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Bihar Politics: कहां चूक रहे तेजस्वी, जानें क्या है महागठबंधन में सबसे बड़ी कमी

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) लगातार नीतीश सरकार (Nitish Government) को गिराने और महागठबंधन की सरकार बनाने का दावा करते रहते हैं. मगर बिहार की राजनीति में वे फिलहाल सिर्फ गरजने वाले बादल बनकर रह गए हैं. आगे पढ़ें पूरी खबर..

Bihar Politics
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Published : Jul 30, 2021, 6:21 PM IST

पटना: बहुत ही कम समय में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने अपनी अलग और राजनीति के धुरंधर के रूप में पहचान बना ली है. उनके बोलने के लहजे से लोग बरबस ही उनकी ओर आकृष्ट होते हैं. लेकिन सवाल ये कि राजनीति में मजबूत पकड़ और वाकपटुता के बावजूद नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) तेजस्वी यादव को अपनी रणनीति को मूर्त रूप देने में कामयाबी आखिर क्यों नहीं मिल रही है.

यह भी पढ़ें- बिहार NDA में खेला शुरू... गिरने वाली है नीतीश सरकार... तेजस्वी 15 अगस्त को फहराएंगे झंडा, RJD विधायक का दावा

पश्चिम बंगाल के चुनाव के वक्त से बिहार की राजनीति में हलचलें तेज हो गई थी. वहीं कोरोना काल में बिहार से लंबे समय से दूरी बनाए रखने के बाद जब तेजस्वी दिल्ली से पटना लौटे थे, तब राघोपुर दौरे के दौरान उन्होंने डंके की चोट पर कह दिया था कि बिहार की सरकार 2 से 3 महीने में गिरने वाली है. जिसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) भी अलर्ट हो गए थे. सभी नाराज नेताओं की नाराजगी दूर करने का प्रयास किया जाने लगा.

देखें वीडियो

'सरकार तोड़-जोड़ और सौदेबाजी पर चल रही है. हमने दावा सरकार गिराने का नहीं किया था लेकिन सरकार में जिस तरीके से उथल पुथल है और असंतोष है उससे हमें प्रतीत होता है कि सरकार खुद ही गिर जाएगी. सरकार अपनी मौत मरने वाली है. हमलोग रचनात्मक विपक्ष की भूमिका में रहेंगे. जो कमी है उसको उजागर करेंगे.'- रामानुज प्रसाद, राजद प्रवक्ता

कयासों का बाजार गर्म हो गया. कहा जाने लगा कि तेजस्वी के संपर्क में जदयू के कई बड़े नेता हैं. हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi), वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahni), जेडीयू (JDU) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) सरीखे कई नेताओं से तेजस्वी और तेजप्रताप की मुलाकातों का दौर चल पड़ा था.

'यह सरकार जोड़-तोड़ की है जनहित से उसका कोई लेना-देना नहीं है. सरकार अपने कारणों से ही गिरेगी. इंतजार कीजिए सरकार बनने का जो पूरा कारण है वो बहुत जल्द जनता जान जाएगी. यहां सिर्फ कुर्सी बचाने के लिए सरकार बनी है. जनता के मुद्दे से इसे कुछ लेना देना नहीं है.'- अजीत कुशवाहा,भाकपा माले विधायक

इन मुलाकातों के बाद तेजस्वी यादव का आत्मविश्वास भी चरम पर था. सभी को यही लगने लगा कि अब बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में एक नई पारी की शुरुआत होने वाली है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. एनडीए के तमाम घटक दलों को एक डोर से बांध के रखने की कोशिश रंग लाई और मुलाकातों का दौर बातचीत पर ही सिमट कर रह गया.

'हवा हवाई दावा है. दिन में ही तेजस्वी यादव सपना देख रहे हैं. ये सपना पूरा होने वाला नहीं है. सरकार गिरेगी नहीं, सरकार दौड़ रही है. हसीन सपना देखना चाहिए. अपनी पार्टी को एकजुट रखने के लिए ऐसे बयान दिए जाते हैं.'- हरि भूषण ठाकुर, भाजपा विधायक

तेजस्वी यादव अपनी रणनीति को आकार देने में बार-बार मात खा जाते हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि महागठबंधन (Mahagathbandhan) की ओर से सदन में अनुभवी नेताओं के गैरमौजूदगी (Leaders In RJD Bihar) से एनडीए को बढ़त मिल जाती है.

बिहार की राजनीति ने लड़ाई युवा बनाम अनुभव की है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव युवा होने के चलते युवाओं के हिमायती होने का दंभ भरते हैं. बिहार में युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है. विधानसभा चुनाव के दौरान रोजगार के मुद्दे पर तेजस्वी जनता के बीच गए थे. तेजस्वी यादव को जनता का समर्थन भी मिला लेकिन वह सरकार नहीं बना सके.

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बहुमत के करीब पहुंची और नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पक्ष में 127 विधायकों के वोट पड़े जबकि बहुमत का आंकड़ा 122 का है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बहुमत से 5 अधिक है.

