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राजनीतिक वंशावली के 'कमल'व्यूह में फंसे 'अर्जुन'... फिर RJD में बचा क्या ?

बिहार में लालू यादव के छोटे बोटे बात बड़ी-बड़ी करते हैं, बड़ों के सम्मान का सिद्धांत भी समझते हैं, लेकिन जब बात बड़े भाई तेजप्रताप की होती है तो उनके हर मुद्दे पर चुप्पी साथ लेते हैं. सवाल ये है कि कहीं विरासत की सियासत में तेजप्रताप का अर्जुन 'कमलव्यूह' में उलझ तो नहीं गए हैं. इस द्वंद में आखिर नुकसान किसका हुआ है. पारिवारिक सियासत ने अब तक तेजप्रताप को दिया क्या? पढ़ें पूरी खबर-

पटना
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Published : Oct 7, 2021, 11:28 PM IST

पटना: बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल के लिए किस सिद्धांत की राजनीति को रखा था, शायद उन्हें भी इस बात का इल्म नहीं रहा होगा कि एक दौर ऐसा आएगा जब इस राजनीति के लिए उनके ही परिवार में एक सियासत का दो मापदंड खड़ा करना पड़ेगा जो आज की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल को देखना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- मांझी-कुशवाहा और सहनी के बाद कांग्रेस ने भी छोड़ा साथ, क्या महागठबंधन को संभाल नहीं पा रहे तेजस्वी?

लालू यादव ने बिहार में कमलव्यूह और उसको तोड़ने के लिए अपनी राजनैतिक वंशावली से जिन लोगों को मैदान में उतारा आज वह दोनों राजनैतिक चक्रव्यूह के कुचक्र में फंस गए हैं. अब तैयारी सियासत की हो रही है कि आखिर पूरे मामले पर तेज प्रताप के अर्जुन चुप क्यों हैं. वजह क्या है और लालू यादव के परिवार वाली सियासत बिहार में क्या-क्या रही है, क्योंकि तेज प्रताप ने कांग्रेस के दफ्तर जाकर उनकी जमीन पर बैठकर सियासत की नई कहानी लिख दी.

लालू के पारिवारिक राजनीति की पटकथा 2015 के विधानसभा चुनाव से ही तैयार हुई. नीतीश कुमार साथ है, तो लालू यादव ने तय कर लिया कि इससे बेहतर वक्त नहीं होगा, अपने दोनों बेटों को राजनीति में उतार दिया जाए. लालू यादव उनके सबसे पसंदीदा क्षेत्र राघोपुर दियारा पहुंचे थे और 2015 में विधानसभा चुनाव के एलान के 1 दिन बाद गांधी सेतु के पाया संख्या 103 के नीचे पहली रैली आयोजित हुई.

रैली में लालू यादव ने मंच से अपने दोनों बेटों का हाथ पकड़कर यह कहा था कि हमारे राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर अब आप के हवाले तेजस्वी और तेजप्रताप को कर रहा हूं अब यह आपकी जिम्मेदारी है और इन्हें आपको उसी तौर पर देखना है जिस तरीके से गरीब के बेटे लालू यादव को आपने सम्मान दिया और यहां तक पहुंचाया लेकिन उस फोटो को देखा जाए तो उस फोटो में तेजस्वी यादव लालू यादव के दाहिने तरफ खड़े थे और तेज प्रताप बाईं तरफ और यहीं से एक राजनीति बिहार में पनपना शुरू हुई थी और आज जहां जाकर पहुंची है, उसमें लालू यादव की उस राजनीतिक तैयारी पर तमाम सवाल उठ रहे हैं.

लालू यादव ने सियासत दिखा तो दी, लेकिन परिवार को वह दिशा नहीं दे पाए जो अब सियासत में दिशा पा रही है. यह राजद के लिए भी चिंता का विषय है और लालू के लिए तो किसी सदमे से कम नहीं है. यह सवाल इसलिए इतना बड़ा हो गया कि तेज प्रताप यादव ने कह दिया था कि तेजस्वी उनके अर्जुन हैं और उसके लिए उस सब कुछ करेंगे, लेकिन अब जो कुछ हो रहा है उसमें अर्जुन चुप क्यों हैं आखिर पीछे की कौन सी राजनीति तेजस्वी यादव करना चाह रहे हैं, यह चर्चा का विषय बन गया है.

