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नीतीश कैबिनेट में अल्पसंख्यकों की नुमाइंदगी नहीं होने पर सियासत, 'हितैषी' कौन पर आरोप-प्रत्यारोप

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Published : Nov 20, 2020, 1:07 PM IST

Updated : Nov 20, 2020, 1:13 PM IST

देश को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले बिहार में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि करीब 15 फीसदी की आबादी वाले मुस्लिम तबके की मंत्रिमंडल में कोई नुमाइंदगी नहीं है. बिहार की राजनीति में अल्पसंख्यकों की पकड़ ढीली पड़ती नजर आ रही है.

ननन
नन

पटनाः बिहार की राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक के सहारे राजनीतिक दल सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते थे और अल्पसंख्यकों की नुमाइंदगी भी अच्छी खासी हुआ करती थी. लेकिन आज की परिस्थितियों में अल्पसंख्यक सियासत में भटकाव है. नतीजतन राजनीति में अल्पसंख्यकों की पकड़ ढीली पड़ रही है.

विधानसभा में अल्पसंख्यकों की संख्या में कमी
कोरोना काल में बिहार विधानसभा चुनाव हुए. चुनाव कई मायने में अलग रहा. एआईएमआईएम नेता ओवैसी ने सीमांचल में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई और महागठबंधन की पकड़ उस इलाके में ढीली पड़ी. वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा एनडीए को हुआ. तीसरे चरण में एनडीए भारी बढ़त हासिल करने में कामयाब रही.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

चुनाव में जीते 20 अल्पसंख्यक उम्मीदवार
साल 2020 विधानसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो इस बार कुल 20 अल्पसंख्यक उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत हासिल की. जिसमें राष्ट्रीय जनता दल से 9, कांग्रेस से 4, एआईएमआईएम से 5, माले से 1, सीपीएम से 1 और बसपा से 1 अल्पसंख्यक उम्मीदवार जीते. जबकि विधानसभा चुनाव में राजद ने 19, कांग्रेस ने 10, माले ने 3, सीपीआई ने 4 लोगों को टिकट दिए. कुल मिलाकर 36 अल्पसंख्यकों को टिकट दिए गए थे.

साल 2005 में अल्पसंख्यक कोटे से 16, 2010 में 10 और 2015 में 22 उम्मीदवार विधानसभा पहुंचे थे. इस बारा आंकड़ा 20 तक पहुंच गया. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से एक भी अल्पसंख्यक प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाए. नतीजा यह हुआ कि अल्पसंख्यक कोटे से नीतीश कैबिनेट में मंत्री भी नहीं बनाया जा सका.

एनडीए से एक भी उम्मीदवार नहीं जीते
मिशन 2020 को फतह करने के लिए नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक वोट बैंक पर दांव लगाया और 12 प्रत्याशी मैदान में उतारे. लेकिन विडंबना यह रही कि एक भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाए. भाजपा ने एक भी टिकट अल्पसंख्यकों को नहीं दिया. इसे लेकर राजद ने नीतीश सरकार पर निशाना साधा है, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कहा कि नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों के हितैषी होने का ढोंग करते हैं. लेकिन जब मंत्रिमंडल में जगह देने की बात होती है तो पीछे हट जाते हैं.

भाई वीरेंद्र, प्रवक्ता राजद
भाई वीरेंद्र, प्रवक्ता राजद

'भविष्य में अल्पसंख्यकों को दी जाएगी जगह'
वहीं, जदयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा है कि हम सबका साथ सबका विकास के राह पर चलते हैं. हमने 12 अल्पसंख्यक उम्मीदवार मैदान में उतारे. दुर्भाग्य से वह चुनाव नहीं जीत पाए. लेकिन भविष्य में मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दी जाएगी. लेकिन राजद को यह बताना चाहिए कि अल्पसंख्यक के रहनुमा वह हैं या ओवैसी.

अभिषेक झा,  जदयू प्रवक्ता
अभिषेक झा, प्रवक्ता जदयू

इस मुद्दे पर भाजपा प्रवक्ता अजफर शमसी ने कहा है हम सबका साथ सबका विकास की राजनीति करते हैं. देश में लंबे समय तक कांग्रेस और बिहार में राजद का शासन रहा है. उन्होंने अल्पसंख्यकों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है.

'अल्पसंख्यक को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती थी'
वहीं, इस सिलसिले मेंं राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर का मानना है कि राजनीतिक दलों ने अल्पसंख्यकों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है. इस बार जो चुनाव के नतीजे आए, उससे साफ है कि भाजपा अल्पसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण में सफल रही. दूसरा यह कि ओवैसी ने भी अल्पसंख्यकों के वोटों को अपनी ओर खींचा. जिससे जदयू के प्रत्याशी नहीं जीत सके. बावजूद इसके किसी अल्पसंख्यक चेहरे को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती थी.