बात अगर विपक्ष की करें तो विपक्षी खेमे में 115 विधायक हैं. अगर मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी, तेजस्वी के साथ आ जाते हैं तभी महागठबंधन का आंकड़ा सरकार बनाने के करीब आ सकता है. फिलहाल वैसी कोई स्थिति दिखाई नहीं देती. लेकिन तेजस्वी यादव को जदयू में बगावत की संभावना जरूर दिख रही है.

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव लगातार यह दावे कर रहे हैं कि 2 से 3 महीने में नीतीश सरकार गिर जाएगी और महागठबंधन की सरकार बनेगी. बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में तेजस्वी यादव ने अपनी शक्ति आजमाने के लिए बिहार इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय बिल 2021 पर वोटिंग की मांग कर दी लेकिन वहां भी एनडीए से मात खा गए.

विधानसभा में जब अभियंत्रण विश्वविद्यालय के चांसलर को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ तब विपक्ष की ओर से वोटिंग की मांग की गई. बिहार विधानसभा में एनडीए के पक्ष में जहां 110 वोट आए वही महागठबंधन के पक्ष में 89 वोट आए. तेजस्वी यादव अपने खाते के 115 वोट भी हासिल नहीं कर सके.

तेजस्वी यादव को एक बार अखबार और टेलीविजन ने मुख्यमंत्री बना दिया था और तब से उन्हें लगता है कि मुख्यमंत्री बन जाएंगे लेकिन उनका सपना पूरा होने वाला नहीं है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार 5 साल चलेगी.- श्रवण कुमार, मंत्री, बिहार सरकार

अगर तमाम विपक्षी वोट एक साथ होते तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती थी. दरअसल तेजस्वी यादव की टीम में अनुभवी नेताओं की कमी है. सदन के अंदर अब्दुल बारी सिद्दकी सरीखे नेता होते तो रणनीतिक तौर पर तेजस्वी सदन के अंदर मजबूत हो सकते थे.

तेजस्वी यादव के मन में कसक जरूर है कि वह मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए. हर बार वह सरकार के अस्तित्व पर सवाल तो खड़े करते हैं लेकिन जब रणनीति बनाने की बारी आती है तब वह फेल हो जाते हैं. अगर लालू यादव सक्रिय राजनीति में होते तो राजनीति करवट ले सकती थी लेकिन तेजस्वी यादव में अनुभव की कमी साफ तौर पर झलक रही है और वह घटक दलों को एकजुट नहीं रख पा रहे हैं.- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार

दूसरी तरफ अगर हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बात करें तो वहां अनुभवी नेताओं की फौज खड़ी है. नीतीश कुमार के अलावा विजय चौधरी, विजेंद्र यादव, श्रवण कुमार, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए तारणहार की भूमिका में होते हैं.

यह भी पढ़ें- जातीय जनगणना पर CM नीतीश ने स्वीकार किया तेजस्वी का प्रस्ताव, कहा- मिलने के लिए PM मोदी से मांगेंगे वक्त

यह भी पढ़ें- '...तो तेजस्वी यादव सिर्फ बोलते रहे, नीतीश कुमार ने 'खेला' कर दिया'

यह भी पढ़ें- RJD नेताओं पर भड़के मांझी, बोले- नीतीश को बदनाम मत कीजिए

पटना: बहुत ही कम समय में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने अपनी अलग और राजनीति के धुरंधर के रूप में पहचान बना ली है. उनके बोलने के लहजे से लोग बरबस ही उनकी ओर आकृष्ट होते हैं. लेकिन सवाल ये कि राजनीति में मजबूत पकड़ और वाकपटुता के बावजूद नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) तेजस्वी यादव को अपनी रणनीति को मूर्त रूप देने में कामयाबी आखिर क्यों नहीं मिल रही है.

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पश्चिम बंगाल के चुनाव के वक्त से बिहार की राजनीति में हलचलें तेज हो गई थी. वहीं कोरोना काल में बिहार से लंबे समय से दूरी बनाए रखने के बाद जब तेजस्वी दिल्ली से पटना लौटे थे, तब राघोपुर दौरे के दौरान उन्होंने डंके की चोट पर कह दिया था कि बिहार की सरकार 2 से 3 महीने में गिरने वाली है. जिसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) भी अलर्ट हो गए थे. सभी नाराज नेताओं की नाराजगी दूर करने का प्रयास किया जाने लगा.

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'सरकार तोड़-जोड़ और सौदेबाजी पर चल रही है. हमने दावा सरकार गिराने का नहीं किया था लेकिन सरकार में जिस तरीके से उथल पुथल है और असंतोष है उससे हमें प्रतीत होता है कि सरकार खुद ही गिर जाएगी. सरकार अपनी मौत मरने वाली है. हमलोग रचनात्मक विपक्ष की भूमिका में रहेंगे. जो कमी है उसको उजागर करेंगे.'- रामानुज प्रसाद, राजद प्रवक्ता

कयासों का बाजार गर्म हो गया. कहा जाने लगा कि तेजस्वी के संपर्क में जदयू के कई बड़े नेता हैं. हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi), वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahni), जेडीयू (JDU) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) सरीखे कई नेताओं से तेजस्वी और तेजप्रताप की मुलाकातों का दौर चल पड़ा था.

