड़ा हिस्सा पूर्णिया जिले के ठाकुरगंज प्रखंड से सटे नेपाल के झापा जिले में रहता है.

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