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पटना के गांधी मैदान में 1955 से हो रहा रावण बध, उमड़ती है 3 लाख लोगों की भीड़ लेकिन... - sharad navaratri 2021

दशहरा (Dussehra) के अवसर पर इस बार भी पटना के गांधी मैदान (Gandhi Maidan) में रावण वध नहीं होगा. कालिदास रंगालय (Kalidas Rangalaya) में तीन दिन तक रामलीला होगी. इसका लाइव प्रसारण सोशल मीडिया पर किया जाएगा.

गांधी मैदान
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Published : Oct 13, 2021, 9:02 PM IST

पटना: बिहार की राजधानी पटना (Patna) के ऐतिहासिक गांधी मैदान (Gandhi Maidan) में पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी रावण वध (Ravan Dahan) नहीं होगा. कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के खतरे को देखते हुए ये फैसला लिया गया है. दशहरा कमेटी के अध्यक्ष कमल नोपानी कहते हैं कि गांधी मैदान में रावण वध का आयोजन नहीं होने का मलाल तो है, लेकिन लोगों की सुरक्षा भी तो जरूरी है.

ये भी पढ़ें: इस बार दशहरा पर पटना के गांधी मैदान में नहीं होगा रावण वध

कमल नोपानी बताते हैं कि पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में रावण वध के दौरान करीब 3 लाख लोगों की भीड़ उमड़ती है. ऐसे में कोई कोरोना का मरीज उस भीड़ में आ गया तो बहुत बड़ी क्षति होगी. लिहाजा सरकार और कमेटी के लोगों ने इस ऐतिहासिक पर्व को सांकेतिक तौर पर मनाने का निर्णय लिया है. जिसका सीधा प्रसारण सोशल साइट के माध्यम से और दूरदर्शन के माध्यम से भी किया जाएगा.

देखें रिपोर्ट

दुर्गापूजा के मौके पर राजधानी में रावण-वध कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1955 से हुई थी. पहली बार रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला पटना के गांधी मैदान में जला था. देश की आजादी के बाद पाकिस्तान से पलायन कर पटना आए पंजाबी समुदाय के लोगों ने रावण वध कार्यक्रम की शुरुआत की थी. पाकिस्‍तान से यहां आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने इन परिवारों को बसाने के लिए राजधानी में सरकार की ओर से जमीन मुहैया कराई थी और शरणार्थियों को सहयोग राशि दी थी. यहां बसने के बाद समुदाय के लोगों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर एक हजार रुपए जमा करने के बाद पहली बार आयोजन को पूर्ण किया था.

दशहरा कमेटी के संस्थापक अध्यक्ष कमल नोपनी बताते हैं कि देश के बंटवारे के बाद पंजाब को दो हिस्सों में बांटा गया था. एक हिस्सा पाकिस्तान में था. देश के आजाद होने के बाद कुछ लोग 1947 में पटना शरणार्थी बनकर आए थे. इन्हीं लोगों में लाहौर से बख्शी राम गांधी भी पटना आए थे. वे लाहौर में होने वाली रामलीला कमेटी के सचिव हुआ करते थे. उन्होंने 1954 में दशहरा कमेटी का गठन किया था.

दरअसल बैद्यनाथ आयुर्वेद के मालिक दुर्गा प्रसाद शर्मा कमेटी के सबसे पहले अध्यक्ष बने थे. होटल चाणक्य के मालिक पीके कोचर, उनके बड़े भाई ओम प्रकाश कोचर, बख्शी राम गांधी के छोटे भाई मोहन लाल गांधी, डब्लूडी सचदेवा, टीआर मेहता, रामनाथ साहनी, जवाहर लाल पासी और आरके मल्होत्रा कमेटी के सदस्य बने. सभी कमेटी के सदस्यों ने मिलकर गांधी मैदान में पहली बार रावण-वध का आयोजन किया था. इसमें मुख्य अतिथि बिहार के तत्कालीन राज्यपाल आरआर दिवाकर थे और इस कार्यक्रम में कई वर्षों तक मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल को ही बुलाया जाता था.

