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SC ने पटना HC के फैसले को ठहराया सही, राजगीर आयुध कारखाना की जमीन मुआवजा पुनर्निर्धारण का आदेश किया था रद्द

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Published : Jan 16, 2022, 8:00 PM IST

राजगीर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री (Rajgir Ordnance Factory) के 25 सौ एकड़ जमीन अधिग्रहण केस में सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है. पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अपील को खारिज कर दिया.

SC ने पटना HC के फैसले को ठहराया सही
SC ने पटना HC के फैसले को ठहराया सही

पटना: सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) के उस फैसले को सही ठहराया, जिससे केंद्र व राज्य सरकार को तकरीबन तीन हज़ार करोड़ रुपए से अधिक के राजस्व की बचत हुई है. विगत 4 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट द्वारा 22 अप्रैल 2019 को सुनाए गए एक अहम फैसले के विरुद्ध दायर की गई अपील को योग्यता के आधार पर खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें- मेयर-डिप्टी मेयर के प्रत्यक्ष चुनाव के फैसले पर पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता को आपत्ति, बताया संवैधानिक भावनाओं के साथ खिलवाड़

गौरतलब है कि राजगीर में रक्षा मंत्रालय द्वारा आयुध कारखाना स्थापित (Ordnance Factory Set Up By Defense Ministry In Rajgir) करने के लिए लगभग 25 सौ एकड़ से अधिक जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार द्वारा नालंदा जिला में किया गया था. कई जमीन मालिकों ने जमीन के मुआवजे से असंतुष्ट होकर पटना हाईकोर्ट में अनेक रिट याचिकाएं दायर की थीं.

इस पर सिंगल बेंच ने सुनवाई के बाद जमीन मालिकों के पक्ष में फैसला देते हुए मुआवजे की रकम के पुनर्निर्धारण के लिए जिलाधिकारी को भेजा था. इसके बाद सारे मामले बिहार राज्य भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापन व स्थानांतरगमन ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित किये गए. जहाँ, वहां के पीठासीन पदाधिकारी ने लगभग चार गुना से भी ज्यादा मुआवजा व उस पर ब्याज लगाते हुए पुनर्निर्धारण किया.

जिस वजह से केंद्र व राज्य सरकार को लगभग तीन हजार करोड़ रुपये से भी अधिक राजस्व का नुकसान उठाना पड़ता. इस आदेश के बाद ट्रिब्यूनल द्वारा सरकारों से वसूली की कार्रवाई प्रारंभ की गई. इस दौरान केन्द्र सरकार के तत्कालीन एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस डी संजय ने केंद्र सरकार द्वारा सिंगल बेंच के पुराने फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट में ही दो जजों के समक्ष अपील दायर कराया. उन्होंने दलील पेश करते हुए यह बताया कि जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पुराने एक्ट के तहत सम्पन्न हो गई थी, इसलिए इसका नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजे का पुनर्निर्धारण नहीं किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- बिहार में अपराध की घटनाओं पर पटना हाईकोर्ट में हुई सुनवाई, सरकार को जवाब देने का निर्देश

सुनवाई के पश्चात हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ए पी शाही की खंडपीठ ने 22 अप्रैल 2019 के फैसले, जिसके द्वारा जमीन के मुआवजे के पुनर्निर्धारण का आदेश दिया गया था, को रद्द कर दिया. साथ ही ट्रिब्यूनल द्वारा बढ़ी हुई दर पर किये गए मुआवजे के पुनर्निर्धारण के आदेश को भी रद्द कर दिया.

इस फैसले के विरुद्ध भूमि मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की. इस मामले की सुनवाई जस्टिस ए एम खानविलकर व जस्टिस सी टी रवि कुमार की पीठ द्वारा की गई. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पटना हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए जमीन मालिकों की अपीलों को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लगभग आठ वर्षों से चल रहा यह विवाद समाप्त हो गया. इस प्रकार से अब केंद्र और राज्य सरकार जमीन मालिकों को लगभग तीन हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की राशि देने की आवश्यकता नहीं हैं.

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पटना: सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) के उस फैसले को सही ठहराया, जिससे केंद्र व राज्य सरकार को तकरीबन तीन हज़ार करोड़ रुपए से अधिक के राजस्व की बचत हुई है. विगत 4 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट द्वारा 22 अप्रैल 2019 को सुनाए गए एक अहम फैसले के विरुद्ध दायर की गई अपील को योग्यता के आधार पर खारिज कर दिया.

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गौरतलब है कि राजगीर में रक्षा मंत्रालय द्वारा आयुध कारखाना स्थापित (Ordnance Factory Set Up By Defense Ministry In Rajgir) करने के लिए लगभग 25 सौ एकड़ से अधिक जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार द्वारा नालंदा जिला में किया गया था. कई जमीन मालिकों ने जमीन के मुआवजे से असंतुष्ट होकर पटना हाईकोर्ट में अनेक रिट याचिकाएं दायर की थीं.

इस पर सिंगल बेंच ने सुनवाई के बाद जमीन मालिकों के पक्ष में फैसला देते हुए मुआवजे की रकम के पुनर्निर्धारण के लिए जिलाधिकारी को भेजा था. इसके बाद सारे मामले बिहार राज्य भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापन व स्थानांतरगमन ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित किये गए. जहाँ, वहां के पीठासीन पदाधिकारी ने लगभग चार गुना से भी ज्यादा मुआवजा व उस पर ब्याज लगाते हुए पुनर्निर्धारण किया.

जिस वजह से केंद्र व राज्य सरकार को लगभग तीन हजार करोड़ रुपये से भी अधिक राजस्व का नुकसान उठाना पड़ता. इस आदेश के बाद ट्रिब्यूनल द्वारा सरकारों से वसूली की कार्रवाई प्रारंभ की गई. इस दौरान केन्द्र सरकार के तत्कालीन एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस डी संजय ने केंद्र सरकार द्वारा सिंगल बेंच के पुराने फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट में ही दो जजों के समक्ष अपील दायर कराया. उन्होंने दलील पेश करते हुए यह बताया कि जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पुराने एक्ट के तहत सम्पन्न हो गई थी, इसलिए इसका नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजे का पुनर्निर्धारण नहीं किया जा सकता है.

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सुनवाई के पश्चात हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ए पी शाही की खंडपीठ ने 22 अप्रैल 2019 के फैसले, जिसके द्वारा जमीन के मुआवजे के पुनर्निर्धारण का आदेश दिया गया था, को रद्द कर दिया. साथ ही ट्रिब्यूनल द्वारा बढ़ी हुई दर पर किये गए मुआवजे के पुनर्निर्धारण के आदेश को भी रद्द कर दिया.

इस फैसले के विरुद्ध भूमि मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की. इस मामले की सुनवाई जस्टिस ए एम खानविलकर व जस्टिस सी टी रवि कुमार की पीठ द्वारा की गई. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पटना हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए जमीन मालिकों की अपीलों को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लगभग आठ वर्षों से चल रहा यह विवाद समाप्त हो गया. इस प्रकार से अब केंद्र और राज्य सरकार जमीन मालिकों को लगभग तीन हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की राशि देने की आवश्यकता नहीं हैं.

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