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सहायक प्रोफेसर की बहाली का रास्ता साफ, 15 साल बाद फिर से 'विश्वविद्यालय सेवा आयोग' को जिम्मेवारी

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Published : Aug 13, 2020, 4:37 PM IST

पटना विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष रणधीर कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में लगभग 11 हजार प्रोफेसरों के पद खाली हैं. वहीं, नई बहाली के नियम को लेकर उन्होंने कहा कि इससे बिहार के अभ्यार्थियों को नुकसान होगा.

सहायक प्रोफेसर की बहाली
सहायक प्रोफेसर की बहाली

पटना: बिहार के सभी विश्वविद्यालयों में सालों से प्रोफेसरों की कमी है. विषयवार शिक्षक नहीं होने की वजह से पठन-पाठन प्रभावित हो रहे हैं. ऐसे में अब राजभवन के निर्देश पर शिक्षा विभाग ने बिहार के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति की कवायद शुरू कर दी है. नियुक्ति के लिए विश्वविद्यालय सेवा आयोग का फिर से गठन कर दिया गया है. अब आयोग जल्द ही बहाली की प्रकिया को शुरू करने वाली है.

रिक्तियों को भरना आयोग के लिए बड़ी चुनौती
बता दें कि बिहार के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों की बहाली का बड़े पैमाने पर गोरखधंधा का खेल होता रहा है. जिस विश्वविद्यालय सेवा आयोग से एक बार फिर से बहाली होने वाली है. उसी आयोग को 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अनियमितता का रोना रोकर भंग कर दिया था.

हालांकि, 2017 में सीएम के निर्देश पर 2017 में फिर से आयोग का गठन किया गया था और उसी के माध्य्म से बहाली होने जा रही है. बिहार के 14 विश्वविद्यालयों में लगभग 11 हजार प्रोफेसरों के पद रिक्त हैं.

'बिहार के विश्वविद्यालय में लगभग 11 हजार पद खाली'
इसको लेकर जब ईटीवी भारत संवाददाता ने पटना विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष रणधीर कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में लगभग 11 हजार प्रोफेसरों के पद खाली हैं. विश्वविद्यालय में छात्र-शिक्षक का अनुपात गड़बड़ा गया है.

रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि कि बीते 45 सालों से शिक्षकों के पदों में इजाफा नहीं किया गया है. जबकि, छात्रों की संख्या में 100 फीसदी तक की वृद्धि हुई है. उन्होंने बताया कि पटना विश्वविद्यालय में 45 प्रतिशत शिक्षक और 50 प्रतिशत से कम कर्मचारी बचे हैं. उन्होंने आगे बताया कि विश्वविद्यालयों में जो पद रिक्त पड़े हैं. उनको भरने के लिए जब भी बहाली निकलता है, तो उसे भरने में कम से कम 4 से 5 साल का समय लगता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'बहाली के लिए नियम से बिहार के अभ्यार्थियों को नुकसान'
नए बहाली के नियम को लेकर रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि बिहार के अभ्यार्थियों को इससे नुकसान होगा. उन्होंने बताया कि नए बहाली नियम में एमफिल करने वाले अभ्यार्थियों को मौका दिया जा रहा है. जबकि एमफिल की पढ़ाई बिहार के किसी विश्वविद्यालय में होती ही नहीं है. रणधीर सिंह ने आगे बताया कि नियम के अनुसार होना बिहार के 80 प्रतिशत और बाहर के छात्रों को 20 प्रतिशत मौका दिया जाना चाहिए.

वहीं, इस मामले पर बीजेपी नेता प्रोफेसर नवल यादव ने कहा कि बहाली में यूजीसी के गाइडलाइन का पालन किया गया है. एमफिल के सवाल पर उन्होंने कहा कि आने वाले समय में यूजीसी एमफिल को समाप्त करने वाला है. अगर बहाली में इसका असर पड़ेगा तो, बिहार सरकार आने वाले समय में इसपर विचार कर सकती है.

प्रो. नवल यादव, बीजेपी नेता
प्रो. नवल यादव, बीजेपी नेता

पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा ने किया था आयोग का गठन
बता दें कि बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन उस सयम के तत्कालीन सीएम जगन्नाथ मिश्रा ने 1982 में किया था. 2003 तक आयोग के माध्यम से ही विश्वविद्यालयों में लेक्चरर की बहाली होती रही. लेकिन 2005 में नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली और उन्होंने 2006 में बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग को यह कर भंग कर दिया था कि बहाली में बड़े पैमाने पर धांधली हो रही है और बहाली कराने का जिम्मा बीपीएससी को सौंप दिया था.

हलांकि, बीपीएससी के पास पहले से ही वर्क लोड बहुत ज्यादा था. जिस वजह से बहाली को पूरा करने में 4 से 5 साल का समय लग रहा था. ऐसे में बिहार सरकार ने एक बार फिर से बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन कर सहायक प्रोफेसर की करने का अधिकार आयोग को दे दिया. अयोग का गठन और सीएम की मंजूरी के बाद राज्यपाल ने भी अधिसूचना जारी कर दी है. अब जल्द ही बहाली प्रकिया शुरू करने वाली है.

रणधीर कुमार सिंह
रणधीर कुमार सिंह, पटना विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष

बहाली देखना रहेगा दिलचस्प
गौरतलब है कि बिहार में बीते चार दशक से विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की बहाली का खेल चल रहा है. इसका असर शिक्षकों के साथ-साथ छात्रों पर भी पड़ा है. बिहार में आज उच्च शिक्षा की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. राज्यपाल ने बहाली को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है. ऐसे में यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा कि 15 साल बाद बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग फिर से सहायक प्रोफेसरों की बहाली किस तरह से कराता है. बताते चलें कि आयोग का कार्यकाल 3 साल के लिए होता है, जिसमें से आयोग ने 2 साल पूरा कर लिया है.

