नई दिल्ली/पटना: किसान आंदोलन को लेकर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह सांसद आरसीपी सिंह ने राज्यसभा में विरोधियों पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में हुए किसान आंदोलन की तुलना अभी के किसान आंदोलन से करना गलत है.
विरोधियों को आरसीपी सिंह की खरी-खरी
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के बयान पर पलट वार करते हुए उन्होंने कहा कि चंपारण आंदोलन में नील की खेती का मुद्दा था. जिसमें जो किसान गन्ना और धान की खेती करते थे, उन किसानों से तीन बीघा नील की खेती का उत्पादन करना अनिवार्य होता था, जिसमें खर्च भी उनको खुद देना पड़ता था. तीनों बिल में कहीं भी इस तरह की चर्चा नहीं है. वहीं, खेड़ा आंदोलन में लगान का मुद्दा था. अभी के तीनों बिलों में लगान का मुद्दा भी नहीं है. इसलिए इसकी तुलना भी किसान आंदोलन से नहीं की जा सकती है.
'मंडियों में भ्रष्टाचार के अड्डे को किया खत्म'
विरोधियों का कहना है कि बिहार में मंडियां नहीं है. लेकिन मैंने यूपी की भी स्थिति भी देखी है, जहां मैं ज्वाइंट सेक्रेटरी अपॉइंट था. सबसे ज्यादा सिफारिशें डिप्टी डायरेक्टर मंडी परिषद के लिए आती थी जो कि भ्रष्टाचार का पूरा अड्डा था. बिहार में 2005 में जब एनडीए की सरकार बनी मुख्यमंत्री के साथ मैं सेक्रेटरी था. बिहार सरकार ने एपीएमसी को खत्म कर दिया. जिससे भ्रष्टाचार की कमर टूट गई.
'आज अनाज का उत्पादन 181 लाख टन'
बिहार में 2005 में अनाज का उत्पादन 81 लाख टन था. आज हमारा 181 लाख टन अनाज का उत्पादन है. आज हमारा लक्ष्य 45 लाख टन केवल धान का है. बिहार में 2005 के बाद मक्के का उत्पादन 135 प्रतिशत बढ़ा है. धान का 119 प्रतिशत बढ़ा है. गेहूं का 118 प्रतिशत बढ़ा है. ये सब इसलिए बढ़ा है, क्योंकि हमने भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली एक्टिविटी को खत्म कर दिया है.
''पहले कानून के अनुसार किसान को आजादी है की अपनी उपज वो कहां बेचे. अपनी उपज को वो मंडी में भी बेच सकता है. हमारे नालंदा जिले से सब्जियां कोलकाता भी जा रही हैं और रांची भी जा रही हैं. फिर भी लोगों को गुमराह किया जा रहा है''- आरसीपी सिंह, सांसद, जेडीयू
''दूसरे कानून के अनुसार किसान कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग के लिए स्वतंत्र है. कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग किसी से बलपूर्वक कराई गई खेती नहीं है. बल्कि इसमें दोनों पक्षों की रजामंदी होगी. इससे उसे सुविधा मिलेगी, उसकी आमदनी बढ़ेगी. इसलिए इसकी चिंता भी नहीं करनी चाहिए''- आरसीपी सिंह, सांसद, जेडीयू
''तीसरे कानून एसेंशियल कमोडिटी एक्ट 1954-55 में जब ये एक्ट आया था. बाहर से अनाज आता था. तब हम हम लोग अनाज के लिए मार खाते रहते थे. आज 296 मीट्रिक टन खाद्यान्न उत्पादन हो रहा है और 320 मीट्रिक टन सब्जी और फलों का उत्पादन हो रहा है. हम सरप्लस में हैं''- आरसीपी सिंह, सांसद, जेडीयू
'कलही राजनीति से बढ़े आगे'
लोहिया जी कहा करते थे कि कलही राजनीति से आगे चलना चाहिए. सरकार ने एक्ट बना दिए. लोग सुप्रीम कोर्ट गए, सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट जो आदेश देता है, हम लोग उसे स्वीकारते हैं. सरकार ने भी उसे स्वीकारा और आंदोलनकारियों को कहा कि वार्ता के लिए आइए. आप एक तरफ कह रहे हैं सरकार हठधर्मी हैं. आप सभी उन लोगों की भी तो हठधर्मिता देखिए वो क्यों वार्ता के लिए नहीं आ रहे हैं. हम सभी को कैसे किसानों की आमदनी बढ़ें इस पर चर्चा करनी चाहिए.
'बिहार में कोरोना मृत्युदर 0.5%'
कोरोना का ट्रैक रिकॉर्ड देखिए उनके यहां मृत्युदर करीब 2 प्रतिशत के आसपास है. वहीं, हमारे यहां मृत्युदर 1.5 प्रतिशत के आसपास है. अमेरिका की आबादी 30 करोड़ है. हिंदुस्तान 130 करोड़ है. वहां 2.69 करोड़ लोग संक्रमित हुए. हमारे यहां 1.70 करोड़ लोग ही संक्रमित हुए. उनका रिकवरी रेट 64 प्रतिशत है, हमारा रिकवरी रेट 97 प्रतिशत है. वहीं, बिहार में कोरोना से मृत्युदर 0.5 प्रतिशत है.
'हमें हमारे साइंटिस्टों पर गर्व'
पूरे देश से जो 24 लाख श्रमिक आए उनकी देखभाल सरकार ने की. केंद्र सरकार के अतिरिक्त 10 हजार करोड़ रुपए हमने खर्च किए. प्लेग की वैक्सीन भी 567 सालों के बाद आया. आज भी प्लेग खत्म नहीं हुआ. वहीं, साल भर के अंदर आपके पास वैक्सीन है. हमें हमारे साइंटिस्टों के ऊपर गर्व होना चाहिए. हमारी वैक्सीन की भी कीमत कोविशिल्ड 200 रु. पर डोज, दो डोज के 400 रु. लगेंगे. दूसरा कोवैक्सीन 295 रु, दो डोज के 600 रुपए से भी कम लगेंगे. वहीं बाहरी देशों में कोरोना वैक्सीन फाइजर 20 डॉलर (1400 रु) का है.
हमें पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर बात करनी चाहिए. साइंटिस्टों को सैल्यूट के साथ केंद्र सरकार को भी धन्यवाद देना चाहिए. जिस सफलता के साथ इस महामारी से निपटा गया है. वह गौरव की बात है.