'यह सरकार जोड़-तोड़ की है जनहित से उसका कोई लेना-देना नहीं है. सरकार अपने कारणों से ही गिरेगी. इंतजार कीजिए सरकार बनने का जो पूरा कारण है वो बहुत जल्द जनता जान जाएगी. यहां सिर्फ कुर्सी बचाने के लिए सरकार बनी है. जनता के मुद्दे से इसे कुछ लेना देना नहीं है.'- अजीत कुशवाहा,भाकपा माले विधायक

इन मुलाकातों के बाद तेजस्वी यादव का आत्मविश्वास भी चरम पर था. सभी को यही लगने लगा कि अब बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में एक नई पारी की शुरुआत होने वाली है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. एनडीए के तमाम घटक दलों को एक डोर से बांध के रखने की कोशिश रंग लाई और मुलाकातों का दौर बातचीत पर ही सिमट कर रह गया.

'हवा हवाई दावा है. दिन में ही तेजस्वी यादव सपना देख रहे हैं. ये सपना पूरा होने वाला नहीं है. सरकार गिरेगी नहीं, सरकार दौड़ रही है. हसीन सपना देखना चाहिए. अपनी पार्टी को एकजुट रखने के लिए ऐसे बयान दिए जाते हैं.'- हरि भूषण ठाकुर, भाजपा विधायक

तेजस्वी यादव अपनी रणनीति को आकार देने में बार-बार मात खा जाते हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि महागठबंधन (Mahagathbandhan) की ओर से सदन में अनुभवी नेताओं के गैरमौजूदगी (Leaders In RJD Bihar) से एनडीए को बढ़त मिल जाती है.

बिहार की राजनीति ने लड़ाई युवा बनाम अनुभव की है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव युवा होने के चलते युवाओं के हिमायती होने का दंभ भरते हैं. बिहार में युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है. विधानसभा चुनाव के दौरान रोजगार के मुद्दे पर तेजस्वी जनता के बीच गए थे. तेजस्वी यादव को जनता का समर्थन भी मिला लेकिन वह सरकार नहीं बना सके.

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बहुमत के करीब पहुंची और नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पक्ष में 127 विधायकों के वोट पड़े जबकि बहुमत का आंकड़ा 122 का है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बहुमत से 5 अधिक है.

बात अगर विपक्ष की करें तो विपक्षी खेमे में 115 विधायक हैं. अगर मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी, तेजस्वी के साथ आ जाते हैं तभी महागठबंधन का आंकड़ा सरकार बनाने के करीब आ सकता है. फिलहाल वैसी कोई स्थिति दिखाई नहीं देती. लेकिन तेजस्वी यादव को जदयू में बगावत की संभावना जरूर दिख रही है.

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव लगातार यह दावे कर रहे हैं कि 2 से 3 महीने में नीतीश सरकार गिर जाएगी और महागठबंधन की सरकार बनेगी. बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में तेजस्वी यादव ने अपनी शक्ति आजमाने के लिए बिहार इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय बिल 2021 पर वोटिंग की मांग कर दी लेकिन वहां भी एनडीए से मात खा गए.

विधानसभा में जब अभियंत्रण विश्वविद्यालय के चांसलर को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ तब विपक्ष की ओर से वोटिंग की मांग की गई. बिहार विधानसभा में एनडीए के पक्ष में जहां 110 वोट आए वही महागठबंधन के पक्ष में 89 वोट आए. तेजस्वी यादव अपने खाते के 115 वोट भी हासिल नहीं कर सके.

तेजस्वी यादव को एक बार अखबार और टेलीविजन ने मुख्यमंत्री बना दिया था और तब से उन्हें लगता है कि मुख्यमंत्री बन जाएंगे लेकिन उनका सपना पूरा होने वाला नहीं है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार 5 साल चलेगी.- श्रवण कुमार, मंत्री, बिहार सरकार

अगर तमाम विपक्षी वोट एक साथ होते तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती थी. दरअसल तेजस्वी यादव की टीम में अनुभवी नेताओं की कमी है. सदन के अंदर अब्दुल बारी सिद्दकी सरीखे नेता होते तो रणनीतिक तौर पर तेजस्वी सदन के अंदर मजबूत हो सकते थे.

तेजस्वी यादव के मन में कसक जरूर है कि वह मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए. हर बार वह सरकार के अस्तित्व पर सवाल तो खड़े करते हैं लेकिन जब रणनीति बनाने की बारी आती है तब वह फेल हो जाते हैं. अगर लालू यादव सक्रिय राजनीति में होते तो राजनीति करवट ले सकती थी लेकिन तेजस्वी यादव में अनुभव की कमी साफ तौर पर झलक रही है और वह घटक दलों को एकजुट नहीं रख पा रहे हैं.- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार

दूसरी तरफ अगर हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बात करें तो वहां अनुभवी नेताओं की फौज खड़ी है. नीतीश कुमार के अलावा विजय चौधरी, विजेंद्र यादव, श्रवण कुमार, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए तारणहार की भूमिका में होते हैं.

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