पटना: राज्यपाल की अध्यक्षता में आज बिहार में कोरोना संकट को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में सर्वदलीय बैठक हुई. बैठक में भाग लेने के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सरकार की जमकर आलोचना की. उन्होंने कहा कि पिछले एक साल में विपक्ष की तरफ से कई अहम सुझाव दिए गए. लेकिन सरकार ने हमेशा हमारे सुझावों को दरकिनार किया है.
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कैम्पेन मोड में हो टेस्टिंग और उपचार
अब स्थिति इतनी विकट हो गई है तो विपक्ष के नेताओं को बैठक में शामिल कर अपनी गलतियां दूसरों के माथे थोपने का प्रयास किया जा रहा है. अंत में मैं ये कहना चाहूंगा की जिस प्रकार चुनाव के वक्त आप लोग कैम्पेन मोड में रहते हैं उसी प्रकार टेस्टिंग और उपचार को भी कैम्पेन मोड में चलाया जाए.
"तमाम विपक्षी दल विगत एक वर्ष से सदन में, मीडिया के जरिए, पत्रों के माध्यम से निरंतर सरकार को कोरोना प्रबंधन और महामारी से निपटने के अपने बहुमूल्य सुझाव देते आ रहे हैं. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन पर कभी अमल नहीं हुआ. अब सरकार की व्यवस्थाओं की पोल पूर्णत खुल चुकी है. सरकार अपनी सारी विफलताएं दूसरे के माथे मढ़, पाप में सबको भागीदार बनाना चाहती है. इसलिए अब विपक्षी दलों को याद किया गया है. अगर सरकार विपक्ष के सकारात्मक सुझावों और सरोकारों को नहीं सुनती है तो, ऐसी बैठकों का क्या औचित्य?"- तेजस्वी यादव, नेता प्रतिपक्ष
तेजस्वी यादव के सुझाव
- एक स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाए जिसमें महामारी, पब्लिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और तमाम राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि हों.
- ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं की निर्बाध सप्लाई चेन सुनिश्चित की जाए और उसकी कालाबाजारी पर कठोर कारवाई की जाए.
- मोबाइल टीकाकरण की व्यवस्था की जाए. ताकि लोगों के घरों या मोहल्लों में जाकर बगैर संक्रमण के रिस्क के साथ टीका लगाया जा सके.
- अस्पतालों में टीकाकरण और जांच की व्यवस्था अलग-अलग परिसरों में की जाए. ताकि संक्रमण फैलाव का रिस्क न्यूनतम हो सके.
- कोरोना जांच की व्यवस्था को सुगम और सुलभ बनाया जाए. आज भी लोगों को रिपोर्ट मिलने में 6-7 दिन लग रहे हैं. टेस्ट रिपोर्ट के इंतजार में ही कई लोग गंभीर हो जाते हैं, मर भी जाते हैं.
- स्वास्थ्य विभाग कोरोना आंकड़े जारी करने में पारदर्शिता बरतें. प्रतिदिन कुल कितनी जांच हुई, कितने पॉजिटिव केस, कहां-कहां मिले, इत्यादि अनिवार्य रूप से जारी किए जाने चाहिए.
- पूरे राज्य के लिए एक इंटेग्रेटेड डाटाबेस सिस्टम बनाया जाए. जिसपर निजी या सरकारी डॉक्टर या जांच केंद्रों में जांच करने वालों की जिम्मेदारी होगी कि वो कोई भी कोरोना जांच करें, संक्रमित पाए जाने पर व्यक्ति की सारी जानकारी, किस चिकित्सक की देखरेख में वह व्यक्ति है, उसके स्वास्थ्य सम्बन्धी विभिन्न पैरामीटर, को मोरबीडीटी इत्यादि की जानकारी तुरंत अपलोड करें.
- उस जानकारी के आधार पर नजदीकी कोविड समर्पित अस्पताल या तो तुरंत बेड सुनिश्चित करेगा या होम क्वारंटाइन की स्थिति में स्थानीय मुखिया, वार्ड मेम्बर, नगर निगम या पंचायत को सम्बंधित परिवार की हर प्रभावी तौर पर अलग होने के लिए सहयोग करने की गाइडलाइन जारी करेगा.
- कोविड वार्ड में मरीजों के परिचारक के प्रवेश को वर्जित कर अस्पताल में एक अलग जगह सीसीटीवी फुटेज से उनको देखने की व्यवस्था की जाए, या यदि किसी के पास स्मार्ट फ़ोन हो तो सीसीटीवी फुटेज की पहुंच उनके फोन में दिया जाए अथवा मरीज-परिजन से बातचीत का विशेष प्रबंध किया जाए.