पटना: बिहार के सभी विश्वविद्यालयों में सालों से प्रोफेसरों की कमी है. विषयवार शिक्षक नहीं होने की वजह से पठन-पाठन प्रभावित हो रहे हैं. ऐसे में अब राजभवन के निर्देश पर शिक्षा विभाग ने बिहार के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति की कवायद शुरू कर दी है. नियुक्ति के लिए विश्वविद्यालय सेवा आयोग का फिर से गठन कर दिया गया है. अब आयोग जल्द ही बहाली की प्रकिया को शुरू करने वाली है.

रिक्तियों को भरना आयोग के लिए बड़ी चुनौती
बता दें कि बिहार के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों की बहाली का बड़े पैमाने पर गोरखधंधा का खेल होता रहा है. जिस विश्वविद्यालय सेवा आयोग से एक बार फिर से बहाली होने वाली है. उसी आयोग को 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अनियमितता का रोना रोकर भंग कर दिया था.

हालांकि, 2017 में सीएम के निर्देश पर 2017 में फिर से आयोग का गठन किया गया था और उसी के माध्य्म से बहाली होने जा रही है. बिहार के 14 विश्वविद्यालयों में लगभग 11 हजार प्रोफेसरों के पद रिक्त हैं.

'बिहार के विश्वविद्यालय में लगभग 11 हजार पद खाली'
इसको लेकर जब ईटीवी भारत संवाददाता ने पटना विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष रणधीर कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में लगभग 11 हजार प्रोफेसरों के पद खाली हैं. विश्वविद्यालय में छात्र-शिक्षक का अनुपात गड़बड़ा गया है.

रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि कि बीते 45 सालों से शिक्षकों के पदों में इजाफा नहीं किया गया है. जबकि, छात्रों की संख्या में 100 फीसदी तक की वृद्धि हुई है. उन्होंने बताया कि पटना विश्वविद्यालय में 45 प्रतिशत शिक्षक और 50 प्रतिशत से कम कर्मचारी बचे हैं. उन्होंने आगे बताया कि विश्वविद्यालयों में जो पद रिक्त पड़े हैं. उनको भरने के लिए जब भी बहाली निकलता है, तो उसे भरने में कम से कम 4 से 5 साल का समय लगता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'बहाली के लिए नियम से बिहार के अभ्यार्थियों को नुकसान'
नए बहाली के नियम को लेकर रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि बिहार के अभ्यार्थियों को इससे नुकसान होगा. उन्होंने बताया कि नए बहाली नियम में एमफिल करने वाले अभ्यार्थियों को मौका दिया जा रहा है. जबकि एमफिल की पढ़ाई बिहार के किसी विश्वविद्यालय में होती ही नहीं है. रणधीर सिंह ने आगे बताया कि नियम के अनुसार होना बिहार के 80 प्रतिशत और बाहर के छात्रों को 20 प्रतिशत मौका दिया जाना चाहिए.

वहीं, इस मामले पर बीजेपी नेता प्रोफेसर नवल यादव ने कहा कि बहाली में यूजीसी के गाइडलाइन का पालन किया गया है. एमफिल के सवाल पर उन्होंने कहा कि आने वाले समय में यूजीसी एमफिल को समाप्त करने वाला है. अगर बहाली में इसका असर पड़ेगा तो, बिहार सरकार आने वाले समय में इसपर विचार कर सकती है.

प्रो. नवल यादव, बीजेपी नेता
प्रो. नवल यादव, बीजेपी नेता

पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा ने किया था आयोग का गठन
बता दें कि बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन उस सयम के तत्कालीन सीएम जगन्नाथ मिश्रा ने 1982 में किया था. 2003 तक आयोग के माध्यम से ही विश्वविद्यालयों में लेक्चरर की बहाली होती रही. लेकिन 2005 में नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली और उन्होंने 2006 में बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग को यह कर भंग कर दिया था कि बहाली में बड़े पैमाने पर धांधली हो रही है और बहाली कराने का जिम्मा बीपीएससी को सौंप दिया था.

हलांकि, बीपीएससी के पास पहले से ही वर्क लोड बहुत ज्यादा था. जिस वजह से बहाली को पूरा करने में 4 से 5 साल का समय लग रहा था. ऐसे में बिहार सरकार ने एक बार फिर से बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन कर सहायक प्रोफेसर की करने का अधिकार आयोग को दे दिया. अयोग का गठन और सीएम की मंजूरी के बाद राज्यपाल ने भी अधिसूचना जारी कर दी है. अब जल्द ही बहाली प्रकिया शुरू करने वाली है.

रणधीर कुमार सिंह
रणधीर कुमार सिंह, पटना विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष

बहाली देखना रहेगा दिलचस्प
गौरतलब है कि बिहार में बीते चार दशक से विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की बहाली का खेल चल रहा है. इसका असर शिक्षकों के साथ-साथ छात्रों पर भी पड़ा है. बिहार में आज उच्च शिक्षा की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. राज्यपाल ने बहाली को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है. ऐसे में यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा कि 15 साल बाद बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग फिर से सहायक प्रोफेसरों की बहाली किस तरह से कराता है. बताते चलें कि आयोग का कार्यकाल 3 साल के लिए होता है, जिसमें से आयोग ने 2 साल पूरा कर लिया है.

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