पटना: राजधानी पटना में चैत्र नवरात्र की शुरुआत (Chaitra Navratri 2023) हो गई है, जो 30 मार्च तक चलेगी. हम आज आपको राजधानी से 40 किलोमीटर दूर करौटा माता जगदंबा की मंदिर के बारे में बताएंगे. यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, लेकिन नवरात्र के समय में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है. जो श्रद्धालु सच्चे मन से मां से मनोकामना करते हैं. माता उनकी मनोकामना को पूर्ण करती है, इसलिए करौटा दुर्गा माता मंदिर को मनोकामना मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.
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चैत्र नवरात्र की शुरूआत: आज नवरात्र का पहला दिन है. कलश स्थापन के साथ मां की पूजा आराधना शुरू हो गई है. करौटा मंदिर में भी कई सारे श्रद्धालु भक्त सुबह से कतार में हो कर पूजा अर्चना कर रहे हैं. कई भक्त पूजा अर्चना के साथ-साथ दुर्गा पाठ भी करवा रहे हैं. कहा जाता है कि नवरात्र के दिनों में यहां नि:संतान दंपत्तियों की भीड़ रहती है. महिलाएं मानती है कि मां के दर्शन से उनकी गोदी भर जाती है.
करौटा मंदिर में आस्था का सैलाब: स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मंदिर बहुत पुराना है. इस मंदिर के चारों तरफ जंगल ही जंगल था. तब एक पीपल के पेड़ के पास मां की काले पत्थर की मूर्ति थी, जो आज तक विराजमान है और उस समय ग्रामीणों के द्वारा कुल देवी देवता के रूप में माता का पूजा-अर्चना किया जाता था और पकवान चढ़ाया जाता था.
अलग-अलग मंदिर में विराजित है कई देवता: वर्तमान में मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर भी बन गया है. तालाब में स्थापित भगवान विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमा के साथ-साथ भगवान शिव और हनुमान अलग-अलग मंदिर में विराजमान है. भक्तों के सहयोग से यहां भव्य धर्मशाला का निर्माण कराया गया है. जिसमें शादी-विवाह के साथ-साथ पूजा के लिए भी बुकिंग किया जा सकता है, जिससे की मंदिर की कमाई होती है.
हजारों वर्ष पुराना है माता का मंदिर: आचार्य पंचानन शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि करौटा नरौली दुर्गा मंदिर के रूप में जाना जाता है. साथ ही साथ यह मंदिर आंशिक शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने कहा कि इस मंदिर की परंपरा यह है कि पहले कुल देवी देवताओं के नाम से जाना जाता था जो ग्रामीणों के द्वारा पूजा किया जाता था. शादी विवाह होता था तो मां जगदंबा को निमंत्रण भी दिया जाता था. आचार्य ने कहा कि पूर्वज के अनुसार यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है. इसका कोई वर्ष समय नहीं बता सकता है.
प्राचीन है इस मंदिर की कहानी: आचार्य ने बताया कि बख्तियार खिलजी सोना लूटने के लिए जब मंदिरों को ध्वस्त कर रहा था तो उसी समय करौटा मंदिर पहुंचा और माता की प्रतिमा को खंडन कर दिया था. माता का आज इस मंदिर में जो आकार रूप है, वह खंडित रूप में है. मां यहां विराजमान है. जब सोना बख्तियार खिलजी के द्वारा लूटा जा रहा था तो माता स्वयं पत्थर की हो गई माता को स्पर्श किया था. जिसके बाद से माता पत्थर में विराजमान हो गई. लेकिन बख्तियार खिलजी उस पत्थर को भी नहीं उठा पाया. जिस कारण से माता का खंडित रूप आज भी इस मंदिर में विराजमान है.
"इस मंदिर की प्रतिवर्ष 1 करोड़ रुपए कमाई होती है. श्रद्धालु भक्तों के द्वारा दान और शादी विवाह के लिए रूम बुक किया जाता है, उसी से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की कमाई होती है. मंदिर निर्माण में उस पैसे को लगाया जाता है. बहुत जल्द इस मंदिर का जीणोद्धार कराया जाएगा. दूसरे तल्ले पर माता के सभी रूपों को दिखाया जाएगा और एक बड़ा गुम्बज बनवाया जा रहा है. जो कई किलोमीटर दूर से ही लोगों को नजर आएगा. इसमें लगभग 3 लाख रुपये का खर्च आ रहा है."- पंचानन शर्मा, आचार्य
"हम तो बचपन से ही माता की पूजा-अर्चना कर रहे हैं. पहले मंदिर नहीं था लेकिन पीपल का पेड़ जरूर था. पीपल के पेड़ के पास में ही मां की काले पत्थर की मूर्ति है. जिसे पूजते आ रहे हैं. अब तो दूर-दूर से लोग भी यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं. नवरात्रि में विशेष रूप से यहां पर लोग पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं."- लीला देवी, श्रद्धालु भक्त
"इस मंदिर की ऐसी मनोकामना है कि जो लोग भी सच्चे मन से पूजा-अर्चना करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण होती है. महिलाएं खास करके गोदी भराई को ले करके भी पहुंचती है. इस मंदिर में नारियल फोड़ने की विशेष महत्ता है. जो लोग भी सच्चे मन से नारियल फोड़ते हैं और उनका नारियल सड़ा हुआ निकला तो उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है."- सुनैना देवी, श्रद्धालु भक्त
नवमी को उमड़ती है लोगों की भीड़: इस मंदिर की महत्ता नवरात्र में विशेष रूप से बढ़ जाती है. क्योंकि नवरात्र में प्रतिदिन श्रद्धालु भक्तों के बीच में पहुंचती है. खास करके सप्तमी, अष्टमी और नवमी को हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूरदराज से पहुंचते हैं और मां की पूजा-अर्चना कर हवन भी करवाते हैं.