ये भी पढ़ें: बिहार में भी गूंजने लगा बंगाल के ढाक का ताल, अलग-अलग तरीकों से हो रही मां दुर्गा की पूजा

रावण वध को लेकर पुतला बनाने का कार्य गया के कारीगर मोहम्मद जमाल मियां ने किया था. उन्होंने पहली बार 50 फीट का रावण, 40 फीट का कुंभकर्ण और 30 फीट का मेघनाथ का पुतला बनाया था. प्रतिवर्ष शहर में होने वाले रावण वध कार्यक्रम के लिए पुतले का निर्माण गया के कारीगरों द्वारा होता रहा है. वहीं पुतले में पटाखे लगाने का कार्य इलाही बख्श का रहा था. वे कई वर्षों से कमेटी से जुड़कर अपने दायित्व को निभाने में लगे हुए रहे.

पटना: बिहार की राजधानी पटना (Patna) के ऐतिहासिक गांधी मैदान (Gandhi Maidan) में पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी रावण वध (Ravan Dahan) नहीं होगा. कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के खतरे को देखते हुए ये फैसला लिया गया है. दशहरा कमेटी के अध्यक्ष कमल नोपानी कहते हैं कि गांधी मैदान में रावण वध का आयोजन नहीं होने का मलाल तो है, लेकिन लोगों की सुरक्षा भी तो जरूरी है.

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कमल नोपानी बताते हैं कि पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में रावण वध के दौरान करीब 3 लाख लोगों की भीड़ उमड़ती है. ऐसे में कोई कोरोना का मरीज उस भीड़ में आ गया तो बहुत बड़ी क्षति होगी. लिहाजा सरकार और कमेटी के लोगों ने इस ऐतिहासिक पर्व को सांकेतिक तौर पर मनाने का निर्णय लिया है. जिसका सीधा प्रसारण सोशल साइट के माध्यम से और दूरदर्शन के माध्यम से भी किया जाएगा.

देखें रिपोर्ट

दुर्गापूजा के मौके पर राजधानी में रावण-वध कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1955 से हुई थी. पहली बार रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला पटना के गांधी मैदान में जला था. देश की आजादी के बाद पाकिस्तान से पलायन कर पटना आए पंजाबी समुदाय के लोगों ने रावण वध कार्यक्रम की शुरुआत की थी. पाकिस्‍तान से यहां आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने इन परिवारों को बसाने के लिए राजधानी में सरकार की ओर से जमीन मुहैया कराई थी और शरणार्थियों को सहयोग राशि दी थी. यहां बसने के बाद समुदाय के लोगों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर एक हजार रुपए जमा करने के बाद पहली बार आयोजन को पूर्ण किया था.

दशहरा कमेटी के संस्थापक अध्यक्ष कमल नोपनी बताते हैं कि देश के बंटवारे के बाद पंजाब को दो हिस्सों में बांटा गया था. एक हिस्सा पाकिस्तान में था. देश के आजाद होने के बाद कुछ लोग 1947 में पटना शरणार्थी बनकर आए थे. इन्हीं लोगों में लाहौर से बख्शी राम गांधी भी पटना आए थे. वे लाहौर में होने वाली रामलीला कमेटी के सचिव हुआ करते थे. उन्होंने 1954 में दशहरा कमेटी का गठन किया था.

दरअसल बैद्यनाथ आयुर्वेद के मालिक दुर्गा प्रसाद शर्मा कमेटी के सबसे पहले अध्यक्ष बने थे. होटल चाणक्य के मालिक पीके कोचर, उनके बड़े भाई ओम प्रकाश कोचर, बख्शी राम गांधी के छोटे भाई मोहन लाल गांधी, डब्लूडी सचदेवा, टीआर मेहता, रामनाथ साहनी, जवाहर लाल पासी और आरके मल्होत्रा कमेटी के सदस्य बने. सभी कमेटी के सदस्यों ने मिलकर गांधी मैदान में पहली बार रावण-वध का आयोजन किया था. इसमें मुख्य अतिथि बिहार के तत्कालीन राज्यपाल आरआर दिवाकर थे और इस कार्यक्रम में कई वर्षों तक मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल को ही बुलाया जाता था.

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रावण वध को लेकर पुतला बनाने का कार्य गया के कारीगर मोहम्मद जमाल मियां ने किया था. उन्होंने पहली बार 50 फीट का रावण, 40 फीट का कुंभकर्ण और 30 फीट का मेघनाथ का पुतला बनाया था. प्रतिवर्ष शहर में होने वाले रावण वध कार्यक्रम के लिए पुतले का निर्माण गया के कारीगरों द्वारा होता रहा है. वहीं पुतले में पटाखे लगाने का कार्य इलाही बख्श का रहा था. वे कई वर्षों से कमेटी से जुड़कर अपने दायित्व को निभाने में लगे हुए रहे.

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