पटना: केंद्र सरकार ने आरटीआई एक्ट यानी सूचना का अधिकार कानून में संशोधन किया है. इस एक्ट में संशोधन के बाद से विपक्ष ने सरकार पर आरोप साधना शुरू कर दिया. विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सूचना का अधिकार पर भी सरकार ने कैंची चलानी शुरू कर दी है.
आरजेडी का सरकार पर आरोप
आरजेडी नेता आलोक मेहता ने कहा कि जिस सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार में जोड़ा गया. जनता को महसूस हुआ कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यह महत्वपूर्ण कानून है. उसे सरकार ने बहुमत को आधार बनाकर उसके साथ खिलवाड़ कर रही है. आरजेडी नेता ने बताया कि सरकार मनमानी पर उतर आ आई है. उन्होंने कहा कि अब तक सूचना आयुक्त का पद किसी भी सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त था. लेकिन, नए संशोधन के बाद अब सूचना आयुक्तों का वेतन और उनका कार्यकाल और उनकी सेवा शर्तें भी केंद्र सरकार पर आश्रित हो गई है.
बीजेपी ने किया बचाव
उधर बीजेपी ने विपक्ष के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है. बीपेजी प्रवक्ता अजीत चौधरी ने कहा कि सरकार ने आरटीआई कानून में जो भी बदलाव किए हैं. उससे जनता को ही फायदा पहुंचेगा. विपक्ष का काम है कि वह सरकार के हर काम को गलत बताना. अजीत चौधरी ने कहा कि आरटीआई एक्ट में बदलाव होने अधिकारियों को और उत्तरदायित्व बना रहे हैं. इससे भ्रष्टाचार और भी कम होगा.
ये हुए बदलाव
बता दें कि आरटीआई एक्ट 2005 के मुताबिक केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल 5 साल का होता था. उनका वेतन केंद्र और राज्यों के मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर था. लेकिन, जो संशोधन केंद्र सरकार ने किया है, उसके मुताबिक अब मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल सरकार तय करेगी. इसके साथ-साथ इनका वेतन भत्ता और सेवा से जुड़ी अन्य शर्ते भी अब सरकार ही निर्धारित करेगी.