ये भी पढ़ें- ..ऐसे में नामुमकिन है तेजस्वी के लिए मुख्यमंत्री बनना!

तेज प्रताप यादव अपने छवि और स्वभाव को लेकर थोड़ा अलग जाने जाते हैं. थोड़ा उग्र स्वभाव है यह सभी लोग मानते हैं, लेकिन भाव और बात में कोई अंतर नहीं रखते हैं. यदि सब लोग मानते हैं लेकिन सियासत का एक चेहरा दिखाने का होता है दूसरा बताने का और शायद इस चेहरे को दिखा पाने में तेजस्वी यादव राजद में भी फेल रहे और अपने माता-पिता के बीच भी तेज प्रताप यादव कांग्रेस के कार्यालय गए जो अपने आप में बिहार में बदलती राजनीति की ऐसी कहानी लिख गया है जो लालू यादव की नींद उड़ा दिया होगा.

इसके पीछे अगर कोई खड़ा है तो यह कहा जा सकता है कि तेजस्वी यादव की वह राजनीति जो या तो विवादों में पड़ गई है या यह चाह रही है कि सियासी भी थे जितना ज्यादा खड़ा हो जाए कि राष्ट्रीय जनता दल तेजस्वी यादव की झोली में आ जाए क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो तेज प्रताप को कांग्रेस की झोली में तेजस्वी किसी कीमत पर जाने ही नहीं देते

तेज प्रताप यादव ने उस मुद्दे पर खुद को खड़ा पाया और तेजस्वी सवालों में खड़े हैं, जब जगदानंद सिंह को लेकर तेज प्रताप ने अपनी नाराजगी जताई थी तो दिल्ली जाते समय तेजस्वी यादव ने कहा कि हमारे संस्कार हैं कि बड़ों का सम्मान करना चाहिए, लेकिन सवाल तो तेजस्वी यादव पर उठ रहा है कि जब तेज प्रताप उनसे बड़े थे तो फिर उनके सम्मान के लिए तेजस्वी ने क्या किया रख सजाकर अर्जुन के लिए बड़ा भाई कृष्ण बनने को तैयार हो गया. अपने लिए जो जगह तय की वह सारथी की थी और अर्जुन को इतना बड़ा धनुर्धर बना दिया कि बिहार के पूरे कमलव्यूह को तेजस्वी अकेले भेद दे, इसके लिए तेज प्रताप ने तेजस्वी को हर रफ्तार देने की भी बात कही, लेकिन अब तेज प्रताप ने रफ्तार पकड़ी है, उसके लिए यशस्वी राजनीति की जरूरत तेजस्वी को करनी थी, जहां तेजस्वी किनारा कर लिए.

शिवानंद तिवारी के एक बयान में यह कह दिया कि तेज प्रताप राष्ट्रीय जनता दल से अलग हो गए हैं, लेकिन यह भी सही है कि तेजस्वी को इस पर बयान दे देना चाहिए कि तेज प्रताप उनके भाई हैं और राष्ट्रीय जनता दल उनके पिता के खून पसीने से खड़ी की गई और संपत्ति जिसमें दोनों भाइयों की जिंदगी है, उससे अलग होना तो तेज प्रताप का संभव ही नहीं है, लेकिन ऐसा कुछ दिखा नहीं और जो कुछ हुआ उसने सियासत में नई संभावनाओं को जगह दे दिया.

ये भी पढ़ें- तेजप्रताप IN या OUT! तेजस्वी से लेकर तमाम नेता जवाब देने से क्यों काट रहे कन्नी?

अब सवाल यह उठ रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल और लालू परिवार में तेजस्वी यादव जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं और तेजप्रताप जिस तरीके से हाशिए पर जा रहे हैं. उसमें उन्हें मिला क्या. चाहे राजनीतिक जीवन की बात हो, सियासी कद की बात हो या पारिवारिक जीवन की बात हो सब कुछ परिवार ही करता रहा और तेजप्रताप सिर्फ परिवार के नाम पर खुद को जोड़ते चले गए, आगे खुद को नहीं रखकर अर्जुन को सब कुछ देने की बात कह दिए. लेकिन, जब उन्हें देने की बात आई तब उनके हाथ में सिर्फ यही बचा अपने पार्टी कार्यालय के दरवाजे पर ताला लगा दिया गया, तो कांग्रेस के दफ्तर में जाकर तेजप्रताप बैठ गए.