- होम क्वॉरंटीन मरीजों की निगरानी के लिए जीपीएस ट्रैकर तकनीक का इस्तमाल करते हुए उसके मॉनिटरिंग के लिए एक विशेष सेल बनाया जाए. होम क्वारंटाइन के लिए एक विस्तृत प्रोटोकॉल बने जिसके माध्यम से पीड़ित परिवार के लिए घर पर ही दवा, पीपीई किट, ऑक्सीमीटर, थर्मोमीटर की व्यवस्था की जाए, घर का कचरा सुरक्षित तरीके से प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा रोज घर से निकालना और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए स्थानीय जन प्रतिनिधियों, स्वास्थ्यकर्मियों और पड़ोसियों को आवश्यक मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश दिए जाएं.
- कोविड डेडिकेटेड अस्पतालों का निर्माण प्रमंडल स्तर पर किया जाए.
- दूसरे राज्यों से आए सभी यात्रियों की जांच को अनिवार्य किया जाए. एंटीजन नहीं बल्कि उनकी आरटी-पीसीआर जांच होनी चाहिए. बाहर के राज्य से आनेवाला कोई भी व्यक्ति बिना नेगेटिव रिपोर्ट पाए. अपने घर नहीं जा पाए, इसके लिए हर बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, राज्य की सीमाओं और एयरपोर्ट पर समुचित व्यवस्था हो. ऐसे कोरोना मरीजों के लिए अधिक से अधिक सुसज्जित अस्थायी आइसोलेशन और क्वारंटाइन सेंटरों की व्यवस्था की जाए. जहां पौष्टिक भोजन, साफ-सफाई और जरूरी सुविधाओं की समुचित व्यवस्था हो.
- कोरोना काल में सबसे अधिक प्रभावित सभी गरीब परिवार और मजदूर भाइयों को अगले 100 दिनों तक 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से न्यूनतम 10 हजार की एकमुश्त सहायता राशि स्थानांतरित की जाए. विगत वर्ष भी हमने यह मांग रखी थी.
- राज्य के सभी राशन कार्ड धारकों को 6 महीने तक मुफ्त राशन दिया जाए. हर प्रखंड में 4-5 सामुदायिक किचन शुरू किये जाएं.
- राज्य के बाहर से आनेवाले श्रमवीरों को बस, रेल आदि में निःशुल्क व्यवस्था किये जाएं और बसों, ट्रेनों मे उनके लिए खाना तथा पानी की पूरी व्यवस्था किये जाएं बाहर से आए सभी श्रमिक भाइयों को चिह्नित कर उनका सही डेटाबेस तैयार कर, अनिवार्य रूप से उन्हें 3000 रुपये महीना भत्ता दिया जाए.
- राज्य में विभिन्न विभागों के अंतर्गत निर्मांणाधीन बड़े प्रॉजेक्ट्स को पहचान कर उनमें बाहर से लौटे सभी कुशल कामगारों और श्रमिकों को संलग्न किया जाए. इससे प्रोजेक्ट भी तय समय सीमा से पूर्व तैयार होंगे और श्रमिकों को काम भी मिलेगा.
- आशा है मुख्यमंत्री जी ने पिछले मार्च महीने में प्रकाशित सीएजी रिपोर्ट को अवश्य पढ़ा होगा. इस सीएजी रिपोर्ट के अनुसार 2010-11 से 2017-18 तक स्वास्थ्य विभाग में वर्षों से अनेक प्रॉजेक्ट्स निर्धारित समय अवधि पूर्ण होने के बावजूद निर्मांणाधीन और लंबित है. मुख्यमंत्री जी, तो क्यों नहीं बाहर से आए श्रमिकों को स्वास्थ्य संरचना दुरुस्त करने और उन प्रॉजेक्ट्स को पूरा करने में अनिवार्य रूप से लगाया जाए. सकारात्मक विपक्ष के नाते यह पलायन रोकने और रोजगार सृजित करने का एक उपाय भी बता रहा हूं.
- वैसे विभाग जिनमें कोरोना के कारण अभी अति आवश्यक काम नहीं हो रहें है। ऐसे विभागों के योग्य आईएएस / आईपीएस अधिकारियों का संसाधन संग्रह बना कर उन्हें डेडिकेटेड कोरोना मैनज्मेंट में लगाया जाए. साथ ही उन अधिकारियों की स्वास्थ्य सुरक्षा का पूर्ण इंतजाम किया जाए.
