पटना: बिहार में वर्ष 2018 के आखिरी महीने में ही सरकार ने डेढ़ लाख शिक्षकों के नियोजन की घोषणा की थी. नियोजन की प्रक्रिया पिछले साल जुलाई महीने में शुरू हुई. प्राथमिक शिक्षकों के करीब 90 हजार और माध्यमिक, उच्च माध्यमिक शिक्षकों के करीब 30 हजार पदों पर नियोजन होना है. लेकिन पिछले 1 साल में भी यह नियोजन पूरा नहीं हो पाया है.
इस बाबत सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. इसको लेकर पटना से ईटीवी भारत संवाददाता अमित वर्मा ने संघ के अध्यक्ष और पार्टी प्रवक्ताओं से खास बातचीत की. दरअसल, 2018 को बड़े तामझाम के साथ बिहार के शिक्षा विभाग में करीब 1 लाख 25 हजार शिक्षकों के नियोजन का ऐलान किया था. साथ ही यह भी कहा गया था कि 6 महीने के अंदर नियोजन का काम पूरा हो जाएगा. लेकिन 6 महीने तो क्या, 1 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. अब तक छठे चरण का नियोजन अधर में है.
नियोजन का बढ़ता शेड्यूल
कोरोना वायरस संक्रमण के बाद लागू लॉकडाउन की वजह से नियोजन का शेड्यूल बढ़ते-बढ़ते अब अगस्त तक चला गया है. कभी हाईकोर्ट का आदेश, कभी सरकार का आदेश और कभी अन्य परिस्थितियां नियोजन के शेड्यूल को प्रभावित करती रही हैं. शिक्षकों का कहना है कि सारा दोष सरकार का है. सरकार की मंशा साफ नहीं है. सरकार सिर्फ झुनझुना दिखाकर वोट की राजनीति कर रही है. उन्हें नियोजन करना ही नहीं है, इसे सिर्फ इसी तरह लंबा खींचना है.
कब खत्म होगा शिक्षकों का इंतजार?
विपक्ष के नेता भी सरकार पर सीधा आरोप मढ़ रहे हैं. राजद के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि शिक्षकों के डेढ़ लाख पद स्कूल में खाली पड़े हैं. लंबे समय से शिक्षकों की बहाली का इंतजार हैं.
शिक्षा विभाग जिम्मेदार-बीजेपी
सिर्फ शिक्षक और विपक्ष ही नहीं, बल्कि सरकार में शामिल बीजेपी के नेता भी शिक्षा विभाग को जिम्मेदार मान रहे हैं. बीजेपी नेता नवल किशोर यादव ने कहा कि डेढ़ साल क्या, अगर दबाव ना पड़े तो यह डेढ़ सौ साल तक भी नियोजन का काम पूरा नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि बिहार के शिक्षा विभाग ने कभी स्कूलों को गंभीरता से नहीं लिया. यहां शिक्षकों और शिक्षा की बजाय बाकी सारा काम पर सरकार का ध्यान है.
इसलिए प्रभावित हुए नियोजन
- 10 साल से एसटेट परीक्षा का आयोजन नहीं होना
- 2011 में एस टीईटी पास करने वाले शिक्षकों के सर्टिफिकेट को मान्यता देने में देरी करना
- एनआईओएस डीएलएड पास करने वाले शिक्षकों की डिग्री को अमान्य करार देना
- प्राथमिक और मध्य शिक्षकों के नियोजन में डीएलएड और b.ed को लेकर सरकार की स्थिति स्पष्ट नहीं
- ऑनलाइन और केंद्रीकृत व्यवस्था के तहत नियोजन की बजाए अलग-अलग पंचायत में अभ्यर्थियों को आवेदन करने के लिए मजबूर करना
प्रमुख तथ्य
नियोजन के तहत जब भी शिक्षकों की बहाली हुई है. हर बार इसमें बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ है. फर्जी शिक्षकों के नियोजन की जांच अब तक निगरानी के तहत चल रही है, जो पूरी नहीं हो पाई है. इसके बाद यह सवाल उठे थे कि अब सरकार को ऑनलाइन आवेदन लेकर केंद्रीकृत व्यवस्था के तहत नियोजन का काम करना चाहिए. लेकिन फिर भी सरकार ने पुरानी व्यवस्था के तहत नियोजन का फैसला किया, जो कहीं से भी उचित नहीं था.
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'सूत्रों के मुताबिक, सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के कारण और चुनाव सामने होने के कारण सरकार ने पुरानी व्यवस्था पर ही नियोजन का काम शुरू किया. इसमें कई साल लगना तय है. इस व्यवस्था में जब पंचायत स्तर पर नियोजन होता है, तो उसमें जमकर फर्जीवाड़ा होता है. वहीं, नियोजन में कई साल लग जाते हैं. विभाग के सूत्रों के मुताबिक सरकार को यह मालूम है कि अगर कितने शिक्षकों का नियोजन हुआ, तो हर साल उनके वेतन के मद में कई हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे और यही वजह है कि सरकार इसे लगातार टाल रही है. सरकार चाहती है कि यह जितना लंबा खींचे, उतना ही अच्छा हो.'