पारिवारिक समझौते की बात की जाए तो नवंबर 2015 में जब नीतीश के साथ राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं ने शपथ ली तो तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया. हालांकि, तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने. लेकिन, तेजप्रताप का कद तेजस्वी से छोटा ही रहा. 2017 में जब समझौता टूट गया. नीतीश कुमार ने राह बदल ली, तो तेजस्वी यादव को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दे दिया गया. तेज प्रताप विधायक रहे लेकिन पार्टी में ऐसा मान के चला जा रहा था कि उनकी चलेगी.

लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव में अपनी सीट बदलने को लेकर जिस तरीके की राजनीति और जिस तरीके का मनमुटाव पार्टी के भीतर दिखा तभी से यह लगने लगा था. कि तेज प्रताप को अब पार्टी में तरजीह देने से तेजस्वी गुरेज करने लगे हैं, परिवार में तेज प्रताप की पत्नी को लेकर जो सवाल उठे उसमें भी बात यही कही गई कि तेजप्रताप की मां और बहन से उनकी पत्नी की पट नहीं रही थी, इसलिए स्थितियां इतनी खराब हुई कि तेज प्रताप और उनकी पत्नी अब अलग-अलग रह रहे हैं.

हालांकि, यह निहायत पारिवारिक बात है लेकिन यह पब्लिक डोमेन में बता चुकी थी, इसलिए इस बात को कहा भी जा रहा है और विपक्ष के लोग इसका मजाक भी उड़ाते हैं कि राबड़ी देवी एक बहू को नहीं संभाल पाई. बहरहाल या तो परिवार के भीतर की लड़ाई की बात है लेकिन वह रोड तक आई और पुलिस चौकी कोर्ट के चक्कर में भी है. लेकिन यहां भी तेज प्रताप परिवार के साथ ही खड़े दिखे, लेकिन जिस तरीके के विरोध की बात जगदानंद सिंह से शुरू हुई और जिस अंजाम तक पहुंच रही है, अभी भी उसको रोकने में तेजस्वी और लालू राबड़ी सब के सब फेल हैं और यही वजह है कि अब राजज का कुनबा सीधे-सीधे बिखरता दिख रहा है.

यह भी सत्य है कि राजनीति के लिए किसी सिद्धांत का होना जरूरी है और सिद्धांत वाली राजनीति ही दूर तक जाती है, लेकिन परिवार की राजनीति को पार्टी का आधार बना दिया जाए और परिवार का आधार ही राजनीति का सिद्धांत हो जाए तो ऐसी स्थिति में इस तरीके के विभेद के आने के बाद चर्चा शुरू होना लाजमी है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और कभी लालू के बहुत करीबी रहे ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि लालू यादव को तेजस्वी में नेतृत्व की क्षमता वाली छवि तो दिखती है, लेकिन परिपक्वता की कमी नहीं पकड़ पाए.

प्रदेश अध्यक्ष को जिस काम को करना है वह काम पर तेजस्वी यादव करते हैं, राष्ट्रीय अध्यक्ष को जो काम करना है वह कार्य भी तेजस्वी यादव करते हैं, नेता प्रतिपक्ष का जो मूल कार्य है वह तेजस्वी करते हैं, यह सिर्फ कहने की बात है लेकिन इसके बीच में जो सबसे बड़ा विभेद है वह पार्टी पर पूर्ण कब्जे की और अब यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि तेजस्वी यादव के मन में राष्ट्रीय जनता दल पर कब्जे की राजनीति हावी हो गई है और यही वजह है कि तेजस्वी यादव अब मनमानी करने लगे हैं.

ये भी पढ़ें- बिहार में JAP की जमीन के सहारे.. कांग्रेस ने लालू के 'तेज' को किया किनारे

लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि यह सब कुछ जानने के बाद भी राबड़ी और लालू चुप क्यों हैं. सैद्धांतिक राजनीति में अर्जुन बने तेजस्वी यादव भी तेज प्रताप के मामले पर किनारा कर ले रहे हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि अगर जगह कुछ अलग मिली तो शायद सियासत कहीं और चली जाए.