डीएम दिवाकर, राजनीतिक विश्लेषक
डीएम दिवाकर, राजनीतिक विश्लेषक

पटनाः बिहार की राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक के सहारे राजनीतिक दल सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते थे और अल्पसंख्यकों की नुमाइंदगी भी अच्छी खासी हुआ करती थी. लेकिन आज की परिस्थितियों में अल्पसंख्यक सियासत में भटकाव है. नतीजतन राजनीति में अल्पसंख्यकों की पकड़ ढीली पड़ रही है.

विधानसभा में अल्पसंख्यकों की संख्या में कमी
कोरोना काल में बिहार विधानसभा चुनाव हुए. चुनाव कई मायने में अलग रहा. एआईएमआईएम नेता ओवैसी ने सीमांचल में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई और महागठबंधन की पकड़ उस इलाके में ढीली पड़ी. वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा एनडीए को हुआ. तीसरे चरण में एनडीए भारी बढ़त हासिल करने में कामयाब रही.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

चुनाव में जीते 20 अल्पसंख्यक उम्मीदवार
साल 2020 विधानसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो इस बार कुल 20 अल्पसंख्यक उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत हासिल की. जिसमें राष्ट्रीय जनता दल से 9, कांग्रेस से 4, एआईएमआईएम से 5, माले से 1, सीपीएम से 1 और बसपा से 1 अल्पसंख्यक उम्मीदवार जीते. जबकि विधानसभा चुनाव में राजद ने 19, कांग्रेस ने 10, माले ने 3, सीपीआई ने 4 लोगों को टिकट दिए. कुल मिलाकर 36 अल्पसंख्यकों को टिकट दिए गए थे.

साल 2005 में अल्पसंख्यक कोटे से 16, 2010 में 10 और 2015 में 22 उम्मीदवार विधानसभा पहुंचे थे. इस बारा आंकड़ा 20 तक पहुंच गया. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से एक भी अल्पसंख्यक प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाए. नतीजा यह हुआ कि अल्पसंख्यक कोटे से नीतीश कैबिनेट में मंत्री भी नहीं बनाया जा सका.

एनडीए से एक भी उम्मीदवार नहीं जीते
मिशन 2020 को फतह करने के लिए नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक वोट बैंक पर दांव लगाया और 12 प्रत्याशी मैदान में उतारे. लेकिन विडंबना यह रही कि एक भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाए. भाजपा ने एक भी टिकट अल्पसंख्यकों को नहीं दिया. इसे लेकर राजद ने नीतीश सरकार पर निशाना साधा है, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कहा कि नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों के हितैषी होने का ढोंग करते हैं. लेकिन जब मंत्रिमंडल में जगह देने की बात होती है तो पीछे हट जाते हैं.

भाई वीरेंद्र, प्रवक्ता राजद
भाई वीरेंद्र, प्रवक्ता राजद

'भविष्य में अल्पसंख्यकों को दी जाएगी जगह'
वहीं, जदयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा है कि हम सबका साथ सबका विकास के राह पर चलते हैं. हमने 12 अल्पसंख्यक उम्मीदवार मैदान में उतारे. दुर्भाग्य से वह चुनाव नहीं जीत पाए. लेकिन भविष्य में मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दी जाएगी. लेकिन राजद को यह बताना चाहिए कि अल्पसंख्यक के रहनुमा वह हैं या ओवैसी.

अभिषेक झा,  जदयू प्रवक्ता
अभिषेक झा, प्रवक्ता जदयू

इस मुद्दे पर भाजपा प्रवक्ता अजफर शमसी ने कहा है हम सबका साथ सबका विकास की राजनीति करते हैं. देश में लंबे समय तक कांग्रेस और बिहार में राजद का शासन रहा है. उन्होंने अल्पसंख्यकों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है.

'अल्पसंख्यक को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती थी'
वहीं, इस सिलसिले मेंं राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर का मानना है कि राजनीतिक दलों ने अल्पसंख्यकों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है. इस बार जो चुनाव के नतीजे आए, उससे साफ है कि भाजपा अल्पसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण में सफल रही. दूसरा यह कि ओवैसी ने भी अल्पसंख्यकों के वोटों को अपनी ओर खींचा. जिससे जदयू के प्रत्याशी नहीं जीत सके. बावजूद इसके किसी अल्पसंख्यक चेहरे को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती थी.

डीएम दिवाकर, राजनीतिक विश्लेषक
डीएम दिवाकर, राजनीतिक विश्लेषक
Last Updated : Nov 20, 2020, 1:13 PM IST
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