पटना: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को लेकर जगह-जगह महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम हो रहे हैं और इसी कड़ी में मंगलवार को पटना के गांधी मैदान स्थित मगध महिला कॉलेज (students of Magadh Mahila College took out march) के गेट के बाहर कॉलेज की सैकड़ों लड़कियों ने एनएसयूआई के बैनर तले लड़की हूं लड़ सकती हूं का पोस्टर लेकर कॉलेज गेट से कारगिल चौक तक पैदल मार्च निकाला. इस दौरान लड़कियों ने समाज में अपनी बराबरी (Demand For 50 Percent Reservation In Lok Sabha And Vidhan Sabha) की मांग उठाई.
छात्राओं ने निकाला मार्च: छात्राओं ने साफ कहा कि सरकारी स्तर पर प्रयासों से कुछ नहीं होगा. समाज में बदलाव लाना होगा. समाज में लोगों की मानसिकता में लड़कियों को लेकर बराबरी का भाव जागृत करना होगा. महिला सशक्तिकरण मार्च में शामिल एनएसयूआई की सदस्य और मगध महिला कॉलेज की छात्रा मानसी झा ने कहा कि आज के समय में लड़कियां किसी मामलों में लड़कों से कम नहीं है. इसी को लेकर मार्च निकाला गया है.
"समाज को दिखाया जा रहा है कि महिलाओं की भागीदारी किसी मामले में कम नहीं है. आज महिलाओं को समाज में लड़ने की आवश्यकता इसलिए पड़ रही है क्योंकि उन्हें अपॉर्चुनिटी कम मिल रही है. महिलाओं के हक की बात अभी कम सुनी जा रही है. अभी भी बहुत सारे हक महिलाओं को नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में अपने हक की लड़ाई महिलाएं लड़ रही हैं."- मानसी झा, छात्रा
"सामाजिक स्तर पर बदलाव की जरूरत": महिला सशक्तिकरण मार्च में शामिल मगध महिला कॉलेज की छात्रा अनुप्रिया सिंह ने कहा कि लड़कियों के हक के लिए सभी को लड़ाई लड़नी चाहिए. आज भी समाज में लड़के और लड़कियों में भेदभाव किया जाता है. लड़कों को अधिक अवसर दिया जाता है. यह भेदभाव परिवार में देखने को मिलता है. लड़कों के लिए रात 10:00 बजे तक भी बाहर घूमने की छूट होती है. वहीं लड़कियों के बाहर घूमने पर सवाल उठाए जाते हैं.
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"आज के समय में समाज के सभी क्षेत्रों में लड़कियां आगे बढ़ रही हैं. चाहे डिफेंस हो या फिर न्यायपालिका सभी जगह महिलाएं अपने झंडा गाड़ रही हैं. महिलाओं को यदि अवसर दिया जाए तो वह हर चीज कर सकती हैं. समाज में अभी भी लड़कियों की तुलना में लड़कों को बहुत अधिक आजादी मिली हुई है. सरकार ने लड़कियों के उत्थान की दिशा में बहुत सारे प्रयास किए हैं. लड़कियों की शिक्षा के लिए भी बहुत सारे काम किए हैं लेकिन सामाजिक स्तर पर अभी बहुत बदलाव की आवश्यकता है. लड़कियों के लिए सरकारी योजनाएं चल रही हैं, उसका सही क्रियान्वयन हो यह भी सरकार तय करें."- अनुप्रिया सिंह, छात्रा
वहीं छात्रा दीपा कुमारी ने कहा कि वह समाज से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर बराबरी का अधिकार चाहती हैं. प्रदेश की बात करें तो सरकार ने पंचायती राज और नगर पालिका में 50 फ़ीसदी महिलाओं को आरक्षण देकर छोटे-मोटे बातों में उलझा कर रख दिया है. लेकिन विधायिका में विधानसभा और संसद के चुनाव में भी उन्हें 50% का आरक्षण चाहिए. सदन में महिलाओं की भागीदारी कम होने की वजह से महिलाओं की समस्या खुलकर सामने नहीं आती है और ना ही उसके निदान की दिशा में ठोस काम हो पाते हैं. समाज में महिला पुरुष बराबरी का स्तर तभी आएगा जब संसद और विधानसभा में 50% महिलाएं मौजूद होंगी.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: बता दें कि महिलाओं को मान-सम्मान देने के लिए हर साल 8 मार्च को इंटरनेशनल विमेंस डे के रूप में मनाया जाता है. इस दिन महिलाओं की उपलब्धियों और के लिए इसका जश्न मनाया जाता है. इस खास दिन को मनाने का मकसद उन महिलाओं की उपलब्धियों, उनके जज्बे, उनकी ऐतिहासिक यात्राओं और उनके जीवन को याद करना हैं. पहला आधिकारिक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 1975 में मनाया गया था जब इसे संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा मान्यता दी गई थी.
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