तेज प्रताप ने विधानसभा की 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए अपनी राजनीतिक मंशा साफ कर दी है. कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करेंगे यह कह भी कह दिया. कांग्रेस के दफ्तर घूम भी लिए तेज प्रताप ने अपनी नई सियासत के लिए रफ्तार पकड़ ली है. अब तेजस्वी को अपनी सरकार के लिए क्या करना है यह नए सिरे से सोचना है क्योंकि कांग्रेस भी अब राजद से दामन छुड़ा ही रही है और तेजप्रताप कांग्रेस के दामन से जुड़ रहे हैं. अब तो देखना यही होगा कि अर्जुन कब चुप्पी तोड़ते हैं और अपने कृष्ण के पास जाकर नए राजनीति का मंत्र सीखते हैं या सीखा पाते हैं, क्योंकि यह तो कलयुग वाली सियासत के कृष्ण और अर्जुन की कहानी है.

पटना: बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल के लिए किस सिद्धांत की राजनीति को रखा था, शायद उन्हें भी इस बात का इल्म नहीं रहा होगा कि एक दौर ऐसा आएगा जब इस राजनीति के लिए उनके ही परिवार में एक सियासत का दो मापदंड खड़ा करना पड़ेगा जो आज की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल को देखना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- मांझी-कुशवाहा और सहनी के बाद कांग्रेस ने भी छोड़ा साथ, क्या महागठबंधन को संभाल नहीं पा रहे तेजस्वी?

लालू यादव ने बिहार में कमलव्यूह और उसको तोड़ने के लिए अपनी राजनैतिक वंशावली से जिन लोगों को मैदान में उतारा आज वह दोनों राजनैतिक चक्रव्यूह के कुचक्र में फंस गए हैं. अब तैयारी सियासत की हो रही है कि आखिर पूरे मामले पर तेज प्रताप के अर्जुन चुप क्यों हैं. वजह क्या है और लालू यादव के परिवार वाली सियासत बिहार में क्या-क्या रही है, क्योंकि तेज प्रताप ने कांग्रेस के दफ्तर जाकर उनकी जमीन पर बैठकर सियासत की नई कहानी लिख दी.

लालू के पारिवारिक राजनीति की पटकथा 2015 के विधानसभा चुनाव से ही तैयार हुई. नीतीश कुमार साथ है, तो लालू यादव ने तय कर लिया कि इससे बेहतर वक्त नहीं होगा, अपने दोनों बेटों को राजनीति में उतार दिया जाए. लालू यादव उनके सबसे पसंदीदा क्षेत्र राघोपुर दियारा पहुंचे थे और 2015 में विधानसभा चुनाव के एलान के 1 दिन बाद गांधी सेतु के पाया संख्या 103 के नीचे पहली रैली आयोजित हुई.

रैली में लालू यादव ने मंच से अपने दोनों बेटों का हाथ पकड़कर यह कहा था कि हमारे राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर अब आप के हवाले तेजस्वी और तेजप्रताप को कर रहा हूं अब यह आपकी जिम्मेदारी है और इन्हें आपको उसी तौर पर देखना है जिस तरीके से गरीब के बेटे लालू यादव को आपने सम्मान दिया और यहां तक पहुंचाया लेकिन उस फोटो को देखा जाए तो उस फोटो में तेजस्वी यादव लालू यादव के दाहिने तरफ खड़े थे और तेज प्रताप बाईं तरफ और यहीं से एक राजनीति बिहार में पनपना शुरू हुई थी और आज जहां जाकर पहुंची है, उसमें लालू यादव की उस राजनीतिक तैयारी पर तमाम सवाल उठ रहे हैं.

लालू यादव ने सियासत दिखा तो दी, लेकिन परिवार को वह दिशा नहीं दे पाए जो अब सियासत में दिशा पा रही है. यह राजद के लिए भी चिंता का विषय है और लालू के लिए तो किसी सदमे से कम नहीं है. यह सवाल इसलिए इतना बड़ा हो गया कि तेज प्रताप यादव ने कह दिया था कि तेजस्वी उनके अर्जुन हैं और उसके लिए उस सब कुछ करेंगे, लेकिन अब जो कुछ हो रहा है उसमें अर्जुन चुप क्यों हैं आखिर पीछे की कौन सी राजनीति तेजस्वी यादव करना चाह रहे हैं, यह चर्चा का विषय बन गया है.

