पटना: पूरे विश्व के लिए पटना बिहार का वह दर्पण है, जिससे पूरे बिहार की तस्वीर दिखती है. लेकिन अगर बात विकास को लेकर की जाए तो प्रदेश का राजधानी में अभी भी बहुत कुछ नहीं बदला है. शिक्षा की व्यवस्था पुराने किले की टूटी दीवार पर मुंह लटकाए बैठी हुई है. वहीं, स्वास्थ्य व्यवस्था भी अपनी बदहाली पर रो रही है. यहां शासन करने वाले से रोजगार की बात करना किसी देशद्रोह के नारे लगाने से कम नहीं है.
विकास का दावा सरकारी फाइलों में गुम
आजादी के बाद से बिहार की राजधानी ने कई पार्टियों की सरकार देखी. लेकिन पटना को बदलने का दावा सरकारी फाइलों में कहीं गुम हो गया. देश मेंं लॉक डाउन के बाद जिस तरह से हालात बने हैं. उसको देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब भी लॉकडाउन खुलेगा, पटना की हालत और खराब होगी. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पटना जो हर बिहारी के सपनों में उम्मीदों की तस्वीर है. वहां आकर हर बिहारी का सपना एक झटके में ही चकनाचूर हो जाता है.
'पटना के विकास के लिए सांकेतिक उपवास'
इसको लेकर समाजसेवी प्रो. सुबोध कुमार का कहना है कि पटना देश के टॉप 15 शहरों में अपना स्थान रखता है. राज्य सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम सिर्फ दावे हैं. यहां हकीकत में बेरोजगारी के बोझ तले दबे पटना में अब कोई भी अपने सपने को साकार करने के लिए नहीं आता है.
इसलिए पटना को एकबार फिर से गौरवशाली बनाने के लिए राजधानीवासी समेत पूरे बिहार के लोग सांकेतिक उपवास करके अपने शहर को नए तरीके से बनाने के लिए संकल्प लें. प्रो. सुबोध कुमार पटना के लोगों से अनुरोध किया कि वे 5 मई को अपने अपने घरों में रहकर पटना को सुंदर बनाने के लिए संकल्प लें. राजधानीवासी सांकेतिक उपवास से सरकार को यह बताने का भी काम करें कि पटना को एकबार फिर से सपनों का शहर बनाना होगा.