- परीक्षण प्रबंधन के लिए अलग से डेडिकेटेड आईएएस अधिकारी, ऑक्सीजन प्रबंधन के लिए अलग अधिकारी, टीकाकरण के लिए अलग, आईसोलेशन और प्रबंधन का पालन करने के लिए अलग, सरकारी और निजी अस्पतालों में बिस्तरों की व्यवस्था के लिए अलग से, कोरोना पीड़ितों के घर दवा किट भेजने की व्यवस्था के लिए अलग से, कोरोना बजट में किसी प्रकार की धांधली ना हो, इसलिए लिए विशेष समर्पित भ्रष्टाचार निरोधक सेल, सामान्य कोरोना संबंधित अन्य शंकाओं के निवारण के लिए एक अलग से डेडिकेटेड कॉल सेंटर की स्थापना के साथ डेडिकेटेड अधिकारियों की नियुक्ति की जाए और साथ ही उन सभी अधिकारियों के लिए समुचित केयर और सुरक्षा होनी चाहिए. तभी वो कार्य कर पाएंगे.
- पटना में मेदांता, जया प्रभा और अन्य निजी अस्पतालों का सामयिक/अस्थायी अधिग्रहण कर उसे कोविड अस्पताल बनाया जाए. महामारी में पीड़ितों से अधिक वसूली करने वालों पर विशेष निगरानी रखी जाए.
- इसी प्रकार हरेक जिले में निजी अस्पतालों में कोविड बेड की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए.
- प्रदेश के सभी प्रकार के अस्पतालों में बेड की कुल संख्या, उपलब्धता और बुकिंग की ऑनलाइन व्यवस्था का डेटाबेस तैयार किया जाए.
- प्रदेश के सभी अस्पतालों में बेड की उपलब्धता के ऑनलाइन आंकड़े प्रदर्शित किए जाएं. कुल कितने बेड खाली हैं और कहां-कहां खाली हैं, और हर सुपुर्द किया गया बेड किसे और कहां दिया गया, यह जानकारी भी इसी डाटाबेस के माध्यम से 24 घण्टे हर नागरिक के लिए उपलब्ध होगी. ताकि किसी तरह के वीआईपी कल्चर, धांधली या घूसखोरी का इल्जाम ना लगे, गरीब और गम्भीर रूप से बीमार मरीजों के साथ अन्याय ना हो और सारी व्यवस्था पारदर्शी हो.
- सरकार छवि की परवाह ना कर जांच आंकड़ों में पारदर्शिता लेकर आए. सरकार की छवि से ज़्यादा नागरिकों का जीवन महत्वपूर्ण है.
- जो कोविड अस्पतालों और क्वॉरंटीन सेंटर के बायोमेडिकल वेस्ट यथा पीपीई किट, फेस मास्क,ग्लव इत्यादि हैं उसके डम्पिंग की उचित व्यवस्था हो.
- कोरोना के चलते दूसरे बीमारियों के उपचारित मरीजों के इलाज की प्रक्रिया पूर्व की भांति चलती रहे, उनका उपचार प्रभावित ना हो यह सुनिश्चित किया जाए.
- वीकेंड कर्फ्यू लगाया जाए. अगर सरकार का लॉकडाउन का इरादा है तो उसके लिए पहले ही लोगों को सूचित कर समुचित व्यवस्था की जाए. ताकि आमजन को पूर्व की भांति किसी प्रकार की कोई समस्या उत्पन्न ना हो. बाहर रह रहे श्रमवीरों और प्रदेशवासियों को भी उचित माध्यम से सूचित किया जाए.
- बिहार में अवस्थित सभी रेलवे, सेना, अर्द्धसैनिक बलों सहित भारत सरकार के उपक्रमों के अस्पतालों को फ्रंटलाइन वर्करों के लिए खोल दिये जाए. इस संबंध में भारत सरकार से व्यापक आदेश जारी करने हेतु अनुरोध किया जा सकता है.
- फ्रंटलाइन वर्कर्स जिसमें अधिकारी, कर्मी, चिकित्सक, नर्स, पारामेडिकल स्टाफ, पुलिसकर्मी तथा संविदा कर्मी आदि को तीन महीनों का अग्रिम वेतन दिया जाए और सेवापरांत मृत्यु होने पर कम से कम 50 लाख की आर्थिक सहायता तथा उनके परिवार को एक सदस्य को तुरंत सरकारी नौकरी दिया जाए.
- जरूरत पड़ने पर हमारे पार्टी कार्यालय, मेरे सरकारी आवासीय परिसर का भी सरकार उपयोग कर सकती है.