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तेज प्रताप यादव अपने छवि और स्वभाव को लेकर थोड़ा अलग जाने जाते हैं. थोड़ा उग्र स्वभाव है यह सभी लोग मानते हैं, लेकिन भाव और बात में कोई अंतर नहीं रखते हैं. यदि सब लोग मानते हैं लेकिन सियासत का एक चेहरा दिखाने का होता है दूसरा बताने का और शायद इस चेहरे को दिखा पाने में तेजस्वी यादव राजद में भी फेल रहे और अपने माता-पिता के बीच भी तेज प्रताप यादव कांग्रेस के कार्यालय गए जो अपने आप में बिहार में बदलती राजनीति की ऐसी कहानी लिख गया है जो लालू यादव की नींद उड़ा दिया होगा.

इसके पीछे अगर कोई खड़ा है तो यह कहा जा सकता है कि तेजस्वी यादव की वह राजनीति जो या तो विवादों में पड़ गई है या यह चाह रही है कि सियासी भी थे जितना ज्यादा खड़ा हो जाए कि राष्ट्रीय जनता दल तेजस्वी यादव की झोली में आ जाए क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो तेज प्रताप को कांग्रेस की झोली में तेजस्वी किसी कीमत पर जाने ही नहीं देते

तेज प्रताप यादव ने उस मुद्दे पर खुद को खड़ा पाया और तेजस्वी सवालों में खड़े हैं, जब जगदानंद सिंह को लेकर तेज प्रताप ने अपनी नाराजगी जताई थी तो दिल्ली जाते समय तेजस्वी यादव ने कहा कि हमारे संस्कार हैं कि बड़ों का सम्मान करना चाहिए, लेकिन सवाल तो तेजस्वी यादव पर उठ रहा है कि जब तेज प्रताप उनसे बड़े थे तो फिर उनके सम्मान के लिए तेजस्वी ने क्या किया रख सजाकर अर्जुन के लिए बड़ा भाई कृष्ण बनने को तैयार हो गया. अपने लिए जो जगह तय की वह सारथी की थी और अर्जुन को इतना बड़ा धनुर्धर बना दिया कि बिहार के पूरे कमलव्यूह को तेजस्वी अकेले भेद दे, इसके लिए तेज प्रताप ने तेजस्वी को हर रफ्तार देने की भी बात कही, लेकिन अब तेज प्रताप ने रफ्तार पकड़ी है, उसके लिए यशस्वी राजनीति की जरूरत तेजस्वी को करनी थी, जहां तेजस्वी किनारा कर लिए.

शिवानंद तिवारी के एक बयान में यह कह दिया कि तेज प्रताप राष्ट्रीय जनता दल से अलग हो गए हैं, लेकिन यह भी सही है कि तेजस्वी को इस पर बयान दे देना चाहिए कि तेज प्रताप उनके भाई हैं और राष्ट्रीय जनता दल उनके पिता के खून पसीने से खड़ी की गई और संपत्ति जिसमें दोनों भाइयों की जिंदगी है, उससे अलग होना तो तेज प्रताप का संभव ही नहीं है, लेकिन ऐसा कुछ दिखा नहीं और जो कुछ हुआ उसने सियासत में नई संभावनाओं को जगह दे दिया.

ये भी पढ़ें- तेजप्रताप IN या OUT! तेजस्वी से लेकर तमाम नेता जवाब देने से क्यों काट रहे कन्नी?

अब सवाल यह उठ रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल और लालू परिवार में तेजस्वी यादव जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं और तेजप्रताप जिस तरीके से हाशिए पर जा रहे हैं. उसमें उन्हें मिला क्या. चाहे राजनीतिक जीवन की बात हो, सियासी कद की बात हो या पारिवारिक जीवन की बात हो सब कुछ परिवार ही करता रहा और तेजप्रताप सिर्फ परिवार के नाम पर खुद को जोड़ते चले गए, आगे खुद को नहीं रखकर अर्जुन को सब कुछ देने की बात कह दिए. लेकिन, जब उन्हें देने की बात आई तब उनके हाथ में सिर्फ यही बचा अपने पार्टी कार्यालय के दरवाजे पर ताला लगा दिया गया, तो कांग्रेस के दफ्तर में जाकर तेजप्रताप बैठ गए.

पारिवारिक समझौते की बात की जाए तो नवंबर 2015 में जब नीतीश के साथ राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं ने शपथ ली तो तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया. हालांकि, तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने. लेकिन, तेजप्रताप का कद तेजस्वी से छोटा ही रहा. 2017 में जब समझौता टूट गया. नीतीश कुमार ने राह बदल ली, तो तेजस्वी यादव को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दे दिया गया. तेज प्रताप विधायक रहे लेकिन पार्टी में ऐसा मान के चला जा रहा था कि उनकी चलेगी.

लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव में अपनी सीट बदलने को लेकर जिस तरीके की राजनीति और जिस तरीके का मनमुटाव पार्टी के भीतर दिखा तभी से यह लगने लगा था. कि तेज प्रताप को अब पार्टी में तरजीह देने से तेजस्वी गुरेज करने लगे हैं, परिवार में तेज प्रताप की पत्नी को लेकर जो सवाल उठे उसमें भी बात यही कही गई कि तेजप्रताप की मां और बहन से उनकी पत्नी की पट नहीं रही थी, इसलिए स्थितियां इतनी खराब हुई कि तेज प्रताप और उनकी पत्नी अब अलग-अलग रह रहे हैं.

हालांकि, यह निहायत पारिवारिक बात है लेकिन यह पब्लिक डोमेन में बता चुकी थी, इसलिए इस बात को कहा भी जा रहा है और विपक्ष के लोग इसका मजाक भी उड़ाते हैं कि राबड़ी देवी एक बहू को नहीं संभाल पाई. बहरहाल या तो परिवार के भीतर की लड़ाई की बात है लेकिन वह रोड तक आई और पुलिस चौकी कोर्ट के चक्कर में भी है. लेकिन यहां भी तेज प्रताप परिवार के साथ ही खड़े दिखे, लेकिन जिस तरीके के विरोध की बात जगदानंद सिंह से शुरू हुई और जिस अंजाम तक पहुंच रही है, अभी भी उसको रोकने में तेजस्वी और लालू राबड़ी सब के सब फेल हैं और यही वजह है कि अब राजज का कुनबा सीधे-सीधे बिखरता दिख रहा है.

यह भी सत्य है कि राजनीति के लिए किसी सिद्धांत का होना जरूरी है और सिद्धांत वाली राजनीति ही दूर तक जाती है, लेकिन परिवार की राजनीति को पार्टी का आधार बना दिया जाए और परिवार का आधार ही राजनीति का सिद्धांत हो जाए तो ऐसी स्थिति में इस तरीके के विभेद के आने के बाद चर्चा शुरू होना लाजमी है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और कभी लालू के बहुत करीबी रहे ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि लालू यादव को तेजस्वी में नेतृत्व की क्षमता वाली छवि तो दिखती है, लेकिन परिपक्वता की कमी नहीं पकड़ पाए.

प्रदेश अध्यक्ष को जिस काम को करना है वह काम पर तेजस्वी यादव करते हैं, राष्ट्रीय अध्यक्ष को जो काम करना है वह कार्य भी तेजस्वी यादव करते हैं, नेता प्रतिपक्ष का जो मूल कार्य है वह तेजस्वी करते हैं, यह सिर्फ कहने की बात है लेकिन इसके बीच में जो सबसे बड़ा विभेद है वह पार्टी पर पूर्ण कब्जे की और अब यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि तेजस्वी यादव के मन में राष्ट्रीय जनता दल पर कब्जे की राजनीति हावी हो गई है और यही वजह है कि तेजस्वी यादव अब मनमानी करने लगे हैं.

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लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि यह सब कुछ जानने के बाद भी राबड़ी और लालू चुप क्यों हैं. सैद्धांतिक राजनीति में अर्जुन बने तेजस्वी यादव भी तेज प्रताप के मामले पर किनारा कर ले रहे हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि अगर जगह कुछ अलग मिली तो शायद सियासत कहीं और चली जाए.

तेज प्रताप ने विधानसभा की 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए अपनी राजनीतिक मंशा साफ कर दी है. कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करेंगे यह कह भी कह दिया. कांग्रेस के दफ्तर घूम भी लिए तेज प्रताप ने अपनी नई सियासत के लिए रफ्तार पकड़ ली है. अब तेजस्वी को अपनी सरकार के लिए क्या करना है यह नए सिरे से सोचना है क्योंकि कांग्रेस भी अब राजद से दामन छुड़ा ही रही है और तेजप्रताप कांग्रेस के दामन से जुड़ रहे हैं. अब तो देखना यही होगा कि अर्जुन कब चुप्पी तोड़ते हैं और अपने कृष्ण के पास जाकर नए राजनीति का मंत्र सीखते हैं या सीखा पाते हैं, क्योंकि यह तो कलयुग वाली सियासत के कृष्ण और अर्जुन की कहानी है.

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