पटना: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में आरजेडी (RJD) सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सत्ता से दूर है. अब लोजपा (LJP) में जिस प्रकार से टूट हुई है, चिराग पासवान (Chirag Paswan) को तेजस्वी रिझाने में लगे हैं. पहले भी लालू प्रसाद यादव ने रामविलास पासवान को अपने साथ जोड़ कर नीतीश के खिलाफ चुनावी रणनीति बनाई थी. लेकिन उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी थी. अब तेजस्वी नीतीश के खिलाफ नया जातीय समीकरण तैयार करना चाहते हैं. ऐसे जदयू अभी इसे खास गंभीरता से नहीं ले रहा है.
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लोजपा के कारण जदयू को लगा था झटका
विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगा. लोजपा के कारण पार्टी केवल 43 सीट लेकर तीसरे नंबर पर पहुंच गई. हालांकि नीतीश कुमार ने लोजपा के एकमात्र विधायक को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. लोजपा में बड़ी टूट भी करा दी. ऐसे में चिराग पासवान नीतीश कुमार को लेकर एक बार फिर से मुखर हैं. 2010 में रामविलास पासवान नीतीश कुमार से खफा थे. इसी कारण लालू प्रसाद यादव के साथ विधानसभा का चुनाव उन्होंने लड़ा.
तेजस्वी दे रहे हैं चिराग को ऑफर
उस समय लालू प्रसाद यादव को भी लगा था कि रामविलास पासवान का दलित वोट, यादव-मुस्लिम वोट के साथ फिर से सत्ता मिल जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. नीतीश कुमार लालू यादव और राम विलास पासवान की जोड़ी पर भारी पड़े. 2010 में प्रचंड बहुमत के साथ एनडीए की सरकार बनी. लेकिन अब एक बार फिर से तेजस्वी यादव चिराग पासवान को अपने साथ कर बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ एक बड़ा समीकरण बनाने की तैयारी कर रहे हैं. लगातार चिराग को ऑफर भी दे रहे हैं. चिराग के तरफ से अभी ना तो हां कहा गया है और ना ही ना कहा गया है.
मंत्रिमंडल विस्तार के इंतजार में चिराग
चिराग केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार का इंतजार कर रहे हैं. संभवत: उसके बाद कोई बड़ा फैसला लें. बिहार में अभी चुनाव में भी काफी समय है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के तरफ से लगातार चिराग को दिए जा रहे ऑफर को जदयू फिलहाल गंभीरता से नहीं ले रहा है.
'दोनों का बैकग्राउंड एक ही है. दोनों जहां से आते हैं, वहां परिवारवाद की प्रकाष्ठा है. इसलिए दोनों में दोस्ती तो होगी ही.' -आरसीपी सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जदयू
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राजनीतिक दल साधते रहे हैं जातीय समीकरण
इस बार तेजस्वी यादव अपने यादव, दलित और मुस्लिम वोट के सहारे नई रणनीति तैयार करना चाहते हैं. बिहार में जातीय समीकरण को लंबे समय से राजनीतिक दल साधते रहे हैं. जातियों के वोट प्रतिशत की बात करें, तो यादव 14% के आसपास है, मुसलमान 15% और दलित 16% हैं. तीनों को मिला दें तो 45% वोट है. इसके अलावा कोइरी-कुर्मी भी 9 से 10% के आसपास हैं. अगड़ी जातियों की बात करें तो यह 20% के करीब हैं. अति पिछड़ी जातियों का वोट प्रतिशत 25 के आसपास है.
जातीय समीकरण नहीं तय कर पाए थे लालू
नीतीश कुमार 2005 में बीजेपी के साथ लालू प्रसाद यादव को इसलिए मात दे सके, क्योंकि कोईरी-कुर्मी, अति पिछड़ा और अगड़ी जातियों का वोट मिल गया. साथ ही अल्पसंख्यकों का वोट भी लालू प्रसाद यादव के पाले से निकल कर नीतीश के साथ आ गया. दलितों का वोट भी मिला. 2010 में लालू प्रसाद यादव ने रामविलास पासवान के साथ इसी उम्मीद से चुनाव लड़ा कि नीतीश कुमार को मात दे देंगे. लेकिन सफलता नहीं मिली. उसका बड़ा कारण यह था कि मुस्लिमों का वोट नीतीश कुमार के साथ रहा. इसके अलावा पासवान को छोड़ सभी दलित जातियों का वोट नीतीश के पाले में आ गया.
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'चिराग तैयार हों तो हम लोग उनके साथ हैं. वे चाहें, तो यह टूट उनके लिए नया दरवाजा खोल सकता है.' -वृषण पटेल, वरिष्ठ नेता, राजद
'चिराग पासवान तेजस्वी यादव के साथ जाएंगे या नहीं, यह तो समय बताएगा. लेकिन तेजस्वी यादव बहुत सूझबूझ के साथ रणनीति बना रहे हैं, जो सही दिशा में है. क्योंकि चिराग पासवान के लिए बीजेपी की तरफ से ऐसा कोई सिग्नल मिल नहीं रहा है कि उन्हें अपने साथ रखें. ऐसे में चिराग तेजस्वी यादव के साथ जाने का फैसला ले भी सकते हैं. राजनीति में परसेप्शन और कैलकुलेशन का बड़ा महत्व है.' -अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ
बिहार में लोजपा का विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन
लोजपा को 2005 में 11.10% वोट मिला था. वहीं 2010 में 21.78%, 2015 में 4.83% और 2020 में 5.66% रहा. 2005 अक्टूबर में 203 सीटों पर लोजपा चुनाव लड़ी थी और केवल 10 सीट पर जीत मिली. लेकिन 2010 के चुनाव में 75 उम्मीदवारों को उतारा था, जिसमें 3 की जीत हुई थी. पार्टी 2015 में 42 सीटों पर चुनाव लड़ी और केवल 2 सीट जीतने में कामयाब रही थी. 2020 में 140 सीटों पर चुनाव लड़ी और केवल 1 सीट पर जीत हासिल हुआ.
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