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वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर भतीजे का छलका दर्द, कहा- सरकार से नहीं मिला सम्मान

वशिष्ठ नारायण सिंह के भतीजे मुकेश कुमार ने कहा कि विदेशों में भी ऐसे लोग हैं जो इसी बीमारी से ग्रसित थे. लेकिन वहां की सरकार ने उनका ख्याल रखा और हर संभव मदद पहुंचाई. अफसोस की बात यह है कि जिस व्यक्तित्व को विदेश ने भी लोहा माना, वह अपने ही देश में उपेक्षा के शिकार हो गए.

वशिष्ठ नारायण सिंह के भतीजे मुकेश कुमार
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Published : Nov 14, 2019, 12:56 PM IST

पटना: देश के जाने-माने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का राजधानी के पीएमसीएच में निधन हो गया. वो लंबे समय से सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी से ग्रसित थे. उनके शव को अशोक राजपथ के कुल्हड़िया कॉम्प्लेक्स के बगल में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है जहां जाप प्रमुख पप्पू यादव के साथ कई जदयू नेता मौजूद हैं.

दुख की बात यह है कि वशिष्ठ नारायण की पूरी जिंदगी गुमनामी और अंधेरे में ही बीत गई. ईटीवी से बातचीत करते हुए उनके भतीजे मुकेश कुमार ने कहा कि वशिष्ठ जी के व्यक्तित्व के बारे में सब जानते थे. देश के महान गणितज्ञों में इनकी गिनती होती है. आज इनके निधन से एक युग का अंत हो गया. उन्होंने कहा कि जबतक ये जिंदा थे तबतक ये सरकारी उपेक्षा के शिकार रहे हैं.

patna
वशिष्ठ नारायण सिंह

सरकार की उपेक्षा का शिकार रहे वशिष्ठ नारायण
मुकेश कुमार ने कहा कि विदेशों में भी ऐसे लोग हैं जो इसी बीमारी से ग्रसित थे. लेकिन वहां की सरकार ने उनका ख्याल रखा और हर संभव मदद पहुंचाई. अफसोस की बात यह है कि यहां वैसी सुविधा और सम्मान इन्हें नहीं मिला. उन्होंने कहा कि जिस व्यक्तित्व को विदेश ने भी लोहा माना, वह अपने ही देश में उपेक्षा के शिकार हो गए.

वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर भतीजे का छलका दर्द

गुमनामी में बीत गया जीवन
बता दें कि गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के जीवन का आधा से ज्यादा हिस्सा गुमनामी में ही गुजर गया. वो 1972 में नासा से हमेशा के लिए भारत आ गए और आईआईटी कानपुर के लेक्चरर बने. 5 वर्षों के बाद वो अचानक सीजोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी से ग्रसित हो गए. इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन बेहतर इलाज नहीं होने के कारण वो वहां से भाग गए. 1992 में उन्हें सीवान में एक पेड़ के नीचे बैठे देखा गया. वहीं, सरकार से भी जो उन्हें मदद और सम्मान मिलनी चाहिए थी, वो कभी नसीब नहीं हो सका.

पटना: देश के जाने-माने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का राजधानी के पीएमसीएच में निधन हो गया. वो लंबे समय से सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी से ग्रसित थे. उनके शव को अशोक राजपथ के कुल्हड़िया कॉम्प्लेक्स के बगल में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है जहां जाप प्रमुख पप्पू यादव के साथ कई जदयू नेता मौजूद हैं.

दुख की बात यह है कि वशिष्ठ नारायण की पूरी जिंदगी गुमनामी और अंधेरे में ही बीत गई. ईटीवी से बातचीत करते हुए उनके भतीजे मुकेश कुमार ने कहा कि वशिष्ठ जी के व्यक्तित्व के बारे में सब जानते थे. देश के महान गणितज्ञों में इनकी गिनती होती है. आज इनके निधन से एक युग का अंत हो गया. उन्होंने कहा कि जबतक ये जिंदा थे तबतक ये सरकारी उपेक्षा के शिकार रहे हैं.

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वशिष्ठ नारायण सिंह

सरकार की उपेक्षा का शिकार रहे वशिष्ठ नारायण
मुकेश कुमार ने कहा कि विदेशों में भी ऐसे लोग हैं जो इसी बीमारी से ग्रसित थे. लेकिन वहां की सरकार ने उनका ख्याल रखा और हर संभव मदद पहुंचाई. अफसोस की बात यह है कि यहां वैसी सुविधा और सम्मान इन्हें नहीं मिला. उन्होंने कहा कि जिस व्यक्तित्व को विदेश ने भी लोहा माना, वह अपने ही देश में उपेक्षा के शिकार हो गए.

वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर भतीजे का छलका दर्द

गुमनामी में बीत गया जीवन
बता दें कि गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के जीवन का आधा से ज्यादा हिस्सा गुमनामी में ही गुजर गया. वो 1972 में नासा से हमेशा के लिए भारत आ गए और आईआईटी कानपुर के लेक्चरर बने. 5 वर्षों के बाद वो अचानक सीजोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी से ग्रसित हो गए. इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन बेहतर इलाज नहीं होने के कारण वो वहां से भाग गए. 1992 में उन्हें सीवान में एक पेड़ के नीचे बैठे देखा गया. वहीं, सरकार से भी जो उन्हें मदद और सम्मान मिलनी चाहिए थी, वो कभी नसीब नहीं हो सका.

Intro:देश के जाने-माने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह कॉलेज पटना के पीएमसीएच मैं हो गया है और वशिष्ठ नारायण सिंह के भतीजे मुकेश कुमार ने बताया कि जिस व्यक्तित्व का लोहा विदेश ने भी माना यहां तक कि नासा को वशिष्ठ नारायण ने नाक से लोहे चने चबवाए वह अपने ही देश में उपेक्षा के शिकार हो गए


Body:आपको बताते चलें वशिष्ठ नारायण सिंह की मृत्यु के बाद उनके शव को अशोक राजपथ के कुल्हड़िया कॉन्प्लेक्स के बगल में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है जहां जाप प्रमुख पप्पू यादव के साथ कई जदयू नेता मौजूद है।।


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